View 21092 Cases Against United India Insurance
M/S Designco filed a consumer case on 03 Feb 2018 against United India Insurance Company in the Muradabad-II Consumer Court. The case no is cc/119/2013 and the judgment uploaded on 19 Feb 2018.
परिवाद प्रस्तुतिकरण की तिथि:11-10-2013
निर्णय की तिथि: 03.02.2018
कुल पृष्ठ-11(1ता11)
न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-द्वितीय, मुरादाबाद
उपस्थिति
श्री पवन कुमार जैन, अध्यक्ष
श्री सत्यवीर सिंह, सदस्य
परिवाद संख्या- 119/2013
मैसर्स डिजाइनको द्वारा अपने पार्टनर श्री विभोर कुमार गुप्ता कार्यालय लाकड़ी फाजलपुर दिल्ली रोड, मुरादाबाद। …...परिवादी
बनाम
1-यूनाईटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लि. द्वारा अपने मण्डलीय प्रबन्धक, निकट कंपनी बाग़ सिविल लाइन्स, मुरादाबाद।
2-मण्डलीय प्रबन्धक, यूनाईटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लि. निकट कंपनी बाग सिविल लाइन्स, मुरादाबाद। …...विपक्षीगण
(श्री पवन कुमार जैन, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित)
निर्णय
12-हमने विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत निर्णयज विधियों का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया। उक्त निर्णयज विधियां वर्तमान मामले में विपक्षीगण के लिए सहायक नहीं हैं। माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग, नई दिल्ली द्वारा III(2016)सीपीजे पृष्ठ-40 (एनसी), रामदास सेल्स कारपोरेशन बनाम न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लि. की निर्णयज विधि में आईआरडीए के सर्कुलर सं.-आईआरडीए/एनएल/सीआईआर/मिस./173/09/2015 दिनांकित 24-9-2015 को उद्धरित करते हुए निर्णय के पैरा-8 में यह अवधारित किया गया है कि इस सर्कुलर के परिप्रेक्ष्य में परिवाद की सुनवाई के दौरान बीमा कंपनी को यह कहने की अनुमति नहीं होगी कि परिवादी/पीडि़त पक्ष ने बीमा पालिसी के तहत पूर्ण संतुष्टि में चूंकि डिस्चार्ज वाउचर पर हस्ताक्षर करके क्लेम राशि पूर्व में ही प्राप्त कर ली है, इस कारण अब परिवादी जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष अतिरिक्त क्लेम राशि दिलाये जाने हेतु परिवाद योजित करने से विबन्धित है। आईआरडीए का उपरोक्त सर्कुलर दिनांकित 24-9-2015 निम्नवत है-
“The Insurance companies are using ‘discharge voucher’ or ‘settlement intimation voucher’ or in some other name, so that the claim is closed and does not remain outstanding in their books. However, of late, the Authority has been receiving complaints from aggrieved policy holders that the said instrument of discharge voucher is being used by the insurers in the judicial fora with the plea that the full and final discharge given by the policy holders extinguish their rights to contest the claim before the Courts.
While the Authority notes that the insurers need to keep their books of accounts in order, it is also necessary to note that insurer shall not use the instrument of discharge voucher as a means of estoppel against the aggrieved policy holders when such policy holder approaches judicial Fora
Accordingly insurers are hereby advised as under:
Where the liability and quantum of claim under a policy is establish, the insurers shall not withhold claim amounts. However, it would be clearly understood that execution of such vouchers does not foreclose the rights of policy holder to seek higher compensation before any judicial Fora or any other Fora established by law.
All insurers are directed to comply with the above instructions.”
13-बीमा कंपनी प्रथम सर्वेयर की रिपोर्ट आने के बाद दूसरे सर्वेयर को विधानत: नियुक्त कर सकती है अथवा नहीं, इस संदर्भ में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा III(2009)सीपीजे पृष्ठ-81(एससी), वेंकेटश्वरा सिंडीकेट बनाम ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी लि.व अन्य की निर्णयज विधि में निर्णय के पैरा-21 व 22 में व्यवस्था दी गई है कि किन परिस्थितियों में बीमा कंपनी एक सर्वे रिपोर्ट के विद्यमान रहते दूसरा सर्वेयर नियुक्त कर सकती है। वैंकेटश्वरा की निर्णयज विधि के पैरा सं.-21 व 22 निम्नवत हैं-
(21) The Insurance Regulatory Authority (‘IRDA’ for short) has formulated Insurance Surveyors and Loss Assessors (Licensing, Professional Requirements and Code of Conduct) Regulations, 2000, which regulate the licensing and the work of surveyors. These regulations stipulate that the surveyor shall investigate, manage, quantify, validate and deal with losses arising from any contingency and carry out the work with competence, objectivity and professional integrity by strictly adhering to the Regulations.
