राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
परिवाद संख्या-136/2001
लक्ष्मी कोल्ड स्टोरेज एण्ड आइस फैक्ट्री प्रा0 लि0 द्वारा श्री वी.एस.
दीक्षित डि0 मैनेजिंग डायरेक्टर फतेहपुर रोड लाल गंज जिला रायबरेली।
...........परिवादी
बनाम्
1.दि मैनेजिंग डायरेक्टर मै0 युनाइटेड फासफोरस लि0, 11, जी.आई.डी.सी,
वापी(गुजरात)।
2.दि कन्ट्री मैनेजर, 26-28, इन्दिरा पैलेस, एच-ब्लाक कनाट सर्कस,
दिल्ली– 110001 .......विपक्षीगण
समक्ष:-
1. मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
परिवादी की ओर से उपस्थित: श्री अशोक मेहरोत्रा, विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : श्री अमित कुमार श्रीवास्तव, विद्वान
अधिवक्ता।
दिनांक 29.10.2021
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. यह परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध आलू सड़ने के कारण रू. 1523000/- की क्षतिपूर्ति के लिए आलू सड़ने से बचाने के लिए किए गए उपचार पर खर्च अंकन रू. 160000/- की प्राप्ति के लिए अंकन रू. 86250/- पर 30 नवम्बर तक 20 प्रतिशत ब्याज प्राप्त करने के लिए तथा 2.01 लाख रूपये व्यापार में शाख की हानि के लिए तथा प्रमाणिक हानि के रूप में रू. 40000/- विधिक कार्यवाही में हुए रू. 20000/- प्राप्त करने के लिए प्रस्तुत किया है।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी कोल्ड स्टोरेज का व्यापार करता है। विपक्षीगण द्वारा लगाए गए स्टाल प्रकाशित पुस्तिकाएं विपक्षीगण के कर्मचारी द्वारा व्याख्यानों से प्रभावित होकर आलू के 20 हजार पैक 00RJA से चैम्बर नं0 1 व 2 का ट्रीटमेन्ट कराने के लिए
-2-
एक मेमोरेन्डम हस्ताक्षर किया। UPL द्वारा आलू की सुरक्षा संरक्षा तकनीकी स्टाफ आदि का भरोसा दिया गया। कंपनी के प्रतिनिधि श्री आर0पी0 अग्रवाल तथ हृदेश गर्ग द्वारा कोल्ड स्टोरेज के चैम्बर का निरीक्षण दि. 17.03.2000 से 29.03.2000 तक किया गया। चैम्बर संख्या 1 व 2 में बीस हजार आलू बोरे रखे हुए थे। चैम्बर संख्या 1 को प्रथम फोगिंग के लिए चुना गया, उसके पश्चात चैम्बर संख्या 2 में फोगिंग की जानी थी। विपक्षी के कर्मचारियों के निर्देश के अनुसार चैम्बर के अंदरूनी और बाहरी हिस्सों में कुछ परिवर्तन किए गए। परिवादी ने अंकन रू. 68960/- खर्च किया। इस खर्च की रसीद एनेक्सर संख्या 4 है। दिनांक 04.04.2000 को फोगिंग के लिए मेमोरेन्डम हस्ताक्षर किया गया, जो एनेक्सर संख्या 5 है। पूर्व में निर्धारित 92 रूपये के स्थान पर प्रतिटन के लिए 100 रूपये अदा करने के लिए कहा गया। एक टन आलू पर 500 एम.एल URJA छिड़काव के लिए कहा गया। दिनांक 05.04.2000 को सबुह 9.30 बजे चैम्बर संख्या 1 में छिड़काव प्रारंभ किया गया। छिड़काव प्रारंभ करते ही फोगिंग मशीन में आग लग गई। कर्मचारियों ने किसी तरह अपनी जान बचाई तथा किसी तरह आग पर नियंत्रण किया। दि. 06.04.2000 को पुन: फोगिंग प्रारंभ की गई। परिवादी ने चेक संख्या 265426 से अंकन रू. 43150/- का भुगतान किया। विपक्षीगण के कर्मचारियों द्वारा हिदायत दी गई कि 24 घंटे तक चैम्बर ठंडे नहीं किए जाएंगे। 48 घंटे तक विद्युत आपूर्ति स्थापित नहीं की जाएगी, पंखे नहीं चलाए जाएंगे, लाइट नहीं जलाई जाएगी तथा 24 घंटे तक सील सुरक्षित रखी जाएगी और 48 घंटे बाद फाल्स पार्टीशन दीवार हटा दी जाएगी। इन सभी निर्देशों का अनुपालन किया, तापमान 48 डिग्री फारनेहाइट पर रखा गया। फोगिंग के पश्चात दिए गए समस्त निर्देशों का
