Rajasthan

Nagaur

126/2013

Smt Rajbala - Complainant(s)

Versus

United Indai Ins Com Ltd - Opp.Party(s)

Sh SK Vyas

03 May 2016

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. 126/2013
 
1. Smt Rajbala
Kuchaman City,Nagaur
...........Complainant(s)
Versus
1. United Indai Ins Com Ltd
Cheenai
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Shri Ishwardas Jaipal PRESIDENT
 HON'BLE MR. Balveer KhuKhudiya MEMBER
 
For the Complainant:Sh SK Vyas, Advocate
For the Opp. Party: Sh DM Singhvi, Advocate
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर

 

परिवाद सं. 126/2013

 

राजबाला पत्नी श्री जलसिंह, जाति-जाट ब्/व् अम्बे इलेक्ट्रीक्स एस.बी.आई. बैंक के पास, डीडवाना रोड, कुचामनसिटी, जिला-नागौर जरिये मुख्त्यारखास अजयकुमार पुत्र श्री जलसिंह, जाति-जाट, निवासी-कुचामनसिटी, तहसील-नावां, जिला-नागौर (राज.)।                                                                                                                                                                                                                                                       -परिवादी     

बनाम

 

1.            श्रीमान् महाप्रबन्धक, यूनाइटेड इंडिया इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, प्रधान कार्यालय, 24 व्हाईट रोड, चैन्नई-600014

2.            श्रीमान् षाखा प्रबन्धक, यूनाइटेड इंडिया इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, जय षिव चौक, स्टेषन रोड, मकराना, जिला-नागौर, राजस्थान।

               

                -अप्रार्थीगण   

 

समक्षः

1.            श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।

2.            श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।

 

उपस्थितः

1.            श्री ष्याम कुमार व्यास, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।

2.            श्री धनपतमल सिंघवी एवं दषरथमल सिंघवी, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।

 

    अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986

 

                                        निर्णय                          

               

                             दिनांक 03.05.2016

 

 

1.            यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी के नाम से ग्राम मीठडी में देषी व अंग्रेजी षराब (कम्पोजिट) की दुकान आवंटित थी। परिवादी ने अप्रार्थीगण से उक्त दुकान के सम्बन्ध में एक षॉपकीपर्स बीमा पॉलिसी संख्या 141302/48/09/34/00000212 ले रखी थी। जो दिनांक 08.07.2009 से 07.07.2010 तक प्रभावी थी। इस पॉलिसी के तहत विभिन्न दुर्घटना के सम्बन्ध में अप्रार्थी द्वारा बीमा सुविधा दे रखी थी। बीमा पॉलिसी की अवधि के दौरान दिनांक 21.08.2009 की रात्रि में अज्ञात चोर दुकान का षट्टर तोडकर सामान चोरी कर ले गये। जिसकी सूचना अगले ही दिन होने पर प्रथम सूचना रिपोर्ट पुलिस थाना, नावां में दर्ज करवाई गई। इस दौरान प्रथम सूचना रिपार्ट के साथ ही चोरी गये माल की सूची भी संलग्न कर दी गई। पुलिस ने परिवादिया के द्वारा दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट के आधार पर अनुसंधान के दौरान घटना की पुश्टि करते हुए अदम पता माल मुल्जिम के आधार पर अंतिम रिपोर्ट न्यायालय में प्रस्तुत कर दी, जो कि एफ.आर. दिनांक 22.05.2010 को सम्बन्धित न्यायालय द्वारा स्वीकृत की जा चुकी है। उक्त अनुसंधान से परिवादिया की दुकान में चोरी होने की घटना की पुश्टि की जा चुकी है। घटना के सम्बन्ध में परिवादी ने अप्रार्थीगण को भी सूचना दी थी तथा विधिवत् रूप से क्लेम आवेदन भी पेष किया तथा बीमा कम्पनी द्वारा चाहे गये सभी दस्तावेज भी उपलब्ध कराये गये।

