जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)
प्रकरण क्रमांक- 61-2013 प्रस्तुति दिनांक-17.06.2013
समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,
महेष कुमार चांदवानी, पिता स्वर्गीय
कन्हैयालाल चांदवानी, जाति सिंधी,
मकान नंबर-137 सिंधी कालोनी,
महारानी लक्ष्मी बार्इ वार्ड, सिवनी,
तहसील व जिला सिवनी (म0प्र0)।.........................आवेदक परिवादी।
:-विरूद्ध-:
षाखा कार्यालय, यूनार्इटेड इंडिया
इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, मिषन
चर्च कम्पाउण्ड जी.एन. रोड, सिवनी
तहसील व जिला सिवनी (म0प्र0)।...................अनावेदकगण विपक्षीगण।
:-आदेश-:
(आज दिनांक-24/09/2013 को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1) परिवादी ने यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, अनावेदक बीमा कम्पनी द्वारा बीमित उसके वाहन, मिनी बस नम्बर-सी.जी.04 र्इ. 0431 के दुर्घटना में क्षतिग्रस्त होने पर पेष किये गये ओ0डी0 क्लेम को अनावेदक बीमा कम्पनी द्वारा, पालिसी की षर्तों का उल्लघंन मानते हुये, दिनांक-11.10.2012 को अस्वीकार कर दिये जाने को अनुचित व सेवा में कमी बताते हुये, क्लेम की राषि व हर्जाना दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2) यह स्वीकृत तथ्य है कि-परिवादी का उक्त वाहन, अनावेदक बीमा कम्पनी के बीमा पालिसी नंबर-1909033110पी177477488 के द्वारा, दिनांक-22.12.2010 से 21.12.2011 तक की अवधि के लिए बीमित रहा है, जो कि-उक्त बीमा पालिसी, बीमा कम्पनी की सिवनी षाखा कार्यालय द्वारा जारी की गर्इ थी। यह भी विषिश्टत: विवादित नहीं कि-दिनांक-12.02.2011 को परिवादी उक्त यात्री मिनी बस वाहन को यात्रियों को बैठाकर सिवनी से मण्डला ले जाते समय पुलिस थाना-नैनपुर के ग्राम अलीपुर के पास, वाहन अनियंत्रित होकर, दुर्घटनाग्रस्त होकर पलट गया और घटना के संबंध में पुलिस थाना-नैनपुर द्वारा अपराध क्रमांक-2811 अपराध धारा- 279, 337 भ0द0सं0 दर्ज किया जाकर, न्यायिक दण्डाधिकारी के न्यायालय में विवेचना पष्चात अंतिम प्रतिवेदन पेष किया गया, जो कि-उक्त वाहन मिनी बस के पंजीयन में वाहन की क्षमता 36़2 यात्रियों की दर्षार्इ गर्इ थी। और यह भी स्वीकृत तथ्य है कि-अनावेदक क्रमांक-1 बीमा कम्पनी षाखा के पत्र दिनांक-11.10.2012 के द्वारा परिवादी को यह सूचित किया गया कि-अन्वेशण की जांच रिपोर्ट और प्रथम सूचना रिपोर्ट के अनुसार, दुर्घटना के समय उक्त वाहन में 50 व्यकित बैठे थे, इसलिए बीमा पालिसी की षर्तों का उल्लघंन किये जाने के कारण, क्षतिपूर्ति क्लेम निरस्त किया गया है।
(3) स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि-उक्त दुर्घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट पतालू सनोडिया द्वारा जो दर्ज करार्इ गर्इ थी, उसमें दुर्घटना के समय बस में 50 यात्री रहे होना दर्षाया गया था, जो कि-उक्त रिपोर्ट अनुमानित रूप से लिखार्इ गर्इ थी, जिसे आधार मानते हुये, अनावेदक बीमा कम्पनी द्वारा, परिवादी के ओ0डी0 क्लेम को निरस्त कर दिया गया, जबकि-वास्तव में बस में करीब 27 लोग बैठे थे और अनावेदक बीमा कम्पनी द्वारा, दुर्घटना में घायल सभी यात्रियों को तृतीय पक्षकार होने के कारण, क्षतिपूर्ति राषि अदा की जा चुकी है और दुर्घटना में वाहन को हुर्इ क्षति के क्लेम बाबद, सर्वेयर