Final Order / Judgement | परिवाद प्रस्तुतिकरण की तिथि: 16-06-2016 निर्णय की तिथि: 14.12.2017 कुल पृष्ठ-5(1ता5) न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-द्वितीय, मुरादाबाद उपस्थिति श्री पवन कुमार जैन, अध्यक्ष श्री सत्यवीर सिंह, सदस्य परिवाद संख्या-40/2016 श्रीमती संतोष पत्नी स्व. श्री पदम सिंह निवासी प्रेम नगर गली नं.-4 मकान नं.-डी/221 लाईन पार मझौला, मुरादाबाद। परिवादनी बनाम यूनाईटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लि. द्वारा मण्डलीय प्रबन्धक, मण्डलीय कार्यालय निकट कंपनी बाग, सिविल लाइन्स, मुरादाबाद। विपक्षी (श्री पवन कुमार जैन, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित) निर्णय - इस परिवाद के माध्यम से परिवादनी ने यह अनुतोष मांगा है कि विपक्षी से उसे उसके पति के इलाज में हुए व्यय की मद में 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित तीन लाख रूपये दिलाये जाये। क्षतिपूर्ति की मद में तीन लाख रूपये अतिरिक्त तथा परिवाद व्यय की मद में 25000/-रूपये परिवादनी ने और मांगे हैं।
- संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं कि परिवादनी के पति ने अपने और अपने परिवार के इलाज के लिए विपक्षी से एक बीमा पालिसी सं.-2507872814-पी-112139843 विगत लगभग 12 वर्ष पूर्व ली थी, जो निरन्तर प्रभावी रही और दिनांक 31-3-2015 से 30-3-2016 तक भी उक्त पालिसी प्रभावी थी। उक्त पालिसी में परिवादनी के पति का तीन लाख रूपये तक का बीमा था। परिवादनी के पति अचानक दिनांक 02-02-2016 को बीमारी के कारण मेदान्ता अस्पताल, गुड़गांव में भर्ती हुए, जहां इलाज हेतु वह दिनांक 21-02-2016 तक भर्ती रही। 19 दिन इलाज चलने के बावजूद दिनांक 21-02-2016 को अस्पताल में ही उनकी मृत्यु हो गई। परिवादनी को उनके इलाज के सिलसिले में अंकन-15,15,010/-रूपये अस्पताल में जमा कराने पड़े क्योंकि टीपीए द्वारा कैशलैश सुविधा देने से इंकार कर दिया गया था। परिवादनी को टीपीए द्वारा अवगत कराया गया था कि वे परिवादनी का क्लेम अस्वीकृत नहीं कर रहे हैं बल्कि बीमा कंपनी को क्लेम तय करने के लिए भेज रहे हैं। दिनांक 29-3-2016 को अपने अधिवक्ता के माध्यम से परिवादनी ने विपक्षी को एक नोटिस भिजवाया, जिसका उन्होंने संतोषजनक उत्तर नहीं दिया। परिवादनी ने यह कहते हुए कि विपक्षी के कृत्य सेवा में कमी हैं, परिवाद में अनुरोधित अनुतोष दिलाये जाने की प्रार्थना की है।
- परिवाद के साथ परिवादनी ने सूची कागज सं.-3/7 के माध्यम से विपक्षी को भिजवाये गये नोटिस, उसे भेजे जाने की रसीद, बीमा पालिसी, विपक्षी को भेजे गये नोटिस के जबाव में विपक्षी की ओर से प्राप्त जबाव नोटिस तथा मेदान्ता अस्पताल, गुड़गांव के बिल दिनांकित 21-02-2016 की छायाप्रति को दाखिल किया है। ये प्रपत्र पत्रावली के कागज सं.-3/8 लगायत 3/66 हैं।
- विपक्षी की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं.-6/1 लगायत 6/6 दाखिल हुआ, जिसमें परिवादनी के पति द्वारा परिवाद के पैरा-1 में उल्लिखित बीमा पालिसी लिये जाने और उक्त बीमा पालिसी उनकी मृत्यु तक प्रभावी रहने के तथ्य को तो इंकार नहीं किया गया है किन्तु शेष कथनों से इंकार करते हुए कहा गया कि परिवादनी को कोई वाद हेतुक उत्पन्न नहीं हुआ। विशेष कथनों में कहा गया कि दिनांक 02-02-2016 को परिवादनी के पति अस्पताल में जब भर्ती हुए थे, वे मरणासन्न हालत में थे, उनकी सांस उखड़ चुकी थी, उनके गुर्दे खराब हो गये थे, उन्हें अन्य बीमारियां भी थीं, उन्हें