जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।
उपस्थित - (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-135/1995
मं0 जगन्नाथ दास चेला स्व0 मं0 जगत नरायन दास 670 श्री राघव राम पैलस छोटी देवकाली षहर अयोध्या जनपद फैजाबाद। .................. उपभोक्ता
बनाम
1. उ0 प्र0 राज्य विद्युत परिशद द्वारा अधिषाशी अभियंता विद्युत वितरण खण्ड प्रथम कुंज कुटीर फैजाबाद।
2. अधिषाशी अभियंता विद्युत वितरण खण्ड प्रथम कुंज कुटीर फैजाबाद।
3. सहायक अभियंता राजस्व विद्युत वितरण खण्ड प्रथम फेस सिविल लाइन फैजाबाद।
4. अवर अभियंता 33 के0वी0 विद्युत उपगृह राम की पैड़ी, अयोध्या जनपद फैजाबाद।
.............. विपक्षीगण
निर्णय दिनाॅंक 17.06.2015
उद्घोषित द्वारा: श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य।
निर्णय
परिवादी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादी उदासीन सम्प्रदाय के मंदिर श्री राघव राम पैलेस छोटी देवकाली अयोध्या का महन्त है तथा स्व0 महन्त जगत नरायन दास जिनके नाम से विद्युत कनेक्षन है का एक मात्र चेला व उत्तराधिकारी है। उक्त मंदिर में वर्शों से घरेलू उपयोग हेतु विद्युत कनेक्षन संख्या 062900 बुक संख्या 0216 लगा है जिसका उपभोग परिवादी करता चला आ रहा है और विद्युत बिलों का नियमित भुगतान करता है। परिवादी का विद्युत बिल हमेषा से रुपये 200/- से 205/- के बीच आता था। किन्तु परिवादी का बिल माह जनवरी 1994 का रुपये 2,343.91 पैसे का आ गया तो परिवादी उक्त बिल व पिछले बिल को लेकर विपक्षीगण से मिला और प्रार्थना पत्र दिया तो उन्होंने कहा कि बिल छोड़ जायें दूसरा बिल षुद्ध कर के बना देंगे, मगर कोई कार्यवाही नहीं हुई। परिवादी को दूसरा बिल दिनांक 03.05.1994 का मिला जो रुपये 4,852/- का था। परिवादी को पुनः दिनांक 31.05.1994 तक का बिल भेजा गया जो रुपये 7,353.62 पैसे का था। विपक्षीगण ने न तो परिवादी का बिल ठीक किया और न ही परिवादी के प्रार्थना पत्र पर कोई कार्यवाही की। परिवादी ने पुनः विपक्षीगण से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि परिवादी का मीटर खराब है परिवादी अपना मीटर बदलवा ले तब परिवादी ने उसी दिन दिनांक 12.09.1994 को विपक्षीगण को एक प्रार्थना पत्र दिया कि परिवादी का मीटर बदल दिया जाय तथा विद्युत बिल संषोधित कर दिया जाय। परिवादी के प्रार्थना पत्र पर दिनांक 16.11.1994 को परिवादी का विद्युत मीटर बदल दिया मगर विद्युत बिल संषोधित नहीं किया और दिनांक 17.12.1994 को रुपये 15,885.80 पैसे का बिल भेज दिया। इससे पहले कि परिवादी अपने संषोधित बिल का भुगतान करता परिवादी का विद्युत कनेक्षन दिनांक 30.11.1994 को विपक्षीगणों ने बिना किसी पूर्व नोटिस के काट दिया। परिवादी ने दिनांक 12.01.1995 को विपक्षी संख्या 3 को एक प्रार्थना पत्र दिया और बिल षुद्ध कराने को कहा। परिवादी का विद्युत कनेक्षन लोड 500 वाट तथा दिनांक 27.02.1995 को रीडिंग 38 यूनिट थी तथा विद्युत कनेक्षन कटने का दिनांक 30.11.1994 था। इस आख्या को लेकर परिवादी जब विपक्षीगण से मिला तो उन्होंने पुनः रिकनेक्षन फीस जमा करने व बकाया जमा करने को कहा तथा रुपये 2,000/- घूस देने पर कनेक्षन देने को कहा। दिनांक 30.03.1995 को विपक्षीगण ने परिवादी का विद्युत बिल संषोधित करने से मना कर दिया। इसलिये परिवादी को अपना परिवाद दाखिल करना पड़ा। परिवादी के दिनांक 30.11.1994 के विद्युत बिलों को संषोधित कराया जाय तथा दिनांक 30.11.1994 के बाद के विद्युत बिल निरस्त किये जायें, परिवादी का कनेक्षन विपक्षीगण अपने खर्चे पर जोड़ दें, क्षतिपूर्ति रुपये 70,000/- परिवादी को विपक्षीगण से दिलायी जाय।
