सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या-1459/2002
(जिला मंच, गोरखपुर द्वारा परिवाद संख्या-229/1999 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 19.04.2002 के विरूद्ध)
1. बनवारी लाल पुत्र लक्ष्मण प्रसाद
2. कुमारी जानकी पुत्री श्याम सुन्दर
3. श्याम सुन्दर पुत्र लक्ष्मण प्रसाद
4. रोहित (नाबालिग) पुत्र सुशील कुमार बबलात् पिता सुशील कुमार
5. दिनेश कुमार पुत्र बनवारी लाल
6. महेश कुमार पुत्र बनवारी लाल
7. सन्तोष कुमार पुत्र लक्ष्मण प्रसाद
8. श्रीमती सन्तोष देवी पत्नी सन्तोष कुमार
9. नवल किशोर पुत्र गोपीराव
10. अशोक कुमार पुत्र महावीर
11. नथमल पुत्र मदन लाल
12. श्रीमती बीना देवी पत्नी नथमल,
निवासीगण अर्जुन रोड भरौली बाजार, देवरिया पो0 एवं जनपद देवरिया।
13. सुशील कुमार पुत्र बैजनाथ
14. श्रीमती राधादेवी पत्नी सुशील
15. कु0 नेहा (नाबालिग) पुत्री सुशील बबलात् पिता सुशील कुमार
16. मण्टू (नाबालिग) पुत्र सुशील बबलात् पिता सुशील कुमार
17. मोहन लाल पुत्र बैजनाथ
निवासीगण गांधी कालेज के पश्चिम गोपालगंज पो0 व जनपद गोपालगंज, बिहार।
अपीलार्थीगण/परिवादीगण
बनाम
1. यूनियन आफ इण्डिया द्वारा सचिव रेल मंत्रालय भारत सरकार, नई दिल्ली।
2. पूर्वोत्तर रेलवे गोरखपुर द्वारा जनरल मैनेजर।
3. वरिष्ठ स्टेशन मास्टर वाराणसी कैण्ट रेलवे स्टेशन बिल्डिंग वाराणसी कैण्ट, उत्तर रेलवे।
4. वरिष्ठ स्टेशन मास्टर सूरत, रेलवे स्टेशन, सूरत।
प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
समक्ष:-
1. माननीय श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से : श्री बी0के0 उपाध्याय, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से : श्री एम0एच0 खान, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : 07.11.2019
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच, गोरखपुर द्वारा परिवाद संख्या-229/1999 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 19.04.2002 के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि अपीलकर्तागण/परिवादीगण के कथनानुसार अपीलकर्ता संख्या-1/परिवादी संख्या-1 की पुत्री कु0 सरिता की शादी दिनांक 20.06.1997 को सूरत, गुजरात में होना निश्िचित थी। विवाह शीघ्र होना था। ऐसी स्थिति में परिवादीगण को किसी प्रकार दिनांक 19.06.1997 तक सूरत पहुंचना था। परिवादी संख्या-1 के संयुक्त परिवाद के खास सदस्यों, रिश्तेदारों एवं पट्टीदार आदि मित्रों को लड़की की शादी में शामिल होना था, जिसके लिए गोरखपुर से सूरत जाने के लिए रिजर्वेशन कराने हेतु परिवादी संख्या-1 गोरखपुर गया वहां जाने के लिए गोरखपुर से सूरत का टिकट न मिलने के कारण कम्प्यूटर से वाराणसी से सूरत का रिजर्वेशन गाड़ी संख्या-4246 ताप्ती गंगा एक्सप्रेस से दिनांक 18.06.1997 को यात्रा के लिए प्रयास किया। विभिन्न तिथियों में किसी प्रकार 04 टोली में 4 टिकट अलग-अलग दिया। इस प्रकार कुल 17 व्यक्तियों के लिए दिनांक 18.06.1997 को बनारस से सूरत जाने का द्वितीय श्रेणी शयनयान का टिकट प्राप्त हुआ। पूर्व निर्धारित समय के अनुसार परिवदीगण देवरिया से कृषक एक्सप्रेस से दिनांक 18.06.1997 को वाराणसी पहुंचे तथा समय से सभी 17 व्यक्ति वाराणसी प्लेटफार्म पर पहुंच गये उक्त ट्रेन की प्रतीक्षा में थे। ट्रेन प्लेटफार्म पर आयी, लेकिन जिस कोच में परिवादीगण का आरक्षण था, वह कोच ताप्ती गंगा एक्सप्रेस ट्रेन में नहीं लगा था, जिसके बावत ड्यूटी पर तैनात कर्मचारी ने उक्त कोच एस-8 के बावत पूछने पर गाड़ी छूटने के 10 मिनट पहले बताया कि यह कोच नहीं लगा है। किसी प्रकार परिवादीगण साधारण डिब्बे में घुसे, क्योंकि विवाह के लिए दिनांक 20.06.1997 तक पहुंचना था। प्रत्यर्थीगण की लापरवाही से परिवादीगण