न्यायालयःजिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच,जालोर
पीठासीन अधिकारी
अध्यक्ष:- श्री दीनदयाल प्रजापत,
सदस्यः- श्री केशरसिंह राठौड
सदस्याः- श्रीमती मंजू राठौड,
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1.ज्ुाजांराम पुत्र कपूरजी, जाति चैधरी, निवासी- देवावास, तहसील- आहोर, जि0 जालोर ।
....प्रार्थी।
बनाम
1.
2.ब्रान्च मैनेंजर,
यूनाईटेड इण्डिया इन्श्योरेन्स कम्पनी लि0, ए- 501, गणेश प्लाजा, नवरंगपुरा, अहमदाबाद (गुजरात)
तुलिप ग्लोबल प्रा0 लि0, थर्ड फ्लोर, जयपुर टावर, आल इण्डिया रेडियों के सामने, एम0आई0 रोड, जयपुर।
...अप्रार्थीगण।
सी0 पी0 ए0 मूल परिवाद सं0:- 52/2012
परिवाद पेश करने की दिनांक:-18-05-2012
अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ।
उपस्थित:-
1. श्री ओमप्रकाश चैधरी, अधिवक्ता प्रार्थी।
2. श्री तिलोकचन्द मेहता, अधिवक्ता अप्रार्थी संख्या- एक।
3. श्री शेषकरणसिंह, अधिवक्ता अप्रार्थी संख्या - दो।
निर्णय दिनांक: 25-02-2015
1. संक्षिप्त में परिवाद के तथ्य इसप्रकार हैं कि अप्रार्थी संख्या- दो तुलिप ग्लोबल प्रा0 लि0 कम्पनी के ऐजेन्ट से प्रार्थी ने अपनी पत्नि हंजादेवी के नाम से पाॅलिसी हेतु रूपयै 3200/- दिनांक 28-03-2009 को रोकड जमा करवाये, जिसके ज्नसपच हसवइसम कपेजतपइनजमत छव. 578215 हैं, जो अप्रार्थी संख्या- 1 यूनाईटेड इण्डियां इन्श्योरेन्स कम्पनी लि0 के यहंा बीमित थी, जिसके पाॅलिसी संख्या- 060600/42/08/05/00007025 हैं, जिसके सेर्टिफिकेट नम्बर- 4100 हैं। उक्त पाॅलिसी की म्याद 30-03-2009 से 29-03-2013 तक थी, जो कुल एक लाख रूपयै की थी। तथा अप्रार्थीगण आपस में कम्बाईन हैं। और अप्रार्थी संख्या दो के सभी सदस्य अप्रार्थी संख्या- एक के पास बीमित रहते हैं। जिसके सभी क्लेमो का भुगतान अप्रार्थी संख्या- एक ही करता हैं। तथा दिनांक 12-02-2012 को प्रार्थीयां की पत्नि मिटटी खोदते समय अचानक मिटट्ी ढहने से मिटट्ी में दबकर मौके पर ही मौत हो गई, जिसकी सूचना पुलिस को दी, तथा फैक्स से भी दी, तब क्लेम देने का आश्वासन मौके पर आकर देने का कहा। तथा प्रार्थी ने विधिवत फार्म भरकर अप्रार्थी संख्या - 2 के वहंा जयपुर जाकर जमा करवाया, तो कुछ कमी थी, उसे पूरा करके सभी कमीपूर्तियां पूर्ण कर फार्म दिया व सभी कागजात दिये, लेकिन क्लेम राशि प्राप्त नही हुई, तब अप्रार्थीगण को विधिवत् कानूनी नोटिस दिया, उसके बावजूद भी आज दिन तक क्लेम राशि प्राप्त नहीं होने के कारण प्रार्थी ने यह परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्व क्लेम के रूपयै 1,00,000/-, तथा मानसिक परेशानी के रूपयै 10,000/-, दो बार जयपुर के चक्कर काटने का खर्च रूपयै 10,000/-, एवं परिवाद व्यय के रूपयै 10,000/-, इसप्रकार कुल रूपयै 1,45,000/-, प्राप्त करने हेतुयह परिवाद जिला मंच में पेश किया हैं।
