राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2113/2015
(मौखिक)
(जिला उपभोक्ता फोरम-द्वितीय, लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या 972/2012 में पारित आदेश दिनांक 11.09.2014 के विरूद्ध)
Daya Nand Pandey Son of Sri Govind Pandey, resident of-H. No. E-4366 Rajajipuram, Post office-Rajajipuram, District Lucknow.
....................अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
1. Madyanchal Vidyut Vitran Nigam Ltd. Through its Managing Director
District-Lucknow.
2. Executive Engineer Electricity Distribution Division Rajajipuram
District-Lucknow.
3. District Magistrate Lucknow.
4. Tehsildar Tehsil Sadar District Lucknow.
................प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री वीरेन्द्र सिंह, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री उदय शंकर अवस्थी, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री कोमल प्रसाद तिवारी,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 14.10.2015
माननीय न्यायमूर्ति श्री वीरेन्द्र सिंह, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपीलार्थी द्वारा यह अपील जिला उपभोक्ता फोरम-द्वितीय, लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या 972/2012 में पारित आदेश दिनांक 11.09.2014 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी है, जिसके अन्तर्गत जिला फोरम द्वारा परिवादी का परिवाद उसकी अनुपस्थिति में अदम पैरवी में खारिज कर दिया है।
हमने श्री कोमल प्रसाद तिवारी विद्वान अधिवक्ता अपीलार्थी को सुना है और अभिलेख का अवलोकन किया है। धारा-13 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम परिवादों के ग्रहण होने की प्रक्रिया निर्धारित करती है, जिसके अनुसार जिला फोरम किसी परिवाद के ग्रहण होने पर धारा-13 (2) (ग) के प्रावधानानुसार ‘जहॉं परिवादी जिला मंच के समक्ष सुनवाई की तारीख
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की उपसंजात होने में असफल होता है, तो जिला मंच या तो परिवाद को व्यतिक्रम के कारण खारिज कर सकेगा या उसे गुणावगुण के आधार पर तय कर सकेगा।’ नि:सन्देह जिला फोरम को यह शक्ति प्राप्त है कि जिला मंच परिवाद को नियत तिथि पर परिवादी के अनुपस्थित रहने में या परिवादी के प्रति व्यतिक्रम करने के कारण परिवाद को खारिज कर सकता है, परन्तु हमारी राय में ऐसे मामले जो एक लम्बे समय से चले आ रहे हैं और जिसमें अधिकतम कार्यवाही जिला मंच के समक्ष पूर्ण हो चुकी है, उन मामलों को परिवादी के अनुपस्थित रहने या परिवादी के प्रति व्यतिक्रम करने के कारण खारिज नहीं करना चाहिए, बल्कि उक्त धारा में वर्णित कि ‘जिला फोरम परिवाद को गुणावगुण के आधार पर तय कर सकेगा’, से सम्बन्धित विकल्प अपनाना चाहिए। अधिकतर मामलों में प्राय: यह पाया गया है कि परिवादी परिवाद को प्रस्तुत करने के समय ही अपना शपथ पत्र प्रस्तुत कर देता है, जो उसके परिवाद के तथ्यों के साथ उसके साक्ष्य के रूप में पढ़ा जाना चाहिए। ऐसे भी मामले देखे गए हैं कि परिवादी के परिवाद के तथ्यों के सम्बन्ध में विपक्षी के प्रत्युत्तर के तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में कुछ बातें उभय पक्ष को स्वीकार होती हैं, जिसमें किसी साक्ष्य की आवश्यकता नहीं होती है। इन तमाम तथ्यों के आलोक में जिला फोरम को चाहिए कि वह परिवादी की अनुपस्थिति में परिवाद को अनुपस्थिति के कारण या परिवादी के व्यतिक्रम के कारण खारिज करने के बजाय परिवाद को गुणावगुण के आधार पर तय करें। हमारे समक्ष इस मामले में जो परिवाद वर्ष 2012 से लम्बित चला आ रहा है, उसे दिनांक 11.09.2014 को मात्र परिवादी की अनुपस्थिति के कारण खारिज कर दिया जाना न्यायसंगत नहीं है। जिला फोरम को चाहिए था कि परिवादी के अभिवचनों के प्रति विपक्षी की अभिस्वीकृति और ऐसे अभिवचनों के प्रति जिनको विपक्षी ने अस्वीकार किया है, के प्रति परिवादी के शपथ पत्र, दस्तावेज आदि को दृष्टिगत करते हुए परिवाद को गुणावगुण के आधार पर निर्णीत करते। हमारी राय में उभय पक्ष के मध्य यह परिवाद गुणावगुण के आधार पर निस्तारित किए जाने योग्य है। अत: प्रश्नगत आदेश को अपास्त किए जाने योग्य पाया जाता है और यह
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अवधारित किया जाता है कि जिला उपभोक्ता फोरम उभय पक्ष के मध्य लम्बित विवाद के सम्बन्ध में परिवादी का परिवाद उभय पक्ष को समुचित अवसर प्रदान करते हुए गुणावगुण के आधार पर निर्णीत किया जाना सुनिश्चित करें।
आदेश
अपील उपरोक्त स्वीकार करते हुए प्रश्नगत आदेश दिनांकित 11.09.2014 अपास्त किया जाता है और यह मामला जिला उपभोक्ता फोरम-द्वितीय, लखनऊ को प्रतिप्रेषित करते हुए निर्देश दिया जाता है कि जिला मंच उभय पक्ष को समुचित अवसर देते हुए परिवाद को गुणावगुण के आधार पर निस्तारित किया जाना सुनिश्चित करें। परिवादी को यह निर्देश दिया जाता है कि वह जिला मंच के समक्ष दिनांक 19.11.2015 को उपस्थित होकर प्रश्नगत परिवाद में कार्यवाही कराया जाना सुनिश्चित करें।
(न्यायमूर्ति वीरेन्द्र सिंह) (उदय शंकर अवस्थी)
अध्यक्ष सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं०-1