-3-
अनुपालन सुनिश्चित किया गया। दि. 17.04.2000 को श्री आर0पी0 अग्रवाल तथा हृदेश गर्ग चैम्बर संख्या 2 की फोगिंग के लिए निरीक्षण हेतु आए और पूर्व के अनुसार कार्य कराया। दि. 17.04.2000 को चैम्बर संख्या 2 में छिड़काव किया गया और अंकन रू. 86200/- का बिल तैयार किया, जिसमें से रू. 43100/- चेक द्वारा अदा कर दिए गए। विपक्षी के कर्मचोरियों द्वारा निर्देश दिया गया कि 21 दिन तक फोगिंग किए गए आलू का प्रयोग नहीं किया जाएगा। दि. 17.04.2000 को ही उपरोक्त वर्णित प्रतिनिधियों को दिखाया गया तथा दि. 06.04.2000 को चैम्बर संख्या 1 में फोगिंग किए गए आलू अंकुरित हो गए हैं तब कहा गया कि 21 दिन बाद नया अंकुरण नहीं होगा, जबकि परिवादी द्वारा कहा गया कि आलू में नए अंकुरण हो रहे हैं तथा पुराने अंकुरण विकसित हो रहे हैं तथा आलू सड़ने प्रारंभ हो गए। दि. 30.04.2000 को कंपनी के प्रतिनिधियों द्वारा चैम्बर का निरीक्षण किया गया और पाया गया कि छिड़काव किए गए आलुओं में भी आलू के लगभग प्रत्येक बैग में नए अंकुरण हो रहे हैं, पुन: 21 दिन तक इंतजार करने के लिए कहा गया। दि. 15.05.2000 को पंजीकृत पत्र UPL को नई दिल्ली भेजा गया तथा अन्य प्राधिकारियों को प्रतिलिपि प्रेषित की गई। श्री आर.पी. अग्रवाल एवं श्री हृदेश गर्ग को प्रतिलिपि भेजी गई, जो NTR की टिप्पणी के साथ वापस प्राप्त हो गए। सामान्यत: 20 मई तक आलुओं में अंकुरण नहीं होता। 10 अप्रैल तक आलू भरे जा चुके थे। कंपनी के प्रतिनिधियों के निर्देशों का मामूली उल्लंघन भी नहीं हुआ। दि. 20.05.2000 को दोनों प्रतिनिधियों ने कोल्ड स्टोरेज का भ्रमण किया। परिवादी द्वारा चैम्बर संख्या 2 की स्थिति से अवगत कराया गया, परन्तु वे चैम्बर संख्या 1 में द्वितीय फोगिंग के लिए दबाव डालते रहे। परिवादी
-4-
द्वारा दबाव डालने पर चैम्बर नं0 2 में आलू पलटने पर सहमत हुए। दि. 20.05.2000 से 28.05.2000 तक आलू पलटने की प्रक्रिया की गई। दि. 24.05.2000 को चैम्बर नं0 1 की फोगिंग पूर्ण की गई। इसी तिथि को चैम्बर संख्या 2 में आलुओं के सड़ाव के बारे में प्रतिनिधियों को बताया गया, परन्तु कोई ध्यान नहीं दिया गया और अंकन रू. 86300/- का बिल बना दिया गया, जिसका भुगतान एक माह बाद होना था। पलटने के समय 50 प्रतिशत सड़े हुए बैग की पहचान की गई। 843 आलू के सड़े हुए बोरे फैलाए गए, जिस पर कंपनी के प्रतिनिधियों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। देय न होने के बावजूद अंकन रू. 900/- टैक्सी का भाड़ा परिवादी से वसूला गया। परिवादीगण ने सेवा में कमी को देखते हुए 23 मई 2000 को फैक्स द्वारा एक संदेश प्रेषित किया, जिसमें 190 बैग सड़ने की सूचना दी गई। दि. 29.05.2000 को दूसरा मैसेज भेजा गया, जिसमें 843 आलू बोरा सड़ने के बारे में बताया गया। परिवादी द्वारा 3 मैसेज भेजने के बावजूद भी आलू सड़ने से बचाने के लिए कोई कार्यवाही नहीं की गई। इसके बाद 30.05.2000 को भी एक संदेश भेजा गया, परन्तु विपक्षीगण द्वारा कोई विशेषज्ञ नहीं भेजा गया। दि. 