जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या-221/2014
उपस्थित:-श्री अरविन्द कुमार, अध्यक्ष।
श्रीमती स्नेह त्रिपाठी, सदस्य।
श्री अशोक कुमार सिंह, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-13.03.2014
परिवाद के निर्णय की तारीख:-25.01.2021
श्रीमती पंकज देवी पत्नी स्व0 विकल कुमार निवासिनी-ग्राम व पोस्ट-जीतपुर खड़क, तहसील व जिला-बिजनौर। ...............परिवादिनी।
बनाम
1.यूनाईटेड इंडिया इंश्योरेंस कम्पनी लि0 तृतीय श्री राम मार्केट, 33 कैन्ट रोड, लखनऊ।
2.असिस्टेन्ट कमिश्नर (पंजीयन) वाणिज्यकर विभाग बिजनौर।
.............विपक्षीगण।
आदेश द्वारा-श्री अशोक कुमार सिंह, सदस्य।
निर्णय
परिवादिनी ने प्रस्तुत परिवाद विपक्षीगण से बीमा क्लेम की धनराशि 4,00,000.00 रूपया मय 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित नोटिस दिनॉंकित 01.07.2013 में वर्णित अवधि समाप्त होने की दिनॉंक से तावसूलयाबी तक, एवं वाद व्यय दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया है।
संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादिनी के पति स्व0 विकल कुमार की साझेदारी फर्म सर्व श्री चौधरी ऑटो मोबाईल्स निकट बस स्टैण्ड गंज, जिला-बिजनौर वाणिज्यकर विभाग में पंजीयन थी जिसका पंजीयन नम्बर-09862205072 तथा उक्त फर्म का रजिस्ट्रेशन दिनॉंक 24.10.2011 से पंजीकृत है तथा उसके पति उक्त फर्म में प्रथम पार्टनर थे। वार्णिजय विभाग में फर्म को रजिस्टर्ड करने के लिये प्रथम पार्टनर का मृत्यु इंश्योरेंस, विपक्षी संख्या 01 के यहॉं फर्म के रजिस्ट्रेशन के समय कराया जाता है जो अनिवार्य है और प्रथम पार्टनर की मृत्यु/हत्या होने पर ही प्रथम पार्टनर के विधिक उत्तराधिकारी/नॉमिनी को प्राप्त होता है। परिवादिनी के पति स्व विकल कुमार की मृत्यु/हत्या दिनॉंक 17.08.2012 को हो गयी थी और उनकी फर्म का रजिस्ट्रेशन उनकी मृत्यु की दिनॉंक को वाणिज्य कर विभाग में था जो कि दिनॉंक-31.03.2012 से 30.03.2013 तक वैध था। परिवादिनी स्व0 विकल कुमार की विधिक उत्तराधिकारी व नॉमिनी है। पति स्व0 विकल कुमार की मृत्यु होने के बाद वाणिज्य विभाग के माध्यम से यूनाइटेड इंडिया इंश्यारेंस के समक्ष स्व0 विकल कुमार के बीमें के संबंध में पत्र संख्या-08230042120590000037 प्रस्तुत किया गया जो विपक्षी संख्या-01 द्वारा रद्द कर दिया गया और रद्द करने का आधार यह दिखाया गया कि “ मृतक व्यापारी विकल कुमार उपरोक्त फर्म में द्वितीय पाटर्नर हैं जिस कारण जबकि अनुबन्ध एवं पॉलिसी शर्तों के अनुसार प्रथम पार्टनर ही बीमित होता है।” उक्त पंजीकृत साझेदारी फर्म के आवेदन पत्र वैट प्रपत्र संख्या VII में विकल कुमार पुत्र श्री पुष्पेन्द्र सिंह का नाम प्रथम पार्टनर तथा आवेदनकर्ता है, जिससे स्पष्ट है कि परिवादिनी के पति स्व0 विकल कुमार उपरोक्त फर्म में प्रथम पार्टनर थे और जो फर्म के रजिस्ट्रेशन की पार्टनरशिप डीड है उसमें भी प्रथम पार्टनर के रूप में लिखा है। उक्त प्रार्थना पत्र निरस्त करने से पूर्व विपक्षी संख्या 01 द्वारा कार्यालय असिस्टेन्ट कमिश्नर (पंजीयन) बिजनौर से प्राप्त जॉंच रिपोर्ट एवं दावा पत्रों का अवलोकन सही तौर से नहीं किया गया। परिवादिनी द्वारा पति स्व0 विकल कुमार के प्रथम पार्टनर होने के संबंध में कार्यालय असिस्टेन्ट कमिश्नर वाणिज्यकर विभाग बिजनौर से दिनॉंक 20.04.2013 को एक प्रमाण पत्र भी लिया गया है जिसमें स्पष्ट लिखा है कि पंजीयन प्रमाण पत्र फार्म XI में साझीदार का नाम अंग्रेजी वर्णमाला के क्रम में अंकित रहता है जिसे मैनुअली संशोधित नहीं किया जा सकता है, जिसे परिवाद पत्र के साथ दाखिल किया जा रहा है जिसमें स्पष्ट रूप से लिखा है कि विकल कुमार उपरोक्त फर्म के प्रथम पार्टनर तथा आवेदनकर्ता हैं। परिवादिनी द्वारा इस संबंध में अपने अधिवक्ता द्वारा दिनॉंक 01.07.2013 को रजिस्टर्ड डाक द्वारा नोटिस भेजा गया था जो उन्हें प्राप्त हो गया। नोटिस प्राप्ति के बाद भी परिवादिनी के क्लेम पर कोई विचार नहीं किया गया और न ही कोई संतोषजनक जवाब दिया गया।
विपक्षी संख्या 01 द्वारा उत्तर पत्र प्रस्तुत करते हुए कथन किया कि उनका एवं आयुक्त व्यापार कर उ0प्र0 के बीच दिनॉंक 31.03.2012 से 30.03.2013 के बीच पंजीकृत व्यापारियों के लिये व्यक्तिगत बीमा पॉलिसी 4,00,000.00 रूपये का समझौता है जिसे उनके द्वारा अपने उत्तर पत्र के साथ संलग्न किया गया है। उक्त समझौते के अन्तर्गत यह तय किया गया है कि जो व्यापार फर्म प्रोपराइटरशिप फार्म के अन्तर्गत किया जाता है उन्हें प्रोपराइटर को तथा पार्टनरशिप फार्म में प्रथम पार्टनर को उक्त पालिसी के अन्तर्गत दुर्घटना बीमा 4,00,000.00 रूपये की देनदारी होती है। इस समझौते के अन्तर्गत यह अनिवार्य है कि व्यापार करने वाले व्यापारी को इस आशय की घोषणा करनी होती है कि पार्टनरशिप में किस पार्टनर को इस बीमा पालिसी के अन्तर्गत आच्छादित किया जा रहा है। परन्तु परिवादिनी द्वारा इसतरह की कोई भी घोषण नहीं की गयी। विपक्षी संख्या 01 का यह भी कथन है कि इस समझौते के अन्तर्गत यदि व्यापारकर्ता फर्म के द्वारा उपरोक्त घोषणा नही की गयी है तो प्रथम पार्टनर को ही उक्त बीमे का लाभ दिया जा सकता है। वर्तमान फर्म में सुनील कुमार का नाम प्रथम पार्टनर के रूप में व्यापार कर विभाग के फार्म-11 में दर्शाया गया है और वह एक्सीडेन्ट के समय जीवित था और उन्हें ही इस पालिसी के तहत आच्छादित किया गया है। विकल कुमार जिनकी मृत्यु हुई है वह फार्म-11 में द्वितीय पार्टनर थे और वह इस पालिसी के तहत आच्छादित नहीं थे। इसलिये इस परिवाद में बल नहीं है और यह निरस्त किये जाने योग्य है। विपक्षी संख्या 01 का यह भी कथन है कि इस बीमा पालिसी के अन्तर्गत प्रथम पार्टनर के विधिक वारिस को ही इस योजना के अन्तर्गत उनके दावे को ही स्वीकार किया जा सकता है। विपक्षी संख्या 01 का यह भी कथन है कि उनका अस्वीकृत पत्र(Repudiation Letter) ठोस आधार पर जो पत्र दिनॉंक 15.03.2013 में उल्लिखित है के फलस्वरूप पारित किया गया है, क्योंकि विपक्षी संख्या-02 ने स्पष्ट रूप से अपने पत्र दिनॉंकित 20.04.2013 में वैट के फार्म-11 में प्रथम पार्टनर श्री सुनील कुमार को अंकित किया गया है। उनका यह भी