ORDER | द्वारा- श्री पवन कुमार जैन - अध्यक्ष - इस परिवाद के माध्यम से परिवादी ने यह उपशम मांगा है कि विपक्षीगण से उसे 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित चोरी गई कार की बीमा राशि 3,00,000/- रूपये दिलाई जाऐ। परिवाद व्यय एवं अधिवक्ता फीस की मद में 21,000/- रूपये और क्षतिपूर्ति की मद में 25,000/- रूपया परिवादी ने अतिरिक्त मांगे हैं।
- संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी कार सं0-यूए-07/7046 का पंजीकृत स्वामी है। दिनांक 27/10/2010 से 26/10/2011 तक की अवधि हेतु उसकी कार का विपक्षी सं0-2 से 3,00,000/-रूपया का बीमा था। दिनांक 11/12/2010 को मानसरोवर कालोनी से उसकी उक्त कार चोरी हो गई जिसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट परिवादी ने थाना मझोला में दर्ज कराई। विवेचना में अभियुक्त और चोरी गई कार का कोई पता नहीं चला। विवेचक ने मामले में अन्तिम रिपोर्ट न्यायालय प्रेषित की जिसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, मुरादाबाद के न्यायालय द्वारा दिनांक 9/5/2011 को स्वीकार कर लिया गया। परिवादी के अनुसार सभी कागजात यथा न्यायालय के आदेश, इंश्योरेंस पालिसी, कार की आर0सी0 इत्यादि की प्रमाणित प्रतियां लेकर वह विपक्षी सं0-1 के कार्यालय गया, किन्तु वहां कर्मचारियों ने कागज प्राप्त नहीं किऐ मजबूर होकर परिवादी ने दिनांक 18/5/2011 को सारे कागजात विपक्षी सं0-1 एवं विपक्षी सं0-2 के कार्यालय को रजिस्टर्ड डाक से प्रेषित किये और क्लेम के निस्तारण हेतु प्रर्थना पत्र भी प्रेषित किया गया, किन्तु कई चक्कर लगाने के बावजूद भी विपक्षीगण के कार्यालय से कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला तब परिवादी ने विपक्षीगण को एक कानूनी नोटिस दिनांक 04/6/2011 को भिजवाया। परिवादी के अनुसार क्लेम अदा न करके विपक्षीगण ने सेवा में कमी की है। परिवादी ने परिवाद में अनुरोधित अनुतोष स्वीकार किऐ जाने की प्रार्थना की।
- परिवाद के साथ परिवादी द्वारा चोरी गई कार की आर0सी0, बीमा पालिसी, थाना मझोला में दर्ज एफ0आई0आर0, पुलिस द्वारा प्रेषित अन्तिम रिपोर्ट, अन्तिम रिपोर्ट को स्वीकृत किऐ जाने सम्बन्धी सी0जे0एम0 मुरादाबाद के आदेश, क्लेम दिलाऐ जाने हेतु परिवादी द्वारा विपक्षीगण को भेजे गऐ पत्र दिनांकित 18/5/2011 और स्पीड पोस्ट से उन्हें भेजे जाने की डाकखाने की रसीदें, आर0टी0ओ0 देहरादून को कार चोरी होने की सूचना भेजे जाने विषयक पत्र और विपक्षीगण को भिजवाऐ गऐ कानूनी नोटिस दिनांकित 04/6/2011 तथा इन नोटिसों को भिजवाऐ जाने की डाकखाने की रसीदों की फोटो प्रतियों को दाखिल किया गया है, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-3/5 लगायत 3/16 हैं।
- विपक्षीगण की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं0-13/1 लगायत 13/4 दाखिल हुआ जिसमें बीमा पालिसी में उल्लिखित शर्तों एवं प्रतिबन्धों के अधीन परिवाद के पैरा सं0-1 में उल्लिखित कार का दिनांक 27/10/2010 से 26/10/2011 तक की अवधि का 3,00,000/- रूपया का बीमा किया जाना और कार की कथित चोरी की सूचना काफी विलम्ब से प्राप्त होना तो स्वीकार किया गया है, किन्तु शेष परिवाद कथनों से इन्कार किया गया। प्रतिवाद पत्र में अग्रेत्तर कहा गया कि इस मामले में इन्वेस्टीगेटर श्री राज़ीव कुमार गुप्ता से जॉंच कराई गई जिन्होंने अपनी जॉंच रिपोर्ट दिनांकित 01/10/2012 में यह पाया कि कथित चोरी के समय परिवादी चोरी गई कार का स्वामी