न्यायालयःजिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच,जालोर
पीठासीन अधिकारी
अध्यक्ष:- श्री दीनदयाल प्रजापत,
सदस्यः- श्री केशरसिंह राठौड
सदस्याः- श्रीमती मंजू राठौड,
..........................
1.भैराराम पुत्र रूपाराम जाति विश्नोई, उम्र- 33 वर्ष, निवासी- सेवडी, तह0 बागोडा, जि0 जालोर
....प्रार्थी।
बनाम
1.यूनाईटेड इण्डिया इन्श्योरेन्स कम्पनी लि0,
नियर शास्त्री सर्कल, उदयपुर- 313001
...अप्रार्थी।
सी0 पी0 ए0 मूल परिवाद सं0:- 32/2014
परिवाद पेश करने की दिनांक:-03-03-2014
अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ।
उपस्थित:-
1. श्री तरूण सोलंकी, अधिवक्ता प्रार्थी।
2. श्री तिलोक चन्द मेहता, अधिवक्ता अप्रार्थी।
निर्णय दिनांक: 10-02-2015
1. संक्षिप्त में परिवाद के तथ्य इसप्रकार हैं कि प्रार्थी ने एक नया वाहन महेन्द्रा स्कार्पियों दिनांक 08-05-2013 को रूपयै 11,11,245/- में क्रय किया, जिसका बीमा प्रार्थी ने अप्रार्थी बीमा कम्पनी के यहंा प्रिमियम रूपयै 36,132/- अदा कर प्राप्त किया, जो बीमा पाॅलिसी संख्या- 1409003113च100799462 दिनांक 08-05-2013 से दिनांक 07-05-2014 तक के लिए जारी की गई। तथा दिनांक 07-06-2013 को प्रार्थी गांव पुनासा से गांव सेवडी आ रहा था, अचानक नील गाय सामने आने से उसको बचाने के चक्कर में वाहन पलटकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसकी सूचना बीमा कम्पनी को दी गई, तथा क्षतिग्रस्त वाहन को टोचिंग करके पालनपुर कम्पनी के अधिकृत शिवम् सैल्स कार्पोरेशन के यहंा ले जाना पडा, जिसका खर्च रूपयै 3000/- हुआ तथा वाहन के सर्वेयर की फीस रूपयै 62,00/- प्रार्थी को अदा करनी पडी। तथा प्रार्थी के क्षतिग्रस्त वाहन को रिपेयर कराने में एक माह लगा तथा रिपेयर की राशि रूपयै 91,408/- खर्च हुई, जिसका बिल प्राप्त कर प्रार्थी ने अप्रार्थी बीमा कम्पनी को क्लेम आवेदन किया, तथा दिनांक 23-08-2013 को अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने पत्र जारी कर प्रार्थी से वाहन रजिस्ट्रेशन प्रमाणपत्र की मांग की, जो प्रार्थी ने उसी दिन अप्रार्थी बीमा कम्पनी को उपलब्ध करवाया गया। तथा दिनांक 08-10-2013 को प्रार्थी को अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा जारी पत्र मिला। जिसमें प्रार्थी के वाहन रजिस्ट्रेशन प्रमाण पत्र नहीं होने से क्लेम दावा खारीज करने का लिखा था। प्रार्थी ने अप्रार्थी के उक्त निर्णय पत्र से असंतुष्ट होकर अप्रार्थी के विरूद्व वाहन क्षतिपूर्ति राशि रूपयै 91,408/- वाहन टोचिगं राशि रूपयै 3,000/- सर्वेयर की फीस रूपयै 6,200/- व मानसिक क्षति के रूपयै 10,000/- शारीरिक कष्ट के रूपयै 10,000/- आर्थिक हानि के रूपयै 10,000/- तथा परिवाद व्यय के रूपयै 5,000/- कुल योग राशि रूपयै 1,38,608/-दिलाये जाने हेतु यह परिवाद जिला मंच के समक्ष पेश किया हैं।
