सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या- 1691/2016
(जिला उपभोक्ता आयोग, इटावा द्वारा परिवाद संख्या- 92/2015 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 23-07-2016 के विरूद्ध)
कमलेश सिंह, पुत्र बजरंग सिंह, निवासी ग्राम-पोस्ट- उदी, बजरिया डिस्ट्रिक-इटावा
अपीलार्थी/परिवादी
बनाम्
यनिवर्सल सोम्पो जनरल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 द्वारा ब्रांच मैनेजर, ब्रांच मैनेजर, ब्रांच आफिस- 123-ए भूमल सिविल लाइन्स, जी0जी0आई0सी0 के सामने, बलराम सिंह चौराहा, इटावा।
प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री उमेश कुमार शर्मा
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री दिनेश कुमार
दिनांक-.24-02-2021
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, अपीलार्थी कमलेश सिंह द्वारा यनिवर्सल सोम्पो जनरल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 के विरूद्ध अन्तर्गत धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 विद्वान जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, इटावा द्वारा पारित परिवाद संख्या- 92/2015 में पारित निर्णय व आदेश दिनांक 23-07-2016 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी है।
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संक्षेप में अपीलार्थी का कथन है कि उसने विपक्षी के विरूद्ध उनके अवैधानिक और मनमाने कार्य के कारण परिवाद दायर किया था। उसने रेनाल्ट डस्टर कार जिसका रजिस्ट्रेशन संख्या यू०पी० 75 आर- 1415 आई०डी०वी० मूल्य 7,80,000/-रू० था, का बीमा पालिसी संख्या– 2311/54581392/00/B00 था जो दिनांक 18-10-2014 से दिनांक 17-10-2015 तक असीमित जोखिम कवर के अन्तर्गत थी। यह कार दिनांक 13-11-2014 को पक्का तालाब चौराहे से नुमाइश की तरफ जा रही थी कि शान्ति पहलवान स्वीट हाउस के पास अचानक 7.30 बजे दुर्घटनाग्रस्त हो गयी। तब उसने प्रत्यर्थी/विपक्षी के यहां दावा संख्या– 14048298 दर्ज कराया। सूचना की एफ०आई०आर० दिनांक 15-11-2014 को 14.30 बजे बजे आहत श्री प्रदीप कुमार द्वारा अंकित करायी गयी जिसका निर्णय दिनांक 21-11-2014 को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, इटावा के न्यायालय में अपीलार्थी/परिवादी के पक्ष में हुआ। अपीलार्थी/परिवादी, प्रत्यर्थी/विपक्षी के पास इस कार्य की मरम्मत पर हुए खर्च के भुगतान के लिए गया जो आज तक नहीं किया गया। कई बार उसने स्मारक पत्र भेजे इसके अतिरिक्त आवश्यक बिल और अन्य अभिलेख भी भेजे गये लेकिन विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, इटावा द्वारा उसका परिवाद निरस्त कर दिया गया। जिला आयोग द्वारा बिना मस्तिष्क का प्रयोग किये और तथ्यों पर विचार किये प्रश्नगत आदेश पारित किया गया है जिससे व्यथित होकर वर्तमान अपील प्रस्तुत की गयी है।
अपील का आधार यह है कि जिला उपभोक्ता आयोग, इटावा द्वारा परिवाद का निर्णय अवैधानिक, मनमाना पूर्वक, बिना मस्तिष्क का प्रयोग किये और तथ्यों एवं परिस्थितियों पर विचार किये हुए पारित किया गया है जो विधि
