सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
परिवाद संख्या-40/2014
1. अजय कुमार अग्रवाल पुत्र श्री शान्ती स्वरूप।
2. अरूण कुमार पुत्र श्री रघुराज सरन।
निवासीगण-कटरा रोड अमरोहा, जिला-जे.पी. नगर, (उत्तर प्रदेश) पिनकोड-244221 ।
परिवादीगण
बनाम्
1. यूनीटेक लिमिटेड, रजिस्टर्ड आफिस, 6 कम्मूनिटी सेन्टर, साकेत, न्यू देलही 110017 द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर।
2. यूनीटेक लिमिटेड, UGCC Pavillion सेक्टर-96, एक्सप्रेस वे, निकट एमिटी मैनेजमेंट स्कूल, नोएडा, 201305 (उत्तर प्रदेश) द्वारा प्रबन्धक।
विपक्षीगण
समक्ष:-
1. माननीय श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
परिवादीगण की ओर से : श्री बी0के0 उपाध्याय, विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षीगण की ओर से : श्री रफीक खान, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 19.06.2019
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत परिवाद, प्रश्नगत सम्पत्ति के आवंटन के निरस्तीकरण दिनांकित 15.04.2013 को निरस्त करने एवं परिवादीगण द्वारा आवंटन के तहत जमा 13,50,000/- रूपये की मय ब्याज वापसी हेतु योजित किया गया है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादीगण के कथनानुसार विपक्षीगण की HBTN TOWER 14 UNITECH HABITAT योजना के अन्तर्गत अपार्टमेंट नं0-504, पांचवा फ्लोर, ब्लाक HBTN TOWER 14, एरिया 2096 वर्गफिट के आवंटन हेतु परिवादीगण द्वारा आवेदन किया गया तथा मांग के अनुसार दिनांकित 13.06.2006 को 2,50,000/- रूपये विपक्षीगण के यहां जमा किये गये तथा दिनांक 13.06.2006 को 4,00,000/- रूपये भी विपक्षीगण के यहां जमा किये गये। उक्त धनराशि 6,50,000/- रूपये विपक्षीगण के यहां जमा करने के उपरान्त विपक्षीगण द्वारा उक्त अपार्टमेंट दिनांक 07.11.2006 को आंवटित किया गया। पक्षकारों के मध्य अनुबंध निष्पादित हुआ। उक्त आवंटन के बाद दिनांक 27.11.2006 को 6,00,000/- रूपये विपक्षीगण के यहां जमा किये गये। ठीक इसी प्रकार 1,00,000/- रूपये दिनांक 13.12.2006 को विपक्षीगण के यहां जमा किये गये। इस प्रकार कुल 13,50,000/- रूपये विपक्षीगण के यहां जमा किये जाने के बावजूद विपक्षीगण द्वारा अपार्टमेंट का निर्माण कार्य शुरू नहीं किया गया, जबकि अनंबंध के तहत 36 माह में अपार्टमेंट नम्बर-604, छठा फ्लोर पर तैयार कर कब्जा देने की जिम्मेदारी विपक्षीगण की थी, किन्तु विपक्षीगण द्वारा निर्माण कार्य नहीं किया गया। परिवादीगण द्वारा बार-बार शिकायत की गयी, किन्तु विपक्षीगण द्वारा टाल-मटोल किया जाता रहा। आवंटन के अनुसार आवंटित अपार्टमेंट का मूल्य 69,87,152/- रूपये निर्धारित था। अनुबंध की धारा-4 ई के तहत यह व्यवस्था दी गयी कि विपक्षीगण द्वारा आफर के तहत आवंटित अपार्टमेंट उपलब्ध कराने में सक्षम न होने पर वह सम्पूर्ण जमा धनराशि 10 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित वापस कर देंगे, लेकिन 3 वर्ष का समय व्यतीत हो जाने के बावजूब भी विपक्षीगण द्वारा उक्त आवंटित अपार्टमेंट तैयार नहीं किया गया तथा कब्जा भी प्रदान नहीं किया गया, जिसके कारण परिवादीगण को आर्थिक क्षति हुई। विपक्षीगण के त्रुटिपूर्ण एवं अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस के कारण 13,50,000/- रूपये की धनराशि अदा करने के बाद भी अपार्टमेंट निर्माण न होने के कारण आगे शेष धनराशि अदा नहीं की गयी, क्योंकि विपक्षीगण द्वारा अनुबंध के अनुसार 3 वर्ष के निर्धारित समय में अपार्टमेंट निर्माण न कराकर आवंटन पत्र की धारा 4.ए का उल्लंघन किया गया है। विपक्षीगण द्वारा एन-केन प्रकारेण परिवादीगण से शेष धनराशि की मांग का दबाव दिया जा रहा है, किन्तु अपार्टमेंट के निर्माण हेतु 3 वर्ष के स्थान पर 6 वर्ष का समय बीत जाने पर भी निर्माण कार्य पूर्ण नहीं किया गया और न ही कब्जा प्रदान किया गया। इसके बावजूद दिनांक 15.04.2013 को विपक्षीगण द्वारा केन्सीलेसन लेटर परिवादीगण को भेजा गया तथा अपनी त्रुटियों को छिपाकर आवंटन निरस्त कर जमा धनराशि जब्त करने की सूचना दी गयी। विपक्षीगण द्वारा स्वंय अनुबंध पत्र की शर्तों का उल्लंघन किया गया है। अत: धनराशि जब्त करने का आदेश अवैध है।
