Uttar Pradesh

Muradabad-II

cc/11/2011

Shri Saurabh Bhandary - Complainant(s)

Versus

Union Of India - Opp.Party(s)

Shri Devendra Vashney

30 Sep 2015

ORDER

District Consumer Disputes Redressal Forum -II
Moradabad
 
Complaint Case No. cc/11/2011
 
1. Shri Saurabh Bhandary
H.no. 041 Avas Vikas Colony Civil Lines Moradabad
...........Complainant(s)
Versus
1. Union Of India
Railway Secretary Rail Bhawan New Delhi
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

द्वारा- श्री पवन कुमार जैन - अध्‍यक्ष

  1.   इस परिवाद के माध्‍यम से परिवादी ने यह अनुरोध किया है कि विपक्षीगण को आदेशित किया जाये कि वे परिवाद में उल्लिखित मामले की जांच कराकर दोषी व्‍यक्ति के विरूद्ध विभागीय कार्यवाही करे और परिवादी को टिकट की धनराशि 1235/- रूपया दिलाऐ। क्षतिपूर्ति के रूप में 50,000/-  रूपया तथा परिवाद व्‍यय परिवादी ने अतिरिक्‍त मांगा है।
  2. संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं कि दिनांक 11/11/2010 को  परिवादी ट्रेन संख्‍या-4312 आला हजरत एक्‍सप्रेस से अहमदाबाद से मुरादाबाद आ रहा  था उसके पास वातानुकूलित श्रेणी का टिकट था जिसका पी0एन0आर0 नं0-8349224293 था। टिकट की राशि 1235/- रूपया थी जैसे ही ट्रेन अहमदाबाद  जंक्‍शन से निकली टिकट निरीक्षक ने परिवादी से टिकिट मांगा। परिवादी ने  उसे टिकट तथा अपनी पहचान सम्‍बन्धित पासपोर्ट आदि प्रमाण पत्र  दिखाऐ। इसके बावजूद टिकिट निरीक्षक ने परिवादी को वातानुकूलित कोच सं0- बी0-1 से यह कहकर उतार दिया कि वातानुकूलित कोच में 21 वर्ष से कम आयु   के व्‍यक्ति का बैठना वर्जित है। परिवादी स्लिपर क्‍लास में जाकर बैठ गया। ​टिकिट निरीक्षक ने वातानुकूलित कोच की परिवादी की सीट सं0-26 अन्‍य  व्‍यक्ति को आवंटित कर दी और परिवादी का टिकट अपने पास रख लिया।  परिवादी अकेला होने के कारण चलती ट्रेन में किसी अधिकारी से शिकायत नहीं कर पाया। जब ट्रेन जयपुर रेलवे स्‍टेशन पहुँची तो एक अन्‍य टिकिट निरीक्षक ने परिवादी से टिकट की मांग की तो परिवादी ने सारी घटना उसे बताई और कहा कि  उसका टिकट वातानुकूलित कोच के टिकट निरीक्षक ने ले लिया है इसके बाबजूद शयनयान के टिकट निरीक्षक ने परिवादी को बिना टिकट मानते हुऐ उससे 476/- रूपया वसूल लिये। मुरादाबाद पहुँचकर परिवादी ने  अपनी माता के साथ जाकर सारी घटना रेलवे के उच्‍च अधिकारियों को बताई और टिकट के 1236/- रूपये की वापसिी की मांग की, किन्‍तु अधिकारियों ने  कोई धनराशि देने से इन्‍कार कर दिया। परिवादी के अनुसार विपक्षीगण के कृत्‍यों से उसे अत्‍याधिक मानसिक कष्‍ट व आर्थिक क्षति हुई है। उसने परिवाद  में अनुरोधित अनुतोष स्‍वीकार किऐ जाने की प्रार्थना की। 
  3.   परिवाद के साथ परिवादी ने वातानुकूलित श्रेणी के अपने टिकट और  476/- रूपये अदा करने की रसीद की फोटो प्रतियों को दाखिल किया, यह  प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-3/6 हैं।
