जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 240/2015
कैलाष मण्डा पुत्र श्री बीजाराम, निवासी-मूलाराम रामनाथ मण्डा की ढाणी, गांव-देषवाल, तहसील-मेडता, जिला-नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. यूनाइटेड इंडिया इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, एमजीएच रोड, जोधपुर-342001 राजस्थान जरिये प्रबन्धक।
2. यूनाइटेड इंडिया इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, षाखा कार्यालय-किले की ढाल, नागौर जरिये प्रबन्धक।
3. यूनाइटेड इंडिया इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, हेड आॅफिस-24, वाईटस रोड चैन्नई-600014 जरिये एम.डी.।
4. ओ.एस. मोटर्स प्राईवेट लिमिटेड, आॅथराईज्ड डीलर, महेन्द्रा जीप एण्ड ट्रेक्टर्स, कुडी, पाल रोड, जोधपुर।
5. सत्येन्द्रसिंह यादव, सर्वेयर एण्ड लाॅस एसेसर, 17 ई-409, चैपासनी, हाउसिंग बोर्ड, जोधपुर (राज.)342008
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री रमेषकुमार ढाका, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री दषरथमल सिंघवी, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थी संख्या 1 से 3, श्री सुधीर टाक, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थी संख्या 4।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
निर्णय दिनांक 26.04.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थी बीमा कम्पनी से अपने वाहन त्श्र 21 न् 0021 का (माॅडल 2015) बीमा करवाया। जिसके पाॅलिसी नम्बर 1420003114पी111820537 है। बीमा पाॅलिसी की वैधता अवधि में दिनांक 19.05.2015 को परिवादी का वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया। दुर्घटना होते ही उसी दिन परिवादी ने दुर्घटना की सूचना अप्रार्थी संख्या 1 को दे दी, जिस पर बीमा कम्पनी के सर्वेयर अप्रार्थी संख्या 5 ने स्पाॅट सर्वे आदि कार्रवाई की। सर्वेयर के कहे अनुसार ही परिवादी वाहन को अप्रार्थी संख्या 4 के पास ठीक करवाने के लिए किराये के वाहन से लेकर गया। जहां दुर्घटनाग्रस्त वाहन के लाॅस के सम्बन्ध में सर्वेयर एवं वर्कषाॅप के मैकेनिकों को जांच करनी थी और उसके बाद वाहन को रिपेयर किया जाना था लेकिन अप्रार्थी संख्या 4 एवं अप्रार्थी संख्या 5 ने वाहन की पूरी तरह से जांच नहीं की और रिपेयर करना षुरू कर दिया। इस दौरान ही परिवादी ने सर्वेयर के कहे अनुसार वाहन सम्बन्धी सम्पूर्ण कागजात भी उपलब्ध करवा दिये तथा अप्रार्थी संख्या 1 के यहां एस्टीमेंट के आधार पर 6,82,210/- रूपये का क्लेम पेष किया। अप्रार्थी संख्या 4 ने वाहन को रिपेयर करना षुरू कर दिया। मगर इस दौरान वाहन के इंजन को नहीं जांचा गया। दुर्घटनाग्रस्त वाहन के इंजन की जांच करना भी अप्रार्थी संख्या 4 व 5 का दायित्व था मगर उन्होंने इंजन की जांच नहीं की। इंजन की जांच नहीं होने से वाहन का इंजन दुरूस्त नहीं हो पाया। यह पता तब चला जब वाहन की रिपेयरिंग किये जाने के बाद अप्रार्थी संख्या 4 ने परिवादी एवं अप्रार्थी संख्या 2 व 5 को सूचना दी। वाहन रिपेयर की सूचना मिलने पर अप्रार्थी संख्या 5 सर्वेयर फाईनल सर्वे के लिए अप्रार्थी संख्या 4 के गैरेज में आया तथा परिवादी के सामने जब अप्रार्थी संख्या 4 के मैकेनिक ने वाहन को स्टार्ट करना चाहा तो वह स्टार्ट नहीं हुआ। इस पर अप्रार्थी संख्या 4 के मैकेनिक ने वाहन