Uttar Pradesh

Faizabad

CC/49/2011

Vishvnath - Complainant(s)

Versus

UP Sarkar - Opp.Party(s)

30 Oct 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM
Judgement of Faizabad
 
Complaint Case No. CC/49/2011
 
1. Vishvnath
sohawal faizabad
...........Complainant(s)
Versus
1. UP Sarkar
FAIZABAD
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL PRESIDENT
 HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA MEMBER
 HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद।

 

उपस्थित -     (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
        (2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य

परिवाद सं0-49/2011

               

विश्वनाथ सिंह पुत्र राम चन्द्र सिंह निवासी ग्राम अरधर परगना मंगलसी तहसील सोहावल जिला फैजाबाद।                                             .............. वादी/प्रार्थी
बनाम
1.    राज्य उत्तर प्रदेश द्वारा कलेक्टर महोदय फैजाबाद।
2.    मुख्य विकास अधिकारी महोदय फैजाबाद।
3.    भूमि विकास बैंक फैजाबाद द्वारा शाखा प्रबन्धक भूमि विकास बैंक फैजाबाद।
                                               .............. विपक्षीगण/प्रतिवादीगण
निर्णय दिनाॅंक 30.10.2015            
उद्घोशित द्वारा: श्री विश्णु उपाध्याय, सदस्य।
                        निर्णय
    परिवादी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादी सीमान्त कृषक है और उत्तर प्रदेश शासन की ओर से फ्री बोरिंग योजना के अन्दर फ्री बोरिंग एवं इंजन हेतु विपक्षी संख्या 3 के यहां प्रार्थना पत्र दिया जिसे विपक्षी संख्या 3 ने जंाच के बाद स्वीकृति प्रदान कर दी। मगर विपक्षी संख्या 3 के अधीनस्थ कर्मचारियों ने केवल पाइप प्रदान की तथा न तो मजदूरी प्रदान की और न ही कोई मिस्त्री उपलब्ध कराया। विपक्षी संख्या 3 के कर्मचारियों ने बताया कि बोरिंग पूरी होने के बाद, बोरिंग प्रमाण पत्र संलग्न करने के बाद बोरिंग खर्च व इंजन की प्राप्ति होगी। परिवादी ने किसी तरीकेे से बोरिंग पूरी करायी और दिनांक 13-08-1995 को प्रमाण पत्र विपक्षी के यहां दे दिया। प्रमाण पत्र देने के बाद परिवादी को इंजन देने की संसतुति की गयी, परिवादी बराबर विपक्षी संख्या 3 से संपर्क करता रहा उसे आश्वासन दिया जाता रहा कि धन आते ही इंजन एवं बोरिंग का धन अवमुक्त कर दिया जायेगा। मगर विपक्षी संख्या 3 ने न तो बोरिंग का पैसा दिया और न ही इंजन का पैसा दिया। विपक्षी संख्या 3 का एक पत्र दिनांकित 12.12.1997 परिवादी को दिनांक 18.12.1997 को मिला जो कि रिकवरी नोटिस था, जब कि परिवादी को कोई धनराशि नहीं मिली। परिवादी ने विपक्षी संख्या 3 के कार्यालय से संपर्क कर पता किया तो पता लगा कि बोरिंग पूरी होने के पूर्व ही मई 1995 में विपक्षी संख्या 3 के कर्मचारियों ने इंजन बेच लिया और वादी को नहीं दिया और न ही बोरिंग खर्च दिया। इसलिये परिवादी को अपना परिवाद दाखिल करना पड़ा। परिवादी को विपक्षी संख्या 3 से रुपये 8,000/- बोरिंग खर्च, रुपये 20,000/- इंजन का मूल्य तथा रुपये 700/- परिवाद व्यय दिलाया जाय।
    विपक्षी संख्या 3 ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया है तथा कहा है कि परिवादी ने अपना परिवाद गलत तथ्यों पर प्रस्तुत किया है। परिवादी बैंक का सदस्य है इसलिये परिवादी का परिवाद सहकारी समितियां उत्तर प्रदेश अधिनियम की धारा 117 से बाधित है। कृषक यदि ऋण प्राप्त करने हेतु प्रार्थना पत्र देता है तो पहले बैंक की प्रबन्ध समिति प्रस्ताव पारित कर के उसे सदस्य बनाती है, सदस्य बनने के बाद उसे ऋण देने के पूर्व मार्जिन मनी सदस्य से जमा कराती है और कृषक की भूमि बन्धक रख कर ऋण उपलब्ध कराती है। परिवादी को आई0आर0डी0 योजना में निःशुल्क बोरिंग तथा डीजल इंजन के लिये चयनित किया गया था। परिवादी का चयनित संख्या 1064/90-91 था तथा परिवादी ने दिनांक 28.10.1991 को आवेदन किया था। जिसके सम्बन्ध में परिवादी ने अपनी जोत का आकार पत्र 23 प्रस्तुत किया जिसे दिनांक 21.03.1995 को बन्धक रखा गया