जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण, अजमेर
श्रीमति संतोष टांक पत्नी स्व. श्री सुरेष कुमार टांक, निवासी- मकान नं. 2536/5, कुम्हार मौहल्ला, नसीराबाद, जिला-अजमेर ।
- प्रार्थिया
बनाम
1. यूनाईटेड इण्डिया इंष्योरेंस क.लि., मण्डल कार्यालय, एलआईसी बिल्डिंग, मडिया रोड़, पाली मारवाड़(राजस्थान)
2. यूनाईटेड इण्डिया इंष्योरेंस क.लि., जरिए मण्डलीय प्रबन्धक, मण्डल कार्यालय, लोहागल रोड, अजमेर ।
3. ई-मेडिटेक सर्विस टीपीए लिमिटेड, तृतीय फ्लोर, पैराडाईज अपार्टमेन्ट, सरीोजनी मार्ग, सी-स्कीम, जयपुर ।
- अप्रार्थीगण
परिवाद संख्या 230/2012
समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी अध्यक्ष
2. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
3. नवीन कुमार सदस्य
उपस्थिति
1.श्री सूर्यप्रकाष गांधी एवं लक्ष्मण सिंह, अधिवक्तागण, प्रार्थिया
2.श्री ए.एस.ओंबेराय, अधिवक्ता अप्रार्थी
मंच द्वारा :ः- निर्णय:ः- दिनांकः- 10.11.2016
1. प्रार्थिया द्वारा प्रस्तुत परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हंै कि उसके पति द्वारा अप्रार्थी बीमा कम्पनी से दिनांक 1510.2009 को स्वयं तथा अपने परिवार के लिए व्यक्तिगत स्वास्थ्य बीमा पाॅलिसी संख्या 140700/48/09/96/00001166 दिनांक 15.10.2009 से 14.10.2010 तक के लिए प्राप्त की गई। दिनंाक 9.12.2009 को तेज सर्दी जुकाम के कारण उन्हें किसी परिचित डाक्टर की सलाह पर सर गंगाराम अस्पताल, दिल्ली में दिनांक 12.12.2009 को भर्ती कराया गया । वहां पर बाद जांच उन्हें दिल की बीमारी बताई गई । दिनंाक 15.12.2009 को उनका आपरेषन किया जाकर दिनांक 25.12.2009 को डिस्चार्ज किया गया । इसी मध्य दिनांक दिनंाक 12.12.2009 को अप्रार्थी बीमा कम्पनी को लिखित में बीमारी के संबंध में सूचित किया गया । उक्त अस्पताल में खर्च हुई राषि रू. 10 लाख में से बीमा पाॅलिसी के अनुसार रू. 5 लाख का बीमा क्लेम अप्रार्थी बीमा कम्पनी के समक्ष दिनांक 11.1.2010 को पेष किया गया । क्लेम प्रस्तुत करने के बाद दिनंाक 30.9.2010 को मेदान्ता दी मेडिसिटी, गुडगांव(हरियाणा) में उनका निधन हो गया ।
प्रार्थिया का कथन है कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने पत्र दिनांक
21.7.2010 के क्लेम यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसके पति ने एक वर्ष पूर्व से हुई इस तथाकथित बीमारी को छिपाते हुए बीमा पाॅलिसी प्राप्त की इसलिए बीमा पाॅलिसी के क्लाॅज नं. 5.7 के तहत पाॅलिसी नल एण्ड वाईड हो गई है , इसलिए कोई क्लेम देय नहीं है । प्रार्थिया ने क्लेम खारिज किए जाने के कृत्य को सेवा में कमी बताते हुए परिवाद पेष कर उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है । परिवाद के समर्थन में प्रार्थिया ने स्वयं का षपथपत्र पेष किया है ।
2. अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने जवाब प्रस्तुत करते हुए प्रारम्भिक आपत्ति में यह दर्षाया है कि मृतक बीमधारक सुरेष कुमार टांक से संबंधित समान वाद करण व समान तथ्यों पर आधारित उसके भाई श्री महावीर प्रसार टांक के द्वारा एक परिवाद संख्या 213/11 मंच में प्रस्तुत किया था जो, जो महावीर प्रसाद टांक के द्वारा नोट प्रेस(छवज च्तमेमक) कर लिया गया । अतः उक्त तथ्यों व वाद कारण के समान आधार पर प्रार्थिया का परिवाद प्रथम दृष्टया पोषणीय नहीं होने से खारिज होने योग्य है ।