वैन्टीलेटर पर रखा गया था, उनका डायलेसिस भी हुआ। ये बीमारियां काफी पुरानी थीं। अग्रेत्तर कथन किया गया कि पालिसी की शर्तों के अनुसार इलाज हेतु अस्पताल में भर्ती रहने के 24 घंटे के भीतर रक्षा टीपीए को सूचना देनी चाहिए थी और अस्पताल से छुट्टी मिलने के 15 दिन के अंदर इलाज के समस्त प्रपत्रों को रक्षा टीपीए के समक्ष प्रस्तुत करना अनिवार्य था किन्तु ऐसा नहीं किया गया। बीमारियां चूंकि काफी पुरानी थीं, अतएव टीपीए ने कैशलैश सुविधा देने से इंकार किया था। बीमित और टीपीए का सीधा संबंध न हो, ऐसा नहीं है। परिवादनी का यह कथन असत्य है कि टीपीए द्वारा भेजे गये जबाव नोटिस में यह उल्लेख हो कि परिवादनी का दावा अस्वीकृत नहीं किया जा रहा है बल्कि उसमें यह लिखा था कि इलाज पर हुए खर्चों के संबंध में क्लेम प्रस्तुत करने पर क्लेम पर विचार किया जा सकता है। अग्रेत्तर यह कहते हुए कि परिवादनी ने आज तक भी क्लेम फार्म भरकर अपना दावा विपक्षी अथवा टीपीए के समक्ष प्रस्तत नहीं किया है, परिवाद को खारिज किये जाने की प्रार्थना की है।
- प्रतिवाद पत्र के साथ विपक्षी ने बीमा पालिसी की नकल दाखिल की है, जो पत्रावली का कागज सं.-6/7 लगायत 6/19 है।
- परिवादनी ने अपना साक्ष्य शपथपत्र कागज सं.-22/1 लगायत 22/3 दाखिल किया।
- विपक्षी की ओर से बीमा कंपनी के वरिष्ठ मण्डलीय प्रबन्धक श्री एस.पी. पाठक का साक्ष्य शपथपत्र कागज सं.-23/1 लगायत 23/8 दाखिल हुआ, जिसके साथ 4 संलग्नक भी दाखिल किये गये, जो पत्रावली के कागज सं.-23/9 लगायत 23/12 हैं।
- किसी भी पक्ष ने लिखित बहस दाखिल नहीं की।
- हमने दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
- पक्षकारों के मध्य इस बिन्दु पर कोई विवाद नहीं है कि परिवादनी के पति स्व. श्री पदम सिंह ने वर्ष 2004 में विपक्षी से परिवाद के पैरा-1 में उल्लिखित हैल्थ इंश्योरेंस पालिसी ली थी। इस पालिसी में परिवादनी, उसकी पुत्री तथा स्वयं स्वर्गीय पदम सिंह एक निश्चित धनराशि हेतु बीमित थे। पदम सिंह का बीमा तीन लाख रूपये हेतु था। इस बिन्दु पर भी कोई विवाद नहीं है कि जब से पदम सिंह ने यह पालिसी ली थी तब से लेकर आज तक कभी विपक्षी से इस पालिसी के अधीन कोई क्लेम नहीं लिया था। बीमित पदम सिंह का मेदान्ता अस्पताल गुड़गांव में दिनांक 02-02-2016 को इलाज हेतु भर्ती होना और इलाज के दौरान दिनांक 21-02-2016 को उनकी मृत्यु हो जाना भी पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों से प्रकट है। पत्रावली में अवस्थित मेदान्ता अस्पताल के हास्पिटल बिल की नकल कागज सं.-3/16 लगायत 3/66 के अवलोकन से प्रकट है कि पदम सिंह के इलाज के सिलसिले में कुल अंकन-15,15,010/-रूपये खर्च हुए, जो परिवादनी के अनुसार उसने अपने पति पदम सिंह की मृत्यु के उपरान्त मेदान्ता अस्पताल को अदा किये क्योंकि विपक्षी ने इलाज के दौरान कैशलैश सुविधा देने से इंकार कर दिया था।
- परिवादनी के विद्वान अधिवक्ता ने बीमा पालिसी के पृष्ठ-23 (पत्रावली का कागज सं.-6/18) पर उल्लिखित पालिसी की शर्त-5.3 की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हुए कथन किया कि इस शर्त के अनुसार बीमा दावा विपक्षी के टीपीए को भेजा जाना अपेक्षित था। परिवादनी पक्ष के अनुसार यह तो सही है कि क्लेम लेने हेतु परिवादनी ने औपचारिक रूप से क्लेम फार्म नहीं भरा था किन्तु विपक्षी की ओर से प्राप्त जबाव नोटिस दिनांकित 04-5-2016 के साथ प्राप्त रक्षा टीपीए के उत्तर जो पत्रावली का कागज सं.-3/14 है, के अवलोकन से प्रकट है कि रक्षा टीपीए को परिवादनी की ओर से भेजे गये प्रपत्रों पर टीपीए ने क्लेम के रूप में विचार कर निर्णय ले लिया है। परिवादनी के विद्वान अधिवक्ता के अनुसार जब परिवादनी द्वारा मांगी गई धनराशि टीपीए द्वारा देने से इंकार कर दिया गया था तब विपक्षी के समक्ष क्लेम प्रस्तुत करने का उनके पास कोई अवसर नहीं रह गया था। हम परिवादनी पक्ष के उक्त तर्कों से सहमत हैं।
