जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 189/2013
हनुमानराम पुत्र हरीराम, जाति-जाट, निवासी-बुगरडा, तहसील-जायल, जिला-नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
यूनाइटेड इंडिया इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, षाखा कार्यालय-किले की ढाल, नागौर जरिये षाखा प्रबन्धक।
-अप्रार्थी
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री विक्रम जोषी, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री दषरथमल सिंघवी, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थी।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
निर्णय दिनांक 08.06.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थी बीमा कम्पनी से अपने वाहन त्श्र 21 ज्। 0397 का बीमा बीमा प्रीमियम 11,767/- रूपये देकर दिनांक 08.02.2010 से 07.02.2011 तक की अवधि के लिए करवा रखा था। परिवादी के उक्त वाहन का ड्राइवर पुरूशोतम सोनी था तथा उक्त वाहन बीमा अवधि के दौरान दिनांक 21.08.2010 को मध्य रात्रि पष्चात् चोरी हो गया। जिस पर दिनांक 22.08.2010 को पुलिस थाना झोटवाडा, जयपुर में प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 513 दर्ज करवाई गई तथा वाहन चोरी की सूचना भी नियमानुसार अप्रार्थी को उपलब्ध करवा दी गई। जिस पर अप्रार्थी ने दावा दर्ज कर लिया। परिवादी के उक्त चोरी हुए वाहन के सम्बन्ध में पुलिस थाना झोटवाडा, जयपुर ने अनुसंधान कर एफ.आर. संख्या 498/10, दिनांक 29.09.2010 न्यायालय में प्रस्तुत कर दी। जिस पर दिनांक 30.10.2010 को उक्त एफ.आर. मंजूर कर ली गई। परिवादी की ओर से दावे के सम्बन्ध में सभी आवष्यक दस्तावेजात उपलब्ध करवा दिये गये। लेकिन बीमा कम्पनी ने उसके दावे के सम्बन्ध में यथा समय उचित कार्यवाही नहीं की। इसके बाद दिनांक 22.09.2011 को परिवादी व्यक्तिगत रूप से अप्रार्थी के कार्यालय में उपस्थित हुआ तथा दावे के सम्बन्ध में पूछा तो बताया गया कि वाहन चोरी के सम्बन्ध में प्रस्तुत आपके दावे की पत्रावली बंद कर दी गई है। परिवादी को इस बारे में कोई कारण भी नहीं बताया गया। इस पर परिवादी ने सूचना के अधिकार के तहत भी जानकारी मांगी तो अनेक कारण गिना दिये। अप्रार्थी का उक्त कृत्य सेवा में कमी एवं अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस की तारीफ में आता है। अतः परिवादी को वाहन की बीमा धन राषि 2,50,000/- रूपये मय 18 प्रतिषत वार्शिक ब्याज दर से अप्रार्थी से दिलाये जावे। साथ ही परिवाद में अंकितानुसार अन्य सभी अनुतोश परिवादी को दिलाये जावे।
2. अप्रार्थी की ओर से परिवादी के वाहन का अप्रार्थी कम्पनी के पास बीमित होना स्वीकार करते हुए बताया गया है कि परिवादी का वाहन दिनांक 21.08.2010 को चोरी हुआ जबकि अप्रार्थी को इसकी सूचना लगभग तैंतीस दिन बाद दिनांक 23.09.2010 को दी गई। साथ ही घटना के समय वाहन घर के बाहर खडा कर रखा था, इस प्रकार बीमा षर्तों का उल्लंघन होने से अप्रार्थी का कोई दायित्व नहीं बनता है। यह भी बताया गया है कि परिवादी ने बावजूद निवेदन आवष्यक दस्तावेज समय पर पेष नहीं किये हैं। ऐसी स्थिति में दिनांक 29.03.2011 को आवेदन फाइल सही रूप से बंद कर दी गई, ऐसी स्थिति में अप्रार्थी का कोई सेवा दोश नहीं है। यह भी बताया गया है कि परिवादी का क्लेम 29.03.2011 को बंद कर परिवादी को जरिये पत्र सूचना भेज दी गई थी जबकि यह परिवाद दो साल बाद पेष किया गया है जो मियाद बाहर है। ऐसी स्थिति में परिवाद मय खर्चा खारिज किया जावे।
3. दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात पेष किये गये।
