Uttar Pradesh

StateCommission

A/715/2015

Acchan - Complainant(s)

Versus

Uppcl - Opp.Party(s)

Satya Prakash Pandey

17 Jul 2017

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/715/2015
(Arisen out of Order Dated 21/03/2015 in Case No. c/61/2014 of District Muradabad-I)
 
1. Acchan
Shambhal
Shambhal
UP
...........Appellant(s)
Versus
1. Uppcl
Shambhal
Shambhal
UP
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 17 Jul 2017
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखन

अपील संख्‍या-715/2015

(सुरक्षित)

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, सम्‍भल द्वारा परिवाद संख्‍या 61/2014 में पारित आदेश दिनांक 21.03.2015 के विरूद्ध)

Achchan, S/o A.Kayyum, R/o Mohalla-Darwar, Sarai-Tarin, Sambhal, Tehsil & Distt.-Sambhal.

                             ...................अपीलार्थी/परिवादी

बनाम

1. Paschimanchal Vidyut Vitran Nigam  Ltd.,  through               

   Prabandh  Nideshak,  Mukhyalaya- Victoria   Park,           

   Meerut.

2. Upkhand Adhikari, Shri Arun Kumar, Vidyut  Vitran       

   Upkhand-I, Sambhal, Tehsil & Distt.-Sambhal.

                            ................प्रत्‍यर्थीगण/विपक्षीगण

समक्ष:-

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री सत्‍य प्रकाश पाण्‍डेय,                               

                           विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।

दिनांक: 18.08.2017        

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय

परिवाद संख्‍या-61/2014 अच्‍छन बनाम पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम लि0 व एक अन्‍य में जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, सम्‍भल द्वारा पारित निर्णय और आदेश                                      दिनांक 21.03.2015 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी है।

आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद निरस्‍त कर दिया है। अत: क्षुब्‍ध होकर परिवादी अच्‍छन ने यह अपील प्रस्‍तुत की है।

-2-

अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री सत्‍य प्रकाश पाण्‍डेय अपील की सुनवाई के समय उपस्थित आए हैं। प्रत्‍यर्थीगण की ओर से नोटिस का तामीला पर्याप्‍त माने जाने के बाद भी कोई उपस्थित नहीं हुआ है। अत: अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता के तर्क को सुनकर अपील का निस्‍तारण किया जा रहा है।

मैंने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।

वर्तमान अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी/परिवादी अच्‍छन ने उपरोक्‍त परिवाद जिला फोरम, सम्‍भल के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्‍तुत किया है कि उसका घरेलू विद्युत कनेक्‍शन सं0 4765/124169 दो किलोवाट का स्‍वीकृत है और उसने अपना यह कनेक्‍शन जीविकोपार्जन एवं भरण-पोषण के उद्देश्‍य से स्‍वीकृत कराया था। इस कनेक्‍शन के विद्युत बिलों का भुगतान उसने नियमानुसार किया है, परन्‍तु प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण द्वारा निरन्‍तर गलत विद्युत बिल प्रेषित किए गए हैं और फर्जी बकाया दर्शाकर उसका विद्युत कनेक्‍शन              दिनांक 05.06.2009 को विच्‍छेदित कर दिया गया है।

परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण का यह दायित्‍व है कि अगर कोई विद्युत कनेक्‍शन अस्‍थाई रूप से विच्‍छेदित किया जाता है तो 06 माह की अवधि व्‍यतीत होने के उपरान्‍त 06 माह पश्‍चात् 15 दिन का नोटिस देकर उपभोक्‍ता का कनेक्‍शन स्‍थाई रूप से  विच्‍छेदित  कर

-3-

दिया जाएगा, परन्‍तु प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण ने अपीलार्थी/परिवादी के सन्‍दर्भ में विधिक प्राविधान का पालन नहीं किया है।

परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि वह बराबर प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण के कार्यालय का चक्‍कर लगाता रहा है कि उसे विद्युत बिल गलत भेजा गया है। उसका कनेक्‍शन                दिनांक 05.06.2009 को विच्‍छेदित किया जा चुका है। उसे अन्तिम बिल जारी किया जाए, परन्‍तु आश्‍वासन के बाद भी प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण की ओर से पुनरीक्षित बिल नहीं दिया गया। इस बीच दिनांक 14.03.2014 को अपीलार्थी/परिवादी, प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण के सम्‍भल कार्यालय पहुँचा और अनुरोध किया कि उसे विद्युत विभाग द्वारा अनावश्‍यक परेशान किया जा रहा है। उसका विद्युत कनेक्‍शन दिनांक 05.06.2009 को विच्‍छेदित हो चुका है। अत: दिनांक 05.06.2009 के पूर्व के विद्युत बकाए का कार्यालय ज्ञापन जारी किया जाए। तब प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण के कार्यालय के कर्मियों ने उसे अवगत कराया कि उसके मामले का अन्तिम बिल तैयार हो चुका है। अन्तिम बिल/कार्यालय ज्ञापन में वर्णित धनराशि 575/-रू0 मात्र जमा करना है। वह उसे जमा कर दे। तब उसे कोई विद्युत बिल प्रेषित नहीं किया जाएगा और उसके मामले को पूर्ण रूप से बन्‍द कर दिया जाएगा। तब उसने दिनांक 14.03.2014 को             575/-रू0 रसीद संख्‍या-307220/24 के द्वारा जमा किया, परन्‍तु उसके बाद भी प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण द्वारा उसे निरन्‍तर फर्जी और गलत विद्युत बिल  प्रेषित  किया  गया  है।  वह  प्रत्‍यर्थी/विपक्षी  