को साधारण डिब्बे में खड़े होकर जाना पड़ा औरतों एवं बच्चों के बैठने की व्यवस्था भी नहीं हो पायी। दिनांक 19.06.1997 को सुबह ट्रेन के जबलपुर पहुंचने पर जबलपुर रेलवे स्टेशन पर कम्पलेन करवायी गयी। जबलपुर में स्टेशन के अधिकृत अधिकारी ने एस-8 न लगने का संकेत हर टिकट पर किया। ड्यूटी पर तैनात टीटीई से सम्पर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन सूरत तक कोई टिकट कलेक्टर नहीं आया, क्योंकि काफी भीड़ थी। परिवादीगण दिनांक 20.06.1997 को प्रात: लगभग 2.00 बजे सूरत पहुंचे। सूरत स्टेशन पर पहुंचने पर किसी प्रकार स्टेशन मास्टर से मिले तथा यह बताया कि एस-8 नहीं लगा है। साधारण डिब्बे से यात्रा करनी पड़ी है, लेकिन उन्होंने परिवादीगण को टिकट के अन्तर मूल्य देने से इंकार किया। उनके द्वारा कहा गया कि परिवादीगण ने प्रमाण नहीं दिया है, जबकि परिवादीगण के साधारण डिब्बे में टिकट कलेक्टर आया ही नहीं और जबलपुर स्टेशन पर टिकटों के पीछे मोहर लगाकर एस-8 न लगने का प्रमाण स्टेशन के कर्मचारी से करवाया गया। देवरिया वापस आने पर परिवादीगण ने अपने अधिवक्ता से राय लेकर जिला मंच देवरिया में परिवाद प्रस्तुत किया, लेकिन क्षेत्राधिकार के बिन्दु पर जिला फोरम द्वारा गोरखपुर अथवा वाराणसी में परिवाद करने की बाद इंगित करके परिवाद खारिज कर दिया, जिसके बाद परिवाद जिला मंच, गोरखपुर में योजित किया गया। परिवादीगण के कथनानुसार 17 व्यक्तियों के रिजर्वेशन टिकट का कुल मूल्य 4,651/- रूपये, जबकि साधारण टिकटों का मूल्य घटाने पर 1500/- रूपये परिवादीगण को सूरत स्टेशन से मिल जाना चाहिये था, किंतु परिवादीगण को टिकट के मूल्य के अन्तर का भुगतान नहीं किया गया। अत: प्रत्यर्थीगण द्वारा सेवा में त्रुटि अभिकथित करते हुए टिकट के मूल्य का अन्तर ब्याज सहित तथा क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु परिवाद जिला मंच में योजित किया गया।
प्रत्यर्थीगण द्वारा प्रतिवाद पत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया। प्रत्यर्थीगण द्वारा यह स्वीकार किया गया कि परिवादीगण का ताप्ती गंगा एक्सप्रेस कोच संख्या एस-8 में वाराणसी से सूरत दिनांक 18.06.1997 को यात्रा के लिए बर्थ संख्या-56, 57, 59 व 60 आरक्षित थी। यात्रियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए तकनीकी कारणों से दिनांक 18.06.1997 को उपरोक्त गाड़ी में कोच संख्या एस-8 नहीं लगाया जा सका, जिसके लिए वाराणसी स्टेशन पर पब्लिक एड सिस्टम से सार्वजनिक घोषणा बार-बार की गयी थी कि एस-8 के आरक्षित यात्री यदि चाहें तो अपना पैसा वापस ले सकते हैं, लेकिन परिवादीगण ने अपना पैसा वापस नहीं लिया और यात्रा की। विपक्षीगण का यह भी कथन है कि कोच में आंतरिक खराबी के कारण शयनयान एस-8 नहीं लग सका था। परिवाद के अन्य अभिकथनों से विपक्षीगण द्वारा इंकार किया गया।
जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय में यह मत व्यक्त करते हुए कि परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार उपभोक्ता मंच को प्राप्त नहीं है, परिवाद निरस्त कर दिया।
इस निर्णय एवं आदेश से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
हमने अपीलकर्तागण के विद्वान अधिवक्ता श्री बी0के0 उपाध्याय तथा प्रत्यर्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री एम0एच0 खान के तर्क सुने एवं पत्रावली का अवलोकन किया।
अपीलकर्तागण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि विवादित टिकट गोरखपुर से खरीदा गया था, अत: परिवाद जिला मंच गोरखपुर के समक्ष पोषणीय था। फिर भी जिला मंच गोरखपुर द्वारा परिवाद का क्षेत्राधिकार जिला मंच गोरखपुर के अन्तर्गत न मानकर त्रुटि की गयी। अपीलकर्तागण की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि जिला मंच ने पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों का उचित परिशीलन न करके प्रश्नगत निर्णय पारित किया है।