4. बहस सुनी गई। परिवादी ने अपने परिवाद के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही वाहन का पंजीयन प्रमाण-पत्र प्रदर्ष 1, बीमा कवर नोट प्रदर्ष 2, एफ.आई.आर. प्रदर्ष 3, अंतिम रिपोर्ट प्रदर्ष 4, न्यायालय द्वारा अंतिम रिपोर्ट स्वीकार करने की आदेषिका प्रदर्ष 5, परिवादी का आवेदन प्रदर्ष 6, रसीद प्रदर्ष 7 व बीमा कम्पनी का पत्र प्रदर्ष 8 पेष कर तर्क दिया है कि समस्त आवष्यक दस्तावेज प्रस्तुत करने के बावजूद अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने बिना किसी कारण गलत रूप से परिवादी की क्लेम पत्रावली बंद कर दी, ऐसी स्थिति में परिवाद स्वीकार कर क्लेम राषि दिलाई जावे।
5. उक्त के विपरित अप्रार्थी पक्ष की ओर से भी जवाब के समर्थन में षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही दावा सूचना पत्र प्रदर्ष ए 1, परिवादी को भेजा पत्र प्रदर्ष ए 2, बीमा पाॅलिसी प्रदर्ष ए 3 व क्लेम पत्रावली बंद करने का पत्र प्रदर्ष ए 4 पेष करते हुए तर्क दिया है कि परिवादी द्वारा सहयोग न करने तथा वांछित दस्तावेज समय पर पेष न करने के कारण सही रूप से क्लेम पत्रावली बंद की गई है। अतः परिवाद मय खर्चा खारिज किया जावे।
6. पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिये तर्कों पर मनन कर पत्रावली पर उपलब्ध समस्त सामग्री का अवलोकन किया गया। पक्षकारान में यह स्वीकृत स्थिति है कि परिवादी का वाहन त्श्र 21 ज्। 0397 अप्रार्थी बीमा कम्पनी के वहां दिनांक 08.02.2010 से 07.02.2011 तक की अवधि हेतु बीमित था, जो दिनांक 21.08.2010 की मध्य रात्रि में चोरी हुआ। जिसकी एफ.आई.आर. दिनांक 22.08.2010 को ही पुलिस थाना झोटवाडा, जयपुर में दर्ज करवाई गई तथा बाद में अदम पता माल मुल्जिम में एफ.आर. पेष हुई, जिसे प्रदर्ष 5 अनुसार सम्बन्धित न्यायालय में स्वीकार किया गया। यह स्वीकृत स्थिति है कि बीमा कम्पनी सषुल्क बीमा का व्यवसाय करती है तथा परिवादी इस मामले में अप्रार्थी का उपभोक्ता रहा है। यद्यपि अप्रार्थी पक्ष की ओर से अपने जवाब में एवं बहस के दौरान यह आपति ली गई है कि वाहन चोरी होने की सूचना अप्रार्थी कम्पनी को तैंतीस दिन विलम्ब से दी गई लेकिन यह स्वीकृत स्थिति है कि परिवादी की क्लेम पत्रावली उक्त आधार पर बंद न कर आवष्यक दस्तावेज पेष न करना बताते हुए बंद की गई है। स्वयं अप्रार्थी द्वारा प्रस्तुत पत्र दिनांकित 29.03.2011 प्रदर्ष ए 4 के अवलोकन पर स्पश्ट है कि क्लेम से सम्बन्धित दस्तावेज पेष न होने के कारण पत्रावली बंद की गई। जबकि परिवादी पक्ष का कथन है कि समस्त आवष्यक दस्तावेज एवं वाहन की दूसरी चाबी सर्वे के समय ही अप्रार्थी पक्ष को सुपुर्द कर दी गई थी। पत्रावली पर उपलब्ध रसीद प्रदर्ष 7 के अवलोकन पर स्पश्ट है कि दिनांक 07.12.2010 को ही परिवादी द्वारा वाहन का मूल पंजीयन प्रमाण-पत्र, परमिट, बिल, अंतिम रिपोर्ट की प्रति व वाहन की चाबी आदि अप्रार्थी के सर्वेयर/अधिकृत व्यक्ति को सुपुर्द कर दिये गये थे। पत्रावली पर उपलब्ध समस्त सामग्री को देखते हुए यह नहीं माना जा सकता कि परिवादी द्वारा क्लेम पत्रावली हेतु आवष्यक वांछित प्रलेख पेष न किये गये हो अथवा सहयोग न किया गया हो। लेकिन उक्त के बावजूद अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी का क्लेम आवेदन बिना किसी युक्तियुक्त आधार के बंद कर दिया, जो कि स्पश्टतया अप्रार्थी का सेवा दोश रहा है।
7. अप्रार्थी के विद्वान अधिवक्ता की यह भी आपति रही है कि परिवादी ने वाहन की सुरक्षा का समुचित ध्यान न रखकर बीमा पाॅलिसी की षर्तों का उल्लंघन किया है। लेकिन इस सम्बन्ध में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा अपने न्याय निर्णय 2008 ए.सी.जे. 2035 नेषनल इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम नितिन खण्डेलवाल में अभिनिर्धारित किया है कि वाहन चोरी के मामलों में बीमा पाॅलिसी की षर्तों के उल्लंघन के आधार पर क्लेम खारिज नहीं किया जा सकता।