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विरूद्ध एवं त्रुटिपूर्ण है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, इटावा यह विचार करने में असफल रहा है कि वाहन के मरम्मत पर आया खर्च देना चाहिए था। यह निष्कर्ष भी गलत है कि अपीलार्थी सेवा में कमी को सिद्ध नहीं कर सका। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने पालिसी चालक के लाइसेंस एवं दुर्घटना के कारण मरम्मत में खर्च हुए बिलों पर विचार नहीं किया है और मनमानी तरीके से केवल अनुमान और परिकल्पना के आधार पर अपना आदेश पारित किया है जो त्रुटिपूर्ण है और अपास्त होने योग्य है।
हमने उभय-पक्ष के तर्क को सुना है और पत्रावली का सम्यक रूप से परिशीलन किया है।
प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से कहा गया है कि वाहन का बीमा दिनाक 18-10-2014 से दिनांक 17-10-2015 तक वैध था। वाहन का नाम रेनाल्ट डस्टर है और पुरानी पालिसी के खण्डित होने के पश्चात दोबारा पालिसी देते समय इसके फोटोग्राफ लिये गये थे। परिवाद-पत्र के अनुसार दुर्घटना दिनांक- 13-11-2014 को हुयी थी जिसमें एक व्यक्ति की मृत्यु मौके पर हो गयी थी, लेकिन इस सम्बन्ध में कोई एफ०आई०आर० नहीं लिखायी गयी बल्कि दिनांक 15-11-2014 को मृतक के पुत्र द्वारा एफ०आई०आर० लिखायी गयी। संबंधित वाहन पुलिस थाने से दिनांक 21-11-2014 को अवमुक्त किया गया और इसी बीच दिनांक 18-11-2014 को बीमित व्यक्ति ने बीमा कम्पनी को इस दुर्घटना के बारे में सूचना दी और वाहन को गैरैज में दिनांक 22-11-2014 को लखनऊ में दिया । सूचना मिलने पर बीमा कम्पनी ने अन्वेषक की नियुक्ति की जिससे क्षति का मूल्यांकन हो सका और दिनांक 08-12-2014 को गैरेज में जाकर वाहन का फोटोग्राफ लिया गया। प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी
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की ओर से कहा गया है कि बीमा कम्पनी ने दिनांक 23-04-2015 को बीमित व्यक्ति को एक पत्र कुछ बिन्दुओं पर स्पष्टीकरण के लिए भेजा किन्तु उसके द्वारा कोई सहयोग नहीं किया गया जिसके पश्चात् "नो क्लेम" के आधार पर इसे बन्द कर दिया गया। अभिलेखों से स्पष्ट होता है कि वाहन दिनांक 13-03-2015 को गैरेज से अवमुक्त हुआ और अपीलार्थी/परिवादी ने दिनांक 28-04-2015 को भुगतान की रसीद प्रस्तुत की। वाहन के चारो ओर क्षति हुयी है जिसके कारण वाहन को मरम्मत के लिए गैरेज ले जाया गया है। वाहन का बीमा कराते समय दो फोटोग्राफ लिये गये थे। दुर्घटना के बाद के फोटोग्राफ से दोनों वाहन में अन्तर स्पष्ट होता है। बीमा कम्पनी के अन्वेषक की आख्या और फोटोग्राफ के आधार पर विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने अपीलार्थी/परिवादी के दावे को निरस्त किया है।
हमने अन्वेषक आख्या का अवलोकन किया है जिसके अनुसार अन्वेषक ने लिखा है कि वह पुलिस थाने पर गया, वहॉं के लोगों ने मौखिक रूप से अवगत कराया कि कथित वाहन के चालक के विरूद्ध मृतक के संबंधियों द्वारा एफ०आई०आर० दर्ज करायी गयी है और उन्होंने वाहन चालक राजेश कुमार तिवारी के विरूद्ध आरोप-पत्र प्रेषित किया है। अन्वेषक ने यह भी लिखा है कि उसने कई स्थानीय व्यक्तियों से बातचीत की, कुछ लोगों ने बयान दिया लेकिन बाकी लोगों ने बयान नहीं दिये। अन्वेषक ने बीमित व्यक्ति से उसके आवास पर मुलाकात की और पाया कि बीमित व्यक्ति बी०एस०पी० पार्टी का एक नेता और ठेकेदार है। उसके पास 6 वाहन हैं तथा सभी वैतनिक चालकों द्वारा चलाए जा रहे हैं। दुर्घटना के समय वाहन श्री राजेश कुमार तिवारी चालक द्वारा चलाया जा रहा था। अन्वेषक ने लेखा है कि दुर्घटना इस वाहन से होने