- विपक्षी की ओर से परिवादनी पक्ष को जो जबाव नोटिस कागज सं.-3/13 लगायत 3/14 प्राप्त हुआ था, उसमें टीपीए द्वारा परिवादनी के पति का इलाज मेदान्ता अस्पताल में होने से इंकार नहीं किया गया है। टीपीए ने उक्त पत्र में यह भी उल्लेख किया है कि परिवादनी पक्ष यदि चाहे तो प्रतिपूर्ति के लिए क्लेम को पुनर्विचार हेतु भेज सकते हैं। रक्षा टीपीए के पत्र कागज सं.-3/14 में ‘’पुनर्विचार’’ शब्द का प्रयोग किया जाना यह इंगित करता है कि टीपीए ने इस पत्र के भेजने से पूर्व क्लेम पर विचार कर लिया था। इन परिस्थितियों में हमारे विनम्र अभिमत में क्लेम फार्म भरने की औपचारिकतायें पूरा कराये जाने का कोई कारण दिखायी नहीं देता।
- IV(2017)सीपीजे पृष्ठ 10 ओमप्रकाश बनाम रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लि. के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह व्यवस्था दी गई है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्ताओं के लिए बनाया गया एक बेनिफिशियल लेजिस्लेशन है। जिसका उपभोक्ताओं के पक्ष में उदारवादी दृष्टिकोण लेते हुए प्रयोग किया जाना चाहिए। यह भी सुस्थापित विधि है कि इस अधिनियम के अधीन दायर मामलों के निस्तारण में तकनीकी दृष्टिकोण नहीं अपनाया जाना चाहिए।
- स्वीकृत रूप से प्रश्गनत हैल्थ पालिसी वर्ष 2004 में ली गई थी, जो निरन्तर प्रभावी रही है। पत्रावली पर कोई ऐसा साक्ष्य संकेत नहीं है कि मृतक पदम सिंह ने इस पालिसी के अधीन पूर्व में विपक्षी से कोई क्लेम लिया था। मेदान्ता अस्पताल के हास्पिटल बिल के अनुसार दिनांक 02-02-2016 से 21-02-2016 तक की अवधि में पदम सिंह के इलाज पर 15 लाख रूपये से अधिक खर्च हुए। बीमा पालिसी के अधीन पदम सिंह का हैल्थ इंश्योरेंस मात्र तीन लाख रूपये तक का था। हमारे अभिमत में तकनीकी दृष्टिकोण न अपनाते हुए और यह देखते हुए कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम एक बेनिफिशियल लेजिस्लेशन है, परिवादनी को विपक्षी से क्लेम राशि तीन लाख रूपये मय 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज वाद दायरा तिथि तावसूली दिलाया जाना और क्षतिपूर्ति की मद में दस हजार रूपये एवं परिवाद वयय की मद में अंकन-2500/-रूपये अतिरिक्त दिलाया जाना न्यायोचित होगा। तद्नुसार परिवाद निस्तारित होने योग्य है।
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परिवादनी का परिवाद विरूद्ध विपक्षी स्वीकृत किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि विपक्षी इस आदेश से एक माह के अंदर प्रश्गनत हैल्थ इंश्योरेंस की बीमा राशि अंकन-3,00,000(तीन लाख) रूपये मय 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज वाद दायरा तिथि तावसूली परिवादनी को अदा करे। विपक्षी अंकन-10,000(दस हजार) रूपये क्षतिपूर्ति एवं अंकन-2500/-रूपये वाद व्यय भी परिवादनी को अदा करे। (सत्यवीर सिंह) (पवन कुमार जैन) सदस्य अध्यक्ष आज यह निर्णय एवं आदेश हमारे द्वारा हस्ताक्षरित तथा दिनांकित होकर खुले न्यायालय में उद्घोषित किया गया। (सत्यवीर सिंह) (पवन कुमार जैन) सदस्य अध्यक्ष दिनांक: 14-12-2017 | |