05.06.2000 को उप निदेशक बागवानी को पत्र भेजा गया, उनके द्वारा दि. 05.06.2000 को कोल्ड स्टोरेज का निरीक्षण किया गया। दि. 05.06.2000 को जिला बागवानी अधिकारी, रायबरेली तथा उप निदेशक बागवानी ने निरीक्षण किया और गंभीर आलू की क्षति देखने के बाद UPL से वार्ता करने के लिए कहा। UPL के कर्मचारियों ने भी आवश्यक कार्य करने का आश्वासन दिया। दि. 06.06.2000 को श्री आर.पी. अग्रवाल एवं हृदेश गर्ग द्वारा कोल्ड स्टोरेज का निरीक्षण किया गया। UPL के 4 सदस्यों की टीम ने भी सड़े हुए आलुओं का निरीक्षण
-5-
किया, कुछ फोटोग्राफ भी लिए। दि. 9/10 जून 2000 परिवाद में वार्ता करने के लिए सुनिश्चित की गई। वार्ता के पश्चात 843 बैग की क्षति की पूर्ति का आश्वासन दिया गया तथा भवष्यि में होने वाली हानि की पूर्ति के लिए भी कहा गया। दि. 30.06.2000 तक रू. 210000/- देने के लिए कहा गया। दि. 10.06.2000 को एक करार निष्पादित हुआ जो एनेक्सर संख्या 18 है। दि. 15.6.2000 को आर.पी. अग्रवाल ने कोल्ड स्टोरेज का निरीक्षण किया तथा निरीक्षण नोट तैयार किया जो एनेक्सर संख्या 21 है, जिसमें असत्य विवरण अंकित किए गए। चैम्बर संख्या 2 में आलू सड़ने को नियंत्रण में बताया गया, साथ ही नए अंकुरण का भी उल्लेख क्रम संख्या 4 पर किया गया। अंकुरण होने के पश्चात आलू का सड़ना आवश्यक प्रक्रिया है। क्रमांक संख्या 5 व 6 पर भी स्थ्िाति के विपरीत टिप्पणी की गई। इसी तिथि को चैम्बर संख्या 1 का भी निरीक्षण किया गया, जिसमें उल्लेख किया गया कि आलू के सड़ने का कोई चिह्न नही है, परन्तु नए अंकुरण होने का उल्लेख किया गया। दि. 26.06.2000 को आर.पी.अग्रवाल तथा हृदेश गर्ग तथा आनंद विशेषज्ञ द्वारा कोल्ड स्टोरेज का निरीक्षण किया गया, परन्तु अपने आंकलन को दर्ज नहीं किया गया। दि. 04.07.2000 को टेलीफोन पर सूचित किया गया कि चैम्बर संख्या 2 के क्रमश: 67 एवं 71 बोरे सड़ गए हैं, परन्तु दूरभाष पर कोई जवाब नहीं दिया गया, इसलिए दि. 05.07.2000 को आर.पी. अग्रवाल द्वारा कोल्ड स्टोरेज का निरीक्षण किया गया। लाट संख्या 54 एवं 56, 60 से 65 प्रतिशत तक सड़े चुके थे, जबकि उनके द्वारा 35 से 40 प्रतिशत का सड़ना लिखा गया, परन्तु नए अंकुरण का उल्लेख किया गया। दि. 10.06.2000 को किए गए करार का कोई अनुपालन नहीं किया गया और तय की गई धनराशि प्रेषित नहीं की गई तब परिवादी द्वारा 4
-6-
पंजीकृत अनुस्मारक प्रेषित किए गए। बाद में आलू रू. 214000/- के मूल्य के सड़े चुके थे तथा दि. 10.06.2000 के करार के अनुसार रू. 210000/- देना तय किया गया। इस प्रकार रू. 424000/- अदा करने के लिए विपक्षी कंपनी उत्तरदायी है। दि. 10.08.2000 से 20.08.2000 के बीच रू. 65470/- का नुकसान हुआ है। इस प्रकार कुल रू. 489470/- के आलू का नुकसान 20.08.2000 तक हुआ और दि. 16.09.2000 तक रू. 703000/- का नुकसान हुआ। इस नुकसान की पूर्ति के लिए परिवादी द्वारा अनेक पत्र लिखे गए। विपक्षीगण के प्रतिनिधि की उपस्थिति में फोगिंग कार्य हुआ। उनके सभी निर्देशों का पालन किया गया। छिड़काव में कार्बन डाई आक्साइड उच्च मात्रा में थी, स्टाफ अशिक्षित था। CIPC ट्रीटमेन्ट के कारण ही आलू खराब हुआ।
