(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या- 2494/2000
(जिला उपभोक्ता आयोग, द्धितीय लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या- 1170/1999 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 19-08-2000 के विरूद्ध)
श्रीमती संतोष अग्रवाल, पत्नी स्व० वीरेन्द्र कुमार अग्रवाल, निवासी- बाबू बनारसी दास भवन, 55 पुराना किला, लखनऊ।
अपीलार्थी/परिवादिनी
बनाम
1- यूनिट ट्रस्ट आफ इण्डिया, कारपोरेट आफिस-13, सर विट्ठल दास ठाकरे मार्ग, मुम्बई-400020 द्वारा इट्स ब्रांच आफिस, रेजेन्सी प्लाजा, पार्क रोड लखनऊ।
2- मैसर्स एमसीएस लि०, सर वेंकटेस भवन, 212-ए शाहपुर जैट, पंचशील क्लब के पीछे, न्यू दिल्ली-110016 द्वारा इट्स मैनेजिंग डायरेक्टर।
. प्रत्यर्थी/विपक्षीगण
समक्ष:-
माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री वी०पी० शर्मा
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री यू०के० श्रीवास्तव
दिनांक. 21-04-2022
माननीय सदस्य श्री राजेन्द्र सिंह, द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, परिवाद संख्या- 1170 सन् 1999 श्रीमती संतोष अग्रवाल बनाम यूनिट ट्रस्ट आफ इण्डिया व एक अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, द्धितीय लखनऊ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 19-08-2000 के विरूद्ध धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
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संक्षेप में अपीलार्थी का कथन है कि प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 19-08-2000 मात्र कल्पनाओं पर आधारित है। विद्वान जिला आयोग ने यह नहीं देखा कि प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा सेवा में कमी की गयी है। प्रत्यर्थी/विपक्षी परिपक्वता धनराशि अदा करने में असफल रहे हैं और उनके द्वारा निर्गत चेक अपीलार्थी/परिवादिनी को कभी प्राप्त नहीं हुआ है। विद्वान जिला आयोग का निर्णय मनमाना है। प्रत्यर्थी/विपक्षी क्षतिपूर्ति की धनराशि की अदायगी हेतु उत्तरदायी हैं भले ही चेक का भुगतान किसी ने फर्जी रूप से कर लिया हो। विद्वान जिला आयोग का निर्णय एवं आदेश गलत है। विधि के मूलभूत सिद्धान्तों की अनदेखी की गयी है। अत: माननीय राज्य आयोग से निवेदन है कि वर्तमान अपील स्वीकार करते हुए प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश अपास्त किया जाए।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री वी०पी० शर्मा एवं प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री यू०के० श्रीवास्तव को सुना और पत्रावली का सम्यक रूप से परिशीलन किया।
हमने पत्रावली पर उपलब्ध समस्त साक्ष्यों एवं विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश का अवलोकन किया।
इस मामले में परिवादिनी के स्व० पति ने विपक्षी भारतीय यूनिट ट्रस्ट आफ इण्डिया द्वारा संचालित योजना के अन्तर्गत 10/-रू० मूल्य के 1000 यूनिट खरीदे। परिवादिनी को उसके पति द्वारा नामिनी बनाया गया और इसी कारण वह परिपक्वता धनराशि पाने की अधिकारिणी हुयी। परिवादिनी ने विपक्षी संख्या-1 के कार्यालय में दिनांक 19-05-98 को यूनिट्स की पुर्नखरीद मूल्य प्राप्त करने हेतु प्रमाण-पत्र दिया और अपने बैंक खाते का विवरण भी
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दिया। विपक्षी ने उसे बताया कि देय धनराशि का चेक दिनांक 12-08-97 को ही भेज दिया गया था। यह आश्चर्यजनक है कि परिवादिनी द्वारा लौटाए गये प्रमाण-पत्र से 09 माह पूर्व ही विपक्षी द्वारा उक्त 17,280/-रू० की धनराशि कैसे भेज दी गयी। विपक्षी ने कहा कि उसे 1000 यूनिट आवंटित किये गये थे किन्तु यूनिटों के स्पिलिंट प्रमाण-पत्र दिनांक 01-04-96 को उनकी प्रार्थना पर जारी किये गये और मार्च 1993 में 1000 यूनिट का जारी प्रमाण पत्र स्वत: निरस्त हो गया था। प्रमाण-पत्र धारक वीरेन्द्र कुमार अग्रवाल जो परिवादिनी के पति थे उनके द्वारा नए जारी किये गये प्रमाण-पत्र के पुर्न खरीद मूल्य अभिलेख दिनांक 04-08-97 को प्राप्त हो गये और उनके पते पर 17,280/-रू० का चेक दिनांक 12-08-97 को भेजा गया और इसका भुगतान दिनांक 20-11-97 को लिया गया। अत: 1000 यूनिट का पुराना प्रमाण-पत्र निरस्त होने जाने के कारण निष्प्रयोज्य हो गया। जब नये प्रमाण-पत्र की धनराशि धारक को दी जा चुकी है तब सेवा में कमी का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है। विद्वान जिला आयोग ने इन सभी तथ्यों पर विचार किया और पाया कि जब नया प्रमाण पत्र जारी हो गया तब पुराने प्रमाण-पत्र का अस्तित्व स्वमेव समाप्त हो गया और जब नये प्रमाण पत्रों की धनराशि का भुगतान प्राप्त कर लिया गया तब पुराने प्रमाण-पत्र का भुगतान प्राप्त करने का कोई औचित्य ही नहीं है।
अत: उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर हम इस मत के हैं कि विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि सम्मत है तदनुसार वर्तमान अपील बलहीन होने के कारण निरस्त होने योग्य है।
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आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है और विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 19-08-2000 की पुष्टि की जाती है।
उभय-पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज दिनांक- 21-04-2022 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित/दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
कृष्णा–आशु0
कोर्ट-2