  4.   विपक्षीगण की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं0-12/1 लगायत 12/3  दाखिल किया जिसमें परिवाद कथनों से इन्‍कार करते हुऐ कहा गया कि  फोरम को परिवाद की सुनवाई करने का विधिक क्षेत्राधिकार नहीं है क्‍योंकि मामला रेलवे ट्रिव्‍यूनल एक्‍ट की धारा’-13 व धारा-15 से बाधित है। अतिरिक्‍त कथनों  में कहा गया कि परिवादी ने वातानुकूलित कोच का टिकट तत्‍काल कोटे में  प्राप्‍त किया था, परिवादी अपने आरक्षित कोच में नहीं पहुँचा जिस बजह से टी0टी0ई0 ने परिवादी को ‘’ Not Turn up ‘’ दर्शाकर उसकी सीट  आर0ए0सी0 के यात्री को प्रदान कर दी। प्रतिवाद पत्र में अग्रेत्‍तर कथन किया गया कि तत्‍काल कोटे के अन्‍तर्गत जारी टिकट पर यात्री द्वारा यात्रा न करने की स्थिति में गाड़ी के प्रस्‍थान से 4 घण्‍टे पूर्व केवल 25 प्रतिशत धन की  वापिसी होती है। इससे कम समय पूर्व अथवा चार्ट बन जाने की स्थिति में  रूपयों की वापसी नहीं होती। परिवादी वातानुकूलित कोच में आया ही नहीं और उसने अपनी मर्जी से स्लिपर क्‍लास में यात्रा की। स्लिपर क्‍लास का  टिकट न होने की वजह से चेकिंग के दौरान नियमानुसार परिवादी से धनराशि चार्ज की गई।  परिवादी के  यह कथन असत्‍य हैं कि उसे वातानुकूलित कोच से टिकट निरीक्षक ने 21 वर्ष से कम आयु का बताकर निकाल दिया हो। परिवादी स्‍वच्‍छ हाथों से फोरम के समक्ष नहीं आया है और वह कोई अनुतोष पाने का अधिकारी नहीं है। उपरोक्‍त कथनों के आधार पर परिवाद को सव्‍यय  खारिज किऐ जाने की प्रार्थना की गई। 
  5.   परिवादी ने अपना साक्ष्‍य शपथ पत्र कागज सं0-13/1 लगायत 13/5  दाखिल किया।
  6.   विपक्षीगण की ओर से उत्‍तर रेलवे, मुरादाबाद के सहायक वाणिज्‍य प्रबन्‍धक श्री के0एल0 कावत का साक्ष्‍य शपथ पत्र कागज सं0-16/1 लगायत 16/3 दाखिल हुआ। दिनांक 29/9/2015 को विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता  ने तत्‍काल  रिजर्वेशन के सन्‍दर्भ में रेल मंत्रालय भारत सरकार के कामर्शिलय सर्कुलर सं0- 35/2006 दिनांकित 2, अप्रैल, 2006 की फोटो प्रति, परिवादी के रिजर्वेशन टिकट, स्लिपर कोच में चेकिंग के दौरान परिवादी से वसूल किऐ  गऐ 476/- रूपये की रसीद तथा परिवादी जिस ट्रेन से यात्रा कर रहा था उस ट्रेन के वातानुकूलित कोच बी-1 के चार्ट की फोटो प्रतियों को दाखिल किया। परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता ने इन्‍हें दाखिल किऐ जाने पर कोई आपत्ति नहीं की। दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्‍तागण की सहमति से हमने आज उनकी बहस सुनी और पत्रावली का अवलोकन किया।
  7.   किसी भी पक्ष ने लिखित बहस दाखिल नहीं की।
  8.   परिवादी द्वारा दाखिल टिकट की फोटो प्रति कागज सं0-3/6 के अवलोकन से प्रकट है कि ट्रेन संख्‍या- 4312, आला हजरत एक्‍सप्रेस के वातानुकूलित कोच सं0-बी-1 में अहमदाबाद जंक्‍शन से मुरादाबाद तक के लिए  दिनांक 11/11/2010 हेतु परिवादी का रिजर्वेशन था। इस बी-1 कोच में बर्थ सं0-26 परिवादी के नाम आरक्षित थी। परिवादी ने यह रिजर्वेशन तत्‍काल  कोटे में कराया था।
  9.   परिवादी का आरोप यह है कि जैसे ही ट्रेन अहमदाबाद जंक्‍शन से निकली टिकट निरीक्षक ने परिवादी को बी-1 कोच से यह कहकर उतार दिया कि वातानुकूलित कोच में 21 वर्ष से कम आयु के व्‍यक्ति का बैठना वर्जित है। परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता के अनुसार टिकट निरीक्षक ने परिवादी का टिकट भी अपने पास रख लिया और परिवादी की आरक्षित बर्थ सं0-26 किसी अन्‍य व्‍यक्ति को आवंटित कर दी। परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता का  अग्रेत्‍तर तर्क है कि मुरादाबाद पहुँचकर परिवादी ने अपनी मॉं के साथ जाकर घटना की शिकायत रेलवे के अधिकारियों को की, किन्‍तु उसकी कोई सुनवाई  नहीं की गई।