3. दि. 16.09.2000 को परिवादी को दिल्ली बुलवाया गया। दि. 20.09.2000 को दिल्ली में मीटिंग हुई, जिसमें आलू की क्षति के संबंध में कोई चर्चा नहीं की गई। दि. 01.10.2000 को परिवादी ने कुल रू. 852000/- की आलू की क्षति की सूचना दी। दि. 01.12.2000 तक कुल रू. 1895000/- का आलू खराब हो चुका था। परिवादी सभी किसानों की क्षति की पूर्ति नहीं कर सका। कृषक नए सीजन में आलू भंडारण के लिए उपस्थित नहीं हुए, इसलिए 50 प्रतिशत की सीमा तक कोल्ड स्टोरेज खाली रहे, जिसके कारण परिवादी को अत्यधिक व्यापारिक हानि हुई। विपक्षीगण द्वारा अनुचित व्यापार अपनाया गया तथा अपने कार्य में दक्षता प्रकट नहीं की गई, लापरवाही के साथ कार्य किया गया, इसीलिए उपरोक्त वर्णित अनुतोष की मांग करते हुए परिवाद प्रस्तुत किया गया।
-7-
4. लिखित कथन में उल्लेख है कि परिवादी व्यापारिक गतिविधि में संलग्न है, उपभोक्ता विवाद नहीं है तथा सेवा में कोई कमी नहीं की गई है। धोखा की मिथ्या व्यपदेशन का उल्लेख है, इसलिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत परिवाद संधारणीय नहीं है। पक्षकारों के मध्य यह करार है कि ट्रीटमेन्ट के कारण आलू खराब होने की स्थिति में UPL क्षतिपूर्ति प्रदान करे तथा विवाद होने की स्थिति में प्रकरण मध्यस्थ को सौंपा जाएगा तथा यह भी उल्लेख है कि विवाद की स्थिति में क्षेत्राधिकार दिल्ली स्थित न्यायालय को होगा। यह भी उल्लेख किया गया कि कंपनी के कार्य के कारण आलू में क्षति कारित नहीं हुई है, बल्कि स्वयं परिवादी की अपनी त्रुटि के कारण आलू को नुकसान पहुंचा है। यद्यपि परिवादी के साथ आलू के ट्रीटमेन्ट का करार होना, ट्रीटमेन्ट की कार्यवाही करना स्वीकार किया गया है। अंकन रू. 68960/- के खर्च की जानकारी से इंकार किया गया। यह भी उल्लेख किया गया कि फोगिंग रेट प्रतिटन 100 रूपये तय हुआ था। फोगिंग करते समय अग्नि की कोई घटना घटित नहीं हुई थी। कंपनी के प्रतिनिधियों द्वारा कोल्ड स्टोरेज मालिक को दिशा-निर्देश देने का तथ्य स्वीकार किया गया तथा उल्लेख किया गया है कि चैम्बर संख्या 2 में तापमान आवश्यकतानुसार नहीं था, शीतगृह का कूलिंग सिस्टम कम नहीं कर रहा था, बैकअप जनरेटर मौजूद नहीं था, जबकि विद्युत आपूर्ति बाधित थी। अमोनिया गैस की कमी थी। कोल्ड स्टोरेज मालिक से कहा गया था कि पानी का छिड़काव छत पर करते हुए तापमान कम किया जाए। दि. 17.04.2000 को चैम्बर संख्या 1 में आलुओं के सड़ने की सूचना देने से इंकार किया गया तथा इस संबंध में 21 दिन तक आलू प्रयोग न करने की सूचना देने से भी इंकार किया गया। प्रतिनिधियों को नोटिस प्राप्त होने से
-8-
इंकार किया गया। स्वयं परिवादी ने कथन किया कि 20 मई तक आलू प्राप्त नहीं होते। जिस कैमिकल का प्रयोग किया गया वह सड़न को रोकता है, सड़न को बढ़ाता नहीं है, इसलिए परिवादी का कथन ग्राह्य नहीं है, इसलिए विपक्षी कंपनी द्वारा किए गए ट्रीटमेन्ट से आलू किसी भी दृष्टि से सड़न को प्राप्त नहीं हुआ। परिवाद खारिज होने योग्य है।
