सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ।
अपील संख्या: 515 वर्ष 2011
धीरज बाजपेई पुत्र श्री राम प्रकाश बाजपेई, निवासी मकान नं0 36 मोती नगर, उन्नाव।
अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
यूनियन ऑफ इंडिया द्वारा जनरल मैनेजर नॉर्दन रेलवे, बड़ौदा हाउस, नई दिल्ली।
प्रत्यर्थी/विपक्षी
उपस्थित:
मा0 श्री संजय कुमार, पीठासीन सदस्य।
मा0 श्री महेश चंद्र, सदस्य।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता : स्वंय अपीलार्थी।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता : श्री पी0पी0 श्रीवास्तव।
दिनांक: 16.02.2018
मा0 श्री महेश चंद, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, उन्नाव द्वारा परिवाद संख्या 27 वर्ष 2009 धीरज बाजपेई बनाम यूनियन ऑफ इंडिया द्वारा जनरल मैनेजर नॉर्दन रेलवे में पारित आदेश दिनांक 24 2. 2011 के विरुद्ध दायर की गई है। प्रश्नगत आदेश निम्नानुसार है :-
'' परिवाद एतद् द्वारा खारिज किया जाता है।
परिवादी परिवाद वयय के रूप में विपक्षी को 5000 रूपए की राशि अदा करेगा ''
उपरोक्त आक्षेपित आदेश से क्षुब्ध होकर यह अपील दायर की गई है।
संक्षेप में विवाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी ने दिनांक 9.11.2008 को अपने छोटे भाई की शादी के लिए कानपुर में जेवर खरीदने के लिए, उन्नाव से कानपुर तथा कानपुर से उन्नाव की यात्रा रेल से की थी। उसने कानपुर सेंट्रल से उन्नाव जाने के लिए टिकट संख्या 07080590 तथा उन्नाव से कानपुर जाने के लिए टिकट संख्या 07080591 क्रय किए थे, जिनका कुल मूल्य रू0 12 था। अपीलार्थी/परिवादी के अनुसार इनका वास्तविक मूल्य रू0 8 निर्धारित था। इस प्रकार उससे रू0 8 के स्थान पर रू0 12 वसूल किए गए। यात्रा के दिन जब वह कानपुर स्टेशन पर उतरा प्लेटफार्म नंबर 8 पर टिकट निरीक्षक द्वारा उसका टिकट चेक किया गया तो उसने कहा कि तुम्हारा टिकट फर्जी है और टिकट फर्जी होने का आरोप लगाकर उसे बैठा लिया। काफी समझाने बुझाने के बाद जब टिकट की सीरीज मिलाई गई तो उसका टिकट सही पाया गया। इसी बीच आपाधापी में उसका रुपयों से भरा एक बैग चोरी हो गया। इसमें रू0 45000/- की क्षति हुई और वह अपने भाई की शादी के लिए जेवर नहीं खरीद सका। रेलवे की सेवा में कमी के कारण उसे आर्थिक, शारीरिक और मानसिक कष्ट उठाना पड़ा। प्रत्यर्थी/विपक्षी पर उपरोक्त आरोप लगाते हुए अपीलार्थी/परिवादी ने जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष, फोरम उन्नाव के समक्ष परिवाद 27 वर्ष 2009 दायर किया। उभय पक्ष द्वारा अपने-अपने साक्ष्य प्रस्तुत किए गए। पक्षकारों के साक्ष्यों का परिशीलन करने और उनके तर्कों को सुनने के बाद उपरोक्त उल्लिखित आक्षेपित आदेश पारित किया गया, जिससे क्षुब्ध होकर यह अपील दायर की गई है।
अपील में उन सभी कथनों को दोहराया गया है, जिनका अभिकथन परिवाद पत्र में किया गया है। अपील में जो आधार लिए गए हैं उनमें कहा गया है कि जिला फोरम ने परिवादी के मार्मिक तथ्यों पर विचार न करके, विपक्ष के प्रभाव में आकर विधि विरुद्ध निर्णय पारित किया है और रू0 5000/- का जुर्माना अधिरोपित कर दिया। परिवादी ने जो साक्ष्य प्रस्तुत किए थे, उनका कोई अभिलेखीय खंडन विपक्षी/प्रत्यर्थी द्वारा नहीं किया गया। सेवा में कमी के लिए रू0 195504/- की क्षतिपूर्ति दिलाने की प्रार्थना की गई। इसके अतिरिक्त अपीलीय वाद व्यय रू0 10000/- दिलाने का भी अनुरोध किया गया।
सुनवाई हेतु अपील इस पीठ के समक्ष प्रस्तुत हुई। अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता सुश्री प्रियंका वर्मा उपस्थित हुई। प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री पी पी श्रीवास्तव उपस्थित हुए। उभय पक्षों के विद्वान अधिवक्ताओं के तर्कों को सुना गया। पत्रावली का परिशीलन किया गया। पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों के परिशीलन से यह स्पष्ट है कि अपीलार्थी/परिवादी ने दिनांक 9.11.2008 को उन्नाव और कानपुर सेंट्रल के मध्य रेल से यात्रा की थी। उसके लिए उसने टिकट भी खरीदा था। कानपुर रेलवे स्टेशन पर टिकट निरीक्षक ने चेकिंग के लिए अपीलार्थी/परिवादी का टिकट देखा। यात्री को यात्रा में अथवा किसी सार्वजनिक स्थान पर अपने सामान की स्वयं सुरक्षा स्वयं करनी चाहिए। प्लेटफार्म पर यदि उसका कोई सामान चोरी हो जाता है तो उसके लिए उत्तरी रेलवे किस प्रकार उत्तरदायी है। इसके लिए रेलवे ने कोई सेवा में कमी नहीं की है। विद्वान जिला फोरम ने तथ्यों की पूर्ण विवेचना करने के बाद प्रश्नगत आदेश पारित किया है। अपीलार्थी ने जिला फोरम पर भी यह आरोप लगाया है कि उसने प्रश्नगत आदेश विपक्षी के प्रभाव में आकर पारित किया है, किंतु इस आरोप के समर्थन में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है। अपीलार्थी की अपील में कोई बल नहीं है, किंतु अपीलार्थी/परिवादी पर अधिरोपित दंड रू0 5000/- अपास्त होने योग्य है।
आदेश
अपीलार्थी की अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। प्रश्नगत आदेश संशोधित करते हुए अपीलार्थी पर अधिरोपित परिवाद व्यय रू0 5000/- का आदेश अपास्त किया जाता है। शेष आदेश की पुष्टि की जाती है।
(संजय कुमार) (महेश चंद)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-4