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की बात सही है। वाहन चालक श्री कमलेश सिंह और श्री राजेश कुमार तिवारी दुर्घटना के समय चालक थे। मृतक मूलचन्द की आयु 60 वर्ष थी जिसकी दुर्घटना में मृत्यु हुयी। निरीक्षण के समय के फोटोग्राफ और दुर्घटना के बाद के फोटोग्राफ में अन्तर है जिससे स्पष्ट है होता है कि दोनों वाहन अलग-अलग हैं। न्यायालय के समक्ष बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता ने बहस करते हुए कहा कि दुर्घटनाग्रस्त वाहन का बीमा पहले समाप्त हो चुका था और यदि दोबारा समाप्त होने के बाद बीमा कराया जाता है तब बीमा कंपनी के एजेण्ट मौके पर जाकर वाहन का फोटोग्राफ लेते हैं। उस समय के फोटोग्राफ और दुर्घटना के बाद के फोटोग्राफ में स्पष्ट अन्तर है जो यह दर्शाता है कि बीमा किये गये वाहन और दुर्घटनाग्रस्त वाहन दोनों अलग-अलग हैं।
हमने जिला आयोग के निर्णय दिनांक 23-11-2016 का अवलोकन किया जिसमें लिखा है कि " परिवादी पक्ष की ओर से शपथ-पत्र प्रस्तुत किया गया तथा प्रथम सूचना, नो क्लेम, नोटिस, आर०सी०, बीमा डी०एल० प्रस्तुत किया गया। धन भुगतान की दो रसीदें, एक बिल, एक क्रेन सर्विस का बिल, एक मूल रिपेयर आर्डर, एक वाहन रिलीज आदेश प्रस्तुत किया गया। विपक्षी की ओर से अन्वेषण रिपोर्ट, कार के फोटोग्राफ, सर्वेयर रिपोर्ट दाखिल किये गये।
बीमा होना दोनों पक्षों को स्वीकार है क्लेम केवल इस आधार पर खारिज हुआ है कि वाहन दुर्घटना होने के पहले से ही क्षतिग्रस्त था। यह बात अन्वेषण में पायी गयी। बीमा कम्पनी की ओर से श्याम एण्ड कम्पनी अनुमोदित सर्वेयर की रिपोर्ट दाखिल है जिसमें उन्होंने विस्तृत जांच की है और यह पाया है कि बीमा होने के पहले से ही वाहन क्षतिग्रस्त था और कपट करते हुए परिवादी ने बीमा कम्पनी में दावा दाखिल किया है। इसलिए कोई धन देय नहीं है और परिवाद खारिज होने योग्य है। "
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जिला आयोग ने इस सम्बन्ध में वाहन के बीमित कागजात नहीं देखे। फोटोग्राफ में वाहन संख्या- यू०पी० 75 आर- 1415 दिखायी दे रहा है और इसी वाहन का बीमा कराया गया है। इसका रजिस्ट्रेशन नं० भी यही है। मात्र यह कह देने से कि फोटोग्राफ में अन्तर है, परिवाद अस्वीकार करने का एक मात्र कारण नहीं होना चाहिए बल्कि जिला आयोग को समस्त प्रपत्रों का ध्यानपूर्वक अवलोकन करना चाहिए।
एफ.आई.आर. के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि घटना दिनांक 13-11-2014 को हुयी और घटना की एफ.आई.आर. दिनांक 15-11-2014 को अंकित करायी गयी जिसमें रेनाल्ट डस्टर कार का नम्बर यू०पी. 75 R 1415 अंकित है। अन्वेषक की आख्या में वाहन का नम्बर- यू०पी. 75 R 1415 अंकित है। प्रत्यर्थी/विपक्षी की ओर से कहा गया है कि जिस वाहन का बीमा किया गया था वह कोई और वाहन था तथा दुर्घटना किसी और वाहन से हुयी है।
हमने वाहन के बीमा प्रपत्रों का अवलोकन किया। बीमा प्रपत्रों में वाहन का नं० यू०पी. 75 R 1415 है इससे सिद्ध होता है कि इसी वाहन का बीमा कराया गया था। न्याययिक मजिस्ट्रेट इटावा द्वारा वाहन संख्या- यू०पी. 75 R 1415 उसके पंजीकृत स्वामी को पंजीकृत किया गया। इन सभी तथ्यों से यह निष्कर्ष निकलता है कि दुर्घटनाग्रस्त वाहन का नं० यू०पी. 75 R 1415 ही था। यह अन्वेषक आख्या कुछ अजीब प्रकार की है जिस पर सब कुछ मानते हुए यह कहा कि पूर्व निरीक्षण को किस प्रकार छल कपट से किया। लेकिन अन्वेषक रिपोर्ट में दुर्घटनाग्रस्त वाहन का इंजन नम्बर तथा चेचिस नम्बर अंकित नहीं किया गया है न तो उसकी छायाप्रति दी गयी है। बीमा समाप्त हो जाने के पश्चात यदि नवीनीकरण कराया जाता है तो बीमा कम्पनी की टीम के
