राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील संख्या-1164/2004
(जिला उपभोक्ता फोरम, कानपुर नगर द्वारा परिवाद संख्या-1175/2002 में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 27.05.2004 के विरूद्ध)
महेन्द्र कुमार सिंह चंदेल पुत्र स्व0 प्रताप सिंह चंदेल, निवासी 117/209, काकादेव, कानपुर नगर।
...................अपीलार्थी/परिवादी।
बनाम्~
1. चेयरमैन यू0पी0 स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड शक्ति भवन लखनऊ।
2. मैनेजिंग डायरेक्टर (केस्को) परमट सिविल लाइन्स कानपुर नगर।
................प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण।
समक्ष:-
1. माननीय श्री जितेन्द्र नाथ सिन्हा, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 19.03.2015
माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
आज यह पत्रावली प्रस्तुत हुई। पुकार करवाये जाने पर उभय पक्ष की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। यह अपील, लगभग 12 वर्ष से निस्तारण हेतु लम्बित है। अत: पीठ द्वारा यह समीचीन पाया गया कि इसका निस्तारण कर दिया जाय। अपीलार्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ और न ही अपीलार्थी द्वारा अपील के सम्बन्ध में आवश्यक पैरवी ही सुनिश्चित की गयी।
पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट है कि यह अपील, जिला फोरम, कानपुर नगर द्वारा परिवाद संख्या-1175/2002 में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 27.05.2004 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी थी। पत्रावली के अवलोकन से यह भी स्पष्ट है कि अपील प्रस्तुत करने के पश्चात से अपीलार्थी की ओर से इस अपील में कोई रूचि नहीं ली जा रही है। इसी सन्दर्भ में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा-30 की उपधारा (2) के अन्तर्गत निर्मित उत्तर प्रदेश उपभोक्ता संरक्षण नियमावली 1987 के नियम 8 के उप नियम (6) में निम्नवत् प्राविधान है :-
‘’ नियम-8 (6) : सुनवाई के दिनांक को या किसी अन्य दिनांक को जब तक के लिये सुनवायी स्थगित की जाये, पक्षकारों या उनके प्राधिकृत अभिकर्त्ताओं को राज्य आयोग के समक्ष उपस्थित होना बाध्यकर होगा। यदि अपीलार्थी या उसका प्राधिकृत अभिकर्ता ऐसे दिनांक को उपस्थित होने में असफल रहता है तो राज्य आयोग, स्व विवेकानुसार या तो अपील को खारिज कर सकता है या मामले के गुणावगुण के आधार पर उसे विनिश्चित कर सकता है। यदि प्रत्यर्थी या उसका प्राधिकृत अभिकर्ता ऐसे दिनांक को उपस्थित होने में असफल रहता है तो राज्य आयोग एक पक्षीय कार्यवाही करेगा और मामले के गुणावगुण के आधार पर अपील का एक पक्षीय विनिश्चय करेगा। ‘’
-2-
उपरोक्त विधिक प्राविधान के अनुसार अपीलार्थी का यह दायित्व था कि वह अपील दायर करने के उपरान्त प्रत्येक नियत तिथि पर स्वयं अथवा उसके द्वारा प्राधिकृत अभिकर्त्ता उपस्थित होते, परन्तु उसके द्वारा अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं किया गया। अत: अपीलार्थी की अनुपस्थिति में यह अपील निर्णीत किये जाने योग्य है। परिणामत: अभिलेखों का भलीभांति अनुशीलन किया गया।
अपीलार्थी द्वारा यह अपील योजित करने के उपरान्त से कोई कार्यवाही नहीं की गयी और न ही कोई उपस्थित हुआ। उपरोक्त विधिक प्राविधानों के आलोक में पीठ इस निष्कर्ष पर पहुँची है कि अपीलार्थी को इस अपील में कोई रूचि नहीं है। अत: अपीलार्थी की अनुपस्थिति व पैरवी के अभाव में यह अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
यह अपील अपीलार्थी की अनुपस्थिति व पैरवी के अभाव में निरस्त की जाती है।
पक्षकारान अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वंय वहन करेंगे।
इस निर्णय/आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि उभय पक्ष को नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये।
(जितेन्द्र नाथ सिन्हा) (जुगुल किशोर)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0
कोर्ट-3