नहीं था उसने दिनांक 22/9/2010 को उक्त कार एक व्यक्ति उस्मान को बेच दी थी। विवेचना के दौरान उस्मान द्वारा चोरी गई कार की चाबी इन्वेस्टीगेटर को प्राप्त कराई गई। चोरी गई कार टैक्सी के रूप में प्रयोग की जा रही थी जबकि कार का बीमा प्राईवेट इस्तेमाल हेतु कराया गया था। अग्रेत्तर यह भी कथन किया गया कि कार चोरी की सूचना विपक्षीगण को कथित चोरी के लगभग 7 माह बाद पत्र दिनांकित 18/5/2011 द्वारा दी गई और ऐसा करके बीमा पालिसी की शर्त सं0-1 का उल्लंघन किया गया। विपक्षीगण ने यह कहते हुऐ कि उन्होंने परिवादी को सेवा देने में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं की, परिवाद सव्यय खारिज किऐ जाने की प्रार्थना की।
- प्रतिवाद पत्र के साथ इन्वेस्टीगेटर श्री राजीव कुमार गुप्ता की संलग्नक सहित रिपोर्ट दिनांकित 01/10/2012 को दाखिल किया गया। इस रिपोर्ट में बतौर संलग्नक परिवादी के फोटोग्राफ, दिनांक 13/9/2012 को परिवादी की कार के खरीददार उस्मान और मानसरोवर कालोनी निवासी अशोक कुमार द्वारा विपक्षी सं0-1 को पृथक-पृथक भेजे गऐ पत्र, परिवादी द्वारा क्लेम मांगे जाने विषयक विपक्षी सं0-1 को भेजे गऐ पत्र दिनांकित 18/5/2011, चोरी गई कार की आर0सी0, तहरीरी रिपोर्ट, थाना मझोला पर दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट, पुलिस द्वारा प्रेषित फाइनल रिपोर्ट, विपक्षी सं0-1 को उस्मान द्वारा दिनांक 24/12/2010 को भेजे गऐ पत्र, थानाध्यक्ष मझोला को उस्मान द्वारा दिनांक 12/12/2010 को दी गई कार चोरी की तहरीरी रिपोर्ट, उस्मान द्वारा दिनांक 12/12/2010 को सी0जे0एम0 मुरादाबाद के न्यायालय में दायर 156 (3) सी0आर0पी0सी0 के प्रार्थना पत्र, उस्मान द्वारा आर0टी0ओ0 देहरादून को स्पीड पोस्ट से दिनांक 24/12/2010 को भेजे गऐ पत्र, चोरी गई कार की चाबी और कार की बीमा पालिसी की फोटो प्रतियों को संलग्न किया गया है। जॉंच रिपोर्ट पत्रावली का कागज सं0-13/5 लगायत 13/11 तथा इस रिपोर्ट के साथ लगाऐ गऐ संलग्नक पत्रावली के कागज सं0-13/12 लगायत 13/30 हैं।
- परिवादी ने अपना साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-14/1 लगायत 14/3 दाखिल किया। विपक्षीगण की ओर से बीमा कम्पनी के वरिष्ठ मण्डलीय प्रबन्धक श्री लवलीन अवस्थी का साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-17/1 लगायत 17/4 दाखिल हुआ जिसके साथ बीमा कम्पनी के इन्वेस्टीगेटर श्री राजीव कुमार गुप्ता की संलग्नकों सहित जॉंच रिपोर्ट दिनांकित 01/10/2012 की फोटो प्रति भी दाखिल की गई।
- परिवादी ने रिज्वाइंडर शपथ पत्र कागज सं0-18/1 लगायत 18/2 दाखिल किया।
- दोनों पक्षों की ओर से लिखित बहस दाखिल हुई।
- हमने पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
- दोनों पक्षों के मध्य इस बिन्दु पर कोई विवाद नहीं है कि कार सं0-यूए-07/7046 दिनांक 27/10/2010 से 26/10/011 तक की अवधि हेतु 3,00,000/- रूपया बीमा राशि के लिए विपक्षी सं0-1 से बीमित थी। परिवादी के अनुसार कार दिनांक 11/12/2010 को चोरी होनी बताई गई है। प्रकार स्पष्ट है कि अभिकथित चोरी के समय परिवादी की कार बीमा अवधि में थी।
- परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने परिवाद कथनों पर बल देते हुऐ हमारा ध्यान परिवादी के साक्ष्य शपथ पत्र (कागज सं0-14/1 लगायत 14/3), उसके रिज्वाइंडर शपथ पत्र (कागज सं0-18/1 लगायत 18/2) तथा परिवाद के साथ दाखिल प्रपत्रों (कागज सं0-3/5 लगायत 3/16) की ओर आकर्षित करते हुऐ तर्क दिया कि कार चोरी होना यधपि प्रमाणित हैं और कार चोरी के मामले में न्यायालय में प्रेषित अन्तिम रिपोर्ट भी स्वीकार की जा चुकी है इसके बावजूद विपक्षीगण ने परिवादी का क्लेम नहीं दिया और ऐसा करके उन्होंने सेवा में त्रुटि की।