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एजेण्ट अथवा अन्य कोई मौके पर पहॅुचकर वाहन का फोटोग्राफ लेता है तथा इंजन नम्बर तथा चेचिस नम्बर को एक कागज पर पेंसिल की सहायता से उतारता भी हैं। किन्तु यहॉं पर इसे प्रस्तुत नहीं किया गया है और दुर्घटनाग्रस्त वाहन का इंजन नम्बर तथा चेचिस नम्बर भी प्रस्तुत नहीं किया गया है। प्रत्यर्थी/विपक्षी का यह तर्क है कि पूर्व निरीक्षण के समय वाहन दूसरा था जब उसका बीमा नवीनीकरण कराया गया था और दुर्घटनाग्रस्त वाहन दूसरा था। इस सम्बन्ध में कोई ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। विद्वान जिला आयोग ने इस सम्बन्ध में कोई विचार व्यक्त नहीं किया और उन्होंने परिवाद खारिज कर दिया है जो विधि विरूद्ध और तथ्यों से परे है। अत: ऐसी स्थिति में वर्तमान अपील स्वीकार होने योग्य है और जिला आयोग का प्रश्नगत निर्णय अपास्त होने योग्य है।
यह बीमा 7,80,000/-रू० का है और दुर्घटना के बाद वाहन की मरम्मत करने पर कुल खर्च 2,98,620/-रू० तथा वाहन क्रेन द्वारा इटावा से लाने में हुआ खर्च 15,000/-रू० है अर्थात कुल खर्च 03,13,620/-रू० का आया है। इसके अतिरिक्त अनावश्यक रूप से बीमा दावा को खारिज करने से जो मानसिक कष्ट उत्पन्न हुआ है उसके मद में 20,000/-रू० तथा 2500/-रू० वाद व्यय दिया जाना उचित है।
आदेश
अपील सव्यय स्वीकार की जाती है तथा विद्वान जिला आयोग द्वारा परिवाद संख्या- 92/2015 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 23-07-2016 अपास्त किया जाता है तथा प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी को आदेशित किया जाता है कि वह अपीलार्थी/परिवादी को वाहन की मरम्मत में हुआ खर्च 03,13,620/-रू०, मानसिक कष्ट के मद में 20,000/-रू० तथा वाद व्यय के
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रूप में 2500/-रू० 09 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज की दर से अपील प्रस्तुत करने के दिनांक से भुगतान की तिथि तक उसे अदा करें और यह भुगतान अपील के निर्णय के 30 दिन के अन्दर किया जाए अन्यथा इस धनराशि पर 12 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज देय होगा। यदि प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी इस धनराशि को 30 दिन के अन्दर अदा नहीं करती है तब अपीलार्थी/परिवादी को अधिकार होगा कि वह न्यायालय के माध्यम से प्रत्यर्थी/विपक्षी के खर्च पर इस धनराशि को वसूल कर लें।
निर्णय की नि:शुल्क प्रमाणित प्रति नियमानुसार उभय-पक्ष को उपलब्ध करायी जाए।
(राजेन्द्र सिंह) (न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
सदस्य अध्यक्ष
निर्णय आज दिनांक.24-02-2021 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित/दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(राजेन्द्र सिंह) (न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
सदस्य अध्यक्ष
कृष्णा–आशु0
कोर्ट-1