Uttar Pradesh

Faizabad

CC/61/08

RAJESH KUMAR - Complainant(s)

Versus

UPKHAND OFFICER - Opp.Party(s)

08 Jun 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM
Judgement of Faizabad
 
Complaint Case No. CC/61/08
 
1. RAJESH KUMAR
CHORE MARKET PAR. WEST RATH TEH BIKAPUR DIS FZD
...........Complainant(s)
Versus
1. UPKHAND OFFICER
ELEC. BOARD BIKAPUR FZD
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL PRESIDENT
 HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA MEMBER
 HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

    जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।    

 


उपस्थित -     (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य


परिवाद सं0-61/2008


राजेश कुमार वर्मा पुत्र श्री सियाराम वर्मा निवासी भरहूखाता (चैरे बाजार) परगना पश्चिमराठ तहसील बीकापुर जिला फैजाबाद पोस्ट आफिस चैरे बाजार।                                                                   .................परिवादी          
                    बनाम


1-    श्रीमान उपखण्ड अधिकारी विद्युत वितरण केन्द्र बीकापुर फैजाबाद पोस्ट बीकापुर।
2-    श्रीमान अधिशाषी अभियन्ता विद्युत वितरण खण्ड द्वितीय कुन्ज कुटीर शहर फैजाबाद।                                          ................ विपक्षीगण

निर्णय दिनाॅंक 08.06.2015    


                    
                        निर्णय 

    उद्घोषित द्वारा: श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष

परिवादी ने यह परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध बिल दुरूस्त करने हेतु योजित किया है।
संक्षेप में परिवादी का केस इस प्रकार ह,ै कि परिवादी ने विपक्षीगण के यहाॅं से विद्युत कनेक्शन लिया, जिसका कनेक्शन संख्या-988780 है। इस प्रकार परिवादी विपक्षी का उपभोक्ता है।  दि0 30.11.2006 से 30.12.2006  तक का बिल मु0 179=00 


                    (  2  )
तथा 999=00 बकाया यानी कुल धनराशि 1,213=00 का बिल प्रार्थी के पास भेजा। इसे प्रार्थी ने दि0 09.02.2007 को मु0 1,213=00 जमा करके रसीद संख्या-003155 प्राप्त किया। दि0 30.7.2007 से 30.8.2007 का बिल मु0 2,873=00 का भेजा गया, जबकि बीच के बिल जो परिवादी के पास भेजे गये थे। उक्त बिल आने पर परिवादी ने विपक्षीगण को प्रार्थना-पत्र द्वारा बिल ठीक करने हेतु रजिस्ट््री रसीद संख्या-2673 दि0 08.11.07 को भेजा, परन्तु बिल ठीक न होने पर मजबूरन परिवादी ने मु0 1,213=00 पर काटकर शेष धनराशि रसीद संख्या-056973 पर मु0 1,660=00 अदा कर दिया। 
विपक्षीगण ने अपने आपत्ति में कहा है, कि परिवादी ने बिल की अदायगी कभी भी समय से नहीं किया जैसाकि उसके दाखिल बिलों से स्वयं ही लगभग साल भर में एक बार ही बिल की अदायगी की जाती थी। बिल सं0-6901361 जो दि0 31.8.08 तक की अवधि का था बकाया मु0 2,122=00 था तथा अवधि 31.7.08 से 31.8.08 तक का करेन्ट बिल मु0 216=00 था। परिवादी से सम्पूर्ण बकाया मु0 2,122=00 जमा करने के लिए बिल प्रेषित किया गया, जिसमें जे0ई0 द्वारा स्पष्ट रूप से अंकित किया गया है। उपभोक्ता का बकाया मु0 2,122=00 है इस पर मु0 216=00 जमा नहीं होगा फिर भी परिवादी ने मात्र करेन्ट बिल मु0 216=00 दि0 29.9.08 को बिल क्लर्क के पास जमा करके रसीद प्राप्त कर लिया। बिल संख्या-6001368 उपभोग तिथि 31.8.08 से 30.9.08 तक में करेन्ट बिल मु0 216=00 पेमेन्ट के आधार पर कम्प्यूटर ने त्रुटिवश बिल बिल सं0-6001368 के कालम बिल संशोधन में 1666=00 दर्शित कर दिया जबकि उपभोक्ता द्वारा मात्र 216=00 ही जमा किया है, जैसाकि उसके रसीद भी दाखिल किया है। परिवादी ने दि0 30.12.06 के पश्चात् लगभग आठ माह तक कोई बिल का भुगतान नहीं किया। इस प्रकार आठ माह का बिल स्वयं करेन्ट बिल 216=00=गुणे 8=1,728=00 अधिभार विलम्ब मिलाकर मु0 2,122=00 होता है, जबकि उपभोक्ता ने मात्र मु0 216=00 ही जमा किया है। कम्प्यूटर ने त्रुटिवश समायोजन मु0 1,666=00 दिखा दिये जाने से उसका लाभ परिवादी न्यायालय को गुमराह करके लेना चाहता है। परिवादी ने मु0 1,666=00 उक्त बिल में जमा किया होता, तो उसे रसीद अवश्य दी जाती। परिवादी द्वारा बकाया नहीं जमा किया जा रहा है, बल्कि फर्जी शिकायत श्रीमान् जी के समक्ष की गयी है, जो प्रत्येक दशा में निरस्त होने योग्य है।
मैं पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्य का अवलोकन किया तथा परिवादी द्वारा दाखिल किये गये बिलों का अवलोकन किया। परिवादी ने मु0 216=00 का बिल जमा किया 

