जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद।
उपस्थित - (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-104/2008
कृश्ण चन्द्र श्रीवास्तव पुत्र स्व0 श्री राम चन्द्र श्रीवास्तव 248 टेढ़ी बाजार अयोध्या जिला फैजाबाद। .............. परिवादी
बनाम
1. स्टेट आफ उत्तर प्रदेष द्वारा सचिव आवास विभाग सचिवालय उ0प्र0 लखनऊ।
2. आवास आयुक्त उत्तर प्रदेष आवास एवं विकास परिशद लखनऊ।
3. उपाध्यक्ष अयोध्या फैजाबाद विकास प्राधिकरण फैजाबाद।
4. सचिव अयोध्या फैजाबाद विकास प्राधिकरण फैजाबाद। ........... विपक्षीगण
निर्णय दिनाॅंक 29.01.2016
उद्घोशित द्वारा: श्री विश्णु उपाध्याय, सदस्य।
निर्णय
परिवादी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादी ने विपक्षी संख्या 3 की योजना के प्रकाषित विज्ञापन के अनुसार कौषलपुरी योजना फेज 2 में एम0आई0जी0 भवन के लिये पंजीकरण रुपये 22,000/- दिनांक 24.06.2004 को जमा कर के कराया। विपक्षी के निर्देषानुसार दिनांक 31.03.2005 को रुपये 33,000/- भी जमा कर दिया। दिनांक 12-09-2005 को परिवादी को एम0आई0जी0 भवन संख्या 35 के आवंटन की सूचना दी गयी। विपक्षी ने परिवादी से अवषेश मूल्य रुपये 4,89,900/- दिनांक 07.10.2005 को जमा करा लिया। विपक्षी ने दिनांक 18.03.2006 को भवन के निबन्धन के लिये सूचित किया और दिनांक 31.03.2006 से पूर्व निबन्धन कराने पर स्टाम्प षुल्क में छूट का आष्वासन दिया। परिवादी जब निबन्धन की जानकारी करने विपक्षी के कार्यालय गया तो उसे कई बार किसी न किसी बहाने से दौड़ाया गया। परेषान हो कर परिवादी ने दिनांक 24.03.2006 को सचिव महोदय को एक प्रार्थना पत्र दिया किन्तु उनके द्वारा भी कोई जानकारी नहीं दी गयी। दिनांक 28.03.2006 को परिवादी ने कोरियर से एक पत्र पुनः भेजा उसका भी कोई उत्तर परिवादी को नहीं मिला। विपक्षी द्वारा कहा गया कि मौके पर जा कर देखिये आपका भवन तैयार है और पुनः एक प्रार्थना पत्र दीजिये तो परिवादी ने दिनांक 31.03.2006 को पुनः एक प्रार्थना पत्र दिया उसके बाद भी परिवादी को कोई जानकारी नहीं दी गयी और स्टाम्प षुल्क में छूट पाने में हुए नुकसान के लिये विपक्षी जिम्मेदार हैं। परिवादी ने अपने आवंटित भवन संख्या 35 को मौके पर जा कर देखा तो पाया कि भवन की दीवारें बैठ गयी हैं तथा जगह जगह दीवारों मंे दरार आ गयी है और भवन की स्थिति अत्यन्त दयनीय है। परिवादी ने प्राधिकरण जा कर उक्त बातांे की षिकायत की तो वह टाल मटोल करते रहे तो परिवादी ने दिनांक 07-08-2006 को विपक्षीगण को एक पत्र इस सम्बन्ध में लिखा। परिवादी ने दिनांक 11-10-2006 को पुनः एक पत्र विपक्षीगण को लिखा और भवन की रजिस्ट्री कराने को लिखा। दिनांक 11.10.2006 को परिवादी को विपक्षीगण का एक पत्र मिला जिसमें परिवादी पर रुपये 93,516/- बकाया बताया गया और उसमें रुपये 30,387/- अतिरिक्त भूमि का षामिल