राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
परिवाद सं0-०६/२००९
फारूख आदिल बेग पुत्र श्री अकील बेग, निवासी ग्राम मुरानपुर अकबरपुर, जिला अम्बेडकर नगर। ............. परिवादी।
बनाम
१. यूनियन आफ इण्डिया द्वारा सैक्रेटरी मिनिस्ट्री आफ फोरिन गवर्नमेण्ट आफ इण्डिया।
२. सुपरिण्टेण्डेण्ट आफ पोस्ट आफिस, लखनऊ।
............ विपक्षीगण।
समक्ष:-
१- मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
परिवादी की ओर से उपस्थित : श्री अविनाश श्रीवास्तव विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक :- १२-०९-२०१७.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत परिवाद क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु योजित किया गया है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी के कथनानुसार उसे बर्ले बैंक शारजाह में सेल्स आफीसर के पर नियुक्ति हेतु नियुक्ति पत्र दिनांक २२-०७-२००७ प्राप्त हुआ था। परिवादी ने पासपोर्ट हेतु विपक्षी सं0-२ के कार्यालय में आवेदन दिनांक २५-०१-२००७ को किया था। परिवादी को पासपोर्ट सं0-४२६०१८० दिनांक ०१-०८-२००७ से दिनांक ३१-०८-२०१७ के लिए जारी हुआ। परिवादी ने पासपोर्ट दर्वी कन्सल्टेन्सी नई दिल्ली को वीसा के लिए भेजा। दिनांक २९-०८-२०१७ को दर्वी कन्सल्टेन्सी द्वारा सूचित किया गया कि उसका पासपोर्ट निरस्त कर दिया गया है किन्तु कोई कारण नहीं बताया गया। परिवादी को सूचित किया गया कि उसका वीसा आबूधाबी भेजा गया है। परिवादी को यह राय दी गई कि वह दिनांक ०४-११-२००७ के लिए टिकट बुक करा ले। अत: दिनांक ०४-११-२००७ के लिए परिवादी ने टिकट बुक करा लिया। टिकट प्राप्त करने के उपरान्त परिवादी जब
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इमीग्रेशन जांच के लिए गया तो उसे इन्द्रा गॉधी इण्टरनेशनल एयरपोर्ट पर सूचित किया गया कि उसके पासपोर्ट पर हस्ताक्षर नहीं हैं। परिवादी ने रीजनल आफीसर पासपोर्ट से सम्पर्क किया तब परिवादी का पासपोर्ट ले लिया गया तथा आश्वास्त किया गया कि ०६ बजे सायं तक पासपोर्ट दे दिया जायेगा। तदोपरान्त परिवादी को नया पासपोर्ट सं0-५९५०८९ जारी किया गया। इस प्रकार परिवादी को दो भिन्न-भिन्न नम्बरों के पासपोर्ट प्रदान किए गये। विपक्षीगण की लापरवाही के कारण परिवादी शारजाह नहीं जा पाया और उसे नौकरी से वंचित होना पड़ा। अत: ४३,५०,०००/- रू० क्षतिपूर्ति दिलाये जाने हेतु परिवाद योजित किया गया।
विपक्षीगण की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया। विपक्षी के कथनानुसार परिवादी उपभोक्ता नहीं है। यह परिवाद उपभोक्ता मंच के समक्ष पोषणीय नहीं है। विपक्षी का यह कथन है कि भूलवश परिवादी के पासपोर्ट पर हस्ताक्षर नहीं हो सके। परिवादी द्वारा पासपोर्ट शुद्धीकरण हेतु दिनांक ०६-११-२००७ को आवेदन प्रस्तुत करने पर उसे दिनांक ०६-११-२००७ को ही दूसरा पासपोर्ट जारी किया गया जिसकी वैधता ०५-११-२०१७ तक थी।
परिवादी की ओर से अपने कथन के समर्थन में अपना शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया तथा परिवादी के साथ साक्ष्य के रूप में संलग्नक-१ लगायत ४ दाखिल किये गये।
हमने परिवादी के विद्वान अधिवक्ता श्री अविनाश श्रीवास्तव के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया। विपक्षीगण की ओर से तर्क प्रस्तुत करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ।
परिवादी के विद्वान अधिवक्ता की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि विपक्षी ने अपने प्रतिवाद पत्र में स्वयं यह स्वीकार किया है कि उसके द्वारा परिवादी के पक्ष में जारी किया गया प्रथम पासपोर्ट बिना हस्ताक्षर के जारी किया गया। विपक्षी के अधिकारी द्वारा बिना हस्ताक्षर के पासपोर्ट जारी किए जाने के कारण तथा दूसरा पासपोर्ट भिन्न नम्बर का जारी किए जाने के कारण परिवादी शारजहॉं नहीं जा सका जिसके कारण उसे नौकरी से वंचित रहना पड़ा। ऐसी परिस्थिति में विपक्षी द्वारा सेवा में