विपक्षीगण द्वारा प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया। प्रतिवाद पत्र में विपक्षीगण द्वारा प्रश्नगत फ्लैट परिवादीगण को आवंटित किये जाने तथा उभय पक्ष के मध्य उक्त आवंटन के सन्दर्भ में अनुबंध पत्र दिनांकित 07.11.2006 का निष्पादन एवं परिवादीगण द्वारा उक्त आवंटन के सन्दर्भ में विभिन्न तिथियों पर कुल 13,50,000/- रूपये जमा किया जाना स्वीकार किया गया, किन्तु विपक्षीगण का यह कथन है कि पक्षकारों के मध्य निष्पादित इकरारनामा दिनांकित 07.11.2006 के अन्तर्गत निर्धारित पेमेन्ट प्लान के अनुसार परिवादीगण द्वारा धनराशि का भुगतान नहीं किया गया। परिवादीगण को विपक्षीगण द्वारा भुगतान हेतु अनेक पत्र प्रेषित किये गये, किन्तु परिवादीगण ने न ही भुगतान किया और न ही पत्रों का उत्तर दिया। परिवादीगण द्वारा भुगतान न किये जाने के बावजूद विपक्षीगण ने प्रश्नगत फ्लैट का निर्माण पूरा किया तथा इसका कब्जा प्राप्त करने हेतु पत्र दिनांकित 17.01.2011 द्वारा परिवादीगण को सूचित किया साथ ही दिनांक 15.01.2011 को देय धनराशि से संबंधित खाते का विवरण एवं मेन्टेनेंस इन्वाइस दिनांकित 15.01.2011 भी प्रेषित की। परिवादीगण द्वारा बकाया धनराशि का भुगतान न किया जाना एवं बकाया धनराशि का भुगतान करके कब्जा प्राप्त न किये जाने की स्थिति में इकरारनामे की शर्तों के अनुसार परिवादीगण को आवंटित फ्लैट का आवंटन निरस्त करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प शेष नहीं रह गया। अत: विपक्षीगण ने एक नोटिस दिनांकित 28.03.2013 परिवादीगण को प्रेषित की तथा अंतिम नोटिस दिनांकित 05.04.2013 को प्रेषित की। अंतिम नोटिस में यह भी स्पष्ट रूप से उल्लिखित किया गया था कि यदि निर्धारित अवधि तक समस्त देय धनराशि का भुगतान इकरारनामे की शर्तों के अनुसार नहीं किया गया तब जमानत की धनराशि भी जब्त कर ली जाएगी तथा आवंटन बिना किसी अन्य नोटिस के निरस्त कर दिया जाएगा। परिवादीगण को पर्याप्त समय दिये जाने तथा नोटिस दिये जाने के बाद विपक्षीगण ने प्रश्नगत फ्लैट का आवंटन अपने पत्र दिनांकित 15.04.2013 द्वारा निरस्त कर दिया तथा इकरारनामे की शर्तों के अनुसार जमा की गयी धनराशि/जमानत धनराशि जब्त कर ली। परिवादीगण का प्रश्नगत फ्लैट का आवंटन निरस्त किया जा चुका है। अत: परिवाद पोषणीय नहीं है।
परिवादीगण की ओर से परिवाद के साथ परिवादी, अजय कुमार अग्रवाल का शपथपत्र एवं 5 संलग्नक दाखिल किये गये हैं। पुन: परिवादी की ओर से शपथपत्र दिनांकित 31.08.2017 दाखिल किया गया है, इस शपथपत्र के साथ 7 संलग्नक भी दाखिल किये गये हैं।
विपक्षीगण की ओर से प्रतिवाद पत्र के समर्थन में कोई अतिरिक्त साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गयी है।
हमने परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री बी0के0 उपाध्याय तथा विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री रफीक खान के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया।
परिवादीगण की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत फ्लैट के आवंटन के सन्दर्भ में परिवादीगण द्वारा 13,50,000/- रूपये विभिन्न तिथियों में विपक्षीगण के यहां जमा किये जा चुके हैं। प्रश्नगत आवंटन के सन्दर्भ में दिनांक 07.11.2006 को परिवादीगण के पक्ष में प्रश्नगत फ्लैट आवंटित किया गया तथा उभय पक्ष के मध्य अनुबंध पत्र निष्पादित किया गया। यह अनुबंध पत्र परिवाद पत्र के साथ संलग्नक-3 के रूप में दाखिल किया गया है। इस अनुबंध पत्र की धारा-4 ए के अनुसार प्रश्नगत फ्लैट का कब्जा अनुबंध पत्र निष्पादित किये जाने से 36 माह के अन्दर परिवादीगण को प्राप्त कराया जाना था, किन्तु प्रश्नगत फ्लैट का निर्माण इस अवधि के मध्य नहीं किया गया। परिवादी, अजय कुमार अग्रवाल ने अपने शपथपत्र दिनांकित 31.08.2017 में यह अभिकथित किया है कि 3 वर्ष के स्थान पर 6 वर्ष बीत जाने के बावजूद भी अपार्टमेंट का निर्माण पूर्ण नहीं किया गया तथा अपार्टमेंट का कब्जा नहीं दिया गया। अपार्टमेंट का निर्माण पूर्ण न करने के बावजूद विपक्षीगण ने अपने पत्र दिनांकित 15.04.2013 द्वारा परिवादीगण के प्रश्नगत फ्लैट का आवंटन अवैध रूप से निरस्त कर दिया गया तथा परिवादीगण द्वारा जमा की गयी धनराशि भी जब्त कर ली। परिवादीगण की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि स्वंय विपक्षीगण ने अनुबंध पत्र की शर्तों का उल्लंघन करते हुए अनुबंध पत्र में निर्धारित अवधि के मध्य प्रश्नगत फ्लैट का निर्माण नहीं किया। ऐसी परिस्थिति में प्रश्नगत अनुबंध की अन्य शर्तें गौण मानी जाएगी। विपक्षीगण को अवैध रूप से परिवादीगण द्वारा जमा की गयी धनराशि को जब्त करने का कोई अधिकार नहीं है। परिवादीगण द्वारा जमा की गयी धनराशि को जब्त करके एवं प्रश्नगत फ्लैट का कब्जा परिवादीगण को प्राप्त न करा कर विपक्षीगण द्वारा सेवा में त्रुटि की गयी है। अत: जमा की गयी धनराशि पर 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दिलाये जाने तथा क्षतिपूर्ति की अदायगी का परिवादीगण को अधिकारी होना बताया गया।
विपक्षीगण की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि निर्विवाद रूप से प्रश्नगत फ्लैट का आवंटन परिवादीगण के पक्ष में किया गया तथा पक्षकारों के मध्य अनुबंध पत्र दिनांकित 07.11.2006 निष्पादित किया गया। इस अनुबंध पत्र के साथ प्रश्नगत फ्लैट के मूल्य के भुगतान हेतु पेमेन्ट प्लान जारी किया गया। इस पेमेन्ट प्लान के अनुसार ही परिवादीगण को धनराशि जमा करनी थी, किन्तु परिवादीगण ने दिनांक 20.06.2006 को बुकिंग धनराशि के मद में 6,65,480/- रूपये के स्थान पर 6,50,000/- रूपये जमा करने के उपरान्त पहली किस्त के रूप में दिनांक 01.09.2006 को 6,65,480/- रूपये के स्थान पर दिनांक 27.11.2006 को रू0 6,00,000/- जमा किये तथा दूसरी किस्त के रूप में दिनांक 01.12.2006 को 8,15,480/- रूपये के स्थान पर दिनांक 01.03.2007 को रू0 7,43,032/- रूपये, चौथी किस्त के रूप में दिनांक 01.06.2007 को 7,70,280/- रूपये, पांचवी किस्त के रूप में दिनांक 01.09.2007 को 4,99,110/- रूपये, छठी किस्त के रूप में दिनांक 01.12.2007 को 4,99,110/- रूपये, सातवीं किस्त के रूप में दिनांक 01.03.2008 को 4,99,110/- रूपये, आठवीं किस्त के रूप में दिनांक 01.06.2008 को 4,99,110/- रूपये, नौवीं किस्त के रूप में दिनांक 01.09.2008 को 3,32,740/- रूपये, दसवी किस्त के रूप में दिनांक 01.12.2008 को 3,32,740/- रूपये, ग्यारहवीं किस्त के रूप में दिनांक 01.03.2009 को 3,32,740/- रूपये तथा कब्जा की फाइनल नोटिस के समय 6,97,292/- रूपये देय थे, किन्तु परिवादीगण द्वारा यह धनराशि जमा नहीं की गयी, जबकि विपक्षीगण द्वारा देय किस्तों की अदायगी हेतु वर्ष 2006 से वर्ष 2009 तक अनेकों मांग पत्र भेजे गए। तदोपरान्त अनेक अनुस्मारक पत्र भी प्रेषित किये गये। मांग पत्रों तथा अनुस्मारक पत्रों का विवरण प्रतिवाद पत्र की धारा 8 में वर्णित किया गया है। विपक्षीगण की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया है कि परिवादीगण द्वारा बकाया धनराशि का भुगतान न किये जाने के बावजूद प्रश्नगत फ्लैट का निर्माण पूर्ण होने के बाद परिवादीगण को प्रश्नगत फ्लैट का कब्जा बकाया धनराशि के बाद प्राप्त करने हेतु पत्र दिनांकित 17.01.2011 को भेजा गया, किन्तु परिवादीगण द्वारा बकाया धनराशि का भुगतान नहीं किया गया तथा कब्जा भी प्राप्त नहीं किया गया। दिनांक 28.03.2013 को परिवादीगण को पुन: नोटिस भेजी गयी तथा परिवादीगण को सुझाव दिया गया कि बकाया धनराशि का भुगतान करे आवंटन निरस्त किये जाने से पूर्व परिवादीगण को एक अंतिम नोटिस दिनांकित 05.04.2013 भी भेजी गयी। परिवादीगण को पर्याप्त अवसर दिये जाने तथा नोटिस दिये जाने के बावजूद परिवादीगण द्वारा बकाया धनराशि का भुगतान न किये जाने पर अनुबंध पत्र की धारा 2 जी के अन्तर्गत परिवादीगण का प्रश्नगत आवंटन निरस्त कर दिया गया तथा जमानत की धनराशि जब्त कर ली गयी।