कथन है कि संयुक्त आयकर व्यापार कर बिजनौर द्वारा उन्हें दिनॉंक 12.12.2012 को अवगत कराया है कि विकल कुमार पार्टनर की दिनॉंक 17.08.2012 को हत्या कर दी गयी थी और अनुरोध किया है कि उनके दावे को दर्ज करते हुए उनकी नामिनी को पालिसी की धनराशि का भुगतान किया जाए। परन्तु समझौते के अनुसार द्वितीय पार्टनर को नियमानुसार पालिसी के अर्न्तगत आच्छादित नहीं किया गया है। फलस्वरूप (Repudiation Letter) अस्वीकृति पत्र दिनॉंकित 15.03.2013 जारी किया गया है। अत: विपक्षी संख्या 01 द्वारा अनुरोध किया गया है कि परिवादिनी का परिवाद अस्वीकार किया जाए।
विपक्षी संख्या 02 ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत करते हुए परिवाद पत्र के अधिकांश कथनों को इनकार किया तथा विशेष कथन किया कि परिवादिनी का परिवाद गलत व विधि विरूद्ध योजित किया गया है जो पोषणीय नहीं है। परिवादिनी को इस विपक्षी के विरूद्ध कोई वाद कारण उत्पन्न नहीं हुआ है, तथा अनावश्यक रूप से पक्षकार बनाया है। उत्तर दाता के कार्यालय में पंजीकृत व्यापारी श्री विकल कुमार फर्म का नाम सर्वश्री चौ0 ऑटोमोबाईल्स गंज की हत्या/दुर्घटना में दिनॉंक 17.08.2012 को हुई। मृत्यु के फलस्वरूप उनकी उत्तराधिकारी परिवादिनी द्वारा बीमे से संबंधित क्लेम फार्म बीमा कम्पनी विपक्षी संख्या 01 को अग्रसारित करने हेतु प्रस्तुत किया जिसे मूल रूप से उत्तरदाता द्वारा संलग्नक फार्म मृत्यु प्रमाण पत्र, की सत्यप्रतिलिपि, पोस्टमार्टम की सत्यप्रतिलिपि, पंचनामा, प्रथम सूचना रिपोर्ट, वाणिज्य कर पंजीकरण प्रमाण पत्र आदि की सत्यप्रतिलिपि सहित तीन प्रतियों में ज्वाइन्ट कमिश्नर (कार्यपालक) वाणिज्य कर बिजनौर (सम्प्रभाग) बिजनौर को अग्रसारित किया और इसमें भी स्पष्ट रूप से उल्लिखित किया था कि मृतक श्री विकल फर्म सर्वश्री चौ0 ऑटोमोबाइल्स गंज के पार्टनर थे और उक्त बीमा योजना की शर्तों/प्रकाशित विज्ञापन में दी गयी शर्तों के अन्तर्गत बीमा योजना से आच्छादित थे। उत्तरदाता द्वारा बिल्कुल सही प्रकार से अपने दायित्वों के निर्वहन के अधीन परिवादिनी द्वारा किये गये क्लेम को अग्रसारित किया है। परिवादिनी के पति श्री विकल कुमार चौ0 ऑटोमोबाइल्स के पार्टनर थे और उत्तरदाता के कार्यालय अभिलेखों के अनुसार विकल कुमार फर्म में साझीदार थे और श्री सुनील कुमार द्वितीय साझीदार थे जैसा कि पार्टनरशिप डीड में भी उल्लिखित है। उपरोक्त हालात में परिवादिनी का परिवाद सव्यय खंडित होने योग्य है।
पत्रावली के अवलोकन से प्रतीत होता है कि परिवादिनी के पति की फर्म का पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन वाणिज्यकर विभाग में था, जिनकी मृत्यु के बाद वह विधिक उत्तराधिकारी व नामिनी है। यह भी प्रतीत होता है कि परिवादिनी के पति के फर्म के आवेदन पत्र वैट के प्रपत्र पर VII उनके पति का नाम प्रथम पार्टनर के रूप में था और जो फर्म के रजिस्ट्रेशन की पार्टनरशिप डीड हुई है उसमें भी वह प्रथम पार्टनर के रूप में हैं। विपक्षी संख्या 01 का यह तर्क है कि दुर्घटना के समय परिवादिनी के पति विकल कुमार व्यापार कर विभाग के