न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, द्वितीय लखनऊ
परिवाद संख्या-934/2012
मो0 अयूब एवं एक अन्य -परिवादीगण
बनाम
उ0प्र0 राज्य हज समिति -विपक्षी
समक्ष
श्री संजीव शिरोमणि, अध्यक्ष
श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य
श्रीमती गीता यादव, सदस्य
द्वारा श्री संजीव शिरोमणि, अध्यक्ष
निर्णय
परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986
परिवाद पत्र के अनुसार, परिवादी का कथन, संक्षेप में, यह है कि परिवादीगण के माता-पिता उ0प्र0 राज्य हज समिति के माध्यम से मक्का (सऊदी अरब) गये थे। परिवादीगण के माता-पिता की मीना हादसे में दि0 12.1.06 को मृत्यु हो गयी, जिसकी सूचना परिवादीगण को पत्र दि0 29.4.06 के माध्यम से दी गयी। हज पर जाने से पूर्व परिवादीगण के माता-पिता का बीमा रू0 दो लाख प्रति व्यक्ति विपक्षी के द्वारा किया गया था और दुर्घटना मृत्यु के बाद बीमित धनराशि नामित व्यक्ति को दी जानी थी। रू0 10700/-का बैंक ड्राफ्ट भी विपक्षी के नाम दिया गया था। परिवादीगण के पिता की बीमा धनराशि रू0 दो लाख परिवादीगण को दि0 31.7.06 को विपक्षी द्वारा चेक के माध्यम से प्राप्त हो गयी है लेकिन अभी तक उनकी माता की बीमा धनराशि का भुगतान परिवादीगण को नहीं किया गया है।
इस संदर्भ में परिवादीगण ने कई बार विपक्षी से शिकायत किया, किन्तु विपक्षी ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया, जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी को वर्तमान परिवाद इस जिला मंच में संस्थित करने की आवश्यकता पड़ी, जिसके माध्यम से उसने विपक्षी से रू0 दो लाख बीमा की धनराशि व रू0 50,000/- मय 18 प्रतिशत ब्याज सहित मानसिक व आने जाने में हुये कष्ट हेतु तथा रू0 5000/-वाद व्यय स्वरुप दिलाये जाने की प्रार्थना किया है।
विपक्षी को नोटिस जारी की गयी। नोटिसोंपरान्त भी विपक्षी न तो उपस्थित हुये और न ही उन्होंने प्रतिवाद पत्र दाखिल किया है ।
परिवादी ने परिवाद पत्र के समर्थन में अपना शपथपत्र दाखिल किया है एवं परिवाद पत्र/शपथपत्र के साथ अभिलेखीय साक्ष्यों की छायाप्रतियाॅ दाखिल किया है।मंच ने परिवादी के विद्वान अधिवक्ता को श्रवण किया एवं पत्रावली का सम्यक् अवलोकन किया।
परिवादी का कथन, संक्षेप में, यह है कि परिवादीगण के माता-पिता उ0प्र0 राज्य हज समिति के माध्यम से मक्का (सऊदी अरब) गये थे। परिवादीगण के माता-पिता की मीना हादसे में दि0 12.1.06 को मृत्यु हो गयी, जिसकी सूचना परिवादीगण को पत्र दि0 29.4.06 के माध्यम से दी गयी। हज पर जाने से पूर्व परिवादीगण के माता-पिता का बीमा किया गया था, जिसके अनुसार नामित व्यक्ति को प्रत्येक दुर्घटना में हुये व्यक्ति का दो लाख रुपया मिलना था , परिवादीगण को उनके पिता का बीमा क्लेम रू0 दो तो प्राप्त हो गया , किन्तु माता का बीमा क्लेम विपक्षी द्वारा नहीं दिया गया, जिससे क्षुब्ध होकरपरिवादी को वर्तमान परिवाद इस जिला मंच में संस्थित करने की आवश्यकता पड़ी, जिसके माध्यम से उसने विपक्षी से रू0 दो लाख बीमा की धनराशि व रू0 50,000/-मय 18 प्रतिशत ब्याज सहित मानसिक व आने जाने में हुये कष्ट हेतु तथा रू0 5000/-वाद व्यय स्वरुप दिलाये जाने की प्रार्थना किया है।
उपरोक्त पर्यवेक्षणोंपरान्त मंच का यह अभिमत है कि प्रथम दृष्टया विपक्षी द्वारा सेवा में कमी प्रतीत होती है। ऐसा करके विपक्षी ने व्यापार विरोधी प्रक्रिया को अपनाया है चूॅकि विपक्षी उपस्थित नहीं है एवं परिवादी के कथन अकाट्य है । ऐसी स्थिति में मंच के समक्ष परिवादी के कथनों पर विश्वास करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है। परिवादी ने बार-बार विपक्षी से संपर्क किया है। परिवादी को विपक्षी के पास जाने एवं विधिक नोटिस आदि भेजने में भाग-दौड़ करनी पड़ी है, इससे स्वतः स्पष्ट है कि निश्चित रुप से परिवादी को मानसिक व शारीरिक कष्ट हुआ है, फलस्वरुप परिवादी का परिवाद आंशिक रुप से स्वीकार किये जाने योग्य पाया जाता है।
आदेश
परिवादी का परिवाद आंशिक रुप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह इस निर्णय की तिथि सेे छः सप्ताह के अंदर परिवादी को रू0 दो लाख मय ब्याज दौरान वाद व आइंदा बशरह 9 (नौ) प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज की दर के साथ अदा करंे। इसके अतिरिक्त विपक्षी परिवादी को मानसिक क्लेश हेतु रू0 दस हजार तथा रू0 पाॅच हजार वाद व्यय अदा करगें, यदि विपक्षी उक्त निर्धारित अवधि के अंदर परिवादी को यह धनराशि अदा नहीं करते है तो विपक्षी को , समस्त धनराशि पर उक्त तिथि से ताअदायेगी तक 12 (बारह) प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर के साथ अदा करना पड़ेगा।
(गीता यादव) (गोवर्द्धन यादव) (संजीव शिरोमणि)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
दिनांक 23 मई, 2015