इसके बाद दिनांक 13.05.2011 को अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने परिवादिया को सूचित करते हुए 25 प्रतिषत राषि कम लेने की बात कही। जिस पर परिवादिया ने अप्रार्थी संख्या 2 को स्पश्ट अवगत कराते हुए बताया कि उसकी दुकान में चोरी से 2,48,105/- रूपये का नुकसान हुआ है। इसलिए इस राषि में से 25 प्रतिषत की कटौती नहीं करने तथा यदि 75 प्रतिषत राषि उसके षेश 25 प्रतिषत राषि लेने के विधिक अधिकारों को सुरक्षित रखा जाए तो लेने का तैयार होने की बात कही लेकिन अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने उसे उक्त 75 प्रतिषत राषि का भुगतान नहीं किया। अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने उक्त राषि की कटौती बाबत् कोई दस्तावेज भी परिवादिया को उपलब्ध नहीं करवाया तथा अप्रार्थीगण ने परिवादिया को बिना कोई सुनवाई का अवसर दिये व बिना किसी आधार के मनमाने तरीके से 25 प्रतिषत की राषि की कटौती करने का कोई अधिकार नहीं है। बीमा कम्पनी ने इस राषि की कटौती के लिए कोई आधार भी परिवादिया को नहीं बताया। इस तरह से किसी तरह की कटौती किया जाना न्यायसंगत नहीं है। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा में कमी की श्रेणी में आती है। अतः परिवादिया को उसकी दुकान में चोरी से हुई क्षति बाबत् क्षतिपूर्ति राषि 2,48,105/- रूपये अप्रार्थीगण से ब्याज सहित दिलाया जावे। साथ ही परिवाद में अंकितानुसार अन्य सभी अनुतोश परिवादिया को दिलाये जावे।

 

2.            अप्रार्थीगण ने अपने जवाब में परिवादिया श्रीमती राजबाला के नाम से दिनांक 08.07.2009 से 07.07.2010 तक की अवधि के लिए षॉप कीपर्स इंष्योरेंस पॉलिसी जारी करना स्वीकार किया है। जवाब में अप्रार्थीगण का मुख्य रूप से यह भी कहना है कि परिवादी के नाम से उसके मुख्तियारखास अजयसिंह द्वारा परिवाद प्रस्तुत किया गया है, जो नियमानुसार नहीं है। परिवादी ने अपने पत्र दिनांक 10.11.2009 में 3,40,000/- के माल की चोरी का कथन किया है जबकि समाचार-पत्र में 3,39,041/- रूपये होने का छपा है तथा परिवादी ने क्लेम में 2,48,105/- रूपये का कथन किया है, जो विरोधाभासी है। अप्रार्थी के सर्वेयर द्वारा बार-बार निवेदन किये जाने के बावजूद परिवादी द्वारा आवष्यक दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किये गये, जबकि माल की चोरी की कीमत व नकद राषि की चोरी को ज्ञात करने बाबत् ऐसे दस्तावेज आवष्यक थे। अप्रार्थीगण द्वारा यह भी बताया गया है कि चोरी की कीमत का 25 प्रतिषत काटकर षेश का भुगतान करने का कथन अप्रार्थीपक्ष द्वारा नहीं किया गया है। यह भी बताया गया है कि अप्रार्थी की सेवा में कोई कमी साबित नहीं है। ऐसी स्थिति में परिवाद खारिज किया जावे।

 

3.            दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात पेष किये गये।

 

4.            बहस अंतिम योग्य अधिवक्ता पक्षकारान सुनी गई। परिवादी द्वारा परिवाद-पत्र के साथ ही मुख्तयारनामा खास प्रदर्ष 1, बीमा पॉलिसी प्रदर्ष 2, चोरी गये माल की कीमत का विवरण प्रदर्ष 3, कैलाष ऑटो मोबाइल्स के बिल क्रमषः प्रदर्ष 4 व 5 पेष किये तथा बाद में सुनवाई के दौरान अन्य दस्तावेज परिवादिया राजबाला द्वारा अप्रार्थी को प्रेशित पत्र दिनांक 10.11.2009, इस सम्बन्ध में पोस्टल रसीद, पत्र दिनांक 26.10.2009, 22.03.2010, 12.06.2010, 06.08.2010, 26.11.2010, 28.01.2011, 18.05.2011, 16.07.2011, 08.08.2011, 18.08.2011, 30.11.2011, 26.12.2011 तथा पत्र दिनांक 11.01.2012 की फोटो प्रतियां तथा इस सम्बन्ध में पोस्टल रसीद व ए.डी. की प्रतियां भी पेष की है। इसके बाद दिनांक 06.05.2015 को भी परिवादी पक्ष की ओर से आबकारी विभाग के बिल दिनांक 03.08.2009, केष मीमो दिनांक 13.08.2009, बिल/चालान दिनांक 13.08.2009, केष मीमो दिनांक 04.08.2009, बिल व चालान दिनांक 03.08.2009, स्टॉक रजिस्टर 22.08.2009, बीयर का बिल दिनांक 10.08.2009, वाईन का बिल दिनांक 10.08.2009 तथा देषी मदिरा स्टॉक रजिस्टर दिनांक 09.04.2009 से जुलाई, 2009 की फोटो प्रतियां भी पेष की गई।                                          अप्रार्थी पक्ष द्वारा भी बीमा पॉलिसी प्रदर्ष ए 1, सर्वेयर का पत्र दिनांकित 16.08.2011 प्रदर्ष ए 2, अन्य पत्र दिनांक 17.10.2011 प्रदर्ष ए 3, सीनियर डिविजनल मैनेजर का पत्र दिनांक 11.08.2011 प्रदर्ष ए 4, सर्वेयर द्वारा भेजे गये अन्य पत्र क्रमषः दिनांक 18.08.2011 व 21.12.2011 तथा 31.12.2011 प्रदर्ष ए 5 व प्रदर्ष ए 6 की फोटो प्रतियां पेष करने के साथ ही दिनांक 12.02.2016 को एक अन्य दस्तावेज परिवादिया राजबाला द्वारा अप्रार्थीगण को भेजे गये पत्र दिनांक 10.11.2009 की फोटो प्रति भी पेष की है।