बताया। परिवादी ने कार्यालय जा कर पता किया तो पता चला कि मकान के बाहर की एक तिकोनी अनुपयोगी भूमि जो परिवादी के किसी काम की नहीं है का पैसा परिवादी से लिया जा रहा है। परिवादी ने उक्त भूमि को लेने से मना किया तो विपक्षी ने कहा कि पहले पैसा जमा कीजिये तब बात करिये। अन्यथा भवन किसी अन्य को एलाट कर दिया जायेगा और परिवादी की तबियत ठीक कर दी जायेगी। परिवादी ने मजबूरन दिनांक 12.10.2006 को विपक्षी द्वारा निर्देषित रुपये 93,516/- विपक्षी के यहां जमा कर दिया। परिवादी ने पुनः विपक्षी को प्रार्थना पत्र दिया कि विपक्षी उक्त अनुपयोगी भूमि का निस्तारण करे और परिवादी को उक्त अनुपयोगी भूमि का पैसा वापस करें मगर विपक्षीगण ने कुछ नहीं किया। परिवादी ने दिनांक 15.10.2006 को सचिव महोदय को एक प्रार्थना पत्र दिया मगर उस पर भी कोई सुनवाई नहीं हुई और परिवादी द्वारा मांगी गयी सूचना नहीं दी गयी। परिवादी ने दिनांक 23.12.2006, 10.01.2007, 21.01.2008, को प्रार्थना पत्र दिये मगर विपक्षीगण ने परिवादी की बात को नहीं सुना। विपक्षीगण ने अपनी पुस्तिका में लिखे गये किसी विकास कार्य को पूरा नहीं किया। विपक्षीगण को निर्देषित किया जाय कि वह परिवादी को पंजीकरण पुस्तिका में दी गयी षर्तों के अनुरुप भवन तैयार कर के परिवादी को दें, परिवादी को रुपये 6,38,416/- पर 18 प्रतिषत वार्शिक ब्याज भवन का कब्जा न देने तक परिवादी को दें, क्षतिपूर्ति रुपये 3,03,500/- दें तथा अुनपयोगी भूमि का रुपया 30,387/- वापस करें।
विपक्षी संख्या 1 व 2 फार्मल पक्षकार हैं अतः उनके उत्तर की आवष्यकता नहीं है। अयोध्या फैजाबाद विकास प्राधिकरण विपक्षी संख्या 2 के अधीन कार्य नहीं करता है अतः उनके उत्तर की आवष्यकता नहीं है।
विपक्षीगण संख्या 3 व 4 ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया है तथा परिवादी के पंजीकरण को स्वीकार किया है तथा परिवादी द्वारा भवन के मद में धनराषि जमा किया जाना तथा कौषलपुरी योजना फेज 2 में परिवादी को भवन संख्या 35 आवंटित किया जाना स्वीकार किया है तथा परिवादी के परिवाद के अन्य कथनों से इन्कार किया है। परिवादी द्वारा दिनांक 12.10.2006 को रुपये 93,516/- जमा किया जाना स्वीकार है। परिवादी को समय समय पर सूचना दी गयी है विपक्षीगण ने कोई हीला हवाली अपनी ओर से नहीं की है। परिवादी द्वारा नोटिस दिया जाना स्वीकार है। परिवादी द्वारा रुपये 6,38,416/- जमा किया जाना स्वीकार है षेश कथन से इन्कार है। परिवादी ने दिनांक 24.06.2004 को अपना आवेदन पंजीकरण षुल्क के साथ कौषलपुरी आवासीय योजना फेज 2 में एम0आई0जी0 भवन के लिये किया था। परिवादी ने श्रीमती डेजी के साथ संयुक्त रुप से आवेदन किया था और लाटरी पद्धति से परिवादी को प्लाट/भवन संख्या 35 आवंटित हुआ था। जिसके सम्बन्ध में परिवादी को दिनांक 12.09.2005 के पत्र द्वारा सूचित किया गया। चूंकि परिवादी को