2. प्रार्थी केे परिवाद को कार्यालय रिपोर्ट के बाद दर्ज रजिस्टर कर अप्रार्थीगण को जरिये रजिस्टर्ड ए0डी0 नोटिस जारी कर तलब किया । अप्रार्थी संख्या- एक की ओर से अधिवक्ता श्री तिलोकचन्द मेहता एवं अप्रार्थी क्रमांक- 2 की ओर से अधिवक्ता श्री शेषकरण , नवीन सिघंल ने उपस्थिति पत्र प्रस्तुत कर पैरवी की। तथा अप्रार्थीगण ने प्रथम दृष्टया प्रार्थी का परिवाद अस्वीकार कर, अप्रार्थी क्रमांक- 1 ने जवाब परिवाद प्रस्तुत कर कथन किये, कि प्रार्थी के द्वारा अप्रार्थी क्रमांक- 1 को बीमा हेतु प्रिमीयम राशि अदा की गई हो, जिससे प्रथम दृष्टया ही मृतका अप्रार्थी नम्बर- 1 की उपभोक्ता नहीं हैं। तथा अप्रार्थी संख्या- 1 के द्वारा जरिये पाॅलिसी संख्या- 060600/42/08/05/00007025 के जरिये बीमाधारी हेतु टयूलीप ग्लोबल के काफी व्यक्तियों का बीमा दिनांक 30-03-2009 को किया था। जिसमें मृतक हंजादेवी भी सम्मिलित हैं। लेकिन कथित दुर्घटना की सूचना अप्रार्थी नम्बर- 2 ने अप्रार्थी नम्बर- 1 को नहीं दी। तथा मृतका हंजादेवी व अप्रार्थी नम्बर- 1 के बीच कोई प्रिविटी आफ कान्ट्रेक्ट नहीं हैं। तथा प्रिमियम अप्रार्थी संख्या- 2 के द्वारा जमा करवाई गई हैं, जिससे मृतका अप्रार्थी नम्बर- 2 की उपभोक्ता नहीं हैं। इस प्रकरण में अप्रार्थी नम्बर - 1 के पास कथित मृतका को लेकर दावा पत्रावली प्रस्तुत करना नहीं बताया हैें, तथा मृतका की मृत्यु होने की सूचना तुरन्त उपलब्ध नहीं हुई, और न ही अप्रार्थी नम्बर- 2 ने कथित मृतका की मृत्यु की सूचना दी, और न ही अप्रार्थी नम्बर- 2 ने अप्रार्थी नम्बर- 1 के यहंा दावा प्रस्तुत किया। प्रार्थी अप्रार्थी नम्बर- 1 का उपभोक्ता ही नहीं हैं, तथा अप्रार्थी नम्बर- 1 के विरूद्व सेवा में त्रुटि का मामला नहीं बनता हैं।
तथा अप्रार्थी क्रमांक- 2 ने पृथक से जवाब प्रस्तुत कर कथन किये, कि उत्तरदाता एक मार्केटिगं कम्पनी हैं, जिसका मुख्य कार्य अपने उत्पादो का विक्रय करना हैं। जिस हेतु कम्पनी के नियमानुसार परिवादी की पत्नि श्रीमती हंजादेवी ने कम्पनी में रूपयै 3200/- जमा करवा कर कम्पनी का उत्पाद क्रय किया था, तथा अपने डिस्ट्रीब्यूटर को व्यक्तिगत दुर्घटना की पाॅलिसी सम्बन्धित बीमा कम्पनी से उपलब्ध करा दी थी, तथा दुर्घटना घटित होने पर क्लेम राशि सम्बन्धित बीमा कम्पनी द्वारा पाॅलिसी की शर्तोनुसार देय होगी। तथा परिवादी की माता ने टयूलिप की डिस्ट्रीब्यूटरशिप हेतु जयपुर स्थिति कार्यालय