2. प्रार्थी केे परिवाद को कार्यालय रिपोर्ट के बाद दर्ज रजिस्टर कर अप्रार्थी को जरिये रजिस्टर्ड ए0डी0 नोटिस जारी कर तलब किया। अप्रार्थी की ओर से अधिवक्ता श्री तिलोकचन्द ने उपस्थिति पत्र प्रस्तुत कर पैरवी की। तथा अप्रार्थी ने प्रथम दृष्टया प्रार्थी का परिवाद अस्वीकार कर, जवाब परिवाद प्रस्तुत कर कथन किये, कि प्रार्थी ने वाहन को अपने जीविकोपार्जन हेतु चलाकर आय करना बताया हैं, अर्थात् प्रार्थी का प्राईवेट वाहन का उपयोग वाणिज्यिक प्रयोजनार्थ होने से बीमा पाॅलिसी की शर्त का उल्लघंन है, जिससे प्रार्थी उपभोक्ता नहीं हैं। तथा प्रार्थी ने वाहन की बीमा पाॅलिसी के जो नम्बर लिखे हैं वे सही हैं तथा वाहन का बीमा चैसिस नम्बर व इंजिन नम्बर से किया गया हैं। तथा प्रार्थी के वाहन को ठीक करवाने का खर्चा रूपयै 91,408/-होना बताया हैं, जो माने जाने योग्य नहीं है। तथा अप्रार्थी ने क्षतिग्रस्त वाहन की सूचना मिलने पर स्वतंत्र लोस एसेसर को नियुक्त कर क्षति का आंकलन राजेन्द्र एस0 जोशी से करवाया था, जिसकी सर्वे रिपोर्ट के अनुसार कुल क्षति 73,107.91 होना पाया, जिस में से पाॅलिसी एक्सेस 2000/- रूपयै व साल्वेज के 1107.91/-रूपयै कम किये जाकर कुल देय योग्य राशि रूपयै 70,000/- पायी। तथा प्रार्थी ने दिनांक 08-05-2013 को नया वाहन खरीदा हैं, और उसका अस्थाई रजिस्ट्रेशन धारा 43 2 मोटर वाहन अधिनियम के तहत जारी किया जाता हैं। तथा धारा 43 2 मोटर वाहन अधिनियम के अधीन अस्थाई रजिस्ट्रेशन की अवधि दिनांक 07-06-2013 को समाप्त हो चुकी थी, तथा प्रार्थी के लिए आवश्यक था कि अस्थाई रजिस्ट्रेशन के दौरान स्थाई रजिस्ट्रेशन की कार्यवाही कर प्राप्त कर लेता, लेकिन वक्त कथित दुर्घटना प्रार्थी अस्थायी रजिस्ट्रेशन की प्रभावी अवधि समाप्त होने के पश्चात् बिना रजिस्ट्रेशन वाहन को पब्लिक पेलेस पर चला रहा था, जो धारा 39 मोटर वाहन अधिनियम के प्रावधान व बीमा पाॅलिसी की शर्त का उल्लघंन है, जिससे बीमा कम्पनी हर्जाना अदा करने हेतु उत्तरदायी नहीं हैं। प्रार्थी ने गलत आधारो पर वाहन रिपेयरिगं खर्च रूपयै 91,408/-, टोचिगं राशि रूपयै 3,000/-, सर्वेयर की फीस रूपयै 6,200/- देना लिखा हैं, जो बीमा कम्पनी हर्जाना अदा करने हेतु उत्तरदायी नहीं हैं। इसप्रकार अप्रार्थी ने जवाब परिवाद पेश कर प्रार्थी का परिवाद खारीज कर अप्रार्थी को आर्थिक नुकसान के रूपयै 10,000/-प्रार्थी से दिलाये जाने का निवेदन किया हैं।
3. हमने उभय पक्षो को साक्ष्य सबूत प्रस्तुत करने का पर्याप्त समय/अवसर देने के बाद, उभय पक्षो के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस एवं तर्क-वितर्क सुने, जिस पर मनन किया तथा पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन एवं अध्ययन किया, तो हमारे सामने मुख्य रूप से तीन विवाद बिन्दु उत्पन्न होते हैं जिनका निस्तारण करना आवश्यक हैें:-
1. क्या प्रार्थी, अप्रार्थी का उपभोक्ता हैं ? प्रार्थी
2. क्या अप्रार्थी ने प्रार्थी की बीमित वाहन की क्षतिपूर्ति राशि
अदा नहीं कर सेवा प्रदान करने में गलती एवं कमी
कारित की हैं ?