उक्त भूखण्ड/भवन का आवंटन एक मुष्त जमा योजना के तहत किया गया था इस कारण परिवादी को अवषेश मूल्य मानक के अनुसार रुपये 4,89,000/- दिनांक 13.10.2005 तक जमा करने की सूचना भी उसी पत्र में की गयी, जिसे परिवादी ने दिनांक 07.10.2005 को जमा कर दिया। उत्तरदातागण द्वारा परिवादी को पत्र दिनांक 18.03.2006 के द्वारा निबन्धन कराने की सूचना भेजी गयी तथा दिनांक 31.03.2006 तक निबन्धन कराने में स्टाम्प षुल्क में छूट की बात लिखते हुए परिवादी को सूचित किया गया। साथ ही सीवर वाटर कनेक्षन चार्ज रुपये 5,400/- विविध व्यय रुपये 200/- जमा करने को कहा गया। उक्त पत्र की प्रति श्रीमती डेजी द्वारा दिनांक 20.03.2006 को प्राप्त की गयी थी। एम0आई0जी0 भूखण्ड/भवन संख्या 35 का मानक क्षेत्रफल 90 वर्ग मीटर निर्धारित था का वास्तविक क्षेत्रफल नापने पर 101.51 वर्ग मीटर निकला। इस प्रकार मानक क्षेत्रफल से 11.51 वर्ग मीटर अतिरिक्त भूमि उक्त भूखण्ड में पायी गयी। चूंकि भूमि कार्नर की थी और अतिरिक्त भूमि नियमानुसार सम्बन्धित भूखण्ड के एलाटी को ही एलाट होने का विधान होने के अनुसार निष्चित है, इस कारण परिवादी से अतिरिक्त भूमि का मूल्य रुपये 87,916/- लिया गया। रुपये 5,400/- सीवर व वाटर कनेक्षन चार्ज व रुपये 200/- विविध व्यय कुल मिला कर परिवादी से रुपये 93,516/- जमा करने का पत्र परिवादी को दिनांक 03.09.2006 को भेजा गया। जिसे परिवादी ने स्वयं प्राप्त किया और निबन्धन के लिये कितने रुपये के स्टाम्प की आवष्यकता होगी मौखिक रुप से परिवादी को बता दिया गया था। उत्तरदाता के पत्र दिनांक 03-09-2006 के परिप्रेक्ष्य मंे परिवादी ने दिनांक 12.10.2006 को रुपये 93,516/- जमा किया। सम्पूर्ण पैसा जमा हो जाने के बाद परिवादी को पत्र दिनांक 13.12.2006 द्वारा भवन/भूखण्ड के निबन्धन के लिये रुपये 57,800/- के स्टाम्प पेपर, 30 वाटर मार्क पेपर तथा 3 फोटो ग्राफ उपलब्ध करा कर दिनांक 19.12.2006 को रजिस्ट्री कैंप में निबन्धन कराने को कहा गया। उक्त सूचना के बाद परिवादी ने दिनांक 15.12.2006 को एक पत्र दे कर प्राधिकरण से अनुरोध किया कि कौन सी अतिरिक्त भूमि है उसे बताया जाय और भवन में अनेकों खामियां हैं जिसे ठीक कराया जाय ताकि रजिस्ट्रीकरण के समय कोई परेषानी न हो। परिवादी के पत्र के बाद प्राधिकरण के जे0ई0 ने परिवादी को अतिरिक्त भूमि जो आवंटित भवन के साथ संलग्न थी उसे बताया तत्पष्चात उसके द्वारा पुनः दिनांक 19.12.2006 को यह प्रार्थना पत्र दिया कि सम्बन्धित संलग्न भूमि अनुपयोगी हो तो उसे माफ किया जाय। परिवादी के उक्त प्रार्थना पत्र के संदर्भ में प्राधिकरण ने दिनांक 16.01.2007 को परिवादी को सूचित किया कि नियमानुसार एवं षासन के निर्देषों के अनुसार संलग्न भवन के साथ अतिरिक्त 11.51 वर्ग मीटर भूमि आवंटी को ही दी जा सकती है किसी अन्य को नहीं, इस कारण परिवादी अपने भवन/भूखण्ड