                    (  3  )
है। कम्प्यूटर की गलती से मु0 1,666=00 अंकित हो गया है। विपक्षी द्वारा अपने जवाबदावे में यह कहा गया ह,ै कि 216 गुणे 8 =1,728=00 तथा अधिभार विलम्ब मिलाकर मु0 2,122=00 होता है, लेकिन विपक्षीगण द्वारा परिवादी द्वारा किये गये विद्युत बिल को समायोजित नहीं किया है तथा जो त्रुटि कम्प्यूटर द्वारा समायोजन में कहा जाना कहा है, उसे सही करके न्यायालय में समायोजित करने के उपरान्त् बिल दुरूस्त करके दाखिल करना चाहिए था। इससे स्पष्ट होता है कि परिवादी द्वारा जो बिल का भुगतान किया गया है, उसका समायोजन सही तरीके से विपक्षीगण ने नहीं किया है। यदि परिवादी विलम्ब से अपना विद्युत बिल जमा करता है, तो लेट पेमेन्ट विपक्षीगण लेते हैं। मेरे विचार से विपक्षीगण का यह कर्तव्य है, कि विद्युत बिल परिवादी को समायोजन करने के बाद दुरूस्त करके देवे। इस प्रकार परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध अंशतः स्वीकार तथा अंशतः खारिज किये जाने योग्य है। 

                       आदेश

    परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध अंशतः स्वीकार तथा अंशतः खारिज किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है, कि निर्णय की तिथि से एक माह के अन्दर परिवादी को विद्युत बिल दुरूस्त करके देवें तथा वाद व्यय मु0 2,000=00 तथा मानसिक एवं आर्थिक क्षतिपूर्ति के रूप में मु0 1,000=00 अदा करें। यदि विपक्षीगण उक्त आदेश का अनुपालन नहीं करते हैं, तो परिवादी विपक्षीगण से वाद व्यय तथा क्षतिपूर्ति की धनराशि पर 12 प्रतिशत सालाना साधारण ब्याज परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से तारोज वसूली करने का अधिकारी होगा। 

         (विष्णु उपाध्याय)           (माया देवी शाक्य)            ( चन्द्र पाल )            
               सदस्य                   सदस्या                    अध्यक्ष    
                    
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 08.06.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।

           (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)              ( चन्द्र पाल )
               सदस्य                 सदस्या                      अध्यक्ष

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY]
MEMBER

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