(22) The assessment of loss, claim settlement and relevance of survey report depends on various factors. Whenever a loss is reported by the insured, a loss adjuster, popularly known as loss surveyor, is deputed who assesses the loss and issues report known as surveyor report which forms the basis for consideration or otherwise of the claim. Surveyors are appointed under the statutory provisions and they are the link between the insurer and the insured when the question of settlement of loss or damage arises. The report of the surveyor could become the basis for settlement of a claim by the insurer in respect of the loss suffered by the insured. There is no disputing the fact that the surveyor/surveyors are appointed by the Insurance Company under the provisions of Insurance Act and their reports are to be given due importance and one should have sufficient grounds not to agree with the assessment made by them. We also add, that, under this section the Insurance Company cannot go on appointing Surveyors one after another so as to get a tailor made report to the satisfaction of the concerned officer of the Insurance Company, if for any reason, the report of the Surveyor is not acceptable, the insurer has to give valid reason for not accepting the report. Scheme of Section 64-UM particularly, of sub- sections (2), (3) and (4) would show that the insurer cannot appoint a second Surveyor just as a matter of course. If for any valid reason the report of the Surveyor is not acceptable to the insurer may be for the reason if there are inherent defects, if it is found to be arbitrary, excessive, exaggerated, etc., it must specify cogent reasons, without which it is not free to appoint second Surveyor or Surveyors till it gets a report which would satisfy its interest. Alternatively, it can be stated that there must be sufficient ground to disagree with the findings of Surveyor/ Surveyors. There is no prohibition in the Insurance Act for appointment of second Surveyor by the Insurance Company, but while doing so, the Insurance Company has to give satisfactory reason for not accepting the report of the first Surveyor and the need to appoint second Surveyor.
कदाचित वर्तमान मामले में वे परिस्थितियां विद्यमान नहीं हैं, जिनका उल्लेख माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वैंकेटश्वरा की उक्त निर्णयज विधि में किया गया है। श्री आर.सी. वाजपेयी की सर्वे रिपोर्ट पत्रावली के कागज सं.-7/12 लगायत 7/29 हैं। इस रिपोर्ट में अथवा पत्रावली पर कहीं यह उल्लेख नहीं है कि विपक्षी बीमा कंपनी ने द्वितीय सर्वेयर, श्री आर.सी. वाजपेयी को किस कारण और किस आधार पर पहली सर्वे रिपोर्ट के विद्यमान रहते हुए नुकसान के आंकलन हेतु नियुक्त किया था। द्वितीय सर्वेयर नियुक्त करने हेतु बीमा कंपनी ने आईआरडीए से न तो कोई पूर्वानुमति ली और न ही परिवादी को इसकी कोई पूर्व सूचना दी।
15-माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग, नई दिल्ली द्वारा दिनांक 19-01-2012 को निर्णीत ओरिजनल पीटिसन सं.-73/2002, मैसर्स जगननाथ पोल्ट्रीस बनाम न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लि. की निर्णयज विधि के पैरा-8 में यह व्यवस्था दी गई है कि आईआरडीए से अनुमति लिये बिना तथा परिवादी को सूचना दिये बिना नुकसान के आंकलन हेतु दूसरा सर्वेयर यदि नियुक्त किया गया है तो ऐसी सर्वे रिपोर्ट मान्य नहीं होगी। जगननाथ पोल्ट्रीस की उक्त निर्णयज विधि का सुसंगत पैरा-8 निम्नवत है-