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त्रुटि की गई। परिवादी की ओर से अपने कथन के समर्थन में रीजनल पासपोर्ट आफीसर बंग्लौर बनाम अनुराधा थाड़ीपथरी गोपीनाथ, III (2008) CPJ 118 (NC) के मामले में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिए गये निर्णय पर विश्वास व्यक्त किया गया।
जहॉं तक प्रस्तुत प्रकरण का प्रश्न है परिवाद के अभिकथनों में स्वयं परिवादी द्वारा यह स्वीकार किया गया है दिनांक २९-०८-२००७ को दर्वी कन्सल्टेन्सी द्वारा उसे सूचित किया गया कि उसका पासपोर्ट स्वीकार नहीं किया गया। इस तथ्य की जानकारी के बाबजूद परिवादी ने दिनांक ०४-११-२००७ को बिना वस्तु स्थिति की पूर्ण जानकारी किए दिनांक ०४-११-२००७ की यात्रा के लिए अपना टिकट बुक करा लिया। विपक्षी ने प्रतिवाद पत्र में यह अभिकथित किया है कि पासपोर्ट किसी विशिष्ट नम्बर के सापेक्ष जारी नहीं किया जाता बल्कि एक समयावधि के लिए जारी किया जाता है। समयावधि व्यतीत हो जाने के उपरान्त जारी किया गया पासपोर्ट प्रभावी नहीं रहता। दूसरा पासपोर्ट जारी किए जाने के पर पूर्व पासपोर्ट की पृविष्टियॉं सही नहीं की जा सकतीं एवं उसी नम्बर का पासपोर्ट किसी परिवर्तन के साथ जारी नहीं किया जा सकता। परिवादी ने अपने पासपोर्ट में शुद्धीकरण हेतु प्रार्थना पत्र दिनांक ०६-११-२००७ को प्रेषित किया और विपक्षी के सम्बन्धित अधिकारी ने दिनांक ०६-११-२००७ को ही पासपोर्ट का त्रुटि निवारण करते हुए दूसरा पासपोर्ट जारी किया। क्योंकि उसी नम्बर का दूसरा पोसपोर्ट त्रुटि निवारण के पश्चात् जारी नहीं किया जा सकता, अत: दूसरे नम्बर का पासपोर्ट जारी किया गया।
विपक्षी का यह भी कथन है कि एस0पी0 गोयल बनाम कलैक्टर आफ स्टाम्प्स, १९९६ एससीसी (१) ५७३ के मामले में मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गये निर्णय के आलोक में परिवादी उपभोक्ता नहींतथा यह परिवाद उपभोक्ता मंच के समक्ष पोषणीय नहीं है। एस0पी0 गोयल बनाम कलैक्टर आफ स्टाम्प्स के मामले में यह निर्णीत किया गया है कि ‘’ A person presenting a document for registration under Registration Act, 1908 is not a consumer and therefore, the officers oppointed and functioning under the said Act do not render any service within the meaning of 1986 Act. And therefore the Consumer Court which have no jurisdiction to entertain the dispute.
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The Registration Act as the Stamp Act have meant primarily to agument the state reveneu by prescribing the stamp duty on various categories of instruments or documents and the procedure for collection of stamp duty through distress or other means ……… a person who presents a document for registration and pays the stamp duty on it or registration fee, does not become a consumer nor does the officers appointed to implement the provision of the two Acts render any service within the meaning of Consumer Protection act. ‘’
मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गये उपरोक्त निर्णय के आलोक में हमारे विचार से प्रस्तुत परिवाद उपभोक्ता मंच के समक्ष पोषणीय नहीं है। अत: परिवाद निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
परिवाद निरस्त किया जाता है।
इस परिवाद का व्यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(बाल कुमारी)
सदस्य
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट नं.-२.