5. दोनों पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ताओं को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया।
6. सर्वप्रथम इस बिन्दु पर विचार करना है कि क्या परिवादी उपभोक्ता है और इस आयोग को परिवाद के निस्तारण का क्षेत्राधिकार प्राप्त है ? परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी ने विपक्षी की सेवाएं प्राप्त की है, यदि विपक्षी द्वारा सेवा में त्रुटि की गई है कि इस त्रुटि के कारण परिवाद इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है, क्योंकि परिवादी का कोल्ड स्टोरेज इस आयोग के क्षेत्राधिकार में मौजूद है तथा अनुबंध भी इस आयोग के क्षेत्राधिकार में संपादित हुआ है।
7. विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि अनुबंध में स्पष्ट उल्लेख है कि विवाद होने की स्थिति में प्रकरण मध्यस्थ को सुपुर्द किया जाएगा तथा केवल दिल्ली स्थित न्यायालय को क्षेत्राधिकार होगा। पक्षकारों के मध्य निष्पादित MOU पत्रावली पर एनेक्सर संख्या 5 है, जिसमें मध्यस्थ क्लाउज मौजूद है। इस मध्यस्थ क्लाउज में उल्लेख है कि यदि कंपनी द्वारा किए गए ट्रीटमेन्ट के बाद आलू में सड़न पैदा होती है तब इसकी क्षतिपूर्ति कंपनी द्वारा की जाएगी और विवाद की स्थिति में प्रकरण मध्यस्थ को सौंपा जाएगा तथा दिल्ली स्थित न्यायालय को विवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त होगा।
-9-
8. नजीर आफताब सिंह बनाम ईमार एमजीएफ लैण्ड लि0 व अन्य में व्यवस्था दी गई है कि मध्यस्थता अधिनियम के प्रावधान उपभोक्ता अदालतों पर लागू नहीं होते। इस केस में बिल्डर तथा आवंटियों के मध्य निष्पादित करार के अनुसार मध्यस्थता क्लाज मौजूद थी। व्यवस्था दी गई कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रावधान उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिए उत्तरदायी प्रावधान है। इसी प्रकार नेशनल सीड कारपोरेशन लि0 बनाम एम. मधुसूदन रेड्डी में भी यही व्यवस्था दी गई है। अत: उपरोक्त नजीर के आलोक में कहा जा सकता है कि मध्यस्थता क्लाज होने के बावजूद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत प्रस्तुत परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार इस आयोग में निहित है। दिल्ली स्थित न्यायालय का क्षेत्राधिकार केवल सिविल प्रकृति के विवाद के लिए माना जा सकता है न कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत प्रस्तुत किए गए परिवाद पर। इस अधिनियम के अंतर्गत प्रस्तुत किए गए परिवाद में इस क्लाउज का कोई महत्व नहीं है कि केवल दिल्ली स्थित न्यायालय को विवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त होगा।
9. अब इस बिन्दु पर विचार करना है कि क्या विपक्षी द्वारा किए गए ट्रीटमेन्ट के पश्चात कोल्ड स्टोरेज में रखे हुए आलू में सड़न उत्पन्न हुए और तदनुसार विपक्षी क्षतिपूर्ति अदा करने के लिए उत्तरदायी है। कंपनी द्वारा आलू के ट्रीटमेन्ट के लिए जो विज्ञापन जारी किया गया तथा कोल्ड स्टोरेज मालिकों की मीटिंग बुलाकर जो व्याख्यान जारी किया गया तथा अनुबंध में जो विवरण प्रस्तुत किए गए उनके अनुसार ट्रीटमेन्ट के पश्चात आलू का अंकुरण रूक जाएगा तथा आलू में कोई सड़न नहीं होगी। आलू की सिकुड़न में भी कमी होगी। परिवादी द्वारा अपने शपथपत्र से इस तथ्य को