8. अप्रार्थी के विद्वान अधिवक्ता की यह भी आपति रही है कि परिवादी की क्लेम पत्रावली दिनांक 29.03.2011 को बंद कर पत्र के जरिये परिवादी को सूचना भेजी गई थी, लेकिन परिवादी ने इसके दो साल बाद परिवाद पेष किया है जो मियाद बाहर है। उपर्युक्त तर्क पर मनन कर पत्रावली का अवलोकन करें तो स्पश्ट है कि अप्रार्थी पक्ष की ओर से ऐसी कोई पोस्टल रसीद या प्राप्ति रसीद पेष नहीं की गई है जिसके आधार पर यह माना जा सके कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने दिनांक 29.03.2011 को ही क्लेम पत्रावली बंद करने की सूचना परिवादी को भिजवा दी हो। अप्रार्थी पक्ष की ओर से ऐसा भी कोई प्रलेख या स्पश्ट साक्ष्य पेष नहीं की गई है। जिसके आधार पर यह माना जा सके कि क्लेम पत्रावली बंद होने बाबत् परिवादी को 22.09.2011 से पूर्व ज्ञान हो चुका हो। परिवादी द्वारा अपने परिवाद की मद संख्या 6 में स्पश्ट अभिकथन किये गये हैं कि दिनांक 22.09.2011 को वह व्यक्तिगत रूप से अप्रार्थी के कार्यालय में उपस्थित हुआ तब उसे बताया गया कि क्लेम पत्रावली बंद कर दी गई है। परिवादी ने आगे यह भी अभिकथन किया है कि सूचना के अधिकार के तहत आवेदन प्रस्तुत करने पर अप्रार्थी द्वारा उपलब्ध करवाई गई फोटो प्रतियों से उसे ज्ञात हुआ कि पूर्ण कागजात नहीं देने एवं सहयोग नहीं करने के कारण क्लेम पत्रावली बंद कर दी गई। परिवादी द्वारा उपर्युक्त अभिकथनों के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र प्रस्तुत किया गया है तथा दिनांक 01.08.2013 को ही यह परिवाद पेष किया गया है। ऐसी स्थिति में यह नहीं माना जा सकता कि परिवाद मियाद बाहर रहा हो।
9. उपर्युक्त विवेचन से स्पश्ट है कि परिवादी द्वारा समयावधि के भीतर क्लेम पत्रावली प्रस्तुत करने के साथ ही आवष्यक सहयोग करते हुए समस्त वांछित दस्तावेज एवं वाहन की दूसरी चाबी भी अप्रार्थी पक्ष को सुपुर्द कर दी थी लेकिन अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने मनमाने तरीके से परिवादी की क्लेम पत्रावली को बंद कर सेवा दोश किया है। जिसके कारण परिवादी को अनावष्यक रूप से परेषान होना पडा तथा अंततः यह परिवाद भी प्रस्तुत करना पडा। ऐसी स्थिति में परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार कर बीमा पाॅलिसी अनुसार परिवादी को बीमा धन राषि दिलाये जाने के साथ ही मानसिक रूप से हुई परेषानी हेतु भी प्रतिकर दिलाया जाना उचित होगा।
आदेश
10. परिवादी हनुमानराम द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 खिलाफ अप्रार्थीगण स्वीकार किया जाकर आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थी बीमा पाॅलिसी अनुसार बीमा धन राषि 2,50,000/- रूपये परिवादी को प्रदान करें। यह भी आदेष दिया जाता है अप्रार्थी इस राषि पर आवेदन प्रस्तुत करने की दिनांक 01.08.2013 से 9 प्रतिषत साधारण ब्याज की दर से ब्याज भी अदा करें। यह भी आदेष दिया जाता है कि परिवादी को मानसिक संताप हेतु 10,000/- रूपये तथा परिवाद व्यय के भी 3,000/- रूपये परिवादी को अदा करें। आदेष की पालना एक माह में की जावे।
11. आदेष आज दिनांक 08.06.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
नोटः- आदेष की पालना नहीं किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत तीन वर्श तक के कारावास या 10,000/- रूपये तक के जुर्माने अथवा दोनों से दण्डनीय अपराध है।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या