M/s Lohia Auto Industries filed a consumer case on 13 Apr 2018 against United India Insurance Co. LTD. in the Muradabad-II Consumer Court. The case no is CC/73/2017 and the judgment uploaded on 01 May 2018.
Uttar Pradesh
Muradabad-II
CC/73/2017
M/s Lohia Auto Industries - Complainant(s)
Versus
United India Insurance Co. LTD. - Opp.Party(s)
13 Apr 2018
ORDER
न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-द्वितीय, मुरादाबाद
परिवाद संख्या- 73/2017
मैसर्स लोहिया आटो इन्डस्ट्रीज एच-193 सैक्टर 63 नोएडा द्वारा अधिकृत अधिकारी रणधीर मिश्रा। परिवादी
बनाम
1-यूनाईटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लि. द्वारा सीनियर ब्रांच मैनेजर ए-62 गांधी नगर मुरादाबाद/
2-यूनाईटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लि. मण्डलीय कार्यालय निकट कंपनी बाग़ थाना सिविल लाइन्स मुरादाबाद द्वारा डिवीजनल मैनेजर। विपक्षीगण
वाद दायरा तिथि: 30-06-2017 निर्णय तिथि: 13.04.2018
उपस्थिति
श्री पवन कुमार जैन, अध्यक्ष
श्री सत्यवीर सिंह, सदस्य
(श्री पवन कुमार जैन, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित)
निर्णय
इस परिवाद के माध्यम से परिवादी ने यह अनुतोष मांगा है कि विपक्षीगण से उसे उसकी चोरी गई रकम अंकन-4,50,000/-रूपये, क्षतिपूर्ति अंकन-25,000/-रूपये एवं परिवाद व्यय अंकन-7500/-रूपये इस प्रकार कुल अंकन-4,82,500/-रूपये 15 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित दिलाये जायें।
संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी ने दिनांक 31-3-2014 को विपक्षीगण से एक मनी इंश्योरेंस पालिसी ली थी। पालिसी दिनांक 30-3-2015 तक के लिए प्रभावी थी। पालिसी का नंबर-25070/48/07/00001170 है। दिनांक 11-9-2014 को जब फर्म कार्य समाप्ति पर बन्द की गई तो एकाउन्ट सेक्शन में अंकन-5,61,323/-रूपये रखे हुए थे। दिनांक 12-9-2014 को प्रात:काल जब आफिस खुला तो पाया गया कि एकाउन्ट सेक्शन का दरवाजा तोड़कर किसी ने अंकन-4,50,000/-रूपये चोरी कर लिये हैं। उसी दिन परिवादी द्वारा चोरी की एफआईआर पुलिस में लिखायी गई। विपक्षीगण को भी टेलीफोन द्वारा चोरी होने की सूचना दे दी गई। दिनांक 16-9-2014 को विपक्षीगण के सर्वेयर को लिखित तौर पर चोरी की बावत सूचित किया गया। सर्वेयर ने मौके का सर्वे किया और फोटोग्राफ भी लिये। जो-जो प्रपत्र सर्वेयर ने मांगे, वे सर्वेयर को उपलब्ध करा दिये गये। बार-बार अनुरोध करने पर भी परिवादी को क्लेम का भुगतान नहीं किया गया और शीघ्र भुगतान करने का झूठा आश्वासन दिया जाता रहा। मजबूर होकर परिवादी द्वारा विपक्षीगण को कानूनी नोटिस भिजवाया गया, इसके बावजूद भी क्लेम का भुगतान विपक्षीगण ने नहीं किया। उक्त कथनों के आधार पर यह अभिकथित करते हुए कि विपक्षीगण के कृत्य सेवा में कमी हैं, परिवादी द्वारा परिवाद में अनुरोधित अनुतोष दिलाये जाने की प्रार्थना की गई।