प्रार्थी
3. अनुतोष क्या होगा ?
प्रथम विधिक विवाद बिन्दु:-
क्या प्रार्थी, अप्रार्थी का उपभोक्ता हैं ? प्रार्थी
उक्त प्रथम विधिक विवाद बिन्दु को सिद्व एवं प्रमाणित करने का भार प्रार्थी पर हैं। जिसके बारे में प्रार्थी ने परिवाद पत्र एवं साक्ष्य शपथपत्र प्रस्तुत कर कथन किये हैं कि प्रार्थी ने दिनांक 08-05-2013 को नया वाहन महेन्द्रा स्कोर्पियों क्रय किया था, जिसका बीमा अप्रार्थी बीमा कम्पनी को प्रिमियम राशि रूपयै 36,132/- अदा कर के करवाया था। उक्त कथनो के सत्यापन हेतु प्रार्थी ने बीमा पाॅलिसी संख्या- 1409003113च100799462 की प्रति पेश की हैं। जो अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने प्रार्थी के नाम वाहन डंीपदकतं - डंीपदकतं टप्ग् ठे ससस 2ूक ।पत जिसके चैसिस नम्बर- क् 2 क् 45449 इन्जन नम्बर- छ ॅ क् न् क् 22085 हैं तथा उक्त बीमा पाॅलिसी का प्रिमियम राशि रूपयै 36,132/- लेकर जारी की गई हैं। जो जोखिम अवधि दिनांक 08-05-2013 से दिनांक 07-05-2014 तक की हैं, तथा प्रार्थी ने वाहन रजिस्ट्रेशन पत्र की प्रति पेश की हैं। जो उक्त वाहन प्रार्थी के नाम हैं, तथा उक्त बीमित वाहन की दुर्घटना दिनांक 07-06-2013 को बीमित अवधि में होने से प्रार्थी, एवं अप्रार्थी के मध्य ग्राहक-सेवक का सीधा सम्बन्ध वैद्य रूप से स्थापित होना सिद्व एवं प्रमाणित हैं। तथा प्रार्थी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 1 डी के तहत उपभोक्ता की परिभाषा में आता हैं। इसप्रकार प्रथम विवाद बिन्दु प्रार्थी के पक्ष में तथा अप्रार्थी के विरूद्व निस्तारित किया जाता हैं।
द्वितीय विवाद बिन्दु:-
क्या अप्रार्थी ने प्रार्थी की बीमित वाहन की क्षतिपूर्ति राशि
अदा नहीं कर सेवा प्रदान करने में गलती एवं कमी
कारित की हैं ?
प्रार्थी
उक्त द्वितीय विवाद बिन्दु को सिद्व एवं प्रमाणित करने का भार प्रार्थी पर हैं। जिसके सम्बन्ध में प्रार्थी ने परिवाद पत्र एवं साक्ष्य शपथपत्र प्रस्तुत कर कथन किये हैं कि प्रार्थी का नया बीमित वाहन दिनांक 07-06-2013 को दुर्घटना कारित होकर क्षतिग्रस्त हो गया। जिसे रिपेयर/ठीक करवाने में रूपयै 91,408/-खर्च हूए, जिस हेतु क्लेम आवेदन अप्रार्थी को किया, अप्रार्थी ने प्रार्थी का क्लेम आवेदन खारीज कर दिया,जो अप्रार्थी की सेवा में कमी हैं। उक्त कथनो के सत्यापन हेतु प्रार्थी ने वाहन का अस्थायी प्रमाणपत्र त् श्र 27 ज् ब्व् 397 1045 की प्रति पेश की हैं। जो हस्तगत वाहन के चैसिस व इन्जन नम्बर- से प्रार्थी के नाम दिनांक 08-05-2013 को जारी किया गया हैं। जिसकी नियमानुसार वैद्यता एक माह तक दिनंाक 07-06-2013 को रात्रि 12.00 पी0एम0 तक थी, तथा प्रार्थी ने फन्प्ब्ज्ञ ब्स्।प्ड प्छज्प्ड।