प्रत्यर्थीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत प्रकरण में परिवादीगण द्वारा वाराणसी स्टेशन से सूरत की यात्रा की गयी। वाराणसी स्टेशन पर ही एस-8 कोच नहीं लगवाया गया। अत: परिवाद जनपद गोरखपुर में पोषणीय नहीं है। प्रत्यर्थीगण की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि किराया वापसी का परिवाद उपभोक्ता मंच में पोषणीय नहीं है। रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल एक्ट की धारा 13 के अन्तर्गत ऐसे परिवाद रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल में पोषणीय है। इस अधिनियम की धारा 15 के अन्तर्गत ऐसे परिवादों की सुनवाई का क्षेत्राधिकार किसी अन्य न्यायालय अथवा अथारिटी को प्राप्त नहीं है।
जहां तक प्रश्नगत परिवाद की जिला मंच, गोरखपुर द्वारा सुनवाई की क्षेत्रीय अधिकारिता का प्रश्न है। अपीलकर्तागण के कथनानुसार उक्त यात्रा हेतु टिकट जनपद गोरखपुर में क्रय किया गया। इस तथ्य से प्रत्यर्थीगण द्वारा इंकार नहीं किया गया। अत: आंशिक वाद कारण जनपद गोरखपुर में भी उत्पन्न होना माना जाएगा। तदनुसार इस आधारपर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 11 के अन्तर्गत परिवाद अपोषणीय नहीं माना जा सकता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रस्तुत प्रकरण में किराया वापसी का अनुतोष मांगा गया है, इस अनुतोष हेतु रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल की धारा 13 एवं धारा 15 के अन्तर्गत सुनवाई का क्षेत्राधिकार रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल को ही है अन्य किसी न्यायालय अथवा अथारिटी को नहीं है।
अपीलकर्तागण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रस्तुत प्रकरण में अपीलकर्तागण ने मात्र किराया वापसी का अनुतोष नहीं चाहा है, बल्कि यात्रा में हुए कष्ट के लिए क्षतिपूर्ति की अदायगी का अनुतोष भी चाहा है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत अतिरिक्त उपचार की व्यवस्था की गयी है, अत: प्रश्नगत परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार उपभोक्ता मंच को प्राप्त है। इस संदर्भ में अपीलकर्तागण के विद्वान अधिवक्ता ने G.M. Northern Railway Vs Manoj Kumar IV (2014) CPJ 559 (NC), Union Of India Vs Dr. Shobha Agarwal III (2013) CPJ 469 (NC) के मामलें में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिये गये निर्णयों पर विश्वास व्यक्त किया गया है।
उल्लेखनीय है कि प्रस्तुत प्रकरण में अपीलकर्तागण ने प्रश्नगत परिवाद में विपक्षीगण द्वारा आरक्षित कोच न लगाए जाने के कारण तथा इस कारणवश परिवादीगण द्वारा वाराणसी से सूरत तक की यात्रा आरक्षित कोच के स्थान पर साधारण कोच में करने के कारण 1500/- रूपये बकाया किराये के मय ब्याज भुगतान तथा यात्रा में हुई कठिनाई के कारण मानसिक कष्ट के लिए 85,000/- रूपये तथा शारीरिक कष्ट के लिए 85,000/- रूपये दिलाए जाने हेतु परिवाद योजित किया गया है।
रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 की धारा 13 1 (बी) के अन्तर्गत रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल के क्षेत्राधिकार वर्णित किया गया है :-
" Jurisdiction, powers and authority of Claims Tribunal- (1) The Claims Tribunal shall exercise, on and from the appointed day, all such jurisdiction, powers and authority, as were exercisable immediately before that day by any civil court or a Claims Commissioner appointed under the provisions of the Railways Act.
