( मौखिक )
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या :379/2022
लव कुमार आयु लगभग 32 वर्ष पुत्र स्व0 मलखान सिंह, निवासी मो0 शांतीनगर, जिला व थाना कोतवाली जिला फतेहपुर।
अपीलार्थी/परिवादी
यूनिवर्सल सोम्पो जनरल इं0कं0लि0, 117/एच-1/255ए, माडल टाऊन, पाण्डू नगर, कानपुर-208005
ब्रांच मैनेजर इलाहाबाद बैंक, ब्रांच फतेहपुर, जिला फतेहपुर-212601
प्रत्यर्थी/विपक्षीगण
समक्ष :-
1-मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
2-मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
उपस्थिति :
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्री एस0 पी0 पाण्डेय।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- श्री अंकित श्रीवास्तव।
दिनांक : 11-01-2023
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित निर्णय
परिवाद संख्या-102/2018 लव कुमार बनाम प्रबन्धक, यूनीवर्सल सोम्पो जनरल इं0कं0लि0 व अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग, फतेहपुर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 26-03-2022 के विरूद्ध यह अपील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत इस न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत की गयी है।
‘’आक्षेपित निर्णय एवं आदेश के द्वारा विद्धान जिला आयोग ने परिवाद निरस्त कर दिया है।
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जिला आयोग के आक्षेपित निर्णय व आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के परिवादी की ओर से यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी ने विपक्षी संख्या-2 से दुकान का कोटेशन बनवाकर ऋण लिया और परिवादी लव टेलीकाम मोबाइल शाप के नाम से शांती नगर, लोधीगंज, फौजी हास्पिटल फतेहपुर में दुकान चलाता था। परिवादी ने अपनी दुकान का बीमा विपक्षी संख्या-1 से कराया जो दिनांक 07-10-2017 से दिनांक 06-10-2018 तक वैध एवं प्रभावी था। दिनांक 01-03-2018 को परिवादी शाम 6.00 बजे दुकान बंद करके अपने घर चला गया। दिनांक 03-03-2018 को उसकी दुकान के सामने रहने वाले फौजी भाई के फोन से दुकान में आग लगने की सूचना उसे प्राप्त हुई। परिवादी ने तत्काल अपनी दुकान जाकर देखा कि शार्ट सर्किट से उसकी पूरी दुकान का सामान जलकर राख हो गया था तथा दुकान में रखे लैपटाप, पिंटर, बैट्रा, इन्वर्टर तथा नये मोबाइल लगभग 20 सेट और कुछ इलेक्ट्रानिक सामान जिनकी कीमत मु0 1,70,000/-रू0 थी जलकर नष्ट हो गये हैं। परिवादी ने उसी दिन दिनांक 03-03-2018 को थाना कोतवाली व फायर ब्रिगेड में आग लगने की लिखित सूचना दिया और विपक्षी को भी सूचना दी गयी किन्तु परिवादी को आज तक कोई मुआवजा/बीमा क्लेम की धनराशि की अदायगी नहीं की गयी। दिनांक 15-05-2018 को जब परिवादी ने जोर देकर मुआवजा धनराशि की मांग की, तो विपक्षीगण ने धनराशि अदा करने से इंकार कर दिया। परिवादी ने विपक्षीगण को जरिये अधिवक्ता नोटिस भेजा, किन्तु विपक्षीगण द्वारा कोई बीमा क्लेम
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की धनराशि अदा नहीं की गयी अत: विवश होकर परिवादी ने परिवाद जिला आयोग के समक्ष योजित किया है।
विपक्षी संख्या-1 की ओर से जवाबदावा कागज संख्या-17/1 लगायत 17/4 दाखिल किया गया है जिसमें कथन किया कि परिवाद पत्र की दफा-1 लगायत 4 का सिद्धभार स्वयं याची पर है एवं दफा-6 लगायत 12 मय उपदफात अ, ब, स को अस्वीकार करते हुए उल्लिखित किया है कि परिवाद गलत तौर पर प्रस्तुत किये जाने के कारण निरस्त किये जाने योग्य हैं। अतिरिक्त कथन में यह उल्लिखित किया है कि याचिका विधि व नियम के सर्वथा प्रतिकूल एवं गलत तथ्यों पर आधारित है तथा यह भी कहा गया कि परिवादी की दुकान व्यावसायिक दुकान है जिसकी सुनवाई का अधिकार माननीय फोरम को नहीं है अत: परिवाद निरस्त होने योग्य है। विपक्षी संख्या-1 की ओर से यह भी कथन किया गया कि परिवादी की सूचना पर नियमानुसार भारत सरकार द्वारा नियुक्त निष्पक्ष सर्वेयर श्री वैभव अग्रवाल को नियुक्त किया गया था जिसके अनुसार नियमानुसार दुकान में कुल क्षति मात्र 24,865/-रू0 की आंकलित की गयी जिसे परिवादी के इलाहाबाद बैंक के लोन एमाउन्ट में दिनांक 29-05-2018 को ट्रांसफर कर दिया गया और जिसकी सूचना परिवादी को है। लगभग 30 प्रतिशत स्टॉक रजिस्टर जो मेंटेन था उसका त्रैमासिक सत्यापन नहीं था उक्त के अतिरिक्त जिन उपकरणों के संबंध में क्लेम किया गया है उसका विवरण और लॉस असेस्ड डिटेल का विवरण जवाबदावा में दिया गया है जिसके अनुसार कुल क्षति 24,865/-रू0 दर्शायी गयी है और उल्लेख किया गया है कि कुल क्षतिपूर्ति पूर्ण संतुष्टि में