में आवेदन किया था, तथा जयपुर स्थिति कार्यालय से ही डिस्ट्रीब्यूटर बनी थी। इस कारण परिवाद को सुनने एवं निर्णित करने की अधिकारिता जयपुर स्थित न्यायालय को ही प्राप्त हैं। तथा उत्तरदाता कम्पनी का कोई ऐजेन्ट या प्रतिनिधि परिवादी के घर पर नहीं गया। तथा अप्रार्थी टयूलिप कम्पनी उत्पाद विक्रय कर डिस्ट्रीब्यूटर नियुक्त करती हैं, और अपने डिस्ट्रीब्यूटर को चार वर्ष तक व्यक्तिगत दुर्घटना पाॅलिसी सम्बन्धित बीमा कम्पनी से उपलब्ध कराती हैं। परिवादी की पत्नि ने रूपयै 3200/- जमा कर सूटलैथं क्रय कर डिस्ट्रीब्यूटर बनी थी। जिसका टयूलिप डिस्ट्रीब्यूटर नम्बर-578215 हैं, तथा डिस्ट्रीब्यूटर को दी गई यूनाईटेड इण्डियां इन्श्योरेन्स कम्पनी लि0 से एक व्यक्तिगत दुर्घटना पाॅलिसी संख्या- 060600/42/08/05/00007025 एवं प्रमाणपत्र संख्या-4100 दिया हैं। तथा परिवादी का यह कथन गलत हैं कि उसने अपनी पत्नि की अचानक मृत्यु के सम्बन्ध में अप्रार्थी क्रमांक- 2 को कोई सूचना उपलब्ध कराई हो। तथा परिवादी ने अपने अधिवक्ता से मिन उत्तरदाता को नोटिस प्रेषित करवाया था, जिस पर मिन उत्तरदाता कम्पनी ने जवाब प्रेषित कर परिवादी को सूचित करा दिया था, तथा मिन उत्तरदाता कम्पनी के विरूद्व कोई वाद कारण उत्पन्न नहीं हुआ हैं। इस प्रकार अप्रार्थी क्रमांक- 2 ने जवाब परिवाद प्रस्तुत कर अप्रार्थी संख्या- 2 के विरूद्व परिवाद खारीज करने का निवेदन किया हैं।
3. हमने उभय पक्षो को साक्ष्य सबूत प्रस्तुत करने के पर्याप्त समय एवं अवसर देने के बाद, उभय पक्षो के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस एवं तर्क-वितर्क सुने, जिस पर मनन किया तथा पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन एवं अध्ययन किया, तो हमारे सामने मुख्य रूप से तीन विवाद बिन्दु उत्पन्न होते हैं जिनका निस्तारण करना आवश्यक हैें:-
1. क्या प्रार्थी, अप्रार्थीगण का उपभोक्ता हैं ? प्रार्थी
2. क्या अप्रार्थीगण ने प्रार्थी की बीमित पत्नि की मृत्यु हो जाने पर
दुर्घटना बीमा राशि की अदायगी नहीं कर, सेवा प्रदान करने में
त्रुटि, गलती एवं कमी कारित की हैं ?
प्रार्थी
3. अनुतोष क्या होगा ?
प्रथम विधिक विवाद बिन्दु
क्या प्रार्थी, अप्रार्थीगण का उपभोक्ता हैं ? प्रार्थी