 

-4-

संख्‍या-2 से कई बार मिला। फिर भी कोई सुनवाई नहीं हुई। अत: विवश होकर उसने जिला फोरम के समक्ष परिवाद प्रस्‍तुत किया है।

प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण ने लिखित कथन जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया है और कहा है कि अपीलार्थी/परिवादी ने विद्युत बिल का भुगतान नहीं किया है और न भुगतान की कोई रसीद दाखिल की है। उसने विद्युत बिलों के भुगतान का कोई विवरण भी प्रस्‍तुत नहीं किया है। उसने फर्जी पी0डी0 तैयार की है। उसका विद्युत कनेक्‍शन दिनांक 05.06.2009 को विच्‍छेदित नहीं किया गया है। उसके द्वारा उपयोग की गयी विद्युत के बिल ही नियमानुसार उसे भेजे गए हैं।

लिखित कथन में प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण की ओर से यह भी कहा गया है कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत परिवाद टाईम बार्ड है। उसके द्वारा फर्जी अन्तिम कार्यालय ज्ञापन दिखाकर कर्मचारी को गुमराह करके दिनांक 14.03.2014 को 575/-रू0 की रसीद कटवायी गयी है। वह प्रत्‍यर्थी/विपक्षी संख्‍या-2 से कभी नहीं मिला है।

जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्‍ध साक्ष्‍यों पर विचार करते हुए अपने निर्णय में यह उल्‍लेख किया है कि परिवादी ने कथित विद्युत बिल एवं उनके भुगतान की रसीद अथवा विवरण पत्रावली पर दाखिल नहीं किया है। उसने परिवाद पत्र में स्‍पष्‍ट रूप से यह नहीं बताया है कि दिनांक 05.06.2009 को अस्‍थाई रूप से विद्युत कनेक्‍शन काटने के समय वह कब तक के विद्युत बिलों का भुगतान कर चुका था।

-5-

जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में उल्‍लेख किया है कि बिना विद्युत बिल पेश किए उसके भुगतान की रसीद बनाया जाना सम्‍भव नहीं है। परिवादी ने अन्तिम बिल की रसीद तो पत्रावली पर दाखिल की है, किन्‍तु अन्तिम बिल पत्रावली पर दाखिल नहीं किया है, जिससे विपक्षी के इस कथन को बल मिलता है कि परिवादी ने फर्जी अन्तिम बिल तैयार करके विपक्षी के कर्मचारी को गुमराह करके 575/-रू0 की अन्तिम बिल की रसीद बनवायी है, जबकि डिफाल्‍टर का अन्तिम बिल उक्‍त धन से कोई गुना अधिक का होगा।

उपरोक्‍त उल्‍लेखों के आधार पर जिला फोरम ने यह निष्‍कर्ष निकाला है कि परिवादी कोई अनुतोष पाने का अधिकारी नहीं है।

अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्‍य और विधि के विरूद्ध है और मात्र अनुमान पर आधारित है। अत: जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश निरस्‍त कर परिवाद स्‍वीकार किया जाना आवश्‍यक है।

मैंने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता के तर्क पर विचार किया है।

परिवाद पत्र के अनुसार यह स्‍वीकृत तथ्‍य है कि अपीलार्थी/परिवादी विद्युत कनेक्‍शन सं0 4765/124169 का उपभोक्‍ता रहा है। अपीलार्थी/परिवादी के अनुसार उसका विद्युत कनेक्‍शन दिनांक 05.06.2009 को बकाए के कारण विच्‍छेदित किया गया  है।  अपीलार्थी/परिवादी  ने  दिनांक 05.06.2009  को

-6-

कनेक्‍शन विच्‍छेदित किए जाने का कोई प्रमाण या अभिलेख प्रस्‍तुत नहीं किया है, जबकि प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण के अनुसार उसका कनेक्‍शन विच्‍छेदित नहीं किया गया है। अपीलार्थी/परिवादी ने विद्युत बिलों के भुगतान की रसीद और विवरण प्रस्‍तुत नहीं किया है और यह मानने हेतु उचित आधार दर्शित नहीं किया है कि उसने दिनांक 05.06.2009 के बाद विद्युत का उपयोग नहीं किया है। अत: सम्‍पूर्ण तथ्‍यों और परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्‍त मैं इस मत का हूँ कि जिला फोरम ने अपीलार्थी/परिवादी का परिवाद निरस्‍त कर कोई गलती नहीं की है।

जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत साक्ष्‍यों की उचित और विधिक विवेचना की है और जो निष्‍कर्ष निकाला है वह विधि विरूद्ध नहीं कहा जा सकता है।

उपरोक्‍त विवेचना के आधार पर मैं इस मत का हूँ कि अपील बल रहित है और निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।

आदेश

     अपील निरस्‍त की जाती है।

     उभय पक्ष अपील में अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

 

               (न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)           

                    अध्‍यक्ष        

 

जितेन्‍द्र आशु0

कोर्ट नं0-1    

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT

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