परिवाद कथनों के समर्थन में फर्म के अधिकृत अधिकारी श्री रणधीर मिश्रा ने अपना शपथपत्र कागज सं.-4/1 लगायत 4/2 दाखिल किया, जिसके साथ बीमा सर्टिफिकेट, दिनांक 16-9-2014 को फर्म के अधिकृत प्रतिनिधि द्वारा सर्वेयर को दिये गये स्टेटमेंट, पुलिस में दर्ज करायी गई एफआईआर, चोरी के इस मामले में अभियुक्त के विरूद्ध विवेचक द्वारा न्यायालय में प्रेषित चार्जशीट, दिनांक 01-9-2014 से 12-9-2014 तक की अवधि के फर्म के एकाउन्ट स्टेटमेंट, दिनांक 01-9-2014 से 11-9-2014 तक की अवधि की फर्म की कैशबुक, बीमा कंपनी के सर्वेयर द्वारा दिनांक 10-3-2015 को अभिलिखित किये गये परिवादी के प्रतिनिधि के कथन तथा विपक्षी को भिजवाये गये कानूनी नोटिस दिनांकित 30-3-2017 की नकलों को दाखिल किया गया है। ये प्रपत्र पत्रावली के कागज सं.-5/1 लगायत 5/14 हैं।
विपक्षीगण की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं.-12/1 लगायत 12/8 दाखिल किया गया, जिसमें यह तो स्वीकार किया गया है कि परिवादी ने परिवाद के पैरा-1 में उल्लिखित मनी इंश्योरेंस पालिसी उत्तरदाता विपक्षी से ले रखी थी किन्तु शेष परिवाद कथनों से इंकार किया गया। विशेष कथनों में कहा गया कि परिवादी को कोई वाद कारण उत्पन्न नहीं हुआ, परिवादी फर्म नोएडा में स्थित है, प्रथम सूचना रिपोर्ट भी नोएडा के सैक्टर 58 में दर्ज किया जाना बताया गया है, अतएव परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार जिला उपभोक्ता फोरम नोएडा को है, इस फोरम को सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। अग्रेत्तर कथन किया गया कि चोरी की कथित घटना दिनांक 12-9-2014 की बतायी गई है। दिनांक 03-4-2015 को परिवादी को आवश्यक प्रपत्र उपलब्ध कराने हेतु पत्र भेजा गया था किन्तु परिवादी ने प्रपत्र उपलब्ध नहीं कराये। अतएव परिवादी की क्लेम पत्रावली बन्द कर दी गई। परिवादी उक्त तिथि से दो वर्ष के भीतर परिवाद योजित कर सकता था। परिवाद दो वर्ष की अवधि बीतने के बाद योजित किया गया है। अतएव परिवाद कालबाधित है। प्रथम सूचना रिपोर्ट थाने में चार दिन बाद दर्ज हुई है। कथित चोरी संदिग्ध है। बीमा कंपनी को तुरन्त चोरी की सूचना नहीं दी गई। इस प्रकार पालिसी की शर्तों का उल्लंघन किया गया है। चोरी के इस मामले में पुलिस ने उमेश कुमार नाम के अभियुक्त के विरूद्ध न्यायालय में चार्जशीट दाखिल की है। उससे चोरी की कुछ रकम भी बरामद होना बताया गया है। परिवादी ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि उसने अभियुक्त से बरामद होना बतायी गई धनराशि को क्लेम करने हेतु न्यायालय के समक्ष आवेदन किया है अथवा नहीं। विपक्षीगण की ओर से यह भी कथन किया गया कि अभियुक्त उमेश कुमार के विरूद्ध फौजदारी का मामला विचाराधीन है अथवा निर्णीत हो गया है, इस संदर्भ में परिवाद पत्र में कोई उल्लेख नहीं किया गया है। विवेचनाधिकारी के समक्ष परिवादी तथा गवाहों ने चोरी के संदर्भ में क्या बयान दिये थे, इसका कोई साक्ष्य परिवादी ने दाखिल नहीं किया। परिवादी से ई-मेल दिनांकित 07-10-2014, 03-01-2015 तथा 11-02-2015 द्वारा जिन प्रपत्रों की मांग की गई थी, वे प्रपत्र परिवादी ने उपलब्ध नहीं कराये। दिनांक 21-3-2015 को पुन: पंजीकृत डाक से परिवादी को प्रपत्र उपलब्ध कराने हेतु पत्र भेजा गया किन्तु परिवादी ने उसका भी अनुपालन नहीं किया। अन्तत: दिनांक 03-4-2015 को विपक्षी विपक्षी ने पुन: परिवादी से प्रपत्रों की मांग की परन्तु