उक्त प्रथम विधिक विवाद बिन्दु को सिद्व एवं प्रमाणित करने का भार प्रार्थी पर हैं। जिसके सम्बन्ध में प्रार्थी ने परिवाद पत्र एवं साक्ष्य शपथपत्र प्रस्तुत कर कथन किये हैं कि अप्रार्थी संख्या- दो का एजेन्ट हमारे घर पर देवावास, तहसील आहोर पर आया, और मुझे तुलिप ग्लोबल प्रा0 लि0 कम्पनी के बारे में बीमा करने को कहा, जिस पर प्रार्थी ने अप्रार्थी संख्या दो के पास अपनी पत्नि हंजादेवी के नाम से दिनांक 28-03-2009 को रूपयै 3200/- रोकड देकर पाॅलिसी करवाई थी, जो अप्रार्थी संख्या- 1 यूनाइटेड इण्डियां इन्श्योरेन्स कम्पनी के यहंा बीमित थी। तथा प्रार्थी की पत्नि की मृत्यु दिनांक 12-02-2012 को हो गई। प्रार्थी ने उक्त कथनो के सत्यापन हेतु रसीद दिनांक 28-03-2009 रूपयै 3200/- जमा कराने की प्रति पेश की हैं। जो अप्रार्थी क्रमांक- 2 टुलीप ग्लोबल प्रा0 लि0 ने प्रार्थी की पत्नि हंजादेवी के नाम जारी की हैं, तथा इसी रसीद के नीचे परिवार स्वास्थ्य सुरक्षा प्रमाणपत्र जारी किया हैं, जो प्रार्थी की पत्नि हंजादेवी के नाम हैं, जिसमें स्वाभावित मृत्यु होने पर 50,000/-रूपयै एवं दुर्घटना में मृत्यु होने पर 50,000/-रूपयै की सहायता उपरोक्त राशि टुलीप ग्लोबल प्रा0 लि0 के नियमानुसार प्रदान की जायेगी लिखा हैं। जो अप्रार्थी क्रमांक- 2 ने हस्ताक्षर कर हंजादेवी के नाम जारी की हैं। तथा प्रार्थी ने बीमा पाॅलिसी संख्या-060600/42/08/05/00007025 की प्रति पेश की हैं, जो अप्रार्थी क्रमांक- 1 ने बीमित हंजादेवी के नाम जारी की हैं, जो ज्ंपसवतउंकम च्मतेवदंस ।बबपकमदज च्वसपबल हैं, जो बीमित के नाम दुर्घटना बीमा रूपयै 1,00,000/- जोखिम लेना अंकित हैं, जिसमें ।ेेपहदममध्छवउपदमम के रूप में प्रार्थी जूजंाराम का नाम भी हैं। तथा उक्त बीमा पाॅलिसी की अवधि दिनांक 30-03-2009 से 29-03-2013 अंकित हैं। तथा अप्रार्थी क्रमांक- 2 ने प्रार्थी की पत्नि के नाम से रसीद दिनांक 28-03-2009 को रूपयै 3200/-लेना जवाब परिवादी में स्वीकार किया हैं। तथा अप्रार्थी क्रमांक- 1 ने उक्त बीमा पाॅलिसी मृतका हंजादेवी के नाम जारी करना स्वीकार किया हैं। लेकिन प्रिमियम अप्रार्थी क्रमांक- 2 के द्वारा जमा करवाने के कथन किये हैं। जो अप्रार्थी क्रमांक- 2 की योजना थी। तथा हंजादेवी एवं अप्रार्थीगण के मध्य ग्राहक-सेवक का सीधा सम्बन्ध स्थापित होना सिद्व हैं। तथा बीमित हंजादेवी की मृत्यु आकस्मिक दुर्घटना में दिनंाक 12-02-2012 को हो जाने से प्रार्थी, हंजादेवी का पति एवं नाॅमिनी होने से अप्रार्थीगण का उपभोक्ता होना सिद्व एवं प्रमाणित हैं। तथा प्रार्थी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2 1 ख अ के तहत उपभोक्ता की परिभाषा में आता हैं, इसप्रकार प्रथम विवाद बिन्दु प्रार्थी के पक्ष में तथा अप्रार्थी के विरूद्व निस्तारित किया जाता हैं।
द्वितीय विवाद बिन्दु:-
क्या अप्रार्थीगण ने प्रार्थी की बीमित पत्नि की मृत्यु हो जाने पर
दुर्घटना बीमा राशि की अदायगी नहीं कर, सेवा प्रदान करने में
त्रुटि, गलती एवं कमी कारित की हैं ?