जिसका बन्ध पत्र परिवादी ने निष्पादित किया उसके बाद सभी औपचारिकतायें पूरी करने के बाद उत्तरदाता ने दिनांक 25-03-1995 को चेक संख्या 1242616 द्वारा रुपये 12,000/- व चेक संख्या 1242516 द्वारा दिनांक 25.03.1995 को रुपये 3,000/- दिया गया और खण्ड विकास अधिकारी द्वारा परिवादी के खाते में अनुदान की धनराशि समायोजित कर दी गयी। परिवादी ने अपने ऋण खाते में कोई धनराशि जमा नहीं की और वसूली की कार्यवाही से बचने के लिये यह परिवाद दाखिल कर दिया है। परिवादी को अपना परिवाद सहकारी समितियां उत्तर प्रदेश अधिनियम धारा 70 के अनुसार आरबिट्रेशन के जरिये किया जाना चाहिए। परिवादी का परिवाद उक्त अधिनियम की धारा 70, 71  व 111 से बाधित है। परिवादी का परिवाद विशेष हर्जे व खर्चे के साथ निरस्त किये जाने योग्य है।
    पत्रावली का भली भंाति परिशीलन किया। परिवदी एवं विपक्षी संख्या 3 द्वारा दाखिल साक्ष्यों व प्रपत्रों का अवलोकन किया तथा परिवादी की लिखित बहस का भी अवलोकन किया। परिवादी ने इस परिवाद के पूर्व वर्ष 1998 में इसी विषय व इन्हीं पक्षों के मध्य अपना परिवाद इसी फोरम के समक्ष परिवाद संख्या 01 सन 1998 दाखिल किया था जो दिनांक 13-09-2007 को परिवादी की अनुपस्थित व अदम पैरवी में निरस्त कर दिया गया था। परिवाद संख्या 01 सन 1998 में विपक्षी ने परिवादी के ऋण आवेदन पत्र की प्रमाणित छाया प्रति, सत्यापन एवं एपे्रजल रिपोर्ट की प्रमाणित छाया प्रति, डिमाण्ड प्रोनोट रुपये 15,000/- की प्रमाणित छाया प्रति, रसीद रुपये 3,000/- व रुपये 12,000/- की प्रमाणित छाया प्रति, परिवादी द्वारा विपक्षी संख्या 3 को दिये गये शपथ पत्र की प्रमाणित छाया प्रति जिसमें ऋण के रुपये 15,000/- किश्तों में अदा करने का उल्लेख है तथा परिवादी को दिये गये चेक संख्या 1242616 व 1242617 की प्रमाणित छाया प्रतियां दाखिल की हैं जो पत्रावली पर उपलब्ध हैं। परिवादी दिनांक 25.03.1995 को ही रुपये 15,000/- प्राप्त कर चुका है। परिवादी ने अपना परिवाद संख्या 01 सन 1998 दिनांक 13-09-2007 को खारिज होने के बाद प्रस्तुत परिवाद दिनांक 26-04-2011 को पुनः दाखिल किया है जो परिवाद संख्या 01 सन 1998 के अदम पैरवी में निरस्त होने के तीन वर्ष छः माह बाद दाखिल किया गया है, इस प्रकार परिवादी का यह परिवाद काल बाधित है तथा परिवादी दूसरा परिवाद दाखिल करने का अधिकारी नहीं है, परिवादी का परिवाद जब दिनांक 13-09-2007 को खारिज हो गया था तो परिवादी को उपभोक्ता विवाद प्रतितोष राज्य आयोग में अपील करनी चाहिए थी। क्यों कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने ‘‘राजीव हितेन्द्र पाठक एवं आदि बनाम अच्युत काषीनाथ कारेकर एवं आदि ’’ प्ट ब्च्श्र 2011 ैब् 35 में अपना अभिमत दिया है कि जिला उपभोक्ता संरक्षण फोरम और उपभोक्ता संरक्षण राज्य आयोग को अपने आदेष को रिकाल करने का अधिकार नहीं हैै। इसलिये फोरम को परिवादी का प्रश्नगत परिवाद सुनने का अधिकार नहीं है। वैसे भी परिवादी ने विपक्षी संख्या 3 से ऋण लिया है और परिवादी के ऋण प्राप्ति दस्तावेजों पर हस्ताक्षर हैं। परिवादी का परिवाद गलत तथ्यों पर आधारित हैं। परिवादी अपना परिवाद प्रमाणित करने में असफल रहा है। परिवादी विपक्षी की सेवा में कमी को प्रमाणित करने में असफल रहा है। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।  
आदेश
    परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।     
          (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)             (चन्द्र पाल)              
              सदस्य                  सदस्या                   अध्यक्ष      
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 30.10.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।

          (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)             (चन्द्र पाल)           
              सदस्य                  सदस्या                    अध्यक्ष

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY]
MEMBER

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