ने घटना के फोटोग्राफ और दुर्घटना में घायल व्यकितयों के ब्यान आदि दर्ज कर, सर्वेयर रिपोर्ट अनावेदक को पेष की थी, अनावेदक बीमा कम्पनी द्वारा क्लेम की कार्यवाही के लिए बस के मरम्मत बाबद, बिल व पुलिस चालान की नकलें आदि परिवादी से प्राप्त की थीं, जो कि-पुलिस के अंतिम प्रतिवेदन व उसके सहपत्रों की प्रतियों से स्पश्ट है कि-वाहन में बैठे 27 यात्रियों की चोटों की मुलाहजा रिपोर्ट पेष हुर्इं थीं, जिससे वाहन में 27 यात्री ही रहे होना स्पश्ट है, जो कि-दुर्घटनाग्रस्त वाहन का परमिट, फिटनेस व बीमा पालिसी 36़2 व्यकितयों के लिए रही है, तो प्रथम सूचना रिपोर्ट में दुर्घटना के समय 50 यात्रियों की यात्रा करने की जो बात लिखार्इ गर्इ थी, वह झूठी थी, फिर भी अनावेदक बीमा कम्पनी द्वारा, परिवादी के क्लेम को उक्त आधार पर अस्वीकार किया जाना अनुचित है और परिवादी के प्रति-सेवा में कमी है, जो कि-वाहन की क्षति 1,00,000-रूपये और वाहन की नुकसानी 55,000-रूपये ब्याज सहित दिलाने की मांग की गर्इ है।
(4) अनावेदक के जवाब में स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद के तथ्यों से इंकार करते हुये, यह अतिरिक्त कथन किया गया है कि- दुर्घटनाग्रस्त वाहन को परिवादी के द्वारा व्यवसायिक उपयोग के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था, परिवादी द्वारा दुर्घटनाग्रस्त वाहन में 50 यात्रियों को बैठालकर यात्रा की जा रही थी, जो कि-बीमा षर्तों के उल्लघंन में वाहन चलाये जाने से क्लेम निरस्त किया गया है। परिवादी के प्रति-कोर्इ सेवा में कमी नहीं की गर्इ है।
(5) मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हंंै कि:-
(अ) क्या परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में है?
(ब) क्या अनावेदक द्वारा, परिवादी के वाहन क्षति
क्लेम को अस्वीकार कर दिया जाना, अनुचित
होकर, परिवादी के प्रति-की गर्इ सेवा में कमी
है?
(स) सहायता एवं व्यय?
-:सकारण निष्कर्ष:-
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(6) यह सही है कि-वाहन व्यवसायिक उपयोग में लार्इ जाने वाली बस है, लेकिन यह परिवाद, वाहन के विक्रेता या निर्माता कम्पनी के विरूद्ध नहीं है, बलिक वाहन की बीमा पालिसी जारी करने वाले बीमा कम्पनी के विरूद्ध, बीमा अनुबंध के आधार पर है और बीमा का अनुबंध व वाहन को बीमित कराया जाना कोर्इ व्यवसायिक प्रयोजन नहीं, इसलिए बीमा क्लेम की अस्वीकृति के विरूद्ध पेष यह परिवाद का परिवादी बीमाधारक होने के कारण, उपभोक्ता की श्रेणी में है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(7) परिवादी की ओर से अपने परिवाद में और अनावेदक द्वारा क्लेम निरस्ती के सूचना-पत्र प्रदर्ष सी-1 में जो पालिसी का नंबर दर्षाया गया है, वह वास्तव में प्रदर्ष सी-34 की बीमा पालिसी का नंबर नहीं है, बलिक पूर्व वर्श की पालिसी का नंबर है, जो कि-पूर्व पालिसी का नंबर प्रदर्ष सी-1 की क्लेम निरस्ती के पत्र में व परिवादी के परिवाद में त्रुटिवष लेख हो जाना भी दर्षित है।
(8) प्रदर्ष सी-34 की बीमा पालिसी की प्रति में ड्रायवर, क्लीनर सहित, वाहन की बैठक क्षमता 37 व्यकितयों का होना रजिस्ट्रेषन के आधार पर दर्षाया गया है, जबकि-प्रदर्ष सी-35 के रजिस्ट्रेषन आफ सर्टिफिकेट में उक्त यात्री बस की बैठक क्षमता 36़2 रही होना प्रकट है और इसलिए प्रदर्ष सी-38 के परिवहन प्राधिकारी का अस्थार्इ अनुज्ञा-पत्र (परमिट) में भी बैठक क्षमता 36़2 रही होना दर्षार्इ गर्इ है।