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि प्रश्नगत फ्लैट के आवंटन के सन्दर्भ में परिवादीगण के पक्ष में आवंटन पत्र दिनांकित 07.11.2006 जारी किया जाना निर्विवादित है। यह तथ्य भी निर्विवादित है कि प्रश्नगत फ्लैट आंवटित किये जाते समय प्रश्नगत फ्लैट का मूल्य 69,87,152/- रूपये निर्धारित किया गया। आवंटन पत्र दिनांकित 07.11.2006 की फोटोप्रति परिवाद के साथ संलग्नक-4 के रूप में दाखिल की गयी। इस आवंटन पत्र की शर्त संख्या-4 ए के अनुसार प्रश्नगत फ्लैट का कब्जा 36 माह में परिवादीगण को दिया जाना था। परिवादीगण का यह कथन है कि विपक्षीगण द्वारा फ्लैटका निर्माण कार्य 6 वर्ष बीत जाने के बाद भी नहीं किया गया। इस सन्दर्भ में परिवादीगण की ओर से परिवादी का शपथपत्र भी प्रस्तुत किया गया है। यद्यपि विपक्षीगण ने अपने प्रतिवाद पत्र में यह अभिकथित किया है कि प्रश्नगत फ्लैट का निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है। परिवादीगण को फ्लैट का कब्जा प्राप्त करने हेतु नोटिस भी भेजी गयी, किन्तु परिवादीगण द्वारा प्रश्नगत फ्लैट के सन्दर्भ में मात्र 13,50,000/- रूपये का भुगतान किया गया। आवंटन पत्र दिनांकित 07.11.2006 के अन्तर्गत प्रस्तुत पेमेन्ट प्लान के अनुसार शेष धनराशि की अदायगी परिवादीगण द्वारा नहीं की गयी, जबकि शेष धनराशि की अदायगी हेतु परिवादीगण को अनेक मांग पत्र भेजे गए, किन्तु परिवादीगण द्वारा शेष बकाया धनराशि का भुगतान नहीं किया गया। अत: आवंटन पत्र की धारा 2 जी के अन्तर्गत जमा की गयी धनराशि जब्त की गयी तथा आवंटन निरस्त कर दिया गया।
उल्लेखनीय है कि विपक्षीगण द्वारा इस सन्दर्भ में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गयी है कि प्रश्नगत फ्लैट का निर्माण पूर्ण हो चुका है। विपक्षीगण की ओर से इस सन्दर्भ में कोई शपथपत्र तक प्रस्तुत नहीं किया गया है। प्रश्नगत फ्लैट का आवंटन पत्र दिनांकित 15.04.2013 द्वारा निरस्त किया गया है, किन्तु पत्रावली में विपक्षीगण की ओर से इस सन्दर्भ में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं है कि उक्त तिथि तक प्रश्नगत परियोजना के संबंध में तथा प्रश्नगत फ्लैट के संबंध में विपक्षीगण द्वारा निर्माण कार्य पूर्ण किया जा चुका था। प्रश्नगत परियोजना के अन्तर्गत प्रश्नगत फ्लैट के निर्माण कार्य के सन्दर्भ में कोई साक्ष्य प्रस्तुत किये बिना परिवादीगण द्वारा निर्विवाद रूप से जमा की गयी धनराशि जब्त किया जाना विधिसम्मत नहीं माना जा सकता, किन्तु यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि निर्विवाद रूप से प्रश्नगत आवंटित फ्लैट का मूल्य आंवटन पत्र के अनुसार 69,87,152/- रूपये निर्धारित किया गया था तथा इस धनराशि का भुगतान आवंटन पत्र के साथ जारी किये गये पेमेन्ट प्लान के अनुसार परिवादीगण द्वारा किया जाना था। विपक्षीगण ने पेमेन्ट प्लान के अनुसार देय धनराशि का विवरण प्रतिवाद पत्र की धारा 7 में प्रस्तुत किया है। परिवादीगण का यह कथन नहीं है कि विपक्षीगण द्वारा वर्णित पेमेन्ट प्लान के अन्तर्गत परिवादीगण द्वारा भुगतान नहीं किया जाना था। इस प्रकार परिवादीगण अपेक्षा कर रहे हैं कि लगभग 70 लाख रूपये मूल्य के फ्लैट का निर्माण कार्य उसके द्वारा जमा किये गये मात्र 13,50,000/- रूपये के बावजूद तथा पेमेन्ट प्लान के अनुसार शेष धनराशि का भुगतान न किये जाने के बावजूद आवंटन पत्र के अन्तर्गत निर्धारित समय-सीमा के अन्दर फ्लैट का निर्माण न किये जाने के कारण उसके द्वारा जमा किये गये 13,50,000/- रूपये की धनराशि पर उसे 18 प्रतिशत ब्याज दिलाया जाए तथा क्षतिपूर्ति का भुगतान किया जाए। परिवादीगण की यह मांग न्यायसंगत नहीं मानी जा सकती है। मामलें के तथ्यों एवं परिस्थितियों के आलोक में परिवादीगण द्वारा जमा की गयी धनराशि जमा किये जाने की तिथि से 06 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित परिवादीगण को वापस दिलाया जाना न्यायसंगत होगा। परिवादी तदनुसार आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वह इस निर्णय की प्रति प्राप्ति की तिथि से 45 दिन के अन्दर परिवादीगण को जमा धनराशि रू0 13,50,000/- (तेरह लाख पचास हजार रूपये) पर जमा किये जाने की विभिन्न तिथियों से अदायगी की तिथि तक 06 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज सहित भुगतान की जाए। विपक्षीगण को यह भी आदेशित किया जाता है कि परिवादीगण को को रू0 5,000/- (पांच हजार रूपये) निर्धारित अवधि में परिवाद व्यय भी भुगतान करें।
उभय पक्ष को इस निर्णय एवं आदेश की सत्यप्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्द्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2
सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
परिवाद संख्या-39/2014
1. रवि राज सरन पुत्र श्री रघुराज सरन।
2. श्रीमती ऊषा गोयल पत्नी श्री नरेश चन्द गोयल।