  10.   विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता ने परिवादी पक्ष के तर्कों और आरोपों  का प्रतिवाद किया। विपक्षीगण के साक्षी श्री के0एल0 कावत के साक्ष्‍य शपथ  पत्र कागज सं0-16/1 लगायत 16/3 की ओर हमारा ध्‍यान आकर्षित करते हुऐ उन्‍होंने कहा कि वास्‍तविकता यह है कि परिवादी वातानुकूलित कोच में पहुँचा ही नहीं था जिस कारण निमयानुसार टिकट निरीक्षक ने परिवादी के नाम आरक्षित बर्थ सं0-26 आर0ए0सी0 के यात्री को दे दी थी। स्लीपर क्‍लास में चेकिंग के दौरान परिवादी से 476/- रूपये वसूल लिये जाने के सन्‍दर्भ में विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता ने कहा कि परिवादी शयनयान में चूँकि बिना टिकट यात्रा कर रहा था अत: नियमानुसार उससे 476/- रूपया वसूल किऐ गऐ थे जिसकी रसीद परिवादी को दी गई। विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता के अनुसार परिवादी ने असत्‍य कथनों के आधार पर यह परिवाद योजित किया है जिसमें किंचित भी सत्‍यता नहीं है उन्‍होंने परिवाद को विशेष व्‍यय सहित खारिज किऐ जाने की प्रार्थना की।
  11.   विपक्षीगण की ओर से दाखिल आरक्षण चार्ट की नकल कागज सं0-21/5 लगायत 21/7 के अवलोकन से प्रकट है कि बी-1 कोच में परिवादी के नाम आरक्षित बर्थ सं0-26 परिवादी के न आने के कारण टिकट निरीक्षक ने  आर0ए0सी0 के यात्री को आवंटित की थी। टिकट निरीक्षक का यह कृत्‍य  नियम विरूद्ध दिखाई नहीं देता। परिवादी ने बी-1 कोच की बर्थ सं0-26 के अपने आरक्षित टिकट और स्लीपर क्‍लास में अभिकथित रूप से उससे वसूल किऐ गऐ 476/- रूपये की रसीद की फोटो प्रतियां कागज सं0-3/6 के रूप में पत्रावली में दाखिल की है। यदि बी-1 कोच के टिकट निरीक्षक ने परिवादी का आरक्षित टिकट ले लिया होता तो परिवादी ने किस प्रकार आरक्षित टिकट की फोटो प्रति रू0 476/- की रसीद के साथ दाखिल कर दी इसका पत्रावली में  कोई स्‍पष्‍टीकरण नहीं है। आरक्षित टिकट की फोटो प्रति कागज सं0-3/6  परिवादी द्वारा दाखिल किया जाना अपने आप में परिवादी के इस कथन को असत्‍य कर देता है कि उसे आरक्षित कोच के टिकट निरीक्षक ने कोच से उतार दिया था और उसका टिकट अपने पास रख लिया था। यदि परिवादी द्वारा बताया जा रहा घटनाक्रम सही होता तो क्रमानुक्रम में जिस समय  परिवादी की स्लीपर कोच में 476/- रूपये की रसीद कटी थी तब परिवादी के पास वातानुकूलित कोच का आरक्षित टिकट होने का प्रश्‍न ही नहीं था। प्रकट है कि किसी परोक्ष उद्देशय की पूर्ति हेतु परिवादी ने वातानुकूलित कोच से टिकट निरीक्षक द्वारा निकाल दिये जाने का कथानक रचा है।
  12.   परिवादी के अनुसार मुरादाबाद पहुँचकर उसने अपनी माता के साथ  जाकर रेलवे के उच्‍च अधिकारियों को घटना के बारे में अवगत कराया और  टिकट के रूपयों की वापसी की प्रार्थना की थी। उल्‍लेखनीय है कि परिवादी ने किसी भी अधिकारी से परिवाद में उल्लिखित घटना की शिकायत किऐ जाने का कोई प्रमाण प्रस्‍तुत नहीं किया। घटना दिनांक 11/12-11-2010 की बताई गई है। परिवाद 01 फरवरी, 2011 को प्रस्‍तुत  हुआ। इस मध्‍य परिवादी के पास अवसर था कि वह मामले की लिखित रिपोर्ट रेलवे के किसी अधिकारी को करता, किन्‍तु उसने ऐसा नहीं किया जो इस  अवधारणा को पुष्‍ट करता है कि परिवादी साथ ऐसी घटना नहीं घटी जैसा कि  वह परिवाद में कह रहा है।

13 -  विपक्षीगण द्वारा दाखिल कामर्शियल सर्कुलर दिनांक 2 अप्रैल, 2006 के अवलोकन से प्रकट है कि ट्रेन छूटने के बाद तत्‍काल टिकट की राशि वापसी नहीं होगी। इस दृष्टि से यदि रेलवे के अधिकारियों ने परिवादी को वातानुकूलित कोच के परिवादी के टिकट की राशि देने से इन्‍कार कर दिया था जैसा कि  परिवादी कहता है तो ऐसा करके उन्‍होंने कोई विधि विरूद्ध कार्य नहीं किया।

14 – रेलवे क्‍लेम्‍स ट्रिब्‍यूनल एक्‍ट की धारा 15 की व्‍यवस्‍थानुसार उक्‍त अधिनियम की धारा 13 (1) तथा धारा13 (1ए) से आच्‍छादित मामलों में जिला उपभोक्‍ता  फोरम को सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। टिकट की राशि रिफण्‍ड का मामला उक्‍त अधिनियम की धारा 13(1) के अन्‍तर्गत आता है। इस प्रकार रेलवे क्‍लेम्‍स ट्रिब्‍यूनल एक्‍ट,1987 की धारा 15 के अनुसार इस मामले की सुनवाई का क्षेत्राधिकार जिला उपभोक्‍ता फोरम को नहीं है।

15 -      उपरोक्‍त विवेचना के आधार पर हम इस निष्‍कर्ष पर पहुँचे हैं कि प्रत्‍येक  दृष्टि से परिवाद खारिज होने योग्‍य है।

  •  

परिवाद खारिज किया जाता है।

 

    (श्रीमती मंजू श्रीवास्‍तव)                 (पवन कुमार जैन)

          सदस्‍य                              अध्‍यक्ष

  •     0उ0फो0-।। मुरादाबाद                    जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद

       30.09.2015                        30.09.2015

 

 

    हमारे द्वारा यह निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 30.09.2015 को खुले फोरम में हस्‍ताक्षरित, दिनांकित एवं उद्घोषित किया गया।

 

     (श्रीमती मंजू श्रीवास्‍तव)                 (पवन कुमार जैन)

          सदस्‍य                            अध्‍यक्ष

  •     0उ0फो0-।। मुरादाबाद                    जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद

     30.09.2015                          30.09.2015 

 

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