- प्रत्युत्तर में विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने कहा कि परिवादी ने कार चोरी की सूचना विपक्षीगण को सर्वप्रथम अपने पत्र दिनांक 18/5/2011 (पत्रावली का कागज सं0-3/13 और कागज सं0-3/14) द्वारा दी थी। इस प्रकार चोरी की सूचना विपक्षीगण को देने में परिवादी ने लगभग 7 माह का विलम्ब किया और ऐसा करके परिवादी ने बीमा पालिसी की शर्त सं0-1 जो पत्रावली के कागज सं0-13/28 पर दृष्टव्य है, का उल्लंघन किया। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने पत्रावली के कागज सं0-13/22 लगायत 13/26 की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हुऐ यह भी तर्क दिया कि अभिकथित चोरी से पूर्व परिवादी अपनी उक्त कार उस्मान पुत्र इब्ने हसन निवासी मौहल्ला चक्कर की मिलक मुरादाबाद को बेच चुका था। विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने हमारा ध्यान विशेष रूप से उस्मान द्वारा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मुरादाबाद के समक्ष दायर 156 (3) सी0आर0पी0सी0 के प्रार्थना पत्र की नकल कागज सं0-17/24 की ओर आकर्षित किया और कहा कि उस्मान ने अपने इस प्रार्थना पत्र में यह स्पष्ट रूप से कहा है कि चोरी गई उक्त कार उसने परिवादी वीरेन्द्र सिंह से दिनांक 22/9/2010 को खरीद ली थी । उल्लेखनीय है कि कार का बीमा दिनांक 27/10/2010 से 26/10/2011 तक के लिए था और कार दिनांक 11/12/2010 को चोरी होना बताया जाता है। इस प्रकार विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का कथन है कि परिवादी कार चोरी होने एवं कार का बीमा होने से पूर्व ही उक्त कार चॅूंकि उस्मान पुत्र इब्ने हसन को बेच चुका था अत: कार में परिवादी का अभिकथित चोरी के समय इश्योरेबिल इन्ट्रेस्ट नहीं था। विपक्षीगण के अनुसार इस आधार पर भी परिवाद खारिज कर दिया जाना चाहिऐ। प्रत्युत्तर में यधपि परिवादी ने विपक्षीगण की ओर से दिऐ गऐ उपरोक्त तर्कों का खण्डन करने का प्रयास किया और अपने रिज्वांइडर कागज सं0-18/1 के पैरा सं0-5 की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हुऐ कथन किया कि दिनांक 24/12/2010 को उस्मान ने बीमा कम्पनी को कार चोरी की सूचना दे दी थी। अत: चोरी की सूचना विपक्षीगण को देने में कोई विलम्ब नहीं किया गया। परिवादी के विद्वान के विद्वान अधिवक्ता ने यह भी प्रत्युत्तर तर्क दिया कि कार की आर0सी0 में चॅूंकि परिवादी का नाम दर्ज है और बीमा पालिसी भी परिवादी के नाम जारी हुई थी ऐसी दशा में यह नहीं माना जाना चाहिए कि अभिकथित चोरी के समय कार में परिवादी का इंश्योरेबिल इन्ट्रेस्ट नहीं रह गया था।
- हम परिवादी के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों से सहमत नहीं है। परिवादी के अनुसार कार दिनांक11/12/2010 को चोरी हुई थी। यधपि अपने शपथ पत्र कागज सं0-14 के पैरा सं0-6 में परिवादी ने यह कहा है कि वह क्लेम से सम्बन्धित सभी कागजात यहॉं तक कि न्यायालय द्वारा स्वीकृत अन्तिम रिपोर्ट की प्रतियां लेकर विपक्षी सं0-1 के कार्यालय गया था, परन्तु कर्मचारियों ने उसके प्रपत्र नहीं लिऐ और उसे वहॉं से भगा दिया, किन्तु उक्त कथन के समर्थन में परिवादी कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाया। बावजूद