राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
पुनरीक्षण सं0-३३/२००६
(इस आयोग द्वारा अपील सं0-१८९/२००२ में पारित आदेश दिनांक १०-०८-२००५ का पुनर्विलोकन करने हेतु)
अमरनाथ, पुत्र स्व0 श्री एम0लाल, निवासी-५०१/२२, केसरीपुर, डालीगंज, लखनऊ।
..................आवेदक/पुनरीक्षणकर्ता/अपीलार्थी।
बनाम्
१. यूनिट ट्रस्ट आफ इण्डिया द्वारा जोनल मैनजर, गुलाब भवन (रियर ब्लाक) द्वितीय तल, ६ बहादुर शाह जफर मार्ग, नई दिल्ली।
२. मै0 एम0सी0एस0 लिमिटेड (यूनिट ट्रस्ट आफ इण्डिया) बेनकेटेस भवन, २१२ ‘’ ए ‘’ शहपुजट द्वारा मैसर्स अनुराधा असिस्टेण्ट व अधिकृत हस्ताक्षरी।
...................... प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण।
समक्ष:-
१. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२. मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
आवेदक की ओर से उपस्थित :- कोई नहीं।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- श्री उमेश कुमार श्रीवास्तव विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : १७-०२-२०१७.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
आज पत्रावली प्रस्तुत हुई। आवेदक की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री उमेश कुमार श्रीवास्तव उपस्थित हैं। श्री उमेश कुमार श्रीवास्तव के तर्क सुने गये। पत्रावली का अवलोकन किया गया।
यह पुनर्विलोकन प्रार्थना पत्र इस आयोग द्वारा अपील सं0-१८९/२००२ में पारित आदेश दिनांक १०-०८-२००५ का पुनर्विलोकन करते हुए अपील को मूल नम्बर पर पुनर्स्थापित करने हेतु प्रस्तुत किया गया है।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि आवेदक द्वारा प्रस्तुत यह पुनर्विलोकन प्रार्थना पत्र पोषणीय नहीं है। राज्य आयोग को अपने पूर्व पारित आदेश को वापस लेने का अधिकार प्राप्त नहीं है।
-२-
सिविल अपील सं0-4307/2007 एवं 8155/2001 राजीव हितेन्द्र पाठक व अन्य बनाम् अच्युत काशीनाथ कारेकर व अन्य, के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि अपने पूर्व पारित आदेशों को वापस लेने का अधिकार राज्य आयोग को प्राप्त नहीं है, क्योंकि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ऐसा कोई प्राविधान नहीं है। इस अधिनियम की धारा-२२(ए) के अन्तर्गत यह अधिकार मात्र माननीय राष्ट्रीय आयोग को प्रदान किया गया है। माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गये उपरोक्त निर्णय के आलोक में हमारे विचार से अपने पूर्व पारित आदेश को वापस लेने का अधिकार राज्य आयोग को प्राप्त न होने के कारण यह पुनर्विलोकन प्रार्थना पत्र निरस्त किए जाने योग्य है। तद्नुसार यह पुनर्विलोकन प्रार्थना पत्र निरस्त किया जाता है। पत्रावली दाखिल अभिलेखागार की जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(गोवर्द्धन यादव)
सदस्य
दिनांक : १७-०२-२०१७.
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-३.