ज्प्व्छ थ्व्त्ड की प्रति पेश की हैं, जिसमें प्रार्थी के वाहन की दुर्घटना दिनंाक 07-06-2013 को 3.00 पी0एम0 पर घटित होना लिखा हैं। इसप्रकार प्रार्थी के वाहन का वक्त दुर्घटना अस्थाई रजिस्ट्रेशन होना वैद्य एवं प्रभावी था, यह तथ्य प्रमाणित है। तथा अप्रार्थी ने प्रार्थी के परिवाद एवं उक्त साक्ष्य के खण्डन में जवाब परिवाद में कथन किये हैं कि प्रार्थी अपने प्राइवेट वाहन का उपयोग वाणिज्यिक प्रयोजनार्थ करना बीमा पाॅलिसी की शर्त का उल्लघंन करना कहा हैं लेकिन प्रार्थी ने अपने परिवाद के पद संख्या- 1 में पेशे से किसान होना बताया हैं, तथा स्वंय का वाहन चलाकर अपने परिवार का जीविकोपार्जन करना लिखा हैं, लेकिन हस्तगत परिवाद में वर्णित वाहन के नम्बर नहीं बताये हैं, तथा उक्त परिवाद में वर्णित वाहन को ही टैक्सी के रूप में चलाता हैं, या अन्य कोई वाहन हैं, यह तथ्य स्पष्ट नहीं हैं। तथा प्रार्थी ने हस्तगत परिवाद में वर्णित वाहन दिनांक 08-05-2013 को ही नया क्रय किया हैं तथा दुर्घटना के वक्त अस्थायी रजिस्ट्रेशन था, जो स्थाई रजिस्ट्रेशन बाद में दिनांक 21-06-2013 को टैक्स अदा कर जारी करवाया हैं। तथा उक्त अस्थाई रजिस्ट्रेशन के वाहन को टैक्सी के रूप में अवैद्य चलाने की कोई दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं हुई हैं, इसलिए साक्ष्य के अभाव में बीमा पाॅलिसी की शर्त का उल्लघंन एवं मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 39, 43, व 192 का उल्लघंन होना नहीं माना जा सकता है। तथा अप्रार्थी ने न्यायिक दृष्टान्त त् । त् 2006 पेज नम्बर- 588 एवं त् । त् 2004 पेज नम्बर -162 पर प्रकाशित राजस्थान उच्च न्यायालय के निर्णयों की प्रतियां पेश की हैं। जो ड । ब् ज् ख्मोटर वाहन अधिनियम के तहत क्लेम क्षतिपूर्ति प्रतिकर से सम्बन्धित हैं।, जो उपभोक्ता विवाद नहीं होने से हस्तगत प्रकरण पर लागू नहीं होते हैं। तथा क् छ श्र 2014 पेज नम्बर-842 ै ब् पर प्रकाशित माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा सिविल अपील नम्बर-8463/2014 नरेन्द्र सिंह बनाम न्यू इण्डिया इन्श्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड के प्रकरण में पारित निर्णय दिनांक 04-09-2014 की प्रति पेश की हैं, जिसमें अस्थाई रजिस्ट्रेशन की अवधि समाप्त हाने के बाद स्थाई रजिस्ट्रेशन प्रमाणपत्र जारी करवाये बिना ही वाहन पब्लिक पैलेस पर चलाकर दुर्घटना कारित करने के विषय पर हैं, लेकिन हस्तगत परिवाद में प्रार्थी के वाहन का वक्त दुर्घटना अस्थायी रजिस्ट्रेशन वैद्य एवं प्रभावी था, इसलिए माननीय उच्चतम न्यायालय का उक्त निर्णय भी इस हस्तगत प्रकरण पर लागू नहीं होता हैं। इसप्रकार अप्रार्थी, प्राथी के परिवाद एवं साक्ष्य का खण्डन नहीं कर सके हैं। तथा प्रार्थी की नयी वाहन एवं बीमित वाहन क्षतिग्रस्त होने पर भी अप्रार्थी ने क्षतिपूर्ति राशि अदा नहीं कर, प्रार्थी का क्लेम आवेदन यह कह कर कि वक्त दुर्घटना प्रार्थी के वाहन का रजिस्ट्रेशन नहीं होने से छव् ब्स्।प्ड कर सूचना पत्र प्रार्थी को जारी किया, जो गलत आधारो पर प्रार्थी का क्लेम छव् ब्स्।प्ड करने के तथ्य सिद्व एवं प्रमाणित हैं। तथा अप्रार्थी का उक्त कृत्य उपभोक्ता को प्रदान की जाने वाली सेवा में कमी एवं लापरवाही कारित करना सिद्व एवं प्रमाणित हैं। इसप्रकार विवाद का द्वितीय बिन्दु भी प्रार्थी के पक्ष में तथा अप्रार्थी के विरूद्व निस्तारित किया जाता हैं।
तृतीय विवाद बिन्दु-
अनुतोष क्या होगा ?