विपक्षीगण ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया है तथा जगत नरायन दास के नाम विद्युत कनेक्षन संख्या 216/062900 होना स्वीकार किया है। प्रष्नगत विद्युत कनेक्षन के सम्बन्ध में विद्युत बिल कम्प्यूटर से बना कर भेजे गये हैं जिसमें सदैव ए0डी0एफ0 लिखा रहता था जिसका भुगतान परिवादी द्वारा किया जाना स्वीकार है किन्तु यह स्वीकार नहीं है कि परिवादी द्वारा उपभोग की गयी यूनिट के अनुसार बिल का भुगतान किया जाता था या किया गया है। परिवादी को उपभोग की गयी विद्युत की रीडिंग बुक के अनुसार उपभोग की गयी यूनिट का विवरण प्राप्त होने पर उसके उपभोग के आधार पर ए0डी0एफ0 के बिलों में की गयी भुगतान की धनराषि को समायोजित करते हुए बिल भेजा गया और परिवादी द्वारा बिल न जमा करने पर उसका विद्युत कनेक्ष विच्छेदित कर दिया गया। परिवादी जब तक विद्युत का बकाया जमा नहीं करता तब तक परिवादी का विद्युत कनेक्षन जोड़ा नहीं जा सकता। परिवादी द्वारा उपभोग की गयी विद्युत के अनुसार ही परिवादी को बिल भेजे गये हैं। परिवादी का विद्युत कनेक्षन कट जाने के बाद अवैध रुप से विद्युत का प्रयोग कर रहा है, दिनांक 27-04-2006 को विद्युत विभाग के जे0ई0 ने परिसर की जांच की तो जांच के दौरान बिजली जलती पायी गयी। मीटर भी लगा है मगर उपभोक्ता ने यह नहीं बताया कि बिजली कैसे जल रही है। परिवादी के विरुद्ध दिनांक 31.12.2006 तक रुपये 1,07,764/- बकाया है जिसका बिल निर्गत किया गया है जो परिवादी को जमा करना है। परिवादी ने न्यायालय को धोखा देने के लिये फर्जी परिवाद दाखिल किया है जो सव्यय निरस्त किये जाने योग्य है। परिवादी ने किसी प्राइवेट आदमी से कनेक्षन जुड़वा कर बिना मीटर के विद्युत का उपभोग कर रहा है जिसके देयों के लिये परिवादी उत्तरदायी है। परिवादी का विद्युत विभाग से कोई अनुबन्ध नहीं है, महन्त जगत नरायन दास की मृत्यु परिवादी द्वारा परिवाद दाखिल करने के पूर्व हो चुकी है, परिवादी के नाम विद्युत कनेक्षन परिवर्तित नहीं हुआ है, इसलिये परिवादी का परिवाद पोशणीय नहीं है और खारिज किये जाने योग्य है।
परिवादी ने उपस्थित हो कर अपनी बहस की। विपक्षीगण की ओर से बहस के लिये कोई उपस्थित नहीं हुआ। विपक्षीगण को बहस के लिये समय दिया गया किन्तु विपक्षीगण की ओर से निर्णय के पूर्व तक किसी ने बहस नहीं की। इसलिये परिवाद का निर्णय गुण दोश के आधार पर पत्रावली का भली भंाति परिषीलन के बाद किया। परिवादी ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना षपथ पत्र, ए0डी0एफ0 की रीडिंग के बिलों के भुगतान की कुछ रसीदंे मूल रुप में, ए0डी0एफ0 के मूल बिलों की कुछ प्रतियां जिन्हें जमा नहीं किया गया है, परिवादी का प्रार्थना पत्र दिनांक 12.09.1994 की छाया प्रति, सीलिंग प्रमाण पत्र दिनंाक 16.11.1994 की कार्बन प्रति, परिवादी के पत्र दिनांक 26.12.1994 की मूल प्रति, परिवादी का साक्ष्य में षपथ पत्र तथा दिनांक 30.12.1995 के वसूली नोटिस की छाया प्रति दाखिल की है जो षामिल पत्रावली है। विपक्षीगण ने अपने पक्ष के समर्थन मंे अपना लिखित कथन, एस0के0 सक्सेना अधिषाशी अभियंता का षपथ पत्र, साक्ष्य में एम0आर0 पाठक अधिषाशी अभियंता का षपथ पत्र तथा परिवादी के विद्युत कनेक्षन के लेजर की छाया प्रति दाखिल की है जो षामिल पत्रावली है। परिवादी एवं विपक्षीगण द्वारा दाखिल प्रपत्रों से प्रमाणित है कि परिवादी ने जो भी बिल जमा किये हैं उनमें मीटर की रीडिंग नहीं है बल्कि रीडिंग के कालम में ए0डी0एफ0 दिखाया गया है। परिवादी ने जब मीटर बदलने के लिये प्रार्थना पत्र दिया तो परिवादी का मीटर बदला गया और उसके द्वारा जमा किये गये ए0डी0एफ0 के बिलों को समायोजित कर के परिवादी को बिल भेजा गया जिसे परिवादी ने जमा नहीं किया और विद्युत बिलों के बकाये के आधार पर परिवादी का विद्युत कनेक्षन काट दिया गया। परिवादी ने अपने परिसर पर सन 2006 में जांच रिपोर्ट के बारे में कुछ नहीं कहा है जब कि विपक्षीगण ने परिवादी के परिसर पर लाइट जलती पायी थी। परिवादी अपने बकाये को जमा किये बिना विद्युत कनेक्षन का संयोजन नहीं करा सकता है। परिवादी अपना परिवाद प्रमाणित करने में असफल रहा है। विपक्षीगण ने अपनी सेवा में कोई कमी नहीं की है। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 17.06.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष