Rajasthan

Kota

CC/370/2008

Ajay Vashenya - Complainant(s)

Versus

United India Insurance Company Ltd. - Opp.Party(s)

R.P.Mathur

09 Oct 2015

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच, झालावाड,केम्प कोटा (राज)।
पीठासीन अधिकारी:- श्री नन्दलाल षर्मा, अध्यक्ष व श्री महावीर तंवर सदस्य।

प्रकरण संख्या-370/2008
    
अजय वाश्र्णेय पुत्र श्री राधेष्याम वाश्र्णेय
निवासी-66 बी तलवण्डी, कोटा (राज0)।
                                                              -परिवादी।
                 बनाम

यूनाईटेड इंडिया इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड मण्डल कार्यालय झालावाड रोड, कोटा।
                                                          -विपक्षी।

     परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986

उपस्थिति-

1    श्री आर0पी0 माथुर,अधिवक्ता ओर से परिवादी।
2    श्री भीमसिंह यादव, अधिवक्ता ओर से विपक्षी।

               निर्णय             दिनांक 09.10.2015 
 
 प्रस्तुत परिवाद जिला मंच,कोटा में पेष हुआ तथा निस्तारण हेतु जिला मंच झालावाड केम्प कोटा को प्राप्त हुआ है।

प्रस्तुत परिवाद ब्च् ।बज 1986 की धारा 12 के तहत दिनांक 14-03-2007 को इस आषय का पेष किया है कि परिवादी ट्रक नंबर त्श्र.14.ळ.5979 का मालिक व रजिस्टर्ड ओनर है। उक्त ट्रक विपक्षी के यहाँ जरिये पाॅलिसी 31/03/2120 दिनंाक 23-08-2003 से दिनांक 22-08-2004 तक की अवधि के लिए बीमित करवाया था। चूंकि उक्त ट्रक के रजिस्टेªषन की प्रक्रिया लम्बित थी जिसके कारण वाहन का बीमा पूर्व मालिक रामलाल जाट के नाम ही किया गया था। उक्त वाहन का रजिस्टेªषन हस्तान्तरण दिनंाक 10-10-2003 को परिवादी के नाम किया गया और रजिस्टेªषन में परिवादी का नाम दर्ज होने की सूचना विपक्षी बीमा कम्पनी को प्रेशित कर दी थी।   वाहन का बीमा प्रीमियम परिवादी ने जमा किया था लेकिन रजिस्टेªषन हस्तान्तरण       प्रक्रिया  लम्बित थी  और  विपक्षी  के  आष्वासन  पर कि  पाॅलिसी  आपके  नाम 
                         2
ट्रान्सफर कर देंगे और वाहन को कोई क्षति पहुँचती है तो उसके लिए पूर्ण जिम्मेदार रहेंगे लेकिन विपक्षी ने सूचना प्राप्त होने पर परिवादी का पाॅलिसी में नाम दर्ज नहीं किया गया। दिनंाक 01-05-2004 को ट्रक दुर्घटनाग्रस्त होकर क्षतिग्रस्त हो गया जिसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट पुलिस थाना कवाई जिला बारां में दर्ज करायी। विपक्षी ने क्षतिग्रस्त वाहन का सर्वे कराया और क्षति का आंकलन 1,30,000/-रूपये का किया। लेकिन दिनंाक 11-03-2005 को जरिये पत्र 738 परिवादी का क्लेम खारिज कर दिया और सेवामें कमी की है। परिवादी ने बीमित वाहन का बीमा क्लेम मय क्षतिपूर्ति के दिलाये जाने का अनुतोश चाहा है। 

विपक्षी ने अपने जवाब में वाहन का बीमा राम लाल जाट के नाम होना तथा वाहन का अन्तरण परिवादी के पक्ष में दिनंाक 10-10-2003 को होना स्वीकार किया है। षेश अभिकथनों को अस्वीकार कर स्पश्ट किया है कि परिवादी के नाम पाॅलिसी में किसी प्रकार का हित विद्यमान नहीं था। जवाब के विषेश कथनों में परिवादी ने दुर्घटना बाबत् दिनंाक 12-05-2005 को सूचना दी। इसके पूर्व 01-05-2004 को दी गई सूचना सूचना के आधार पर विपक्षी ने परिमापक नियुक्त किया और अन्तिम परिमापन हेतु परिमापक नियुक्त किया जिसने पाॅलिसी के अधीन दावा राषि 45,357/-रूपये आंकलित की लेकिन मोटर यान अधिनियम की धारा 157 (2) के अनुसार परिवादी के पक्ष में बीमाहित न होने के आधार पर उसका दावा अदाएगी योग्य नहीं पाया गया और परिवादी का दावा अदाएगी योग्य नहीं पाये जाने पर परिवादी को सूचित कर सभी अनुबन्धीय दायित्व पूर्ण कर दिये हैं। विपक्षी ने कोई सेवामें कमी नहीं की है। परिवादी कोई अनुतोश प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। परिवाद मय हरजाने के निरस्त किये जाने की प्रार्थना की है। 

    परिवाद के समर्थन में परिवादी ने स्वयं का षपथ पत्र तथा प्रलेखीय साक्ष्य में म्ग.1 लगायत म्ग.5 दस्तावेज प्रस्तुत किये हैं तथा विपक्षी की ओर से जवाब के समर्थन में श्री जे0के0 जैर्न, प्रबन्धक, का षपथ पत्र प्रस्तुत किया हंै।    उपरोक्त अभिवचनों के आधार पर बिन्दुवार निर्णय निम्न प्रकार है:-


                               3

1    क्या परिवादी विपक्षी का उपभोक्ता है ?