फार्म XI में द्वितीय पार्टनर हैं, अत: वे इस पालिसी के तहत आच्छादित नहीं हैं। फलस्वरूप (Repudiation Letter) अस्वीकार पत्र जारी किया गया। परन्तु विपक्षी संख्या 02 द्वारा स्पष्ट रूप से अपने पत्र में परिवादिनी के क्लेम फार्म एवं उससे संबंधित समस्त कागजात संलग्न करते हुए विपक्षी संख्या 01 को अग्रसारित कर अवगत कराया है कि परिवादिनी के पति विकल कुमार उक्त फर्म के पार्टनर थे और उक्त बीमा योजना की शर्तों/प्रकाशित विज्ञापन में दी गयी शर्तों के अन्तर्गत बीमा योजना से आच्छादित थे। विपक्षी संख्या 02 द्वारा स्पष्ट किया गया हे कि पंजीकरण प्रमाण पत्र के फार्म XI में साझीदार का नाम अंग्रेजी वर्णमाला के क्रम में अंकित रहता है और अभिलेखानुसार पंजीकरण आवेदन व प्रतिपक्षी संख्या 01 में विकल कुमार का नाम प्रथम पार्टनर तथा आवेदनकर्ता है। विपक्षी संख्या 02 द्वारा अपने उत्तर पत्र के साथ संलग्न इकरारनामा के पृष्ठ 04 पर स्पष्ट अंकित है कि यदि किसी कारण से वैट व्यवस्था के अन्तर्गत लागू नवीन फार्म-11 में अंकित नाम का व्यक्ति पार्टनर नही रहा अथवा जीवित न हो परन्तु उसका नाम परिवर्तित न कराया गया हो तब वैट व्यवस्था के अन्तर्गत लागू नवीन फार्म-07 में जिसका नाम सर्वप्रथम अंकित हो तथा वह जीवित हो वह पार्टनर के रूप में चला आ रहा हो तो उसे बीमित माना जायेगा और व्यापार कर विभाग द्वारा स्पष्ट किया गया है कि अभिलेखानुसार पंजीकरण आवेदन व प्रतिपक्षी संख्या 01 में विकल कुमार (परिवादिनी के पति) प्रथम पार्टनर थे और उनकी मृत्यु दुर्घटना में हुई है जिसके कारण नियमानुसार बीमा से आच्छादित हैं। इस प्रकार विपक्षी संख्या 01 का कथन कि परिवादिनी के पति द्वितीय पार्टनर हैं जिसके कारण वह इस पालिसी के तहत आच्छादित नहीं है का तर्क साक्ष्य से परे है और स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों, व्यापार कर विभाग के फार्म-07 पर अंकन तथा व्यापार कर विभाग के अधिकारियों की पुष्टि के फलस्वरूप परिवादिनी के परिवाद को बल मिलता है। यदि कंप्यूटर अल्फाबेटिकल लेटर के हिसाब से बाद के लेटर को पहले दर्ज करता है तो यह गलती विभाग की है कि उन्होंने ऐसा साफ्टवेयर कैसे स्वीकार किया है। विपक्षी संख्या 02 साफ्टवेयर के शुद्धीकरण के लिये कार्यवाही करे। ऐसी परिस्थिति में परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है, तथा विपक्षी संख्या 01 को निर्देश दिया जाता है कि वह परिवादिनी के पति की बीमा क्लेम की धनराशि मुबलिग-4,00,000.00 (चार लाख रूपया मात्र) 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ वाद दायर करने की दिनॉंक से भुगतान की तिथि तक 45 दिन के अन्दर अदा करें। मानसिक, शारीरिक कष्ट एवं वाद व्यय के लिये मुबलिग 20,000.00 (बीस हजार रूपया मात्र) भी अदा करेंगें। यदि उपरोक्त आदेश का अनुपालन निर्धारित अवधि में नहीं किया जाता है तो उपरोक्त सम्पूर्ण राशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भुगतेय होगा।
(अशोक कुमार सिंह) (स्नेह त्रिपाठी) (अरविन्द कुमार)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।