आगे मदवार जवाब प्रस्तुत करते हुए मृतक बीमाधारक सुरेष कुमार टांक के द्वारा प्रष्नगत बीमा पालिसी परिवाद में अंकित बीमा पाॅलिसी व बीमा अवधि के लिए जारी किए जाने के तथ्य को स्वीकार करते हुए यह कथन किया है कि प्रार्थिया के पति को दिनंाक 9.12.2009 को सर्दी जुकाम नहीं हुआ था बल्कि सर गंगाराम अस्पताल, दिल्ली के रिकार्ड के अनुसार प्रार्थिया के पति को सांस लेने में तकलीफ थी जो उक्त दिनंाक के एक वर्ष पूर्व से थी और बीमाधारक ने यह तथ्य छिपा कर दिनंाक 15.10.2009 को बीमा पाॅलिसी प्राप्त की । इसलिए बीमा पाॅलिसी की षर्त का उल्लंघन किए जाने के कारण ष्षर्त संख्या 5.7. के तहत कोई क्लेम देय नहीं होने के कारण क्लेम खारिज करते हुए पत्र दिनांक 21.07.2010 के द्वारा सूचित कर अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने कोई सेवा में कमी नहीं की है । अन्त में परिवाद सव्यय निरस्त किए जाने की प्रार्थना करते हुए गीता राय, उप प्रबन्धक का षपथपत्र पेष किया है ।
3. प्रार्थिया पक्ष का प्रमुख तर्क रहा है कि उसके स्वर्गीय पति द्वारा अप्राथी्र बीमा कम्पनी से ली गई बीमा पाॅलिसी जो क्लेम के समय वैध एवं प्रभावषील थी, उक्त बीमित श्री सुरेष कुमार टांक की दिनंाक 9.12.2009 को अचाक अस्वस्थ होने, तेज सर्दी जुकाम होने के कारण नई दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में दिनंाक 12.12.2009 को भर्ती कराया गया था । उनका दिनंाक 15.12.2009 को आपरेषन किया गया व दिनंाक 25.12.2009 को डिस्चार्ज किया गया था । प्रार्थिया के पति द्वारा दिनंाक 12.12.2009 को उक्त अस्पताल में भर्ती होने के बाद उसी दिन अप्रार्थी बीमा कम्पनी को पत्र लिखकर अपनी बीमारी बाबत् सूचना दी गई थी । वे दिनंाक 22.12.2009 से 25.12.009 तक अस्पताल में भर्ती रहे थे तथा उनके इलाज में लगभग रू. 10 लाख का खर्चा हुआ था । उनके द्वारा बीमा कम्पनी के समक्ष इलाज बाबत् मात्र रू. 5 लाख का क्लेम मय समस्त औपचारिकताओं के प्रस्तुत किया गया था । क्लेम प्रस्तुत करने के बाद उनकी दिनांक 30.9.2010 को अस्पताल में मृत्यु हो गई । उनके निधन के बाद अप्रार्थी बीमा कम्पनी से लगातार पत्राचार कर इलाज पर हुए खर्च बाबत् क्लेम दिलवाने की मंाग की गई । किन्तु अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने अपने पत्र दिनंाक
21.7.2010 द्वारा उक्त क्लेम राषि दिए जाने से इन्कार किया है । पत्र में उनके पति को एक वर्ष पूर्व से ही बीमारी से ग्रसित होना बताते हुए महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाए जाने का आधार बताते हुए पाॅलिसी को नल एण्ड वाईड हो जाना बताया है , जो अवैध एवं निराधार हैै । प्रार्थिया के पति का उक्त पाॅलिसी लिए जाने के एक वर्ष पूर्व न तो हृदय की बीमारी थी और न उन्हें इसकी जानकारी थी । बीमा कम्पनी ने अवैध रूप से क्लेम खारिज करते हुए सेवा में कमी की है । परिवाद स्वीकार कर क्लेम राषि दिलाई जानी चाहिए । यह भी बताया कि प्रार्थिया के पति द्वारा यह मेडिक्लेम इस मंच में पूर्व में सहवन से प्रार्थिया के देवर श्री महावीर प्रसाद टांक के नाम से प्रस्तुत हुआ था जिसे उक्त महावीर प्रसाद ने दिनंाक 21.6.2012 को नोट प्रेस कर लिया था ।
4. अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने खण्डन में प्रारम्भिक आपत्ति प्रस्तुत करते हुए बताया है कि इसी परिवाद से संबंधित एक परिवाद समान वादकरण व समान तथ्यों पर ही आधारित पूर्व में उक्त मृतक के भाई महावीर प्रसाद द्वारा परिवाद संख्या 213/11 प्रस्तुत किया गया था। जिसे उक्त प्रार्थी द्वारा नोट प्रेस कर लिया गया था । अतः उक्त तथ्यों एवं वादकरण के आधार पर यह परिवाद विधिक रूप से प्रथम दृष्टया पोषणीय नहीं होने के कारण खारिज होने येाग्य है । अन्य तर्को में बीमा पाॅलिसी लिए जाने को स्वीकार किया गया व बीमित को किसी प्रकार के तेज सर्दी जुकाम होने के तथ्यों को अस्वीकार करते हुए तर्क प्रस्तुत किया गया है कि सर गंगाराम अस्पताल, नई दिल्ली के रिकार्ड के अनुसार मृतक को सांस लेने में तकलीफ एक वर्ष पूर्व से थी । इस बाबत् तथ्यात्मक स्थिति उक्त अस्पताल के रिकार्ड से स्पष्ट है । प्रस्तुत क्लेम बीमा पाॅलिसी की ष्षर्त संख्या 5.7 के आधार पर गलत व झूठे तथ्यों पर आधारित होने के कारण पाॅलिसी की षर्तो के अनुसार खारिज किया गया है । जिसकी सूचना प्रार्थी को दे दी गई थी । कुल मिलाकर उनका यही तर्क रहा है कि बीमित मृतक द्वारा एक वर्ष पूर्व अपनी बीमारी के महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाए जाने के कारण क्लेम खारिज किया गया है । अपने तर्को के समर्थन में विनिष्चय प्ट;2015द्ध ब्च्श्र 665;छब्द्ध क्पसतंर ैपदही ;डतेण्द्ध टे स्प्ब्ए प्ट;2015द्ध ब्च्श्र 529 ;छब्द्ध स्प्ब् टे त्ंउंउंदप च्ंजतं - ।दतण्ए प्प्प्;2015द्ध ब्च्श्र 426 ;छब्द्ध ळनतउपज ज्ञंनत टे स्प्ब्ए प्प्प्;2015द्ध ब्च्श्र 474;छब्द्ध डण् व्इंपकनत त्ंीउंद टे छंजपवदंस प्देनतंदबम ब्व स्जकएत्मअपेपवद च्मजपजपवद छवण् 642ध्2007 छब्ण् छंजपवदसं प्देनतंदबम ब्व स्जक ठे ।ेीवा ज्ञनउत ळनचजं व्तकमत क्ंजमक 28.2.2012 पर अवलम्ब लिया है ।
5. हमने परस्पर तर्क सुन लिए हैं एवं पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों के साथ साथ प्रस्तुत विनिष्चयों में प्रतिपादित सिद्वान्तों का ध्यानपूर्वक अवलोकन कर लिया है ।
6. सर्वप्रथम हम अप्रार्थी बीमा कम्पनी की ओर से उठाए गए महत्वपूर्ण विधिक आपत्ति बाबत् विवेचन करना न्यायोचित समझते हैं । स्वीकृत रूप से प्रार्थिया पक्ष द्वारा हस्तगत परिवाद से संबंधित तथ्यों बाबत् इस मंच के समक्ष पूर्व में किन्हीं महावीर प्रसाद टांक द्वारा एक परिवाद दिनंाक 22.1.2011 को प्रस्तुत किया गया था । सुविधा की दृष्टि से उक्त पत्रावली को तलब किया गया व इसके अनुसार उक्त परिवाद पूर्व में प्रस्तुत किए जाने के बाद अप्रार्थी को हुए नोटिस तामीली के बाद उनके द्वारा प्रस्तुत जवाब परिवाद जो दिनंाक 12.4.2012 को प्रस्तुत हुआ था, के पष्चात् दिनंाक 21.6.2012 को उक्त प्रार्थी द्वारा इस परिवाद को नोट प्रेस नहीं करने के कारण मंच द्वारा खारिज किया गया है । उक्त परिवाद में दिनांक 21.6.2012 को पारित आदेष निम्नानुसार है -
’’ उभय पक्ष के अधिवक्तागण उपस्थित । प्रार्थी अधिवक्ता इस परिवाद को प्रेस नहीं करते है । अतः परिवाद नोट प्रेस में खारिज किया जाता है । पत्रावली फैसल ष्षुमार होकर बाद तकमील दाखिल दफतर हो । ’’