-10-
साबित किया कि विपक्षी कंपनी द्वारा किए गए ट्रीटमेन्ट के पश्चात शीतगृह में रखा हुआ आलू खराब हुआ।
10. एनेक्सर संख्या 4 के माध्यम से यह दायित्व स्थापित होता है कि ट्रीटमेन्ट प्रारंभ करने से पूर्व परिवादी द्वारा कोल्ड स्टोरेज के चैम्बर के अंदर तथा बाहर आवश्यकतानुार मरम्मत कराई गई।
11. दस्तावेज संख्या 56 से यह तथ्य स्थापित होता है कि फोगिंग के बाद दि. 06.04.2000 को अंकन रू. 86300/- का बिल कंपनी द्वारा जारी किया गया। परिवादी ने श-शपथपत्र साबित किया कि आधी राशि चेक द्वारा प्रदान कर दी गई, जिसका कोई खंडन नहीं किया गया है, बल्कि एनेक्सर संख्या 7 के माध्यम से अंकन रू. 43150/- की प्राप्ति स्वीकार की गई है।
12. एनेक्सर संख्या 8 के अवलोकन से जाहिर होता है कि दि. 07.04.2000 को रू. 86200/- बिल जारी किया गया है और इस राशि में से आधी राशि अंकन रू. 43100/- का भुगतान परिवादी द्वारा किया गया, जिसकी प्राप्ति रसीद जारी की गई है।
13. एनेक्सर संख्या 9 के अवलोकन से जाहिर होता है कि लक्ष्मी कोल्ड स्टोरेज द्वारा विपक्षी को इस आशय का पत्र लिखा गया कि ट्रीटमेन्ट के पश्चात आलू अंकुरित हो रहा है तथा सड़ना प्रारंभ हो गया है।
14. दस्तावेज संख्या 61 दि. 15 मई 2000 को परिवादी की ओर से बागवानी सचिव को लिखा गया पत्र है, जिसमें आलू के अंकुरित होने और सड़ने का उल्लेख करते हुए हस्तक्षेप का अनुरोध किया गया है।
15. दस्तावेज संख्या 62 पर वर्णित पत्र परिवादी द्वारा कोल्ड स्टोरज एसोसिएशन के प्रेसीडेन्ट को आलू के अंकुरित होने एवं सड़ने की सूचना दी गई है।
-11-
16. एनेक्सर 11 के अवलोकन से जाहिर होता है कि दि. 25.05.2000 को अंकन रू. 86300/- का फोगिंग बिल कंपनी द्वारा जारी किया गया है। यद्यपि इस राशि के भुगतान का कोई सबूत मौजूद नहीं है।
17. एनेक्सर संख्या 13 में सड़े हुए आलू के फोटोग्राफ तैयार कर पत्रावली में प्रस्तुत किए गए हैं।
18. एनेक्सर संख्या 14, 15, 16, 17, 18 व 19 के माध्यम से भी आलू अंकुरित होने तथा सड़ने होने के संबंध में विपक्षी कंपनी को न केवल सूचित किया गया, उचित उपचार कराने का अनुरोध किया गया। एनेक्सर संख्या 20 निदेशक बागवानी उत्तर प्रदेश सरकार को ट्रीटमेन्ट के पश्चात भी आलू अंकुरित होने और सड़ने की सूचना दी गई। एनेक्सर संख्या 22, 23, 24 के माध्यम से भी आलू के सड़ने की सूचना दी गई।
19. एनेक्सर 24, 25, 26, 27 में नुकसान के आंकलन का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया गया।
20. एनेक्सर 28 के अवलोकन से ज्ञात होता है कि विपक्षी द्वारा ट्रीटमेन्ट के पश्चात भी आलू के अंकुरित होने तथा सड़ने की शिकायत मिलने पर एक मीटिंग बुलाई गई, परन्तु मीटिंग में कोई समाधान नहीं निकाला और मीटिंग के पश्चात परिवादी द्वारा एनेक्सर संख्या 19 के माध्यम से अतिरिक्त नुकसान के बारे में सूचना प्रेषित की गई।
21. कंपनी द्वारा 11 अक्टूबर 2000 को परिवादी को एक पत्र लिखा गया जो एनेक्सर संख्या 30 है। इस पत्र में यह भी उल्लेख है कि आपके द्वारा चालाकीपूर्ण तरीके से क्षति का आंकलन बढ़ाया जा रहा है, जबकि यदि आलू में सड़न प्रारंभ हो जाती है तब एक सप्ताह के अंदर समस्त आलू सड़ जाएगा, जबकि आपके द्वारा पिछले 4 माह से उसी फसल को कोल्ड