 

5.            पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिये गये तर्कों पर मनन करने के साथ ही उनके द्वारा प्रस्तुत समस्त दस्तावेजों का सावधानीपूर्वक अवलोकन किया गया। पक्षकारान में यह स्वीकृत स्थिति है कि जिला नागाौर के ग्राम मीठडी में परिवादिया राजबाला के नाम से एक देषी व अंग्रेजी षराब (कम्पोजिट) की दुकान दिनांक 08.07.2009 से 07.07.2010 की अवधि हेतु अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा बीमित थी तथा इस दुकान में दिनांक 21.08.2009 की रात्रि में अज्ञात चोरों द्वारा चोरी की घटना कारित करने पर सम्बन्धित पुलिस थाना में रिपोर्ट दर्ज करवाने के साथ ही अप्रार्थी पक्ष को भी सूचना दी गई थी। यह भी स्वीकृत स्थिति है कि पुलिस थाना में रिपोर्ट दर्ज होने के पष्चात् बाद अन्वेशण बाद अदम पता माल मुल्जिम के आधार पर अंतिम रिपोर्ट पेष होने पर सम्बन्धित न्यायालय द्वारा दिनांक 22.05.2010 को अंतिम रिपोर्ट स्वीकृत हो गई। पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री से स्पश्ट है कि परिवादिया अप्रार्थी बीमा कम्पनी की उपभोक्ता रही है तथा परिवादिया की दुकान चोरी की घटना के जोखिम हेतु भी अप्रार्थी बीमा कम्पनी के वहां बीमित थी। ऐसी स्थिति में स्पश्ट है कि परिवादिया का मामला उपभोक्ता विवाद रहा है।

 

6.            अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 12 की ओर न्यायालय का ध्यान आकर्शित कर तर्क दिया है कि परिवादिया की ओर से यह परिवाद जरिये मुख्तयारखास प्रस्तुत किया गया है जो कि नियमानुसार सही न होने से खारिज किये जाने योग्य है। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा दिये तर्क पर मनन कर सुसंगत विधि का अवलोकन करने के साथ ही पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री का अवलोकन करें तो स्पश्ट है कि परिवाद की समस्त कार्यवाही परिवादिया राजबाला के नाम से ही की गई है तथा परिवाद प्रस्तुत करने से पूर्व अप्रार्थी बीमा कम्पनी के साथ क्लेम के सम्बन्ध में समस्त पत्राचार भी परिवादिया राजबाला द्वारा ही अपने नाम से किया गया है। साथ परिवादिया की ओर से जिला मंच के समक्ष समस्त पैरवी उनके अधिवक्तागण द्वारा ही की गई है। ऐसी स्थिति में यह नहीं माना जा सकता कि परिवादिया द्वारा न्यायालय/जिला मंच में स्वयं उपस्थित न होकर मुख्तयारनामा खास प्रदर्ष 1 के जरिये अपने पुत्र को अधिकृत कर परिवाद पेष किये जाने मात्र के आधार पर परिवाद पोशणीय न हो। ऐसी स्थिति में अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क निरर्थक है।

 

7.            पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री मुख्यतः बीमा कम्पनी के सर्वेयर द्वारा परिवादिया राजबाला को जारी पत्र दिनांकित 31.12.2011 के अवलोकन पर स्पश्ट है कि केष बुक एवं अन्य सम्बन्धित दस्तावेजात पेष न किया जाना बताकर परिवादिया का क्लेम खारिज किया गया है। जबकि परिवादी पक्ष द्वारा न्यायालय के समक्ष जिन दस्तावेजात की प्रतियां पेष की गई है उनके अवलोकन से यही प्रतीत होता है कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी के सर्वेयर द्वारा मांगे गये लगभग सभी वांछित दस्तावेज परिवादिया द्वारा जरिये रजिस्टर्ड पोस्ट प्रेशित किये गये हैं अथवा उपलब्ध करवाये गये हैं। परिवादी पक्ष द्वारा चोरी गये माल की कीमत का विवरण दिनांक 12.06.2010 को बीमा कम्पनी के सर्वेयर अष्विनी बैरी को भेजे पत्र के साथ प्रेशित किया है। इसी प्रकार दिनांक 22.03.2010 को भी परिवादिया राजबाला ने सर्वेयर अष्विनी बैरी को भेजे पत्र के साथ स्टॉक रजिस्टर तथा खरीदे गये माल के चालान बिलों की छाया प्रति भिजवाई है। ऐसी स्थिति में यह नहीं माना जा सकता कि परिवादी पक्ष द्वारा बीमा कम्पनी को वांछित दस्तावेज उपलब्ध न कराये गये हो अथवा इस सम्बन्ध में सर्वेयर को कोई सहयोग न किया गया हो। बीमा पॉलिसी की षर्तों अनुसार अप्रार्थी बीमा कम्पनी व उसके अधिकृत सर्वेयर का दायित्व था कि यथासंभव षीघ्रता से चोरी गये माल का एसेसमेंट कर परिवादी पक्ष को हुई क्षति की पूर्ति की जाती लेकिन अप्रार्थी पक्ष द्वारा ऐसा न कर सेवा दोश किया गया है। अप्रार्थी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क रहा है कि परिवादी द्वारा चोरी गये माल की कीमत का आंकलन भिन्न-भिन्न राषि में करते हुए पहले 3,40,000/- रूपये की चोरी होना बताया है जबकि अब परिवाद में मात्र 2,48,105/- की क्षति होना बताया है जो विरोधाभाशी है। इस सम्बन्ध में परिवादी पक्ष द्वारा स्पश्ट किया गया है कि पूर्व में चोरी गये माल के विक्रय मूल्य के आधार पर राषि की गणना की गई थी जबकि बाद मंे अप्रार्थी बीमा कम्पनी के निर्देष अनुसार ही चोरी गये माल के क्रय मूल्य अनुसार राषि की गणना कर चोरी से हुई क्षति का आंकलन करते हुए कुल 2,48,105/- रूपये की क्षतिपूर्ति चाही गई है। परिवादी पक्ष द्वारा दिये गये स्पश्टीकरण को देखते हुए अप्रार्थी बीमा कम्पनी का तर्क निराधार प्रतीत होता है।

 

8.            उपर्युक्त विवेचन को देखते हुए स्पश्ट है कि परिवादिया द्वारा यथासंभव वांछित दस्तावेज अप्रार्थी बीमा कम्पनी को उपलब्ध करवाये गये थे लेकिन अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने बिना किसी युक्तियुक्त आधार के परिवादी का क्लेम खारिज कर सेवा दोश किया है। जबकि अप्रार्थी बीमा कम्पनी का दायित्व था कि परिवादी की दुकान में हुई चोरी से हुई क्षति बाबत् 2,48,105/- रूपये की राषि अदा कर परिवादी की क्षतिपूर्ति की जाती। अप्रार्थी बीमा कम्पनी के सेवा दोश के कारण ही परिवादिया को मानसिक रूप से परेषान होते हुए यह परिवाद प्रस्तुत करना पडा। ऐसी स्थिति में परिवादिया को मानसिक क्षतिपूर्ति बाबत् 10,000/- दिलाने के साथ ही परिवाद व्यय दिलाया जाना भी न्यायोचित होगा।

 

 

 

 

 

 

आदेश

 

9.            परिवादिया राजबाला द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 खिलाफ अप्रार्थीगण स्वीकार किया जाकर आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थीगण, परिवादिया को दुकान में चोरी से हुई क्षति बाबत् 2,48,105/- रूपये अदा करें। अप्रार्थीगण इस राषि पर परिवादिया को परिवाद प्रस्तुत करने की दिनांक 16.04.2013 से 9 प्रतिषत वार्शिक साधारण ब्याजदर से ब्याज भी अदा करें। यह भी आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थीगण, परिवादिया को मानसिक संताप के 10,000/- रूपये एवं परिवाद व्यय के भी 5,000/- रूपये अदा करें। आदेष की पालना एक माह में की जावे।

 

10.          आदेष आज दिनांक 03.05.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।

 

नोटः- आदेष की पालना नहीं किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत तीन वर्श तक के कारावास या 10,000/- रूपये तक के जुर्माने से दण्डनीय अपराध है।

 

 

 

।बलवीर खुडखुडिया।                             ।ईष्वर जयपाल।                             

सदस्य                                      अध्यक्ष                           

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Shri Ishwardas Jaipal]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Balveer KhuKhudiya]
MEMBER

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