(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील सं0 :- 326/2013
(जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0- 832/2007 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 29/12/2012 के विरूद्ध)
- Chief Commercial Manager (Claims) Station Building Varanasi (U.P)
- Chief Claim Officer (Accounts Branch) Northern Railways. N.D.C.R Building New Delhi
Union of India through Officer Commanding, Company No. 46 A.S.C Supply Type ‘’A” Cantt. Kanpur, Under the Ministry of Defence Government of India.
……………Respondent
समक्ष
- मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
- मा0 डा0 आभा गुप्ता, सदस्य
उपस्थिति:
अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री वैभव राज, एडवोकेट
प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री आर0के0 सिंह के सहयोगी अधिवक्ता
श्री बृजेन्द्र चौधरी
दिनांक:-26.05.2022
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
- जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0- 832/2007 यूनियन आफ इंडिया द्वारा कमान्डिंग आफीसर, कम्पनी सं0 46 एएससी प्रति चीफ कामर्शियल मैनेजर में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 29/12/2012 से व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गयी है, जिसके माध्यम से परिवाद के चीफ कामर्शियलआफीसर का परिवाद आज्ञप्त करते हुए विपक्षी रेलवे को रूपये 16,94,670/- अदा करने का आदेश दिया गया है।
- संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी ने HSD [DHPP-N] की मात्रा 2,41,810 लीटर विपक्षीगण के माध्यम से R.R. No. 5978 Dated 03.03.1994 के द्वारा Petroleum Contract unit जो अब 46 Company ASC Supply Unit में परिवर्तित हो चुकी है, को भेजे थे। उक्त सप्लाई I.O.C. Terminal Panki कानपुर में पहुंचने थे, लेकिन विपक्षी सं0 3 के टर्मिनल तक भेजे गये पेट्रालियम प्रोडक्ट प्राप्त नहीं हुए। विपक्षीगण ने प्रमाण पत्र दिनांक 01.08.1997 को भेजा था। इसके अलावा कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ था। विपक्षी सं0 3 द्वारा पत्र जारी किये जाने के पश्चात विपक्षी सं0 1 को इसकी सूचना दिनांक 05.11.1997 को दी गयी। उक्त पेट्रालियम प्रोडक्ट के गायब हो जाने के संबंध में परिवादी ने अपना वाद नं0-1403/136/98 रू0 16,92,700/- का दिनांक 23.01.1998 को प्रस्तुत किया। भेजे गये पेट्रोलियम प्रोडक्ट के गायब होने की प्रथम बार जानकारी दिनांक 11.08.1997 को हुई थी तथा परिवादी ने 6 माह के अंदर ही अपना दावा प्रस्तुत कर दिया था। इस कारण रेलवे अधिनियम की धारा 106 परिवादी पर लागू नहीं होती है, लेकिन विपक्षी ने परिवादी के दावे को धारा-106 रेलवे अधिनियम के अंतर्गत गलत तरीके से निरस्त कर दिया। परिवादी ने विपक्षी सं0 1 का अपना विरोध प्रकट किया और यह कथन किया कि अंतिम रूप से Wagons के गायब होने की जानकारी परिवादी को दिनांक 11.08.1997 को हुई थी। इस कारण रेलवे अधिनियम परिवादी पर प्रभावी नहीं है, लेकिन अंतत: कोई लाभ नहीं मिला।
- अपीलार्थी ने अपना वादोत्तर प्रस्तुत किया, जिसमें कथन किया गया कि परिवादी ने 10 Wagons High Speed Diesal दिनांक 03.03.194 को प्रेषित किया जाना स्वीकार किया। विपक्षी का कथन आया कि परिवादी का दावा धारा 106 रेलवे अधिनियम के अंतर्गत निरस्त कर दिया गया है। इस कारण परिवादी को वाद का कोई कारण उत्पन्न नहीं होता है। परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है इसलिए परिवाद पोषणीय नहीं है।
- विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने बुक कराये गये सामान को निश्चित स्थान पर प्रेषित किये जाने का उत्तरदायित्व रेलवे को मानते हुए यह दावा आज्ञप्त किया, जिससे व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
- अपील में मुख्य रूप से यह कथन किया गया है कि विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने धारा 15 रेलवे क्लेम ट्राइब्यूनल 1987 के प्रावधानों को अनदेखा तथा धारा 106 उपभोक्ता अधिनियम के प्रावधानों को नजरअंदाज किया है, इसलिए गलत निर्णय पारित किया है, वास्तव में इस दावे को सुनने का क्षेत्राधिकार जिला उपभोक्ता फोरम को नहीं है इन आधारों पर यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
- अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता श्री वैभव राज को सुना। प्रत्यर्थी के विद्धान अधिवक्ता श्री आर0के0 सिंह के सहयोगी अधिवक्ता श्री बृजेन्द्र चौधरी को सुना। पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेख का अवलोकन किया गया। तत्पश्चात पीठ के निष्कर्ष निम्नलिखित प्रकार से हैं:-
- प्रस्तुत अपील में निहीत परिवाद इन आधारों पर प्रस्तुत किया गया है कि परिवादी द्वारा अपीलकर्ता रेलवेज को 10 वैगन डीजल सुनिश्चित स्थान पर प्रेषित किये जाने हेतु सेना के विभाग ने प्रेषित किया था किन्तु यह माल निश्चित स्थान पर नहीं पहुंचा एवं इसकी क्षति हो गयी, क्षति के संबंध में यह दावा प्रस्तुत किया गया है। इस संबंध में धारा 13 रेलवे क्लेम ट्राइब्यूनल अधिनियम यह प्रदान करता है:-
Jurisdiction, powers and authority of Claims Tribunal.—(1) The Claims Tribunal shall exercise, on and from the appointed day, all such jurisdiction, powers and authority as were exercisable immediately before that day by any civil court or a Claims Commissioner appointed under the provisions of the Railways Act—
(a) relating to the responsibility of the railway administrations as carriers under Chapter VII of the Railways Act in respect of claims for—
(i) compensation for loss, destruction, damage, deterioration or non-delivery of animals or goods entrusted to a railway administration for carriage by railway;
(ii) compensation payable under section 82A of the Railways Act or the rules made there under; and
(b) in respect of the claims for refund of fares or part thereof or for refund of any freight paid in respect of animals or goods entrusted to a railway administration to be carried by railway.
8. इस प्रकार धारा 13 रेलवे ट्राइब्यूनल अधिनियम 1987 के अंतर्गत रेलवे प्राधिकारी को मालवाहक के रूप में माल प्रेषित किये जाने पर इसकी हानि अथवा क्षति होने पर क्षतिपूर्ति एवं किराये की धनराशि की वापसी के लिए रेलवे क्लेम ट्राइब्यूनल को सभी दावों का क्षेत्राधिकार दिया गया है यद्यपि धारा 3 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में अन्य उपचारों के साथ-साथ उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत दावों को एक अतिरिक्त उपचार के रूप में दिया गया है किन्तु रेलवे क्लेम ट्राइब्यूनल 1987 की धारा 15 स्पष्ट रूप से सभी प्राधिकारी एवं ट्राइब्यूनल का क्षेत्राधिकार रेलवे संबंधी दावों के बारे में अपवर्जित करता है धारा 15 रेलवे क्लेम ट्राइब्यूनल निम्नलिखित प्रकार से है:-
Bar of jurisdiction.—On and from the appointed day, no court or other authority shall have, or be entitled to, exercise any jurisdiction, powers or authority in relation to the matters referred to in 4[sub-sections (1), (1A) and (1B)] of section 13.
9. उपरोक्त अपवर्जन धारा 15 रेलवे क्लेम अधिनियम में दिया गया है इससे स्पष्ट है कि सिविल न्यायालय के अतिरिक्त अन्य प्राधिकारियों जिसमें उपभोक्ता न्यायालय भी आते हैं, के क्षेत्राधिकार को रेलवे के बाल बुकिंग अर्थात धारा 13 के अंतर्गत दिये गये मामलों को जो रेलवे अधिनियम के अध्याय 7 में दिया गया है, क्षेत्राधिकार अपवर्जित किया गया है। अत: उपभोक्ता न्यायालय अर्थात जिला उपभोक्ता फोरम को इस परिवाद के निस्तारण व श्रवण का क्षेत्राधिकार नहीं है। विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने उक्त वैधानिक प्रावधानो को नजरअंदाज करते हुए परिवाद आज्ञप्त किया है। अत: निर्णय अपास्त होने योग्य है क्योंकि परिवादी द्वारा गलत मंच पर एक लम्बे समय तक वाद लड़ा गया है। अत: उसे उचित न्यायालय में वाद योजन की स्वतंत्रता देते हुए परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त किया जाता है। परिवादी का परिवाद उचित सक्षम न्यायालय में प्रस्तुत किये जाने की स्वतंत्रता के साथ उसे वापस किया जाये।
अपील में उभय पक्ष वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना)(डा0 आभा गुप्ता)
संदीप आशु0कोर्ट नं0 3