-12-
स्टोरेज में रखते हुए उसके सड़ने का इंतजार करते हुए क्षति का आंकलन बढ़ाते जा रहे हैं। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि लगातार 4 माह तक आलू की क्षति अग्रेतर नहीं बढ़ सकती, अपितु यदि आलू सड़ना प्रारंभ हुए तब एक सप्ताह के अंदर संपूर्ण आलू सड़ जाएगा और यदि एक बार आलू सड़ना प्रारंभ हुआ तब शेष आलू को बाहर निकालना किसानों को वापस लौटाना तथा सड़े हुए आलू को सुरक्षित आलू से अलग करने का दायित्व परिवादी पर था, परन्तु परिवादी द्वारा अपने इस दायित्व की पूर्ति नहीं की गई। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता के इस तर्क में तार्किकता मौजूद है कि आलू सड़ना प्रारंभ होने के पश्चात परिवादी का यह दायित्व था कि वह शेष आलू को सड़े हुए आलू से अलग करे। परिवादी ऐसा नहीं कर सकते कि सड़े हुए आलू को शेष आलू के साथ रखे तथा शेष आलू को भी सड़ने का अवसर उत्पन्न कराए। पत्रावली के अवलोकन से ज्ञात होता है कि आलू सड़ना प्रारंभ होने के पश्चात चैम्बर संख्या 2 के आलू को पलटा गया, परन्तु चैम्बर से बाहर निकालकर किसानों को वापस लौटाने या खुले बाजार में विक्रय कर देने का कोई प्रयास नहीं किया गया, जिसके कारण हानि कम से कम की जा सके, अत: परिवादी चैम्बर नं0 1 व 2 में रखे हुए आलू के नुकसान की उस क्षति को प्राप्त करने के लिए अधिकृत हैं जो प्रथम अवसर पर सामने आई है।
22. परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र में दि. 09.06.2000 तक की क्षति का आंकलन रू. 210000/- किया है। इस संबंध में दि. 10.06.2000 को विपक्षी कंपनी के प्रतिनिधियों के साथ मीटिंग भी संपादित हुई है। चूंकि परिवादी को आलुओं के ट्रीटमेन्ट के तुरंत पश्चात ही आलू के कुछ लाट्स में रखे गए कुछ बोरे के अंकुरित होने तथा सड़ने का ज्ञान हो चुका था, इसलिए
-13-
क्षति को कम करने का दायित्व परिवादी के पास था, जिसकी चर्चा ऊपर भी की जा चुकी है, इसलिए परिवादी केवल दि. 09.06.2000 की अवधि तक कारित नुकसान अंकन रू. 210000/- की क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए अधिकृत है। इस अवधि के पश्चात आलू के सड़ने के कारण जो नुकसान हुआ है वह स्वयं परिवादी की लापरवाही तथा कर्तव्यहीनता के कारण हुआ है, विपक्षी कंपनी के गैर दक्षतापूर्ण छिड़काव के कारण नहीं। प्रारंभ में ही आलुओं के अंकुरित होने, सड़ने की स्थिति का ज्ञान होने पर शेष आलुओं को किसानों को पूर्ति करना या कुल बाजार में विक्रय करने का दायित्व परिवादी पर था, जिसकी पूर्ति परिवादी द्वारा नहीं की गई, अत: परिवादी आलू सड़ने के मद में रू. 210000/- की क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए अधिकृत है।
23. परिवादी द्वारा छिड़काव प्रारंभ करने से पूर्व विपक्षी कंपनी के निर्देश पर कुछ विशिष्ट की व्यवस्था की है। परिवाद पत्र के विवरण के अनुसार चूंकि पुष्टि शपथपत्र द्वारा की गई है तथा अदायगी की रसीद भी पत्रावली पर संलग्न है, इस मद में कुल रू. 68965/- खर्च हुआ है, चूंकि यह खर्च कंपनी के निर्देश पर किया गया है, इसलिए परिवादी इस राशि की प्रतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए भी अधिकृत है।