8. Having considered the above submissions, we are of the considered opinion that while it is permissible to appoint a second surveyor to assess the loss but this must be for given reasons and only through the auspices of the Regulatory Authority i.e. IRDA. Counsel for the opposite party-Insurance Company fairly admitted that the reasons for appointing a second surveyor is not disclosed to the complainant though there may be valid reasons and the permission of the IRDA was not obtained for appointment of the second surveyor. Therefore, strictly speaking going by the view taken by the Supreme Court in the case of New India Assurance Co. Ltd., Vs. M/s. Protection Manufacturers Pvt. Ltd.,reported in AIR 2010 SC 3035 there is no escape from the conclusion that the appointment of second surveyor viz. S.C. Senapati was not in accordance with the provisions of Section 64-UM of the Act, and therefore the said report of such surveyor must be discarded and cannot form valid basis for the settlement of the insurance claim of the complainant. The plea of the counsel for the opposite party that the appointment of the second surveyor was necessitated on account of the glaring defect in the report of the first surveyor M/s. Mehta & Padamsey even if it has weight will not survive. Accordingly, we hold that the insurance company ought to have settled the claim of the complainant as per the assessment made by the first surveyor-M/s. Mehta & Padamsey Pvt. Ltd. i.e. at Rs. 65,76,317/-. Since the complainant has already been paid a sum of Rs. 40,06,211/-, the complainant is entitled to the balance amount of Rs. 25,70,106/-
16-प्रथम सर्वेयर, श्री अभय कुमार रस्तौगी की सर्वे रिपोर्ट जो पत्रावली का कागज सं.-3/7 लगायत 3/16 है, के अंतिम पृष्ठ के अवलोकन से प्रकट है कि प्रथम सर्वेयर ने अपनी रिपोर्ट के साथ वर्ष 2007-08 से लेकर वर्ष 2010-11 तक की परिवादी की बैलेंसशीट, पर्चेज बिल्स, स्टॉक रजिस्टर, अभिकथित आग लगने की घटना से पहले के और उसके बाद के स्टॉक्स की डिटेल्स इत्यादि लगायी थी। ऐसी दशा में दूसरे सर्वेयर श्री आर.सी. वाजपेयी की रिपोर्ट में यह उल्लेख कि परिवादी की फर्म में स्टॉक रजिस्टर का अनुरक्षण नहीं किया जा रहा था, सही दिखायी नहीं देता है। श्री आर.सी. वाजपेयी ने यद्यपि अपनी सर्वे रिपोर्ट के निष्कर्ष में यह भी उल्लेख किया है कि परिवादी फर्म के एकाउन्टस में अनियमिततायें थीं किन्तु किसी अनियमितता को वह विशिष्ट रूप से अपनी रिपोर्ट में इंगित नहीं कर पाये। जैसा कि हमने ऊपर उल्लेख किया है कि दूसरे सर्वेयर को नियुक्त किये जाने से पूर्व बीमा कंपनी ने आईआरडीए से कोई पूर्वानुमति नहीं ली और परिवादी को नियुक्ति से पूर्व कोई सूचना नहीं दी, ऐसी स्थिति में द्वितीय सर्वेयर, श्री आर.सी. वाजपेयी की नियुक्ति और उनके द्वारा दी गई सर्वे रिपोर्ट में आंकलित क्षति विधानत: स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। यहां हम यह उल्लेख करना भी समीचीन समझते हैं कि इंश्योरेंस एक्ट की धारा-34 में यह स्पष्ट व्यवस्था है कि आईआरडीए द्वारा जारी सर्कुलर और निदेश बीमा कंपनी पर बाध्यकारी हैं।
17-प्रथम सर्वेयर ने परिवादी को देय क्षति का आंकलन अंकन-17,87,214/-रूपये किया था। द्वितीय सर्वेयर, श्री वाजपेयी ने इसे घटाकर अंकन-12,72,820/-रूपये कर दिया। इन दोनों सर्वे रिपोर्टस में आंकलित क्षति के अंतर की धनराशि अंकन-5,14,394/-रूपये मय 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज वाद दायरा तिथि तावसूली परिवादी को दिलायी जानी चाहिए, ऐसा हमारा सुविचारित मत है। मामले के तथ्यों व परिस्थितियों और विपक्षीगण के आचरण को देखते हुए परिवादी को क्षतिपूर्ति की मद में अंकन-10,000/-रूपये तथा वाद व्यय की मद में अंकन-2500/-रूपये अतिरिक्त दिलाया जाना भी न्यायोचित होगा। तद्नुसार परिवाद निस्तारित होने योग्य है।
परिवादी का परिवाद विरूद्ध विपक्षीगण स्वीकृत किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि विपक्षीगण इस आदेश से एक माह के अंदर अंकन-5,14,820(पांच लाख चौदह हजार आठ सौ बीस) रूपये मय 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज वाद दायरा तिथि तावसूली परिवादी को अदा करें।
विपक्षीगण अंकन-10,000(दस हजार) रूपये क्षतिपूर्ति एवं अंकन-2,500/-रूपये वाद व्यय भी परिवादी को अदा करें।
(सत्यवीर सिंह) (पवन कुमार जैन)
सदस्य अध्यक्ष
आज यह निर्णय एवं आदेश हमारे द्वारा हस्ताक्षरित तथा दिनांकित होकर खुले न्यायालय में उद्घोषित किया गया।
(सत्यवीर सिंह) (पवन कुमार जैन)
सदस्य अध्यक्ष
दिनांक: 03-02-2018
Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes
Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.