(9) परिवादी की ओर से कथित दुर्घटना बाबद पुलिस विवेचना के अंतिम प्रतिवेदन की प्रति प्रदर्ष सी-2, प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रति प्रदर्ष सी-3 और जप्ती-पत्र की प्रति प्रदर्ष सी-4 व सी-5 पेष की गर्इं हैं, जो कि-प्रदर्ष सी-3 की प्रथम सूचना रिपोर्ट में दुर्घटना के समय वाहन में पुरूश बच्चों सहित, करीब 50 व्यकित सवार रहे होना रिपोटकत्र्ता पताल उर्फ पतालू सनोडिया द्वारा लेख करार्इ जाना दर्षित है। परिवादी-पक्ष की ओर से प्रदर्ष सी-6 से लेकर सी-32 तक के दुर्घटना में घायल हुये 27 व्यकितयों की एम0एल0सी0 रिपोर्ट की प्रतियां पेष की गर्इं हैं, जो कि- प्रदर्ष सी-2 के अंतिम प्रतिवेदन में जो प्रतिवेदन के साथ संलग्न प्रपत्रों की सूची दर्षार्इ गर्इ है, उसमें भी कुल-27 मुलाहजा रिपोर्ट होना ही वर्णित है, इसके अलावा, 13 एक्सरे रिपोर्ट व 3 अस्पताली मैमो भी उल्लेख हैं, जो कि-एक्सरे रिपोर्ट व अस्पताली मैमो रिपोर्ट की प्रतियां परिवादी-पक्ष की ओर से पेष नहीं की गर्इं हैं। और अंतिम प्रतिवेदन के साथ जो संलग्न प्रपत्रों की सूची उसमें दर्षार्इ गर्इ है, उसमें प्रकट है कि-पुलिस द्वारा 26 व्यकितयों के लिये गये ब्यान भी उक्त अंतिम प्रतिवेदन के साथ में रहे हैं और ऐसे पुलिस द्वारा लिये गये 26 व्यकितयों के कथनों में-से एक भी कथन परिवादी-पक्ष की ओर से पेष नहीं किये गये हैं, जो कि-प्रस्तुत परिवाद में यह आधार बनाया गया है कि-क्योंकि मात्र 27 लोगों के ही डाक्टरी मुलाहजा रिपोर्ट अंतिम प्रतिवेदन के साथ संलग्न की गर्इ, इसलिए दुर्घटना के समय वाहन में ड्रायवर सहित, 27 व्यकित ही सवार माना-जाना चाहिये। तो परिवाद के ऐसे अभिकथन हेतु कोर्इ आधार संभव नहीं, जो कि-वाहन में सवार सभी व्यकित घायल हुये हों और वाहन में सवार सभी व्यकितयों के डाक्टरी मुलाहजा हुआ हो और सभी डाक्टरी मुलाहजा पुलिस के अंतिम प्रतिवेदन के भाग बनाये गये हों, ऐसा दर्षाये जाने बाबद परिवादी-पक्ष की ओर से कोर्इ सामग्री नहीं, बलिक प्रदर्ष सी-3 की प्रथम सूचना रिपोर्ट में ही यह वर्णित है कि-करीब 50 यात्री वाहन में सवार रहे हैं।
(10) परिवादी की ओर से जो प्रदर्ष सी-50 का रोड व्हाउचर की प्रति पेष की गर्इ है, यह परिवादी, वाहन के मालिक व कर्मचारियों के द्वारा तैयार किये जाने वाला कागज है, जो अपने लाभ के लिए कभी भी किसी भी तरह तैयार किया जा सकता है और वह सही न होना इसी तथ्य से दर्षित है कि-उसमें मात्र 23.5 यात्री टिकिट ही दिखाये गये हैं, जो घायलों की संख्या से काफी कम हैं।
(11) उक्त प्रथम सूचना रिपोर्ट के प्रभाव को षून्य दर्षाने के लिए परिवादी-पक्ष की ओर से एक षपथ-पत्र पतालू सनोडिया का इस मामले में इस आषय का पेष कर दिया गया कि-उसने रिपोर्ट लिखाते समय बस में 50 यात्री बैठे होने की बात मात्र, अनुमान के आधार पर लिखार्इ थी, जबकि-दुर्घटना में 27 व्यकितयों को चोटें आर्इं थीं और पुलिस के चालान में भी 27 व्यकितयों को ही चोटग्रस्त दर्षाये गये हैं, इसलिए उसके द्वारा अनुमान के आधार पर रिपोर्ट में लिखार्इ गर्इ 50 यात्रियों की संख्या गलत थी, जो घबराहट के कारण उसने लिखा दी थी, तो परिवादी-पक्ष की ओर से पेष किये गये ऐसे षपथ-पत्र या किसी नवीन साक्ष्य के आधार पर, परिवादी के क्लेम पर पुनर्विचार इस पीठ के द्वारा नहीं किया जाना है, बलिक इस पीठ के विचार क्षेत्र की सीमा, मात्र यह देखना है कि-अनावेदक बीमा कम्पनी द्वारा, परिवादी के क्लेम को अस्वीकार किये जाने के लिए समुचित आधार उसके समक्ष पेष सामग्री के आधार पर रहे हैं या नहीं।