24. परिवादी द्वारा अंकन रू. 86250/- विपक्षी कंपनी को अदा किए गए, परन्तु इस अदा की गई राशि का कोई लाभ परिवादी प्राप्त नहीं कर सका, इसलिए परिवादी अंकन रू. 86250/- की राशि भी वापस प्राप्त करने के लिए अधिकृत है।
25. परिवादी द्वारा ख्याति के नुकसान के लिए अंकन 2.1 लाख रूपये की क्षतिपूर्ति की मांग की गई है, परन्तु इस राशि को सुनिश्चित करने का कोई
-14-
तरीका न परिवाद पत्र में सुझाया गया है न ही बहस के दौरान स्पष्ट किया गया कि अंकन 2.1 लाख रूपये किस आधार पर ख्याति के नुकसान के लिए सुनिश्चित किया जाए, अत: इस मद में केवल अनुमानित धनराशि अदा करने का आदेश दिया जा सकता है, जो इस आयोग के मद में अंकन रू. 50000/- पर्याप्त है।
26. पत्राचार आदि के मद में अंकन रू. 40000/- की मांग की गई, परन्तु इस राशि का भी आंकलन परिवाद पत्र में या बहस के दौरान जाहिर नहीं किया गया है, इसलिए इस आयोग के लिए यह सुनिश्चित करना संभव नहीं है कि इस मद में परिवादी के रू. 40000/- खर्च हुए हैं, अत: इस मद में भी केवल अनुमानित क्षतिपूर्ति दिलायी जा सकती है, अत: पत्राचार आदि के मद में अंकन रू. 5000/- की क्षतिपूर्ति का आदेश दिलाया जाना विधिसम्मत प्रतीत होता है।
27. परिवादी द्वारा परिवाद खर्च के रूप में अंकन रू. 20000/- की मांग की गई है। इस मद में अंकन रू. 10000/- की राशि दिलाया जाना उचित है।
आदेश
28. परिवाद आंशिक रूप से इस रूप में स्वीकार किया जाता है:-
(ए) विपक्षी कंपनी द्वारा आलू के ट्रीटमेन्ट के पश्चात आलू में अंकुरण/सड़न पैदा होने के कारण हुए नुकसान अंकन रू. 210000- की क्षतिपूर्ति करने का आदेश विपक्षी कंपनी को दिया जाता है। इस राशि पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अंतिम भुगतान की तिथि तक 6 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज देय होगा।
-15-
(बी) परिवादी द्वारा कोल्ड स्टोरेज के चैम्बर संख्या 1 एव 2 के अंदरूनी तथा बाहरी व्यवस्थाएं बनाने पर किए गए खर्च के मद में अंकन रू. 68965/- की क्षतिपूर्ति करने का आदेश विपक्षी कंपनी को दिया जाता है।
(सी) आलू ट्रीटमेन्ट के मद में विपक्षी कंपनी द्वारा परिवादी से वसूल किए गए अंकन रू. 86250/- वापस लौटाने का आदेश विपक्षी कंपनी को दिया जाता है। इस राशि पर अदा करने की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक 6 प्रतिशत प्रतिवर्ष का साधारण ब्याज भी देय होगा।
(डी) परिवादी को कोल्ड स्टोरेज में आलू रखने की ख्याति के नुकसान के मद में अंकन रू. 50000/- की क्षतिपूर्ति का आदेश विपक्षी कंपनी को दिया जाता है। इस राशि पर कोई ब्याज देय नहीं होगा।
(ई) पत्राचार आदि के मद में रू. 5000/- तथा परिवाद व्यय के रूप में रू. 10000/- परिवादी को अदा करने का आदेश विपक्षी कंपनी को दिया जाता है। इस राशि पर कोई ब्याज देय नहीं होगा।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की
वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित
किया गया।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2
कोर्ट-2