प्रार्थी
उक्त द्वितीय विवाद बिन्दु को सिद्व एवं प्रमाणित करने का भार प्रार्थी पर हैं। जिसके सम्बन्ध में प्रार्थी ने रसीद दिनांक 28-03-2009 रूपयै 3200/- भुगतान करने की प्रति, बीमा पालिसी की प्रति, मृत्यु की सूचना फैक्स से देने की प्रति, दुर्घटना की सूचना पुलिस थाना में देने की प्रति, मृतका हंजादेवी की मेडिकल रिपोर्ट, क्लेम फार्म की प्रति, एवं लीगल सूचना पत्र दिनांक 25-01-2012 की प्रति एवं डाक से भेजने की रसीद की प्रति पेश की हैं। प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत उक्त दस्तावेजो के आधार पर बीमित मृतका हंजादेवी की अचानक दुर्घटना में मृत्यु होना एवं मृत्यु की सूचना पुलिस थाने में देना तथा क्लेम फार्म भरकर अप्रार्थी क्रमांक- 2 को भेजना प्रमाणित हैं। तथा प्रार्थी ने रसीद दिनांक 28-03-2009 रूपयै 3200/- अप्रार्थी क्रमांक- 2 द्वारा लेने की प्रति पेश की हैं, जिसमें परिवार स्वास्थ्य सुरक्षा प्रमाणपत्र अप्रार्थी क्रमांक- 2 ने मृतका हंजादेवी के नाम जारी किया हैं, जिसमें स्वाभाविक मृत्यु होने पर रूपयै 50,000/- एवं दुर्घटना से मृत्यु होने पर रूपयै 50,000/- की सहायता अप्रार्थी क्रमांक- 2 के द्वारा प्रदान की जायेगी का लिखा हैं, तथा बीमा पाॅलिसी संख्या-060600/42/08/05/00007025 की प्रति पेश की हैं, जिसमें मृतका रूपयै 1,00,000/- तक की जोखिम हेतु दिनंाक 30-03-2009 से दिनांक 29-03-2013 तक बीमित थी, तथा अप्रार्थी क्रमांक- 2 ने अपने जवाब परिवाद में कहा हैं कि मृतका हंजादेवी ने अप्रार्थी क्रमांक- 2 कम्पनी के उत्पाद खरीद कर डिस्ट्रीब्यूटर बनी थी, जो कम्पनी की योजना अनुसार हंजादेवी का दुर्घटना बीमा अप्रार्थी क्रमाक- 2 केे जरिये अप्रार्थी क्रमांक- 1 के यहंा करवाया था, तथा अप्रार्थी क्रमांक- 1 ने जवाब परिवाद में कहा हैं कि मृतका हंजादेवी की बीमा पाॅलिसी अप्रार्थी क्रमांक- 2 ने करवाई थी, लेकिन उक्त प्रकार की कन्डीशन अप्रार्थी क्रमांक- 2 द्वारा जारी रसीद दिनांक 28-03-2009 पर एवं अप्रार्थी क्रमांक- एक द्वारा जारी बीमा पाॅलिसी में लिखित व अंकित नहीं हैं। तथा प्रार्थी ने क्लेम दावा एवं लीगल नोटिस प्रेषित कर बीमा राशि की मांग अप्रार्थीगण से की हैं, तथा अप्रार्थी क्रमांक- 2 ने लीगल नोटिस प्राप्त होना स्वीकार किया हैं। तथा अप्रार्थीगण ने आपस में एक-दूसरे पर जिम्मेदारी होने का दोषारोपण कर अपना-अपना बचाव करने का प्रयास किया हैं, जो जवाब परिवाद के रूप में अंकित हैं। तथा अप्रार्थीगण ने प्रार्थी के परिवाद का खण्डन करने हेतु जवाब परिवाद प्रस्तुत कर अप्रार्थी क्रमांक- 1 ने अप्रार्थी क्रमांक- 2 की उपभोक्ता होने से उसकी जिम्मेदारी बतायी हैं, तथा अप्रार्थी क्रमांक- 2 ने अप्रार्थी क्रमांक- 1 की क्लेम देने की जिम्मेदारी होना बताकर एक-दूसरे के विरूद्व जिम्मेवारी होने के कथन किये हैं, लेकिन दोनो ने मृतका बीमित के साथ क्या लिखित करार किया व कैसे क्लेम देने हेतु उत्तरदायी नहीं हैं, इसका कोई सबूत व नियम प्रस्तुत नहीं किया हैं, जो अप्रार्थीगण ने प्रार्थी के प्रति अपने कर्तव्य एवं जिम्मेदारी से मुक्त होना सिद्व व प्रमाणित नहीं कर सके हैं। तथा प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजो से प्रार्थी की पत्नि हंजादेवी ने अप्रार्थी क्रमांक- 2 को रूपयै 3200/- देना तथा अप्रार्थी क्रमांक- 2 की डिस्ट्रीब्यूटर बनाने की योजना अनुसार अप्रार्थी क्रमांक- 1 के यहंा रूपयै 1,00,000/- का बीमा करवाना प्रमाणित हैं तथा बीमित हंजादेवी की अचानक दुर्घटना में मृत्यु होने पर बीमा राशि का भुगतान करने के दायित्व से दोनो अप्रार्थीगण एक-दूसरे पर जिम्मेदारी होने के विरोधाभाषी कथन किये हैं, तथा अपने-अपने कर्तव्य निर्वहन एवं जिम्मेदारी से मुक्त होने का प्रयास किया हैं, इसप्रकार अप्रार्थीगण ने प्रार्थी को दुर्घटना मृत्यु लाभ की राशि अदा करने की विधिक प्रक्रिया समझाने का प्रयास नहीं किया तथा न ही राशि दी हैं, जो हमारी राय में अप्रार्थीगण का संयुक्त सेवादोष कारित करना सिद्व एवं प्रमाणित हैं। इसप्रकार विवाद का द्वितीय बिन्दु भी प्रार्थी के पक्ष में तथा अप्रार्थीगण के विरूद्व निस्तारित किया जाता हैं।
तृतीय विवाद बिन्दु-
अनुतोष क्या होगा ?