निवासीगण-कटरा गुलाम अली, जे.पी. नगर, अमरोहा, (उत्तर प्रदेश) पिनकोड-244221 ।
परिवादीगण
बनाम्
1. यूनीटेक लिमिटेड, रजिस्टर्ड आफिस, 6 कम्मूनिटी सेन्टर, साकेत, न्यू देलही 110017 द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर।
2. यूनीटेक लिमिटेड, UGCC Pavillion सेक्टर-96, एक्सप्रेस वे, निकट एमिटी मैनेजमेंट स्कूल, नोएडा, 201305 (उत्तर प्रदेश) द्वारा प्रबन्धक।
विपक्षीगण
समक्ष:-
1. माननीय श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
परिवादीगण की ओर से : श्री बी0के0 उपाध्याय, विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षीगण की ओर से : श्री रफीक खान, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 19.06.2019
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत परिवाद, प्रश्नगत सम्पत्ति के आवंटन के निरस्तीकरण दिनांकित 15.04.2013 को निरस्त करने एवं परिवादीगण द्वारा आवंटन के तहत जमा 13,50,000/- रूपये की मय ब्याज वापसी हेतु योजित किया गया है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादीगण के कथनानुसार विपक्षीगण की HBTN TOWER 14 UNITECH HABITAT योजना के अन्तर्गत अपार्टमेंट नं0-504, पांचवा फ्लोर, ब्लाक HBTN TOWER 14, एरिया 2096 वर्गफिट के आवंटन हेतु परिवादीगण द्वारा आवेदन किया गया तथा मांग के अनुसार दिनांकित 13.06.2006 को 3,50,000/- रूपये विपक्षीगण के यहां जमा किये गये तथा दिनांक 18.06.2006 को 3,00,000/- रूपये भी विपक्षीगण के यहां जमा किये गये। ठीक इसी प्रकार 2,00,000/- रूपये दिनांक 15.11.2006 को विपक्षीगण के यहां जमा किये गये। इस प्रकार कुल 8,50,000/- रूपये दिनांक 15.11.2006 तक विपक्षीगण के यहां जमा करने के उपरान्त विपक्षीगण द्वारा अपार्टमेंट नम्बर-504, पांचवा फ्लोर, ब्लाक HBTN TOWER 14, एरिया 2096 ग्रेटर नोएडा, जिला गौतमबुद्ध नगर परिवादीगण के पक्ष में आवंटित किया गया तथा दोनों पक्षों के मध्य अनुबंध निष्पादित हुआ। उक्त आंवटन के बाद दिनांक 27.11.2006 को 2,00,000/- रूपये विपक्षीगण के यहां जमा किये गये। ठीक इसी प्रकार दिनांक 31.01.2007 को 3,50,000/- रूपये विपक्षीगण के यहां जमा किये गये। इस प्रकार कुल 14,00,000/- रूपये विपक्षीगण के यहां जमा किये जाने के बावजूद विपक्षीगण द्वारा अपार्टमेंट का निर्माण कार्य शुरू नहीं किया गया, जबकि उक्त अनुबंध के तहत 36 माह में अपार्टमेंट नम्बर-504 पांचवा फ्लोर पर तैयार कर कब्जा देने की जिम्मेदारी विपक्षीगण की थी, किन्तु विपक्षीगण द्वारा निर्माण कार्य नहीं किया गया। परिवादीगण द्वारा बार-बार शिकायत की गयी, किन्तु विपक्षीगण द्वारा टाल-मटोल किया जाता रहा। आवंटन के अनुसार आवंटित अपार्टमेंट का मूल्य 69,87,152/- रूपये निर्धारित था। अनुबंध की धारा-4 ई के तहत यह व्यवस्था दी गयी कि विपक्षीगण द्वारा आफर के तहत आवंटित अपार्टमेंट उपलब्ध कराने में सक्षम न होने पर वह सम्पूर्ण जमा धनराशि 10 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित वापस कर देंगे, लेकिन 3 वर्ष का समय व्यतीत हो जाने के बावजूब भी विपक्षीगण द्वारा उक्त आवंटित अपार्टमेंट तैयार नहीं किया गया तथा कब्जा भी प्रदान नहीं किया गया, जिसके कारण परिवादीगण को आर्थिक क्षति हुई। विपक्षीगण के त्रुटिपूर्ण एवं अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस के कारण 14,00,000/- रूपये की धनराशि अदा करने के बाद भी अपार्टमेंट निर्माण न होने के कारण आगे शेष धनराशि अदा नहीं की गयी, क्योंकि विपक्षीगण द्वारा अनुबंध के अनुसार 3 वर्ष के निर्धारित समय में अपार्टमेंट निर्माण न कराकर आवंटन पत्र की धारा 4.ए का उल्लंघन किया गया है। विपक्षीगण द्वारा एन-केन प्रकारेण परिवादीगण से शेष धनराशि की मांग का दबाव दिया जा रहा है, किन्तु अपार्टमेंट के निर्माण हेतु 3 वर्ष के स्थान पर 6 वर्ष का समय बीत जाने पर भी निर्माण कार्य पूर्ण नहीं किया गया और न ही कब्जा प्रदान किया गया। इसके बावजूद दिनांक 15.04.2013 को विपक्षीगण द्वारा केन्सीलेसन लेटर परिवादीगण को भेजा गया तथा अपनी त्रुटियों को छिपाकर आवंटन निरस्त कर जमा धनराशि जब्त करने की सूचना दी गयी। विपक्षीगण द्वारा स्वंय अनुबंध पत्र की शर्तों का उल्लंघन किया गया है। अत: धनराशि जब्त करने का आदेश अवैध है।
विपक्षीगण द्वारा प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया। प्रतिवाद पत्र में विपक्षीगण द्वारा प्रश्नगत फ्लैट परिवादीगण को आवंटित किये जाने तथा उभय पक्ष के मध्य उक्त आवंटन के सन्दर्भ में अनुबंध पत्र दिनांकित 15.11.2006 का निष्पादन एवं परिवादीगण द्वारा उक्त आवंटन के सन्दर्भ में विभिन्न तिथियों पर कुल 14,00,000/- रूपये जमा किया जाना स्वीकार किया गया, किन्तु विपक्षीगण का यह कथन है कि पक्षकारों के मध्य निष्पादित इकरारनामा दिनांकित 15.11.2006 के अन्तर्गत निर्धारित पेमेन्ट प्लान के अनुसार परिवादीगण द्वारा धनराशि का भुगतान नहीं किया गया। परिवादीगण को विपक्षीगण द्वारा भुगतान हेतु अनेक पत्र प्रेषित किये गये, किन्तु परिवादीगण ने न ही भुगतान किया और न ही पत्रों का उत्तर दिया। परिवादीगण द्वारा भुगतान न किये जाने के बावजूद विपक्षीगण ने प्रश्नगत फ्लैट का निर्माण पूरा किया तथा इसका कब्जा प्राप्त करने हेतु पत्र दिनांकित 17.01.2011 द्वारा परिवादीगण को सूचित किया साथ ही दिनांक 15.01.2011 को देय धनराशि से संबंधित खाते का विवरण एवं मेन्टेनेंस इन्वाइस दिनांकित 15.01.2011 भी प्रेषित की। परिवादीगण द्वारा बकाया धनराशि का भुगतान न किया जाना एवं बकाया धनराशि का भुगतान करके कब्जा प्राप्त न किये जाने की स्थिति में इकरारनामे की शर्तों के अनुसार परिवादीगण को आवंटित फ्लैट का आवंटन निरस्त करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प शेष नहीं रह गया। अत: विपक्षीगण ने एक नोटिस दिनांकित 28.03.2013 परिवादीगण को प्रेषित की तथा अंतिम नोटिस दिनांकित 05.04.2013 को प्रेषित की। अंतिम नोटिस में यह भी स्पष्ट रूप से उल्लिखित किया गया था कि यदि निर्धारित अवधि तक समस्त देय धनराशि का भुगतान इकरारनामे की शर्तों के अनुसार नहीं किया गया तब जमानत की धनराशि भी जब्त कर ली जाएगी तथा आवंटन बिना किसी अन्य नोटिस के निरस्त कर दिया जाएगा। परिवादीगण को पर्याप्त समय दिये जाने तथा नोटिस दिये जाने के बाद विपक्षीगण ने प्रश्नगत फ्लैट का आवंटन अपने पत्र दिनांकित 15.04.2013 द्वारा निरस्त कर दिया तथा इकरारनामे की शर्तों के अनुसार जमा की गयी धनराशि/जमानत धनराशि जब्त कर ली। परिवादीगण का प्रश्नगत फ्लैट का आवंटन निरस्त किया जा चुका है। अत: परिवाद पोषणीय नहीं है।
परिवादीगण की ओर से परिवाद के साथ परिवादी, अजय कुमार अग्रवाल का शपथपत्र एवं 8 संलग्नक दाखिल किये गये हैं। पुन: परिवादी की ओर से शपथपत्र दिनांकित 31.08.2017 दाखिल किया गया है, इस शपथपत्र के साथ 8 संलग्नक भी दाखिल किये गये हैं।
विपक्षीगण की ओर से प्रतिवाद पत्र के समर्थन में कोई अतिरिक्त साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गयी है।
हमने परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री बी0के0 उपाध्याय तथा विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री रफीक खान के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया।
परिवादीगण की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत फ्लैट के आवंटन के सन्दर्भ में परिवादीगण द्वारा 14,00,000/- रूपये विभिन्न तिथियों में विपक्षीगण के यहां जमा किये जा चुके हैं। प्रश्नगत आवंटन के सन्दर्भ में दिनांक 15.11.2006 को परिवादीगण के पक्ष में प्रश्नगत फ्लैट आवंटित किया गया तथा उभय पक्ष के मध्य अनुबंध पत्र निष्पादित किया गया। यह अनुबंध पत्र परिवाद पत्र के साथ संलग्नक-4 के रूप में दाखिल किया गया है। इस अनुबंध पत्र की धारा-4 ए के अनुसार प्रश्नगत फ्लैट का कब्जा अनुबंध पत्र निष्पादित किये जाने से 36 माह के अन्दर परिवादीगण को प्राप्त कराया जाना था, किन्तु प्रश्नगत फ्लैट का निर्माण इस अवधि के मध्य नहीं किया गया। परिवादी, अजय कुमार अग्रवाल ने अपने शपथपत्र दिनांकित 31.08.2017 में यह अभिकथित किया है कि 3 वर्ष के स्थान पर 6 वर्ष बीत जाने के बावजूद भी अपार्टमेंट का निर्माण पूर्ण नहीं किया गया तथा अपार्टमेंट का कब्जा नहीं दिया गया। अपार्टमेंट का निर्माण पूर्ण न करने के बावजूद विपक्षीगण ने अपने पत्र दिनांकित 15.04.2013 द्वारा परिवादीगण के प्रश्नगत फ्लैट का आवंटन अवैध रूप से निरस्त कर दिया गया तथा परिवादीगण द्वारा जमा की गयी धनराशि भी जब्त कर ली। परिवादीगण