     परिवादी का परिवाद,षपथ-पत्र तथा प्रस्तुत दस्तावेजात के आधार पर परिवादी विपक्षी का उपभोक्ता पाया जाता है। 
2    सेवादोश ?

     उभयपक्ष की बहस सुनी गई। पत्रावली का अवलोकन किया तो स्पश्ट हुआ कि प्रस्तुत प्रकरण में ट्रक नंबर त्श्र.14.ळ.5979 का मालिक व रजिस्टर्ड ओनर परिवादी है और यह ट्रक विपक्षी के पास दिनंाक 23-08-2003 से 22-08-2004 तक बीमित था और ट्रक दिनंाक 01-05-2004 को दुर्घटनाग्रस्त हो गया जिसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट थाना कवाई में दिनंाक 01-05-2004 को दर्ज करवा दी तथा बीमा कम्पनी को भी सूचना दे दी गई थी लेकिन विपक्षी ने क्लेम खारिज कर दिया।
    पत्रावली पर उपलब्ध दस्तावेज से स्पश्ट है कि यह ट्रक राम लाल जाट के नाम रजिस्टर्ड था, तत्पष्चात् यह दौलत राम के नाम ट्रान्सफर हुआ और दिनंाक 10-10-2003 को परिवादी अजय वाश्र्णेय के नाम ट्रान्सफर हुआ और एक्सिडेण्ट दिनंाक 01-05-2004 को हुआ। अब यह प्रष्न आता है कि आया परिवादी का बीमित लाभ उत्पन्न हुआ या नहीं, इस संबंध में परिवादी ने न्यायिक दृश्टान्त ब्च्श्र.289 ;छब्द्ध 2007 ैभ्त्प् छ।त्।ल्।छ टध्ै छम्ॅ  प्छक्प्। प्छैन्त्।छब्म् ब्व्ण्पेष किया है। इस न्यायिक दृश्टान्त में सिद्धान्त प्रतिपादित किया है कि पाॅलिसी चेंज कराने के लिए परिवादी को सर्टिफिकेट सरेण्डर करना पड़ेगा ओर कम्पनी 15/-रूपये फीस लेकर नया सर्टिफिकेट जारी कर देगी परन्तु प्रस्तुत प्रकरण में परिवादी ने पाॅलिसी सरेण्डर नहीं की और नयी पाॅलिसी जारी नहीं की है,इस न्यायिक दृश्टान्त से प्रकाष प्राप्त नहीं होता है। दूसरा न्यायिक दृश्टान्त ।ब्श्र 2005 च्।ळम् 2009 त्।डम्ैभ् ब्भ्।छक् टध्ै छम्ॅ  प्छक्प्। प्छैन्त्।छब्म् ब्व्ण्इस प्रकरण में यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया है कि थर्ड पाटी क्षति के सम्बन्ध में पाॅलिसी आॅटोमेटिक चेंज हो जायेगी लेकिन विपक्षी द्वारा प्रस्तुत न्यायिक दृश्टान्त क्छश्र.2007 च्।ळम् 232;ैब्द्ध छ।ज्प्व्छ।स्  प्छैन्त्।छब्म् ब्व्ण्टध्ै स्।ग्डप्छ।त्।ल्।छ में सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्धारित किया है कि थर्ड पार्टी के बेनिफिट के लिए पाॅलिसी स्वतः चेंज हो जायेगी लेकिन 
                                   4

मालिक और व्हीकल के सम्बन्ध में पाॅलिसी स्वतः चेंज नहीं होगी इसलिए प्रस्तुत प्रकरण में परिवादी द्वारा प्रस्तुत न्यायिक दृश्टान्त से प्रकाष प्राप्त नहीं होता है।
    इस प्रकार उपरोक्त विवेचन और विष्लेशण से स्पश्ट है कि यद्यपि परिवादी ने ट्रक का ट्रान्सफर अपने पक्ष में करवा लिया था लेकिन पाॅलिसी ट्रान्सफर नहीं होने के कारण परिवादी का बीमित हित उत्पन्न नहीं हुआ और आॅटोमेटिक पाॅलिसी चेंज नहीं होती है तब तक कि परिवादी द्वारा प्रस्तुत न्यायिक दृश्टान्त के अनुसार जब तक परिवादी पाॅलिसी सरेण्डर नहीं करे, 15/-रूपये की फीस जमा नहीं करावे और नयी पाॅलिसी परिवादी के नाम जारी नहीं हो तब तक परिवादी का बीमित लाभ उत्पन्न होना नहीं माना जा सकता है। परिणामस्वरूप परिवादी द्वारा प्रस्तुत न्यायिक दृश्टान्तों से प्रस्तुत प्रकरण में कोई प्रकाष प्राप्त नहीं होता है ओर विपक्षी द्वारा प्रस्तुत न्यायिक दृश्टान्त से इस बिन्दु पर प्रकाष प्राप्त होता है। परिणामतः विपक्षी का कोई सेवादोश प्रमाणित नहीं पाया जाता है। 
3    अनुतोश ?

      परिवाद विरूद्ध विपक्षी खारिज योग्य पाया जाता है।
                               आदेष   
       परिणामतः परिवाद परिवादी श्री अजय वाश्र्णेय खारिज किया जाता है। प्रकरण के तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृश्टिगत रखते हुए उभयपक्ष अपना अपना खर्चा वहन करेंगे।

        (महावीर तंवर)                               (नन्द लाल षर्मा)  
           सदस्य                                        अध्यक्ष

 


       निर्णय आज दिनंाक 09.10.2015 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया। 
        (महावीर तंवर)                               (नन्द लाल षर्मा)  
           सदस्य                                        अध्यक्ष

 

                      
 

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