(12) वास्तव में उक्त दुर्घटना के बाबद विवेचना में पुलिस ने कुल- 26 व्यकितयों के कथन अंकित कर, ऐसे कथनों को पुलिस अंतिम प्रतिवेदन का भाग बनाया था, उसमें-से एक भी व्यकित ने यदि वाहन में 36 या उससे कम व्यकित सवार रहे होने का कथन किया होता, तो परिवादी उक्त 26 पुलिस कथन में-से किसी-न-किसी कथन की प्रति अवष्य पेष करता। स्वयं रिपोर्टकत्र्ता पतालू सनोडिया के विवेचना में भी पुलिस कथन की कोर्इ प्रति पेष नहीं की गर्इ, जबकि-परिवाद में पुलिस के विवेचना को ही आधार, परिवादी की ओर से बनाया गया है, बस के कन्डेक्टर, ड्रायवर आदि के कोर्इ षपथ-पत्र भी पेष नहीं हैं, तो ऐसे में परिवादी के विरूद्ध ही यह अवधारणा होती है कि-उसके द्वारा उक्त वाहन के ड्रायवर, कन्डेक्टर के कोर्इ षपथ-पत्र पेष किये जाते और दुर्घटना के संबंध में पुलिस विवेचना के अंतिम प्रतिवेदन के साथ संलग्न पुलिस द्वारा लिये गये व्यकितयों के कथनों की प्रतियां पेष की जातीं या मजिस्ट्रेड के न्यायालय में वाहन के ड्रायवर-राधेष्याम के विरूद्ध दाणिडक मामले में हुये किसी साक्षी के कथन की प्रति पेष की जाती, तो वे परिवादी के परिवाद के वाहन में 36 से कम सवारियां रहे होने के आधार का समर्थन नहीं करतीं।
(13) दुर्घटना के समय परिवादी स्वयं वाहन में यात्रा कर रहा हो, ऐसा परिवाद में व परिवादी के षपथ-पत्र में उल्लेख नहीं है, इसलिए दुर्घटना के समय वाहन में सवार यात्रियों की संख्या के संबंध में परिवादी का षपथ-पत्र व्यर्थ होकर विचारणीय नहीं।
(14) ऐसे में जबकि-स्वयं परिवादी की ओर से पेष प्रदर्ष सी-3 की प्रथम सूचना रिपोर्ट में कि-वाहन में करीब लगभग 50 व्यकित दुर्घटना के समय सवार रहे होना दर्षित है, उक्त प्रथम सूचना रिपोर्ट के साक्ष्य को और सर्वेयर की जांच रिपोर्ट के आधार पर, अनावेदक बीमा कम्पनी द्वारा, परिवादी के क्लेम को अस्वीकार कर दिया जाना किसी भी तरह अनुचित या मनमाना रहा हो, यह परिवादी नहीं दर्षा सका है, तो अनावेदक द्वारा, परिवादी के क्लेम को अस्वीकार कर दिया जाना किसी भी तरह अनुचित या मनमाना रहा होना स्थापित नहीं पाया जाता है, इसलिए अनावेदक द्वारा, परिवादी के प्रति-कोर्इ सेवा में कमी किया जाना स्थापित नहीं पाया जाता है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(स):-
(15) विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ और 'ब के निश्कर्शों के आधार पर, परिवादी के प्रति-अनावेदक द्वारा कोर्इ सेवा में कमी नहीं की गर्इ है और परिवाद, काल्पनिक आधार बनाकर अनावष्यक पेष किया गया है। अत: पेष परिवाद निरस्त किया जाता है। परिवादी स्वयं का कार्यवाही-व्यय वहन करेगा और कार्यवाही-व्यय के रूप में अनावेदक बीमा कम्पनी को 2,000-रूपये (दो हजार रूपये) आदेष दिनांक से चार माह की अवधि के अन्दर अदा करेगा।
मैं सहमत हूँ। मेरे द्वारा लिखवाया गया।
(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत) (रवि कुमार नायक)
सदस्य अध्यक्ष
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