के इंजन को देखा तो वो चाॅक होने से खराब हो रखा था, जिसके कारण स्टार्ट नहीं हो रहा था। जिस पर अप्रार्थी संख्या 4 ने अप्रार्थी संख्या 5 को अवगत कराया कि दुर्घटना की वजह से वाहन का इंजन भी चाॅक हो चुका है, इस खराबी को भी ठीक करना पडेगा। उसी वक्त मौके पर ही परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 4 व 5 को अवगत करा दिया था कि उसका वाहन बीमा अवधि में है तथा वाहन का इंजन भी वारंटी पीरियड में है। ऐसे में वाहन का इंजन सही करवाया जाये अथवा दूसरा इंजन लगवाया जाये। इस दौरान अप्रार्थी संख्या 5 ने स्वीकार किया तथा कहा कि यह तो गलती से रह गया, सर्वे के वक्त इंजन को देखा ही नहीं। अभी अप्रार्थी संख्या 1 को पूछकर दूसरा एस्टीमेंट तैयार करते हैं तथा उसी वक्त 77,178/- रूपये का दूसरा एस्टीमेंट तैयार कर अनुमति के लिए अप्रार्थी संख्या 1 को भेज दिया। मगर अप्रार्थी संख्या 1 ने उक्त दुर्घटनाग्रस्त वाहन के इंजन को ठीक करने के लिए अभी तक अनुमति नहीं दी। जिसके चलते आज तक दुर्घटनाग्रस्त वाहन का इंजन दुरूस्त नहीं हो पाया है। इंजन दुरूस्त नहीं होने से वाहन दुर्घटना से लेकर आज दिनांक तक अप्रार्थी संख्या 4 के वर्कषाॅप में खडा है। परिवादी के वाहन को दुर्घटना से 7,59,338/- का नुकसान हुआ है। परिवादी का वाहन नया था, जिसे परिवादी ने मार्च, 2015 में खरीदा था और 19.05.2015 को वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया। कम्पनी के नियमानुसार नये वाहन में छह माह तक दुर्घटना होने पर उसमें बीमा कम्पनी कोई साल्वेज कटौती नहीं कर सकती। इस तरह परिवादी बीमा कम्पनी से नुकसान के 7,59,338/- रूपये प्राप्त करने का अधिकारी है। लेकिन बीमा कम्पनी ने अप्रार्थी संख्या 4 को इंजन रिपेयर करने की अनुमति नहीं दी इसके चलते परिवादी का वाहन आज भी अप्रार्थी संख्या 4 के गैराज में ही पडा है। परिवादी के वाहन को लेकर अब अप्रार्थीगण कोई रूचि नहीं ले रहे हैं, न तो वाहन की पूर्ण रिपेयरिंग कर रहे हैं और ना ही क्लेम राषि दे रहे हैं। अप्रार्थी संख्या 4 तो गैराज में वाहन खडा रहने का किराया लेने की धमकी दे रहा है। परिवादी का वाहन लम्बे समय से गैराज में रहने से उसे अन्य किराये का वाहन काम में लेना पड रहा है। जिसका अतिरिक्त खर्चा उसे उठाना पड रहा है। गैराज में लम्बे समय से पडे वाहन की वेल्यू भी घट रही है। अतः परिवादी को वाहन की क्षतिपूर्ति की राषि 7,59,338/- रूपये मय 18 प्रतिषत वार्शिक ब्याज दर से अप्रार्थीगण से दिलायी जावे। वाहन की सम्पूर्ण रिपेयरिंग कर चालू हालत में परिवादी को सुपुर्द किये जाने के आदेष किये जावें। साथ ही परिवाद में अंकितानुसार अन्य सभी अनुतोश परिवादी को दिलाये जावे।
2. अप्रार्थी संख्या 1 से 3 की ओर से दिनांक 04.01.2016 को जवाब प्रस्तुत करते हुए अप्रार्थीगण द्वारा बीमा का व्यवसाय करना स्वीकार करते हुए परिवाद में अंकित तथ्यों को गलत बताया गया एवं यह भी निवेदन किया गया है कि परिवादी द्वारा घटना की सूचना तुरन्त नहीं दी गई, साथ ही परिवाद न्यायालय के क्षेत्राधिकार में नहीं होने से खारिज किये जाने योग्य है। यह भी बताया गया है कि परिवादी किसी प्रकार की राषि प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। ऐसी स्थिति में परिवाद मय खर्चा खारिज किया जावे।