इसके यदि परिवादी के उक्त कथन सही मान लिऐ जाऐ तब भी यह प्रमाणित नहीं हो पाया कि बीमा पालिसी की शर्त सं0-1 के अनुसार चोरी की सूचना परिवादी ने विपक्षीगण को कार चोरी के तत्काल बाद दे दी थी। न्यायालय द्वारा अन्तिम आख्या दिनांक 9/5/2011 को स्वीकृत हुई जैसा कि पत्रावली में अवस्थित न्यायालय के आदेश की प्रति कागज सं0-3/12 से प्रकट है। जब न्यायालय में फाइनल रिपोर्ट स्वीकार हुई तब तक कार चोरी हुऐ लगभग 5 माह बीत चुके थे। कहने का आशय यह है कि यदि परिवादी कागजात/ क्लेम का दावा लेकर बीमा कम्पनी के मण्डलीय काया्र्लय गया भी था तो भी तब तक कार चोरी हुऐ 5 माह से अधिक का समय बीत चुका था। परिवादी के रिज्वाइंडर शपथ पत्र के अनुसार उस्मान ने कार चोरी की सूचना दिनांक 24/12/2010 को बीमा कम्पनी को दे दी थी। परिवादी का यदि यह कथन सही मान लिया जाऐ तब भी चोरी की सूचना बीमा कम्पनी को देने में लगभग 13 दिन का विलम्ब हो चुका था। इस प्रकार किसी भी दृष्टि से बीमा कम्पनी को कार चोरी की सूचना देने में बीमा पालिसी की शर्त सं0-1 का अनुपालन होना प्रकट नहीं है।
- परिवादी के स्तर से बीमा पालिसी की शर्त सं0-1 का उल्लंघन होना प्रमाणित हैं।
- मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, नई दिल्ली द्वारा 2014(2) सी0पी0आर0 284 (एन.सी.) न्यू इण्डिया एश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम महा सिंह के मामले में निम्न व्यवस्था दी गई है:-
“ It is admitted case of the complainant that complainant sold the tractor to Wazir Singh on 11.12.2001; even then, obtained policy of Insurance in his own name from 2.5.2002 to1.5.2003 without any insurable interest in the vehicle. Merely because vehicle’s registration certificate stood in the name of complainant, complainant cannot be held to have insurable interest after sale of the vehicle. As insurance policy obtained by the complainant was without any insurable interest, OP rightly repudiated the claim and learned state Commission committed error in dismissing appeal. “ 16. वर्तमान मामले में यह प्रमाणित हुआ है कि कार का बीमा कराने से पूर्व ही परिवादी कार को उस्मान पुत्र इब्ने हसन को बेच चुका था अत: बावजूद इसके कि कार की आर0सी0 में अभिकथित चोरी के समय भी परिवादी का ही नाम कार के पंजीकृत स्वामी के रूप में दर्ज था, मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, नई दिल्ली द्वारा पारित उपरोक्त विधि व्यवस्था के दृष्टिगत कार चोरी के समय कार में परिवादी का चूँकि इंश्योरेबिल इन्ट्रेस्ट नहीं था अत: इस दृष्टि से भी पारिवाद खारिज होने योग्य है। - उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि परिवाद खारिज होने योग्य है
परिवाद खारिज किया जाता है। (श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (पवन कुमार जैन) सामान्य सदस्य अध्यक्ष - 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
11.03.2016 11.03.2016 हमारे द्वारा यह निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 11.03.2016 को खुले फोरम में हस्ताक्षरित, दिनांकित एवं उद्घोषित किया गया। (श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (पवन कुमार जैन) सामान्य सदस्य अध्यक्ष - 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
11.03.2016 11.03.2016 | |