परिवादी ने प्रपत्र उपलब्ध नहीं कराये। मजबूरन विपक्षी ने परिवादी की क्लेम पत्रावली बन्द कर दी। यह भी कहा गया है कि पक्षकारों के मध्य विद्वमान विवाद के निस्तारण हेतु दोनों पक्षों के गवाहों से प्रति परीक्षा भी आवश्यक है, इस दृष्टिकोण से भी परिवाद फोरम के समक्ष पोषणीय नहीं है। उक्त कथनों के आधार पर और यह कहते हुए कि विपक्षीगण ने परिवादी को सेवा प्रदान करने में कोई कमी नहीं की, परिवाद सव्यय खारिज किये जाने की प्रार्थना की।
प्रतिवाद पत्र के साथ विपक्षीगण की ओर से परिवादी को भेजा जाना बताये गये पत्र दिनांकित 03-4-2015 तथा सर्वेयर द्वारा घटना स्थल के खींचे गये फोटोग्राफ्स की छायाप्रतियों और पत्र दिनांकित 21-3-2015 की नकलों को बतौर संलग्नक दाखिल किया गया है। ये प्रपत्र पत्रावली के कागज सं.-12/9 लगायत 12/14 हैं।
परिवादी पक्ष की ओर से फर्म के अधिकृत अधिकारी श्री रणधीर मिश्रा ने अपना साक्ष्य शपथपत्र कागज सं.-13/1 लगायत 13/4 दाखिल किया।
विपक्षीगण की ओर से बीमा कंपनी के वरिष्ठ मण्डलीय प्रबन्धक श्री एसपी पाठक ने अपना साक्ष्य शपथपत्र कागज सं.-17/1 लगायत 17/8 दाखिल किया। जिसमें उन्होंने प्रतिवाद पत्र में उल्लिखित कथनों को सशपथ दोहराया। विपक्षीगण ने सर्वेयर द्वारा परिवादी को भेजे गये पत्र दिनांकित 03-4-2015, पत्र दिनांकित 21-3-2015, परिवादी फर्म की ओर से विपक्षीगण को चोरी के संबंध में दिनांक 16-9-2014 को प्राप्त कराये गये इंटीमेशन लेटर मूल रूप में तथा सर्वेयर द्वारा जांच के दौरान खींचे गये घटना स्थल के फोटोग्राफ्स और बीमा पालिसी की नकलों को दाखिल किया गया है। ये प्रपत्र पत्रावली के कागज सं.-19/2 लगायत 19/12 हैं।
हमने दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि दिनांक 11/12-9-2014 की मध्य रात्रि में फर्म में हुई चोरी की लिखित सूचना बिना किसी देरी के थाना सैक्टर-58, नोएडा में दिनांक 12-9-2014 को दे दी गई थी और टेलीफोन द्वारा चोरी की सूचना बीमा कंपनी को भी उपलब्ध करा दी गई थी। इस प्रकार किसी भी स्तर पर परिवादी की ओर से कोई देरी नहीं की गई। उनका तर्क है कि जो प्रपत्र और सूचना विपक्षीगण की ओर से मांगी गई थी, वे यथासंभव परिवादी पक्ष द्वारा उन्हें उपलब्ध करा दी गई थीं, इसके बावजूद परिवादी का बीमा दावा विपक्षीगण ने निस्तारित नहीं किया और परिवादी की क्लेम पत्रावली क्लोज कर दी गई, आधार यह लिया गया कि परिवादी ने प्रपत्र और अपेक्षित सूचना बीमा कंपनी को उपलब्ध नहीं करायी।
प्रतिउत्तर में विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने विपक्षीगण की ओर से दाखिल पत्र दिनांकित 03-4-2015 और 21-3-2015 (पत्रावली के कागज सं.-19/2 लगायत 19/3 तथा 19/6 लगायत 19/7) की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हुए कथन किया कि इन पत्रों में उल्लिखित सूचना एवं प्रपत्र परिवादी ने चूंकि बीमा कंपनी को उपलब्ध नहीं कराये गये, अतएव बीमा कंपनी को क्लेम पत्रावली क्लोज करने के लिए बाध्य होना पड़ा, इसमें विपक्षीगण का कोई दोष नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि इस फोरम को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है, परिवाद कालबाधित है, थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट देरी से लिखायी गई और बीमा कंपनी को चोरी की सूचना देने में विलम्ब किया गया। उनका यह भी तर्क है कि परिवाद में उल्लिखित अभिकथित चोरी संदिग्ध है और विद्यमान विवाद के विनिश्चय हेतु गवाहों से प्रति परीक्षा आवश्यक होगी, ऐसी दशा में फोरम के समक्ष परिवाद पोषणीय नहीं है। उन्होंने यह भी कथन किया कि चोरी के संदर्भ में फौजदारी न्यायालय में अभियुक्त के विरूद्ध विचारण लंबित है। इस दृष्टिकोण से भी परिवाद खारिज किया जाना चाहिए।
दोनों पक्षों की और से प्रस्तुत तर्कों के प्रकाश में हमने पत्रावली पर उपलब्ध प्रपत्रों एवं साक्ष्य सामग्री का तथ्यात्मक विश्लेषण और विधिक मूल्यांकन किया। हम विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत तर्कों से सहमत नहीं हैं।
यह सही है कि परिवादी फर्म नोएडा में स्थित है और चोरी की एफआईआर भी थाना सैक्टर-58, नोएडा में दर्ज करायी गई है किन्तु प्रश्नगत बीमा पालिसी परिवादी ने विपक्षी-1 से ली थी और विपक्षी-1 का कार्यालय मुरादाबाद में स्थित है, ऐसी दशा में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,1986 की धारा-11(2)(ए) की व्यवस्था अनुसार इस फोरम को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार है।
स्वीकृत रूप से परिवादी का बीमा दावा विपक्षीगण के समक्ष लंबित है। विपक्षीगण ने स्वयं यह कहा है कि परिवादी ने अपेक्षानुसार प्रपत्र एवं सूचनाएं चूंकि उपलब्ध नहीं करायी थीं, अतएव उन्होंने परिवादी की क्लेम पत्रावली क्लोज कर दी है।
IV(2013) सी.पी.जे. पृष्ठ-607 (एन.सी.), देवेन्द्र सिंह बनाम ओरियन्टल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड के मामले में मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, नई दिल्ली द्वारा निर्णय के पैरा सं0-9 में निम्न व्यवस्था दी गई है:-
‘’ ……… Admittedly this is a case of Insrance claim which was still under consideration of the Insurance Company. Therefore, till the Insurance Company had taken the decision on the complaint, the cause of action for filing the complaint continued. Therefore, in our considered view the State Commission has committed a gave error in holding that the complaint was barred by limitation.‘’
देवेन्द्र सिंह की उपरोक्त निर्णयज विधि में दी गई व्यवस्था के दृष्टिगत परिवाद कालबाधित नहीं है।
अभिकथित चोरी दिनांक 11/12-9-2014 की मध्य रात्रि में होना बतायी गई है। प्रथम सूचना रिपोर्ट की नकल पत्रावली का कागज सं.-5/6 है। इसके अवलोकन से प्रकट है कि परिवादी के कैशियर श्री नितिन कुमार ने चोरी की घटना की तहरीरी रिपोर्ट थाना सैक्टर-58, नोएडा में दिनांक 12-9-2014 को दे दी थी। पुलिस कर्मी ने उक्त तहरीरी रिपोर्ट के आधार पर प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनांक 16-9-2014 को दर्ज की। प्रकटत: एफआईआर दर्ज होने में परिवादी पक्ष की ओर से कोई देरी नहीं हुई। परिवादी के साक्षी श्री रणधीर मिश्रा ने अपने साक्ष्य शपथपत्र के पैरा-6 में यह स्पष्ट कथन किया है कि चोरी की सूचना बीमा कंपनी को टेलीफोन द्वारा तत्काल दे दी गई थी अन्यथा भी पत्रावली में अवस्थित पत्र कागज सं.-19/8 से प्रकट है कि इस चोरी की लिखित सूचना बीमा कंपनी को दिनांक 16-9-2014 को प्राप्त हो गई थी।