In respect of the claims for refund of fares or part thereof or for refund of any freight paid in respect of animals or goods entrusted to a railway administration to be carried by railway. "
इस अधिनियम की धारा 15 के अनुसार :-
" Bar of jurisdiction,-On and from the appointed day, no Court or other authority shall have, or be entitled to exercise any jurisdiction, powers or authority in relation to the matters referred to in [sub sections (1) and (1-A)] of Section 13. "
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि किराया वापसी से संबंधित मामलों की सुनवाई का क्षेत्राधिकार रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल को ही प्राप्त है। इस संदर्भ में प्रत्यर्थीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा Northern Railway & Ors Vs Dau Dayal Chaturvedi IV (2010) CPJ 154 (NC) के मामले में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा भी यह निर्णीत किया गया है कि रेलवे किराये की वापसी का वाद रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल में ही योजित किया जा सकता है।
इस संदर्भ में अपीलकर्तागण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा संदर्भित निर्णयों के तथ्य प्रस्तुत प्रकरण के तथ्यों से भिन्न हैं, अत: उक्त मामलों में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिये गये निर्णयों का लाभ प्रस्तुत प्रकरण के संदर्भ में अपीलकर्तागण को प्रदान नहीं किया जा सकता। G.M. Northern Railway Vs Manoj Kumar के मामलें में उपभोक्ता द्वारा कराये गये आरक्षण से पूर्व ही रेलवे द्वारा संबंधित ट्रेन निरस्त की जा चुकी थी। फिर भी परिवादी को आरक्षित टिकट जारी किया गया तथा ट्रेन निरस्त होने की सूचना भी परिवादी को नहीं दी गयी। Union Of India Vs Dr. Shobha Agarwal के प्रकरण में यात्री का सूटकेस के चोरी का मामला निहित था। ऐसी परिस्थिति में अपीलकर्तागण द्वारा याचित किराया की वापसी के अनुतोष का क्षेत्राधिकार रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल को ही है, उपभोक्ता मंच को नहीं।
जहां तक प्रत्यर्थीगण द्वारा एस-8 कोच, जिसमें परिवादीगण को आरक्षित टिकट, यात्रा की तिथि हेतु जारी किया गया था, के यात्रा की तिथि पर न लगाए जाने का प्रश्न है। अपीलकर्तागण का यह कथन है कि यह कोच न लगाकर प्रत्यर्थीगण द्वारा लापरवाही की गयी है, किंतु इस संदर्भ में प्रत्यर्थीगण का यह कथन है कि तकनीकी कारणों से दिनांक 18.06.1997 को कोच में यांत्रिक खराबी के कारण कोच संख्या एस-8 नहीं लगाया जा सका, जिसके लिए वाराणसी स्टेशन पर पब्लिक एड सिस्टम से सार्वजनिक उद्घोषणा बार-बार की गयी कि एस-8 के आरक्षित यात्री यदि चाहें तो वह अपना पैसा वापस ले सकते हैं, किंतु परिवादीगण ने पैसा वापस नहीं लिया एवं यात्रा की।
जनहित में एवं यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु यांत्रिक खराबी के कारण कोई डिब्बा न लगाया जाना लापरवाही की श्रेणी में नहीं माना जा सकता। अपीलकर्तागण द्वारा ऐसी कोई साक्ष्य जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत नहीं की गयी है कि प्रत्यर्थीगण ने अकारण एस-8 कोच दिनांक 18.06.1997 को नहीं लगाया। उपरोक्त तथ्यों के आलोक में हमारे विचार से अपीलकर्तागण वांछित अनुतोष के अधिकारी नहीं हैं। जिला मंच द्वारा पारित निर्णय में हस्तक्षेप किये जाने का कोई औचित्य नहीं है। अपील में बल नहीं है, तदनुसार अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
उभय पक्ष प्रस्तुत अपील का व्यय स्वंय अपना-अपना वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय एवं आदेश की सत्यप्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्द्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2