की रजिस्ट्री दिनांक 18.01.2007 अथवा 31.01.2007 को करा लें। सम्बन्धित भवन में जो कमियां बतायी गयी थीं उन्हें दूर करा दिया गया और परिवादी को अवगत करा दिया गया। उक्त सूचना के बाद ही परिवादी ने स्वयं इस मामले को लटकाना षुरु किया। प्राधिकरण को विधिक नोटिस देना, जनसूचना अधिकार अधिनियम सन 2005 के तहत सूचना मंागना तत्पष्चात सूचना के विरुद्ध अपील करना आदि से तरह तरह से लटकाया जाने लगा। परिवादी के कृत्यों के बावजूद उत्तरदातागण ने दिनांक 04-06-2008 के पत्र द्वारा परिवादी को सूचित किया कि भवन की कमियों को दूर किया जा चुका है और आप भवन के निबन्धन की औपचारिकतायें पूरी कर के भवन का निबन्धन करा कर कब्जा प्राप्त कर लें। उक्त पत्र की प्राप्ति के बाद ही परिवादी ने अपना परिवाद प्रस्तुत किया है और पंजीकरण सम्बन्धी औपचारिकतायें पूरी न कर के निबन्धन की कार्यवाही को पूर्ण न करा कर निबन्धन नहीं कराया है। जिसकी सारी जिम्मेदारी परिवादी की है। परिवादी का परिवाद चलने योग्य नहीं है। परिवादी यदि अतिरिक्त भूमि के साथ सम्बन्धित भवन का निबन्धन कराना चाहे तो प्राधिकरण के समक्ष समस्त औपचारिकतायें पूर्ण कर भवन/भूखण्ड का निबन्धन करा सकता है अन्यथा परिवादी द्वारा जमा सम्पूर्ण धनराषि षासन के नियमानुसार परिवादी कोे जब चाहे प्राधिकारण द्वारा वापस कर दिया जायेगा। इसमें प्राधिकरण को कोई आपत्ति नहीं है। प्राधिकरण के अपीलीय जन सूचना अधिकारी द्वारा अपने निर्णय दिनांक 16.03.2007 से परिवादी को अवगत करा दिया है। परिवादी का परिवाद काल बाधित है। परिवादी किसी प्रकार की क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी नहीं है। परिवादी का परिवाद मय हर्जे खर्चे के साथ निरस्त किया जाय।
पत्रावली का भली भंाति परिषीलन किया। परिवादी ने अपने परिवाद के समर्थन में अपना षपथ पत्र, विपक्षी संख्या 3 के विज्ञापन की छाया प्रति, परिवादी द्वारा जमा किये गये रुपये 22,000/- दिनांक 24.06.2004 के चालान की छाया प्रति, परिवादी द्वारा जमा किये गये रुपये 33,000/- दिनांक 31.03.2005 के चालान की छाया प्रति, आवंटन पत्र की छाया प्रति, परिवादी द्वारा रुपये 4,89,900/- जमा किये जाने की रसीद दिनांक 07.10.2005 की छाया प्रति, निबन्धन हेतु सूचना के पत्र दिनांक 18.03.2006 की छाया प्रति, परिवादी के पत्र दिनांक 24.03.2006, 28.03.2006, 31.03.2006, 03.08.2006, 11.10.2006, की छाया प्रतियां, परिवादी द्वारा रुपये 93,516/- जमा किये जाने की रसीद दिनांक 12.10.2006 की छाया प्रति, परिवादी के पत्र दिनंाक 25.12.2006, 23.12.2006, 21.01.2008 की छाया प्रतियां, परिवादी द्वारा विपक्षी को दिये गये विधिक नोटिस अदिनांकित की छाया प्रति, परिवादी का साक्ष्य में षपथ पत्र तथा परिवादी की लिखित बहस दाखिल की है जो षामिल पत्रावली है। विपक्षीगण ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना लिखित कथन, ओम प्रकाष लिपिक पुत्र स्व0 राजबली प्रसाद का षपथ पत्र, उप सचिव अयोध्या फैजाबाद विकास प्राधिकरण का पत्र दिनांक 02.07.2013 मूल रुप में, परिवादी के कब्जा प्रमाण पत्र की छाया प्रति तथा सूची पर कागजात दाखिल किये हैं जो षामिल पत्रावली हैं। परिवादी तथा विपक्षीगण द्वारा दाखिल प्रपत्रों में विपक्षी संख्या 3 द्वारा एक पत्र दिनांक 02.07.2013 पेषी दिनांक 06.08.2013 को फोरम में दाखिल किया है और उक्त पत्र मंे कहा गया है कि परिवादी को समझौता पत्र दिये जाने के उपरान्त दिनांक 23.11.2009 को परिवादी के पक्ष में भवन का निबन्धन किया जा चुका है। जो पुस्तक संख्या 1, जिल्द संख्या 3626, पृश्ठ संख्या 45/78 पर क्रम संख्या 5337 को निबन्धन कर भवन/भूखण्ड का भौतिक कब्जा दिनांक 23.11.2009 को करा दिया है। यहां यह कहना उचित होगा कि भवन का निबन्धन हो जाने के बाद परिवादी अपने भवन/भूखण्ड को प्राधिकरण को वापस नहीं कर सकता है और न ही प्राधिकरण को उक्त भवन/भूखण्ड वापस लेने का अधिकार है। ऐसी स्थिति में परिवादी को भूखण्ड/भवन का मूल्य भी वापस नहीं दिलाया जा सकता है। विपक्षी संख्या 3 ने सूची पर समस्त पत्रों की प्रतियां दाखिल की हैं जिनसे प्रमाणित है कि परिवादी को समय समय पर सूचना से अवगत कराया गया था। परिवादी ने अपने पत्र में विपक्षीगण से कहा था कि अतिरिक्त भूमि को अनुपयोगी हो तो माफ किया जाय, इस पर प्राधिकरण ने परिवादी को उत्तर दिया था कि अतिरिक्त भूमि का आधा मूल्य नियमानुसार देने पर उक्त भूमि परिवादी को ही लेनी होगी मगर षर्त यह होगी कि परिवादी उक्त खाली भूमि पर कोई निर्माण नहीं करेगा। परिवादी ने प्राधिकरण में जो धनराषि जमा की है उसमें कही पर भी इस बात का उल्लेख नहीं है कि परिवादी उक्त धनराषि अन्डर प्रोटेस्ट जमा कर रहा है। इस प्रकार परिवादी का यह कहना कि उसके पत्रांे का विपक्षीगण ने उत्तर नहीं दिया गलत प्रमाणित होती है। स्टाम्प में छूट राज्य सरकार देती है जो निर्धारित अवधि के लिये होती है। यदि किसी कारण से विलम्ब हुआ है और परिवादी स्टाम्प में छूट नहीं पा सका है तो प्राधिकरण उसके लिये उत्तरदायी नहीं है। परिवादी ने अपने परिवाद के साथ जो फोटो ग्राफ भवन के सम्बन्ध में दाखिल किये हैं उनसे फोटो ग्राफ का समय, तारीख व दिन निर्धारित नहीं किया जा सकता अतः परिवादी द्वारा दाखिल फोटो ग्राफ अमान्य हैं। चूंकि परिवादी के पक्ष में विपक्षीगण निबन्धन करा चुके हैं इसलिये परिवादी और विपक्षी के बीच अब कोई उपभोक्ता का सम्बन्ध नहीं रह गया है और निबन्धन हो जाने के बाद प्राधिकरण अपना भवन वापस नहीं ले सकता है। परिवादी अपना परिवाद प्रमाणित करने में असफल रहा है। विपक्षीगण ने अपनी सेवा में कोई कमी नहीं की है। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 29.01.2016 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष