(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या : 180 /2019
(जिला उपभोक्ता फोरम, प्रथम, लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या-873/2012 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 10-01-2019 के विरूद्ध)
Amar Bahador Singh son of Late S.P. Singh, Sr. Law Manager Indian Oil Corporation Ltd., TC-39, Vibhut Khand Gomti Nagar Lucknow at Present residing at F-502, Rohtas Plumeria Homes, Vibhuti Khand, Gomti Nagar, Lucknow-226010.
.....अपीलार्थी/परिवादी
बनाम्
- Unitech Ltd., Real State Division, 3nd Floor YMCA Complex, 13, Rana Pratap Marg, Lucknow-226001, through its Managing Director.
- Mr. N.A. Khan General Manager, (MKtg) Real State Division, 3rd Floor, YMCA Compus, 13 Rana Pratap Marg, Lucknow-226001.
समक्ष :-
1- मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष ।
उपस्थिति :
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्री अशोक कुमार श्रीवास्तव।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित- कोई नहीं।
दिनांक : 12-06-2019
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मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवाद संख्या-873/2012 Amar Bahadur Singh बनाम् Unitech Limited व एक अन्य में जिला उपभोक्ता फोरम, प्रथम, लखनऊ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 10-01-2019 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद कालबाधित मानते हुए निरस्त कर दिया है, जिससे क्षुब्ध होकर परिवाद के परिवादी अमर बहादुर सिंह ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री अशोक कुमार श्रीवास्तव उपस्थित आये। प्रत्यर्थीगण की ओर से नोटिस तामीला पर्याप्त माने जाने के बाद भी कोई उपस्थित नहीं हुआ है। अत: अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता के तर्क को सुनकर अपील का निस्तारण किया जा रहा है।
मैंने अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध परिवाद जिला फोरम, प्रथम, लखनऊ के समक्ष प्रस्तुत कर निम्न अनुतोष चाहा है :-
- This Hon’ble Consumer Forum may kindly be graciously pleased to set aside and quash the acts of the opposite parties in cancelling the allotment and the Agreement of the Complainant as well as the letter dated 08-09-2010 conveying the above to the complainant in respect of the demised house mentioned in paragraph 3 above and the
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complainant may kindly be held to be entitled to the demised house and the opposite parties may kindly be directed to handover the peaceful possession of the said house, complete in all respects as per specifications to the complainant within such day and time to be fixed by this Hon’ble Consumer Forum.
- The alleged deductions made by the opposite parties as conveyed through the letter dated 08-09-2010 may kindly be held to be illegal and set aside.
- The opposite parties may kindly be directed for not to charge penal or other interest or escalation charges as alleged and if necessary to waive it in view of the facts and circumstances mentioned above.
- The opposite parties may kindly be directed to make payment of the interest at the rate of 18% per annum on the sum equivalent to 80% of the amount paid/ deposited by the complainant with the opposite parties with effect from the date of the said deposit until the delivery of possession of the demised house to the complainant.
- The opposite parties may kindly be directed to pay damages to the tune of Rs. 2,16,000/- representing the losses suffered by the complainant calculated at the rate of Rs. 10,000/- per month as rental with effect from january-1994 till date.
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- Costs of the above complaint may kindly be awarded to the complainant against the opposite parties.
- Such other relief or reliefs as this Hon’ble Consumer Forum may kindly deem just and proper in the circumstances of the case may also be passed in favour of the complainant against the opposite parties.
परिवाद जिला फोरम ने ग्रहण कर विपक्षीगण को नोटिस जारी की है। जिला फोरम के समक्ष विपक्षीगण ने उपस्थित होकर प्रारम्भिक आपत्ति इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि परिवाद कालबाधित है। मा0 राज्य आयोग, पटना ने निर्णय दिनांक 03-02-2009 के द्वारा परिवाद क्षेत्राधिकार के अभाव में खारिज करते हुए परिवादी को निर्देशित किया था कि वह उचित फोरम में अपना परिवाद दायर करें, तब मा0 राज्य आयोग, पटना के निर्णय के 03 वर्ष 07 माह बाद परिवाद जिला फोरम, लखनऊ में प्रस्तुत किया गया है। अत: परिवाद कालबाधित है।
जिला फोरम लखनऊ ने उभयपक्ष को सुनने के उपरान्त यह माना है कि परिवाद मा0 राज्य आयोग, पटना के आदेश 03-02-2009 के 03 वर्ष बाद दायर किया गया है और विलम्ब का कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है अत: ऐसी स्थिति में परिवाद कालबाधित है। अत: जिला फोरम ने परिवाद कालबाधा के आधार पर निरस्त कर दिया है।
अपीलार्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का कथन है कि परिवाद कालबाधित नहीं है। अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद में अनुतोष प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के पत्र दिनांक 08-09-2010 के द्वारा एलाटमेंट निरस्त किये जाने के संबंध में मांगा है और एलाटमेंट निरस्त किये जाने का यह पत्र प्रत्यर्थी/विपक्षीगण ने पत्र दिनांक 09-11-2011 के द्वारा अपीलार्थी/परिवादी को दिया है। अत: वर्तमान वाद का
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वादहेतुक पटना राज्य आयोग के अपील में पारित आदेश दिनांक 03-02-2009 के बाद दिनांक 09-11-2011 को तब उत्पन्न हुआ है जब अपीलार्थी/परिवादी को विपक्षीगण ने पत्र दिनांक 08-09-2010 के द्वारा एलाटमेंट निरस्त किये जाने की सूचना दी है अत: वर्तमान परिवाद में याचित अनुतोष के आधार पर परिवाद कालबाधित नहीं है।
मैंने अपीलार्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है।
परिवाद पत्र की धारा-23 में अपीलार्थी/परिवादी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि प्रथम बार विपक्षीगण ने पत्र दिनांक 09-11-2011 के द्वारा परिवादी को सूचित किया कि पत्र दिनांक 08-09-2010 के द्वारा विपक्षीगण की कम्पनी ने उसकी बुकिंग और एलाटमेंट प्रश्नगत यूनिट का निरस्त कर दिया है। अत: परिवाद पत्र के अनुसार वर्तमान परिवाद का वादहेतुक दिनांक 09-11-2011 को उत्पन्न हुआ है और परिवाद जिला फोरम के समक्ष दिनांक 19-09-2012 को प्रस्तुत किया गया है। ऐसी स्थिति में परिवाद को कालबाधित परिवाद पत्र के कथन के आधार पर नहीं कहा जा सकता है। परिवाद पत्र में किये गये कथन को पक्षकार साक्ष्य के द्वारा सही या गलत साबित कर सकते हैं अत: ऐसी स्थिति में इस संबंध में कोई अंतिम निर्णय उभयपक्ष के साक्ष्य के बाद ही लिया जाना विधिसम्मत है।
उपरोक्त के अतिरिक्त उल्लेखनीय है कि धारा-24-ए, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अनुसार जिला फोरम, राज्य आयोग अथवा राष्ट्रीय आयोग वाद हेतुक उत्पन्न होने के 02 वर्ष बाद प्रस्तुत परिवाद को ग्रहण नहीं कर सकते हैं, परन्तु विलम्ब का पर्याप्त कारण दर्शित किये जाने पर विलम्ब क्षमा करने हेतु कारण लिपिबद्ध करते हुए 02 वर्ष् के बाद प्रस्तुत परिवाद को भी जिला फोरम, राज्य आयोग अथवा राष्ट्रीय आयोग द्वारा ग्रहण किया जा सकता है। अत:
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कालबाधा के प्रश्न पर परिवाद ग्रहण करने के पूर्व ही जिला फोरम को विचार करना चाहिए था, परन्तु जिला फोरम ने परिवाद सुनवाई हेतु ग्रहण किया है और विपक्षीगण को नोटिस जारी किया है। उसके बाद कालबाधा के आधार पर परिवाद निरस्त कर दिया है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि जिला फोरम ने धारा-24-ए, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधान का पालन नहीं किया है। जिससे विलम्ब का कारण दर्शित करने और अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अवसर अपीलार्थी/परिवादी को नहीं मिला है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर मैं इस मत का हूँ कि अपील स्वीकार करते हुए जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश को अपास्त किया जाये और पत्रावली जिला फोरम को इस निर्देश के साथ प्रत्यावर्तित की जाए कि जिला फोरम परिवाद को अपने पुराने नम्बर पर पुर्न:स्थापित कर उभयपक्ष को साक्ष्य और सुनवाई का अवसर देकर विधि के अनुसार परिवाद में अपना निर्णय व आदेश पारित करें और परिवाद में मियादबाधा के संबंध में उभयपक्षों के साक्ष्य और सुनवाई के बाद विधि के अनुसार निर्णय पारित करें।
जिला फोरम के समक्ष हाजिरी हेतु दिनांक 12-07-2019 तिथि नियत हो।
जिला फोरम परिवाद को अपने पुराने नम्बर पर पुर्न:स्थापित कर विपक्षीगण को नोटिस भेजेगा और उसके बाद विधि के अनुसार परिवाद की अग्रिम कार्यवाही सुनिश्चित करेगा।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा, आशु0