की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि स्वंय विपक्षीगण ने अनुबंध पत्र की शर्तों का उल्लंघन करते हुए अनुबंध पत्र में निर्धारित अवधि के मध्य प्रश्नगत फ्लैट का निर्माण नहीं किया। ऐसी परिस्थिति में प्रश्नगत अनुबंध की अन्य शर्तें गौण मानी जाएगी। विपक्षीगण को अवैध रूप से परिवादीगण द्वारा जमा की गयी धनराशि को जब्त करने का कोई अधिकार नहीं है। परिवादीगण द्वारा जमा की गयी धनराशि को जब्त करके एवं प्रश्नगत फ्लैट का कब्जा परिवादीगण को प्राप्त न करा कर विपक्षीगण द्वारा सेवा में त्रुटि की गयी है। अत: जमा की गयी धनराशि पर 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दिलाये जाने तथा क्षतिपूर्ति की अदायगी का परिवादीगण को अधिकारी होना बताया गया।
विपक्षीगण की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि निर्विवाद रूप से प्रश्नगत फ्लैट का आवंटन परिवादीगण के पक्ष में किया गया तथा पक्षकारों के मध्य अनुबंध पत्र दिनांकित 15.11.2006 निष्पादित किया गया। इस अनुबंध पत्र के साथ प्रश्नगत फ्लैट के मूल्य के भुगतान हेतु पेमेन्ट प्लान जारी किया गया। इस पेमेन्ट प्लान के अनुसार ही परिवादीगण को धनराशि जमा करनी थी, किन्तु परिवादीगण ने दिनांक 20.06.2006 को बुकिंग धनराशि के मद में 6,65,480/- रूपये के स्थान पर 6,50,000/- रूपये जमा करने के उपरान्त पहली किस्त के रूप में दिनांक 01.09.2006 को 6,65,480/- रूपये के स्थान पर दिनांक 15.11.2006 को रू0 2,00,000/- जमा किये तथा दूसरी किस्त के रूप में दिनांक 01.12.2006 को 8,15,480/- रूपये के स्थान पर दिनांक 27.11.2006 को रू0 2,00,000/- रूपये तथा तृतीय किस्त के रूप में दिनांक 01.03.2007 को 7,43,032/- रूपये के स्थान पर दिनांक 31.01.2007 को 3,50,000/- रूपये जमा किये तदोपरान्त चौथी किस्त के रूप में दिनांक 01.06.2007 को 7,70,280/- रूपये, पांचवी किस्त के रूप में दिनांक 01.09.2007 को 4,99,110/- रूपये, छठी किस्त के रूप में दिनांक 01.12.2007 को 4,99,110/- रूपये, सातवीं किस्त के रूप में दिनांक 01.03.2008 को 4,99,110/- रूपये, आठवीं किस्त के रूप में दिनांक 01.06.2008 को 4,99,110/- रूपये, नौवीं किस्त के रूप में दिनांक 01.09.2008 को 3,32,740/- रूपये, दसवी किस्त के रूप में दिनांक 01.12.2008 को 3,32,740/- रूपये, ग्यारहवीं किस्त के रूप में दिनांक 01.03.2009 को 3,32,740/- रूपये तथा कब्जा की फाइनल नोटिस के समय 6,97,292/- रूपये देय थे, किन्तु परिवादीगण द्वारा यह धनराशि जमा नहीं की गयी, जबकि विपक्षीगण द्वारा देय किस्तों की अदायगी हेतु वर्ष 2006 से वर्ष 2009 तक अनेकों मांग पत्र भेजे गए। तदोपरान्त अनेक अनुस्मारक पत्र भी प्रेषित किये गये। मांग पत्रों तथा अनुस्मारक पत्रों का विवरण प्रतिवाद पत्र की धारा 8 में वर्णित किया गया है। विपक्षीगण की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया है कि परिवादीगण द्वारा बकाया धनराशि का भुगतान न किये जाने के बावजूद प्रश्नगत फ्लैट का निर्माण पूर्ण होने के बाद परिवादीगण को प्रश्नगत फ्लैट का कब्जा बकाया धनराशि के बाद प्राप्त करने हेतु पत्र दिनांकित 17.01.2011 को भेजा गया, किन्तु परिवादीगण द्वारा बकाया धनराशि का भुगतान नहीं किया गया तथा कब्जा भी प्राप्त नहीं किया गया। दिनांक 28.03.2013 को परिवादीगण को पुन: नोटिस भेजी गयी तथा परिवादीगण को सुझाव दिया गया कि बकाया धनराशि का भुगतान करे आवंटन निरस्त किये जाने से पूर्व परिवादीगण को एक अंतिम नोटिस दिनांकित 05.04.2013 भी भेजी गयी। परिवादीगण को पर्याप्त अवसर दिये जाने तथा नोटिस दिये जाने के बावजूद परिवादीगण द्वारा बकाया धनराशि का भुगतान न किये जाने पर अनुबंध पत्र की धारा 2 जी के अन्तर्गत परिवादीगण का प्रश्नगत आवंटन निरस्त कर दिया गया तथा जमानत की धनराशि जब्त कर ली गयी।