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परिवादी द्वारा प्राप्त कर लेने के पश्चात प्रस्तुत याचिका गलत तौर पर योजित होने के कारण पोषणीय नहीं है।
विपक्षी संख्या-2 की ओर से जवाबदावा कागज संख्या-10/1 ता 10/2 दाखिल किया गया है जिसमें परिवाद पत्र की धारा-1, 2, 3 व 9 को स्वीकार किया गया एवं कथन किया गया कि बैंक द्वारा बीमा किया जाना स्वीकार है, उत्तरदाता विपक्षी ने बीमा कराया जो कथित घटना तक वैध एवं प्रभावी था तथा शेष धाराओं क्रमश: 4, 5, 6, 7, 8, 10 और 12 मय उपदफात अ, ब, स को अस्वीकार किया है और दफा-11 के संबंध में अभिकथन किया गया कि यह विधिक है तथा मूल्यांकन गलत रूप से प्रस्तुत किया गया है और उक्त दफा कानूनी होने की वजह से उत्तर की आवश्यकता नहीं है। परिवादी किसी अनुतोष को पाने का अधिकारी नहीं है। बैंक की ओर से सेवा में किसी प्रकार की कोई त्रुटि नहीं की गयी है।
विद्धान जिला आयोग ने उभयपक्ष को सुनने तथा पत्रावली पर उपलब्ध प्रपत्रों का परिशीलन एवं परीक्षण करने के उपरान्त विपक्षीगण की सेवा में किसी प्रकार की कोई कमी न पाते हुए परिवाद निरस्त कर दिया है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता श्री एस0 पी0 पाण्डेय उपस्थित आए। प्रत्यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री अंकित श्रीवास्तव उपस्थित आए।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश साक्ष्य एवं विधि के विरूद्ध है तथा जिला आयोग ने सभी तथ्यों पर ध्यान दिये बिना विधि विरूद्ध ढंग से निर्णय पारित है। अत: अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
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प्रत्यर्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश साक्ष्य एवं विधि के अनुसार है अत: अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
हमने उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का भली-भॉंति परिशीलन एवं परीक्षण किया है।
पत्रावली पर उपलब्ध प्रपत्रों के परीक्षणोंपरान्त हम इस मत के हैं कि परिवादी ने अपनी दुकान का बीमा विपक्षी संख्या-1 से कराया था तथा बीमा अवधि में ही परिवादी की दुकान में आग लग गयी जिसकी सूचना परिवादी ने विपक्षी को दिया तथा थाने व फायर ब्रिगेड को भी सूचना दी गयी। विपक्षी संख्या-1 द्वारा सर्वेयर नियुक्त किया गया जिसने दुकान में हुई कुल क्षति मु0 24,865/-रू0 आंकलित किया है तथा जिसका भुगतान विपक्षी संख्या-1 द्वारा परिवादी को कर दिया गया है। परिवादी का कथन है कि उसकी दुकान में 1,70,000/-रू0 की क्षति हुई है किन्तु बीमा कम्पनी द्वारा मात्र 24,865/-रू0 ही क्षतिपूर्ति अदा की गयी है।
अत: समस्त तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए मेरे विचार से बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी को जो 24,865/-रू0 क्षतिपूर्ति अदा की गयी है वह काफी कम प्रतीत होती है साथ ही जिला आयोग द्वारा समस्त तथ्यों पर विचार किये बिना ही विधि विरूद्ध ढंग से निर्णय पारित किया गया है। अत: मेरे विचार से अपील आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश अपास्त किये जाने योग्य है तथा
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परिवादी को विपक्षी बीमा कम्पनी से कुल धनराशि रू0 50,000/- क्षतिपूर्ति के मद में दिलाये जाने का आदेश पारित किया जाना न्यायोचित प्रतीत होता है तथा जो धनराशि क्षतिपूर्ति के मद में परिवादी को प्राप्त करायी जा चुकी है उस धनराशि को देय धनराशि में समायोजित करते हुए बाकी की धनराशि 30 दिन में प्राप्त कराया जावे।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है तथा जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश को अपास्त करते हुए विपक्षी बीमा कम्पनी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को बीमित क्षतिपूर्ति की धनराशि रू0 50,000/-पूर्व में क्षतिपूर्ति के मद में प्राप्त करायी गयी धनराशि में समायोजित करते हुए बाकी बची शेष धनराशि इस निर्णय से 30 दिन के अंदर परिवादी को प्राप्त कराया जाना सुनिश्चित करें।
विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा यदि उपरोक्त धनराशि 30 दिन की अवधि में परिवादी को अदा नहीं की जाती है तो उपरोक्त धनराशि पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 08 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज भी देय होगा।
अपील में उभयपक्ष पक्ष अपना अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
प्रदीप मिश्रा , आशु0 कोर्ट नं0-1