3. अप्रार्थी संख्या 4 द्वारा निर्धारित समयावधि में जवाब पेष नहीं किया गया। ऐसी स्थिति में दिनांक 29.03.2016 को जवाब पेष करने में विलम्ब का कारण दर्षित करते हुए जवाब पेष कर बताया गया कि सर्वेयर के निर्देषानुसार वाहन का सर्वे कर एस्टीमेट बिल तैयार कर सर्वेयर को दिये गये थे लेकिन वाहन ज्यादा दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण स्टार्ट करके देखने की हालत में नहीं था, ऐसी स्थिति में वाहन की बाॅडी रिपेयर करने के पष्चात् जब वाहन स्टार्ट नहीं हुआ तब परिवादी व सर्वेयर को सूचित किया गया तथा सप्लीमेंट्री सर्वे कर एस्टीमेट बिल सर्वेयर को दिया गया। यह भी बताया गया है कि दुर्घटनाग्रस्त वाहन गारंटी एवं वारंटी मंे नहीं आता, इसलिए वाहन के इंजन को रिपेयर करने हेतु अप्रार्थी संख्या 4 जिम्मेदार नहीं है। अप्रार्थी ने यह भी बताया है कि वाहन काफी समय से बेवजह खडा है, इसलिए वाहन की सुरक्षा का खर्चा एवं किराया प्राप्त करना अप्रार्थी का अधिकार है। अप्रार्थी संख्या 4 ने वाहन पार्किंग के चार्जेज एवं अन्य खर्चा दिलाने का निवेदन करते हुए परिवाद खारिज करने का निवेदन किया है।
4. अप्रार्थी संख्या 5 बावजूद तामिल उपस्थित नहीं आया तथा न ही कोई जवाब पेष किया गया।
5. दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात पेष किये गये।
6. बहस अंतिम योग्य अधिवक्ता पक्षकारान सुनी गई एवं अभिलेख का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया।
7. परिवादी द्वारा अपने परिवाद में अंकित तथ्यों के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र पेष करने के साथ ही बीमा पाॅलिसी प्रदर्ष 1, वाहन का पंजीयन प्रमाण-पत्र प्रदर्ष 2, सर्वेयर अनुसार वाहन के रिपेयरिंग हेतु एस्टीमेंट क्रमषः प्रदर्ष 3 व 4 भी पेष किये गये हैं। अप्रार्थी संख्या 1 से 3 की ओर से भी बीमा पाॅलिसी प्रदर्ष ए 1 तथा वाहन का पंजीयन प्रमाण-पत्र प्रदर्ष ए 2 पेष किये गये हैं।
पक्षकारान द्वारा प्रस्तुत सामग्री के आधार पर यह स्वीकृत स्थिति है कि दुर्घटनाग्रस्त वाहन त्श्र 21 न् 0021 का पंजीकृत स्वामी परिवादी कैलाष मण्डा रहा है तथा इस वाहन का बीमा दिनांक 25.03.2015 से लेकर दिनांक 24.03.2016 की अवधि हेतु अप्रार्थी संख्या 1 से 3 बीमा कम्पनी द्वारा किया गया था। यह भी स्वीकृत स्थिति है कि यह वाहन बीमित अवधि के दौरान दिनांक 19.05.2015 को दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण क्षतिग्रस्त हुआ, जिसकी सूचना अप्रार्थी बीमा कम्पनी को दिये जाने पर बीमा कम्पनी के ही सर्वेयर अप्रार्थी संख्या 5 द्वारा मौके पर जाकर वाहन का सर्वे किया गया तथा दुर्घटनाग्रस्त वाहन को दूसरे वाहन के जरिये अप्रार्थी संख्या 4 के वहां लाया गया।
बहस के दौरान दिये तर्कों से यह भी स्वीकृत स्थिति है कि वाहन आज भी अप्रार्थी संख्या 4 के वहां खडा है, जिसे आज तक ठीक करके परिवादी को नहीं लौटाया गया है। अप्रार्थी संख्या 1 से 3 के विद्वान अधिवक्ता ने बहस के दौरान मुख्य रूप से यही आपति की है कि वाहन रिपेयर किये जाने बाबत् मूल एवं वास्तविक बिल प्रस्तुत न होने के कारण ही आज तक परिवादी का क्लेम स्वीकृत नहीं हुआ है।
इस सम्बन्ध अप्रार्थी संख्या 4 द्वारा स्पश्ट किया गया है कि सप्लीमेंट्री सर्वे रिपोर्ट के पष्चात् अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने दुर्घटनाग्रस्त वाहन के इंजन को ठीक करने हेतु अप्रुवल नहीं दी है। इसी कारण वाहन आज तक ठीक नहीं हो सका है, ऐसी स्थिति में बिल जारी नहीं हुए हैं।
पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री को देखते हुए यह स्वीकृत स्थिति है कि वाहन के इंजन में कोई मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट नहीं रहा है बल्कि वाहन के दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण उसका इंजन स्टार्ट नहीं हो रहा है। ऐसी स्थिति में वाहन वारंटी अवधि में होने के बावजूद इसके इंजन को रिपेयर करने अथवा परिवर्तित करने का दायित्व अप्रार्थी संख्या 4 का न होकर बीमा पाॅलिसी की षर्तों अनुसार बीमा कम्पनी द्वारा ही इंजन को ठीक करवाया जाना है।
पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री से यह भी स्पश्ट है कि बीमा कम्पनी के ही सर्वेयर अप्रार्थी संख्या 5 द्वारा बाद सर्वे एस्टीमेट लागत की रिपोर्ट दी गई है लेकिन उसके बावजूद बीमा कम्पनी द्वारा वाहन के इंजन को ठीक करवाये जाने बाबत् अप्रुवल जारी करने में टालमटोल की जा रही है जो कि निष्चिय ही अप्रार्थी बीमा कम्पनी का सेवा दोश रहा है। ऐसी स्थिति में अप्रार्थी संख्या 1 से 3 बीमा कम्पनी को यह आदेष दिया जाना न्यायाचित होगा कि सप्लीमेंट्री सर्वे रिपोर्ट अनुसार दुर्घटनाग्रस्त वाहन के इंजन को ठीक करवाने बाबत् तुरन्त अप्रुवल जारी कर वाहन की सर्विस एवं मरम्मत हेतु अधिकृत अप्रार्थी संख्या 4 से वाहन को ठीक करवाया जाकर अविलम्ब परिवादी को सुपुर्द किया जावे।
यह भी उल्लेखनीय है कि वाहन दिनांक 19.05.2015 को दुर्घटनाग्रस्त होने के पष्चात् एक लम्बी अवधि से बीमा कम्पनी की लापरवाही के कारण अप्रार्थी संख्या 4 के वहां पडा है, जिसके कारण परिवादी लम्बे समय से अपने वाहन का उपयोग करने से भी वंचित हो रहा है, जिससे स्पश्ट है कि परिवादी को मानसिक संताप के साथ-साथ आर्थिक क्षति भी हो रही है। ऐसी स्थिति में परिवादी को मानसिक संताप हेतु 10,000/- रूपये एवं लम्बे समय से वाहन के उपयोग से वंचित रहने के कारण 30,000/- दिलाये जाने के साथ परिवाद व्यय के रूप में भी 10,000/- रूपये दिलाया जाना उचित होगा।
आदेश
8. परिवादी कैलाष मण्डा द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 खिलाफ अप्रार्थीगण स्वीकार किया जाकर आदेष दिया जाता है कि सर्वेयर रिपोर्ट अनुसार अप्रार्थी संख्या 1 से 3 दुर्घटनाग्रस्त वाहन के इंजन एवं अन्य मरम्मत हेतु अविलम्ब अप्रुवल जारी कर वाहन की मरम्मत हेतु अधिकृत अप्रार्थी संख्या 4 से वाहन को पूर्णरूप से तैयार करवाकर चालू हालत में परिवादी को सुपुर्द करें। वाहन की समस्त मरम्मत हेतु सर्वे रिपोर्ट अनुसार अप्रार्थी संख्या 4 द्वारा प्रस्तुत बिलों का भुगतान अप्रार्थी संख्या 1 से 3 द्वारा किया जायेगा।
अप्रार्थी संख्या 1 से 3 को यह भी आदेष दिया जाता है कि परिवादी को मानसिक संताप हेतु 10,000/- रूपये तथा आर्थिक नुकसान हेतु 30,000/- रूपये अदा करने के साथ ही परिवाद व्यय के भी 10,000/- रूपये परिवादी को अदा करें। आदेष की पालना एक माह में की जावे।
9. निर्णय व आदेष आज दिनांक 26.04.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
नोटः- आदेष की पालना नहीं किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत तीन वर्श तक के कारावास या 10,000/- रूपये तक के जुर्माने से दण्डनीय अपराध है।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल।
सदस्य अध्यक्ष