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि प्रश्नगत फ्लैट का आवंटन, निर्विवाद रूप से प्रश्नगत फ्लैट के आवंटन के सन्दर्भ में परिवादीगण के पक्ष में आवंटन पत्र दिनांकित 15.11.2006 जारी किया जाना निर्विवादित है। यह तथ्य भी निर्विवादित है कि प्रश्नगत फ्लैट आंवटित किये जाते समय प्रश्नगत फ्लैट का मूल्य 69,87,152/- रूपये निर्धारित किया गया। आवंटन पत्र दिनांकित 15.11.2006 की फोटोप्रति परिवाद के साथ संलग्नक-4 के रूप में दाखिल की गयी। इस आवंटन पत्र की शर्त संख्या-4 ए के अनुसार प्रश्नगत फ्लैट का कब्जा 36 माह में परिवादीगण को दिया जाना था। परिवादीगण का यह कथन है कि विपक्षीगण द्वारा फ्लैटका निर्माण कार्य 6 वर्ष बीत जाने के बाद भी नहीं किया गया। इस सन्दर्भ में परिवादीगण की ओर से परिवादी का शपथपत्र भी प्रस्तुत किया गया है। यद्यपि विपक्षीगण ने अपने प्रतिवाद पत्र में यह अभिकथित किया है कि प्रश्नगत फ्लैट का निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है। परिवादीगण को फ्लैट का कब्जा प्राप्त करने हेतु नोटिस भी भेजी गयी, किन्तु परिवादीगण द्वारा प्रश्नगत फ्लैट के सन्दर्भ में मात्र 14,00,000/- रूपये का भुगतान किया गया। आवंटन पत्र दिनांकित 15.11.2006 के अन्तर्गत प्रस्तुत पेमेन्ट प्लान के अनुसार शेष धनराशि की अदायगी परिवादीगण द्वारा नहीं की गयी, जबकि शेष धनराशि की अदायगी हेतु परिवादीगण को अनेक मांग पत्र भेजे गए, किन्तु परिवादीगण द्वारा शेष बकाया धनराशि का भुगतान नहीं किया गया। अत: आवंटन पत्र की धारा 2 जी के अन्तर्गत जमा की गयी धनराशि जब्त की गयी तथा आवंटन निरस्त कर दिया गया।
उल्लेखनीय है कि विपक्षीगण द्वारा इस सन्दर्भ में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गयी है कि प्रश्नगत फ्लैट का निर्माण पूर्ण हो चुका है। विपक्षीगण की ओर से इस सन्दर्भ में कोई शपथपत्र तक प्रस्तुत नहीं किया गया है। प्रश्नगत फ्लैट का आवंटन पत्र दिनांकित 15.04.2013 द्वारा निरस्त किया गया है, किन्तु पत्रावली में विपक्षीगण की ओर से इस सन्दर्भ में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं है कि उक्त तिथि तक प्रश्नगत परियोजना के संबंध में तथा प्रश्नगत फ्लैट के संबंध में विपक्षीगण द्वारा निर्माण कार्य पूर्ण किया जा चुका था। प्रश्नगत परियोजना के अन्तर्गत प्रश्नगत फ्लैट के निर्माण कार्य के सन्दर्भ में कोई साक्ष्य प्रस्तुत किये बिना परिवादीगण द्वारा निर्विवाद रूप से जमा की गयी धनराशि जब्त किया जाना विधिसम्मत नहीं माना जा सकता, किन्तु यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि निर्विवाद रूप से प्रश्नगत आवंटित फ्लैट का मूल्य आंवटन पत्र के अनुसार 69,87,152/- रूपये निर्धारित किया गया था तथा इस धनराशि का भुगतान आवंटन पत्र के साथ जारी किये गये पेमेन्ट प्लान के अनुसार परिवादीगण द्वारा किया जाना था। विपक्षीगण ने पेमेन्ट प्लान के अनुसार देय धनराशि का विवरण प्रतिवाद पत्र की धारा 7 में प्रस्तुत किया है। परिवादीगण का यह कथन नहीं है कि विपक्षीगण द्वारा वर्णित पेमेन्ट प्लान के अन्तर्गत परिवादीगण द्वारा भुगतान नहीं किया जाना था। इस प्रकार परिवादीगण अपेक्षा कर रहे हैं कि लगभग 70 लाख रूपये मूल्य के फ्लैट का निर्माण कार्य उसके द्वारा जमा किये गये मात्र 14,00,000/- रूपये के बावजूद तथा पेमेन्ट प्लान के अनुसार शेष धनराशि का भुगतान न किये जाने के बावजूद आवंटन पत्र के अन्तर्गत निर्धारित समय-सीमा के अन्दर फ्लैट का निर्माण न किये जाने के कारण उसके द्वारा जमा किये गये 14,00,000/- रूपये की धनराशि पर उसे 18 प्रतिशत ब्याज दिलाया जाए तथा क्षतिपूर्ति का भुगतान किया जाए। परिवादीगण की यह मांग न्यायसंगत नहीं मानी जा सकती है। मामलें के तथ्यों एवं परिस्थितियों के आलोक में परिवादीगण द्वारा जमा की गयी धनराशि जमा किये जाने की तिथि से 06 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित परिवादीगण को वापस दिलाया जाना न्यायसंगत होगा। परिवादी तदनुसार आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वह इस निर्णय की प्रति प्राप्ति की तिथि से 45 दिन के अन्दर परिवादीगण को जमा धनराशि रू0 14,00,000/- (चौदह लाख रूपये) पर जमा किये जाने की विभिन्न तिथियों से अदायगी की तिथि तक 06 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज सहित भुगतान की जाए। विपक्षीगण को यह भी आदेशित किया जाता है कि परिवादीगण को को रू0 5,000/- (पांच हजार रूपये) निर्धारित अवधि में परिवाद व्यय भी भुगतान करें।
उभय पक्ष को इस निर्णय एवं आदेश की सत्यप्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्द्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2