जब प्रथम एवं द्वितीय विवाद बिन्दओं का निस्तारण प्रार्थी के पक्ष में हो जाने से तृतीय विवाद बिन्दु का निस्तारण स्वतः ही प्रार्थी के पक्ष में हो जाता हैं। लेकिन हमे यह देखना हैं कि प्रार्थी विधिक रूप से क्या एवं कितनी उचित सहायता अप्रार्थी से प्राप्त करने का अधिकारी हैं या उसे दिलाई जा सकती हैं। जिसके सम्बन्ध में प्रार्थी ने क्षतिग्रस्त वाहन को महेन्द्रा कम्पनी के आर्थोराइज सर्विस सेन्टर शिवम् सैल्स काॅरपोरेशन से वाहन ठीक/रिपेयर करवाने का बिल रूपयै 91,408/- की प्रति पेश की हैं। तथा प्रार्थी ने उक्त वाहन का रजिस्ट्रेशन के प्रमाणपत्र की प्रति पेश की हैं, जिसके अनुसार उक्त नया वाहन प्रार्थी ने दिनांक 08-05-2013 को ही कम्पनी से क्रय किया हैं, जो अप्रेल 2013 को ही निर्मित हैं। तथा क्रय से एक माह के भीतर दुर्घटना कारित होकर क्षतिग्रस्त होने से रिपेयर करवाने की सम्पूर्ण राशि रूपयै 91,408/- प्रार्थी, अप्रार्थी से प्राप्त करने का अधिकारी माना जाता हैं तथा अप्रार्थी ने क्षतिग्रस्त वाहन की सर्वेयर राजेन्द्र जोशी की सर्वे रिपोर्ट की प्रति पेश की हैं। जिसमें प्रार्थी से सर्वेयर द्वारा सर्वे फीस रूपयै 6,200/- लेना एवं सर्वेयर आंकलन में वापिस देने हेतु जोडा गया हैं। जिससे सर्वे फीस प्रार्थी पुनः प्राप्त करने का अधिकारी माना जाता हैं। तथा प्रार्थी को मानसिक, शारीरिक व आर्थिक क्षति/हानि के रूपयै 5000/-, एवं परिवाद व्यय के रूपयै 2000/- अप्रार्थी से दिलाये जाना उचित प्रतीत होता हैं। इस प्रकार प्रार्थी का परिवाद आशिंक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य हैं।
आदेश
अतः प्रार्थी भैराराम का परिवाद विरूद्व अप्रार्थी, यूनाईटेड इण्डिया इन्श्योरेन्स कम्पनी, लि0 के विरूद्व स्वीकार कर आदेश दिया जाता हैं कि निर्णय की तिथी से एक माह के भीतर अप्रार्थी, प्रार्थी को बीमित वाहन की क्षतिपूर्ति राशि रूपयै 91,408/- अक्षरे इकरानवे हजार चार सौ आठ रूपयै मात्र एवं सर्वेयर को दी गई फीस रूपयै 6200/- अक्षरे छः हजार दो सौ रूपयै कुल रूपयै 97,608/- अक्षरे सत्तानवे हजार छः सौ आठ रूपयै मात्र जिस पर ब्याज 9 प्रतिशत वार्षिकी दर से क्लेम खारीज करने की तिथी 08-10-2013 से तारीख अदायगी तक एवं मानसिक ,शारीरिक व आर्थिक क्षति/ हानि के रूपयै 5,000/-अक्षरे पाॅंच हजार रूपयै मात्र एवं परिवाद व्यय के रूपयै 2000/- अक्षरे दो हजार रूपयै मात्र अदा करे।
निर्णय व आदेश आज दिनांक 10-02-2015 को विवृत मंच में लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
मंजू राठौड केशरसिंह राठौड दीनदयाल प्रजापत
सदस्या सदस्य अध्यक्ष