Uttar Pradesh

Faizabad

CC/252/2014

Archana Devi - Complainant(s)

Versus

UP Sarkar - Opp.Party(s)

19 Feb 2016

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM
Judgement of Faizabad
 
Complaint Case No. CC/252/2014
 
1. Archana Devi
milkipur Faizabad
...........Complainant(s)
Versus
1. UP Sarkar
BIKAPUR DIS FZD
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL PRESIDENT
 HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA MEMBER
 HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।

 

उपस्थित -    (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
        (2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य

            परिवाद सं0-252/14

            
अर्चना देवी आयु लगभग 32 वर्श पत्नी हरिष्याम निवासी ग्राम जमोलिया उरूवा वैष्य परगना पष्चिमराठ, तहसील मिल्कीपुर, जिला फैजाबाद।                    ..............परिवादिनी
बनाम
1-उ0प्र0 सरकार द्वारा कलेक्टर महोदय फैजाबाद। 
2-अधीक्षक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र बीकापुर तहसील बीकापुर, जिला फैजाबाद।

3-मुख्य चिकित्सा अधिकारी महोदय फैजाबाद                    ..............  विपक्षीगण

निर्णय दिनाॅंक 19.02.2016            
उद्घोषित द्वारा: श्रीमती माया देवी षाक्य, सदस्या
                    निर्णय
    परिवादिनी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादिनी के 2 लड़की कु0 बीना उम्र 14 वर्श, वन्दना उम्र 10 वर्श व एक लड़का विकास था। परिवार बड़ा होने के कारण, बच्चों की समुचित परवरिस पढ़ाई लिखाई दवा आदि का खर्च वहन कर सकने में असमर्थ होने के कारण परिवादिनी ने स्थानीय ए0एन0एम0 की सलाह पर सार्वजनिक नीति के अन्तर्गत सरकार द्वारा संचालित परिवार नियोजन कार्यक्रम के अन्र्तगत स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र बीकापुर जाकर अपना आपरेषन दिनंाक 13-12-2005 को कराकर आपरेषन का प्रमाण पत्र भी ले लिया था। आपरेषन के लगभग 8 वर्श बाद उसे गर्भ रह गया तो उसने पुनः प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र बीकापुर जाकर आपरेषन करने वाले डाक्टर से सम्पर्क किया तो बताया गया कि उसे गर्भ नही है बल्कि उसे ट्यूमर हो गया है। आपरेषन के लगभग 8 वर्श बाद दिनंाक 01-04-2014 को एक लड़की पैदा हुई जिसका नाम कु0 अर्पणा है। परिवादिनी के तीन बच्चे पहले से ही मौजूद थे जिसके पालन-पोशण षिक्षा-दीक्षा का खर्च उठा पाना परिवादिनी के लिए सम्भव नही था। परिवादिनी ने प्रार्थना किया है कि मु0 5,00,000/-क्षतिपूर्ति के रूप में दिलाया जाय। 
    विपक्षीगण ने अपने जवाब में कहा कि नसबन्दी करने से पूर्व लाभार्थी द्वारा नसबन्दी किये जाने से सम्बन्धित सहमति पत्र/स्वीकृति प्रार्थना-पत्र भरा जाता है जिसमें लाभार्थी से सम्बन्धित परिवार का विवरण जाॅंच से सम्बन्धित विवरण आदि अंकित करते हुए इससे भी अवगत हुआ जाता है कि लाभार्थी को सर्जन द्वारा नसबन्दी आपरेषन से सम्बन्धित समस्त प्रक्रियों एवं नसबन्दी के बाद अपनायी जाने वाली सावधानियों के बारे में बता दिया गया है एवं यह भी अवगत करा दिया गया है कि कुछ केसेज में नसबन्दी फेल होने की सम्भावना रहती है। यदि ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है तो लाभार्थी एवं परिवारजन द्वारा सर्जन/अस्पताल प्रषासन किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं ठहराये जायेंगे एवं नसबन्दी के पष्चात् मुझे गर्भधारण होता है तो मैं गर्भधारण के दो सप्ताह के अन्दर अस्पताल चिकित्सक से सम्पर्क कर निःषुल्क गर्भसमापन कराउॅंगी। उक्त दषा में राज्य सरकार द्वारा मुझे मु0 5,000=00 का मुआवजा दिया जायेगा, जो मुझे मान्य होगा। इससे अधिक मुआवजे के लिए मैं किसी न्यायालय में दावा नहीं करूॅंगी। मैं जानती हूॅं कि यदि गर्भधारण के दो सप्ताह के अन्दर मैं गर्भसमापन करवाने में असमर्थ रहती हूॅं तो उसके बाद मैं किसी भी मुआवजा धनराषि का हकदार नहीं हूॅंगी। 
    मैं परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता तथा विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी तथा पत्रावली पर उपलब्धसाक्ष्य का अवलोकन किया। 
    परिवादिनी ने प्राथमिेक स्वास्थ्य केन्द्र वीकापुर दिनांक 13-12-2005 को नसबन्दी आपरेषन कराया। आपरेषन के पहले परिवादिनी के एक लड़का और दो लड़की थी। नसबन्दी अपरेषन के 8 साल बाद परिवादिनी के गर्भ रूक गया। जिसके कारण दिनंाक 01-04-2014 को एक लड़की अपर्णा पैदा हुई। परिवादिनी का कथन है कि पालन पोशण षिक्षा दीक्षा मेंरूपया खर्च नही कर सकती और विपक्षीगण से क्षतिपूर्ति की मांग किया है। 
    नसबन्दी अपरेषन षत प्रतिषत सफल नही होता है। तीन से सात प्रतिषत नसबन्दी आपरेषन असफल होते है। इसमें डाक्टर की कोई लापरवाही नही होती है। परिवादिनी का नसबन्दी आपरेषन निःषुल्क किया गया था और प्रोत्साहन राषि भी दी गयी थी। 
    माननीय सर्वोच्च न्यायालय स्टेट आफ पंजाब बनाम-षिवराम सुप्रीम कोर्ट 3280 पूर्ण पीठ में कहा है कि निःषुल्क नसबन्दी होने पर परिवादिनी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आती है। षत प्रतिषत नसबन्दी सही नहीं होती है। कभी कभी नसबन्दी करने वाले अंग विकसित हो करके जुड़ जाते है, इसलिये गर्भ धारण करने की सम्भावना होती है। इस प्रकार परिवादिनी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आती है। विपक्षीगण ने लापरवाही नही किया है। परिवादिनी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेष
        परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।
(विष्णु उपाध्याय)        (माया देवी शाक्य)           (चन्द्र पाल)
              सदस्य                  सदस्या                    अध्यक्ष                                                
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 19.02.2016 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।

(विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)             (चन्द्र पाल)
सदस्य                  सदस्या                    अध्यक्ष                                                

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY]
MEMBER

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