IV(2017) सीपीजे पृष्ठ-10(एससी), ओम प्रकाश बनाम रिलायन्स जनरल इंश्योरेंस कंपनी की निर्णयज विधि में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई व्यवस्था के अनुसार यदि चोरी अन्यथा प्रमाणित है तो देरी के आधार पर परिवादी का क्लेम अस्वीकृत नहीं किया जाना चाहिए। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय के पैरा-11 में यह संवीक्षण किया है कि वाहन चोरी के मामले में वाहन स्वामी से यह अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए कि वह अपने चोरी गये वाहन को तलाश करने के बजाय पहले सीधा जाकर बीमा कंपनी को सूचना दे, स्वाभाविक रूप से पहले वह अपने वाहन को तलाश करेगा। ओम प्रकाश की उक्त रूलिंग में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह व्यवस्था दी गई है कि-
“The condition regarding the delay shall not be a shelter to repudiate the insurance claims which have been otherwise proved to be genuine. It needs no emphasis that the Consumer Protection Act aims at providing better protection of the interest of consumers. It is a beneficial legislation that deserves liberal construction. This laudable object should not be forgotten while considering the claims made under the Act”.
यदि तर्क के आधार पर यह मान भी लिया जाये कि बीमा कंपनी को इस चोरी की लिखित सूचना 4 दिन बाद मिली थी तब भी ओमप्रकाश की उपरोक्त निर्णयज विधि में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई विधि व्यवस्था के दृष्टिगत बीमा कंपनी को सूचना में देरी के आधार पर परिवादी का बीमा क्लेम लंबित नहीं रखना चाहिए था। माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग, राजस्थान द्वारा I(2008) सीपीजे पृष्ठ 47 अपर्णा चौधरी व एक अन्य बनाम नारायना बिल्डर्स एण्ड डेवलपर्स की निर्णयज विधि में यह अवधारित किया गया है कि फौजदारी कार्यवाही लंबित होने के बावजूद भी फोरम के समक्ष परिवाद पोषणीय है। इस विधि व्यवस्था के विद्यमान रहते विपक्षीगण की ओर से दिया गया यह तर्क कि प्रश्नगत चोरी के मामले में पकड़े गये अभियुक्त के विरूद्ध फौजदारी न्यायालय में चूंकि ट्रायल विचाराधीन है, अतएव फोरम के समक्ष परिवाद पोषणीय नहीं होगा, विपक्षीगण के लिए सहायक नहीं है।
चोरी के इस मामले में पुलिस ने विवेचना के उपरान्त उमेश कुमार नाम के अभियुक्त के विरूद्ध धारा-457/380/411 आईपीसी के अधीन नोएडा के न्यायालय में आरोप पत्र प्रस्तुत किया था, जिसके आधार पर अभियुक्त के विरूद्ध विचारण न्यायालय में लंबित है। जब पुलिस ने चोरी के इस मामले में विवेचना के आधार पर अभियुक्त के विरूद्ध न्यायालय में आरोप पत्र प्रस्तुत कर दिया है और यहां तक कि उस अभियुक्त से अभिकथित चोरी की कुछ धनराशि बरामद होना भी पुलिस द्वारा बताया गया है, ऐसी दशा में विपक्षीगण का यह कथन स्वीकार योग्य नहीं है कि परिवाद में उल्लिखित चोरी की घटना संदिग्ध है।
पत्रावली पर पर्याप्त साक्ष्य सामग्री उपलब्ध है, जिसके आधार पर मामले का गुणावगुण के आधार पर सकारण निस्तारण किया जा सकता है। अतएव यह प्रकल्पित करना कि मामले के निस्तारण हेतु गवाहों से प्रति परीक्षा आवश्यक होगी, आधारहीन दिखायी देता है। तत्संबंधी विपक्षीगण के तर्क स्वीकार किये जाने योग्य नहीं हैं।
प्रश्नगत बीमा पालिसी की नकल पत्रावली का कागज सं.-19/9 लगायत 19/12 है। पालिसी के अवलोकन से स्पष्ट है कि अभिकथित चोरी बीमा पालिसी से कवर्ड है। विपक्षीगण के सर्वेयर द्वारा जांच के समय घटना स्थल के फोटो खींचे गये थे, जो पत्रावली के कागज सं.-19/4 व 19/5 हैं, ये फोटोग्राफ दिनांक 16-9-2014 को खींचे गये थे। इन फोटोग्राफ्स में परिवाद में उल्लिखित चोरी की घटना होना स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है।
विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने परिवादी को दिनांक 03-4-2015 को भेजे गये पत्र कागज सं.-19/2 लगायत 19/3 की और हमारा ध्यान आकर्षित किया और कहा कि परिवादी ने इस पत्र में उल्लिखित प्रपत्र उपलब्ध नहीं कराये और इस पत्र में की गई अपेक्षाएं पूरी नहीं कीं। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने प्रतिवाद किया और कहा कि पत्र दिनांकित 03-4-2015 की यथासंभव अनुपालना उन्होंने कर दी थी। अब देखना यह है कि क्या परिवादी पक्ष के उक्त कथन में बल है अथवा नहीं। पत्र दिनांकित 03-4-2015 द्वारा परिवादी से मांग की गई थी कि वे पुलिस द्वारा की गई विवेचना की अंतिम रिपोर्ट, न्यूज पेपर की कटिंग, सीसीटीवी फुटेज, कैश बुक की एन्ट्री जिसमें चोरी गई धनराशि का उल्लेख हो, चोरी गये रूपये किस-किस डिनोमिनेशन के थे, का विवरण, पुलिस ने क्या कोई धनराशि बरामद की, यदि हां तो उसका विवरण, दिनांक 01-9-2014 से चोरी की तिथि तक के बैंक स्टेटमेंट की कापी, फाईनल क्लेम बिल और क्लेम फार्म उपलब्ध कराया जाये।
पुलिस द्वारा विवेचना के उपरान्त अभियुक्त के विरूद्ध न्यायालय में चार्जशीट प्रस्तुत की जा चुकी है, जिसकी नकल पत्रावली पर उपलब्ध है, विपक्षीगण के सर्वेयर द्वारा हस्ताक्षरित इंश्योरेंस क्लेम फार्म की नकल कागज सं.-5/11 में स्पष्ट लिखा है कि पुलिस ने अभियुक्त से अंकन-32630/-रूपये बरामद किये थे। बैंक एकाउन्ट स्टेटमेंट की नकल कागज सं.-5/9 तथा कैशबुक की नकल कागज सं.-5/10 पत्रावली पर उपलब्ध हैं, जो परिवाद योजित किये जाते समय ही परिवादी ने दाखिल कर दिये थे। बैंक एकाउन्ट स्टेटमेंट की नकल के अवलोकन से प्रकट है कि चोरी गये रूपयों में से चार लाख रूपये परिवादी ने दिनांक 10-9-2014 को बैंक से निकाले थे। फाईनल क्लेम बिल और क्लेम फार्म पत्रावली पर उपलब्ध है, जिसकी नकल कागज सं.-5/11 है। इस प्रकार विपक्षीगण के पत्र दिनांकित 03-4-2015 में उल्लिखित बिन्दु सं.-3, 4 एवं बिन्दु सं.-7 के अतिरिक्त शेष बिन्दुओं में की गई अपेक्षाएं पहले से ही पूर्ण हैं। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का कथन है कि अख़बार की कोई कटिंग उनके पास नहीं है, बैंक से पहले दिन चूंकि चोरी गई धनराशि निकाली गई थी, उक्त धनराशि में कितने नोट किस-किस डिनोमिनेशन के थे, यह परिवादी ने नोट नहीं किया। जहां तक सीसीटीवी फुटेज का प्रश्न है, जब पुलिस के विवेचक ने चोरी की घटना विवेचना के दौरान सही होनी पायी और अभियुक्त के विरूद्ध आरोप पत्र न्यायालय में प्रेषित कर दिया, इसके अतिरिक्त बीमा कंपनी के सर्वेयर ने घटना स्थल के जो फोटोग्राफ लिये थे, उनसे भी परिवाद में उल्लिखित चोरी की घटना की पुष्टि हुई है, ऐसी दशा में सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध कराने हेतु विपक्षीगण द्वारा बल दिये जाने का हमे कोई औचित्य दिखायी नहीं देता। उपरोक्तानुसार विपक्षीगण के पत्र दिनांकित 03-4-2015 में की गई अपेक्षाओं की पूर्ति/संतुष्टि हो चुकी है। अतएव परिवादी का क्लेम लंबित रखने का अब कोई औचित्य दिखायी नहीं देता।
उपरोक्त विवेचन के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि परिवादी के चोरी गये अंकन-4,50,000/-रूपये परिवादी को परिवाद योजित किये जाने की तिथि से वास्तविक वसूली की तिथि तक की अवधि हेतु 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित विपक्षीगण से दिलाया जाना न्यायोचित दिखायी देता है। विपक्षीगण से परिवादी परिवाद व्यय की मद में अंकन-2500/-रूपये अतिरिक्त पाने का भी अधिकारी होगा। तद्नुसार परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य है।
परिवाद योजित किये जाने की तिथि से वास्तविक वसूली की तिथि तक की अवधि हेतु 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित अंकन-4,50,000(चार लाख पचास हजार)रूपये की वसूली हेतु ये परिवाद परिवादी के पक्ष में विपक्षीगण के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण से परिवादी परिवाद व्यय की मद में अंकन-2500/-रूपये अतिरिक्त पाने का भी अधिकारी होगा। इस आदेशानुसार धनराशि प्राप्त करने से पूर्व परिवादी को इस आशय की अण्डर टेकिंग विपक्षी-1 को देनी होगी कि चोरी के इस मामले में न्यायालय में लंबित विचारण में यदि अभियुक्त से बरामद होना बताये गये अंकन-32,630/-रूपये परिवादी के पक्ष में निर्मुक्त होते हैं तो उक्त अंकन-32,630/-रूपये परिवादी विपक्षी-1 को वापस करेगा।
(सत्यवीर सिंह)(पवन कुमार जैन)
अध्यक्ष
आज यह निर्णय एवं आदेश हमारे द्वारा हस्ताक्षरित तथा दिनांकित होकर
परिवाद सं.-73/2017
खुले न्यायालय में उद्घोषित किया गया।
(सत्यवीर सिंह)(पवन कुमार जैन)
अध्यक्ष
दिनांक: 13-04-2018
परिवाद संख्या-73/2017
निर्णय घोषित। आदेश हुआ कि परिवाद योजित किये जाने की तिथि से वास्तविक वसूली की तिथि तक की अवधि हेतु 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित अंकन-4,50,000(चार लाख पचास हजार)रूपये की वसूली हेतु ये परिवाद परिवादी के पक्ष में विपक्षीगण के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण से परिवादी परिवाद व्यय की मद में अंकन-2500/-रूपये अतिरिक्त पाने का भी अधिकारी होगा। इस आदेशानुसार धनराशि प्राप्त करने से पूर्व परिवादी को इस आशय की अण्डर टेकिंग विपक्षी-1 को देनी होगी कि चोरी के इस मामले में न्यायालय में लंबित विचारण में यदि अभियुक्त से बरामद होना बताये गये अंकन-32,630/-रूपये परिवादी के पक्ष में निर्मुक्त होते हैं तो उक्त अंकन-32,630/-रूपये परिवादी विपक्षी-1 को वापस करेगा।
, अध्यक्ष,
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