जब प्रथम एवं द्वितीय विवाद बिन्दओं का निस्तारण प्रार्थी के पक्ष में हो जाने से तृतीय विवाद बिन्दु का निस्तारण स्वतः ही प्रार्थी के पक्ष में हो जाता हैं। लेकिन हमे यह देखना हैं कि प्रार्थी विधिक रूप से क्या एवं कितनी उचित सहायता अप्रार्थीगण से प्राप्त करने का अधिकारी हैं। या उसे दिलाई जा सकती हैं। जिसके बारे में हमारी राय में प्रार्थी दुर्घटना बीमा राशि रूपयै 1,00,000/- अप्रार्थीगण से संयुक्त व पृथक-पृथक रूप से प्राप्त करने का अधिकारी माना जाता हैं। तथा प्रार्थी को हुई मानसिक, आर्थिक क्षतिपूर्ति के रूपयै 5,000/-एवं परिवाद व्यय के रूप में रूपयै 2000/- अप्रार्थीगण से दिलाये जाना उचित प्रतीत होता हैं। इस प्रकार प्रार्थी का परिवाद आशिंक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य हैं।
आदेश
अतः प्रार्थी जूजांराम का उक्त परिवाद विरूद्व अप्रार्थी, शाखा प्रबन्धक, यूनाईटेड इण्डिया इन्श्योरेन्स कम्पनी लि0, ए- 501, गणेश प्लाजा, नवरंगपुरा, अहमदाबाद (गुजरात), के विरूद्व स्वीकार कर आदेश दिया जाता हैं कि निर्णय की तिथी से एक माह के भीतर अप्रार्थीगण संयुक्त रूप से एवं पृथक-पृथक रूप से दुर्घटना बीमा पाॅलिसी संख्या- 060600/42/08/05/00007025 जिसके सेर्टिफिकेट नम्बर- 4100 व आई0 डी0 नम्बर- 578215 हैं की बीमित हंजादेवी की अचानक दुर्घटना में मृत्यु हो जाने से बीमा राशि रूपयै रूपयै 1,00,000/- /अक्षरे एक लाख रूपयै मात्र तथा मानसिक व आर्थिक क्षति के रूपयै 5,000/- अक्षरे पाॅंच हजार रूपयै मात्र एवं परिवाद व्यय के रूपयै 2000/- अक्षरे दो हजार रूपयै मात्र अदा करे। तथा एक माह के भीतर आदेश की पालना नहीं होने पर प्रार्थी उक्त आदेशित राशि पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथी 18-05-2012 से तारीख वसूली तक 9 प्रतिशत वार्षिकी दर से ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी होगा। तथा अप्रार्थीगण को सलाह दी जाती हैं कि उकत बीमा पाॅलिसी की राशि का भुगतान प्रिविटी आफ कान्ट्रैक्ट के अनुसार प्रार्थी को कौन करेगा, यह तथ्य एवं जिम्मेदारी आपस में अपने स्तर पर तय कर लेवें।
निर्णय व आदेश आज दिनांक 25-02-2015 को विवृत मंच में लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
मंजू राठौड केशरसिंह राठौड दीनदयाल प्रजापत
सदस्या सदस्य अध्यक्ष