7. इस आदेष को देखने से स्पष्ट है कि उक्त प्रार्थी ने पूर्व में दायर उक्त परिवाद को बिना मंच की अनुमति के स्वःप्ररेणा से नोट प्रेस करना जाहिर करते हुए खारिज करवा लिया है । व्यवहार प्रक्रिया संहिता के प्रावधान हांलाकि उपभोक्ता मामलता में सामान्य तौर पर लागू नहीं होते है तथा इस संबंध में उपभोक्ता संरक्षण विनियम, 2005 के विनियम 26(1) में प्रावधित किया गया है कि उपभोक्ता मंच के समक्ष समस्त कार्यवाहियों में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के प्रावधानांे के प्रयोंग की उपेक्षा करने हेतु पक्षकारों एवं उनके अधिवक्ता के द्वारा प्रयास किया जाएगा, परन्तु सिविल प्रक्रिया सहिता के वे प्रावधान लागू किए जाएगे जो अधिनियम में या इसके अन्तर्गत बनाए गए नियम में निर्दिष्ट हांे । उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 13 में उपभोक्ता द्वारा प्रस्तुत षिकायत की स्वीकृति पर प्रक्रिया संबंधी प्रावधान दिए गए है व इनमें आई परिस्थितियों के प्रकाष में यदि मचं उचित समझता है तो न्याय की दृष्टि में ऐसे व्यवहार प्रक्रिया सहिता के प्रावधानों पर विचार कर आदेष पारित कर सकेगा । इनके प्रकाष में यदि किसी प्रार्थी ने अपना परिवाद बिना मंच की अनुमति के वापस ले लिया है अथवा नोट प्रेस कर खारिज करवा लिया है तों वह उन्हीं तथ्यों को पुनः अन्य परिवाद के माध्यम से इस मंच के समक्ष प्रस्तुत कर नहीं सकेगा । पूर्व में इस मंच के समक्ष मृतक बीमित की ओर से उसके भाई द्वारा परिवाद प्रस्तुत किया गया है व इसके प्रस्तुत किए जाने के बाद अप्रार्थी द्वारा दिए गए जवाब व उसमें उठाई गई प्रारम्भिक आपत्ति के रूप में वैधानिक आपत्ति को ध्यान में रखते हुए प्रार्थी पक्ष द्वारा सोच समझ कर बाद में परिवाद नोट प्रेस(छवज च्तमेेमक ) कर खारिज करवाया गया । अतः अब पुनः उन्हीं तथ्यों पर यह हस्तगत परिवाद प्रस्तुत किया गया है । यहां यह भी उल्लेखनीय है कि प्रार्थी द्वारा हस्तगत परिवाद में अंत में हालांकि इस बात का उल्लेख किया गया है कि उनके द्वारा उक्त परिवाद में हुए निर्णय की नकल संलग्न है किन्तु इस प्रकार की कोई नकल हस्तगत परिवाद के साथ तत्समय प्रस्तुत नहीं की गई है। यहां तक की अप्रार्र्थी द्वारा इस परिवाद का प्रतिउत्तर दिए जाने व इसमें उठाए गए उक्त महत्वपूर्ण प्रारम्भिक आपत्ति के दर्ज किए जाने एवं वक्त बहस इस बाबत् तर्क प्रस्तुत किए जोनेके समय तक भी प्रार्थिया की ओर से इस संबंध में कोई उल्लेख नहीं किया गया है। कहा जा सकता है कि यह आदेष जानबूझकर परिवाद प्रस्तुत करते समय मंच के समक्ष अवलोकनार्थ प्रस्तुत नहीं किया गया है । इन हालात में परिवाद विधिक रूप से पोषणीय नहीं है व खारिज होने योग्य है । चूंकि प्रारम्भिक तौर से इस विवेचन के आधार पर परिवाद स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है, अतः अप्रार्थी बीमा कम्पनी की ओर से उठाई गई अन्य आपत्तियों व प्रार्थिया पक्ष़्ा के क्लेम बाबत् तर्को पर विचार करना भी न्यायसंगत नहीं है । मंच की राय में प्रार्थिया का परिवाद मय हजार्ने के खारिज किए जाने योग्य है एवं आदेष है कि
:ः- आदेष:ः-
(1) प्रार्थिया का परिवाद रू. 500/- हजार्ने पर खारिज किया जाता है ।
(2) प्रकरण की परिस्थतियों को मद्देनजर रखते हुए पक्षकारान खर्चा अपना अपना स्वयं वहन करेंगें ।
आदेष दिनांक 10.11.2016 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
(नवीन कुमार ) (श्रीमती ज्योति डोसी) (विनय कुमार गोस्वामी )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष