मौखिक
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या-508/2001
(जिला उपभोक्ता फोरम, बहराइच द्वारा परिवाद संख्या-96/1999 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 31.07.2000 के विरूद्ध)
आलोक कुमार कोहली पुत्र भूषण कुमार कोहली, निवासी मोहल्ला क्षत्रीपुर, अपोजिट खादी ग्रामोद्योग बहराइच।
अपीलार्थी/परिवादी
बनाम्~
1. यूनियन आफ इण्डिया द्वारा सेक्रेटरी, फाइनेन्स, सेक्रेट्रियेट, नई दिल्ली।
2. मैनेजर, पंजाब नेशनल बैंक, हीरा सिंह मार्केट ब्रांच, बहराइच।
3. जनरल मैनेजर, डिस्ट्रिक्ट इण्डस्ट्रीज सेण्टर बहराइच।
प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
समक्ष:-
1. माननीय श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री संजय कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री एच0के0 श्रीवास्तव, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 03.01.2017
माननीय श्री संजय कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
वर्तमान अपील, परिवादी/अपीलार्थी की ओर से परिवाद संख्या-96/1999, आलोक कुमार कोहली बनाम यूनियन आफ इण्डिया एवं अन्य में जिला फोरम, बहराइच द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 31.07.2000 के विरूद्ध योजित की गयी है, जिसके अन्तर्गत जिला फोरम द्वारा प्रश्नगत परिवाद निरस्त कर दिया गया है।
उपरोक्त वर्णित निर्णय/आदेश से क्षुब्ध होकर परिवादी/अपीलार्थी की ओर से वर्तमान अपील योजित की गयी है।
-2-
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री एच0के0 श्रीवास्तव उपस्थित हैं। प्रत्यर्थीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। प्रस्तुत अपील वर्ष 2001 से निस्तारण हेतु लम्बित है, अत: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा-30 की उपधारा (2) के अन्तर्गत निर्मित उत्तर प्रदेश उपभोक्ता संरक्षण नियमावली 1987 के नियम 8 के उप नियम (6) में दिये गये प्रावधानों को दृष्टिगत रखते हुए पीठ द्वारा समीचीन पाया गया कि इस अपील का निस्तारण पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों के आधार पर कर दिया जाये। तदनुसार पीठ द्वारा विद्वान अधिवक्ता अपीलार्थी को सुना गया एवं पत्रावली का गहनता से परिशीलन किया गया।
प्रकरण के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी/अपीलार्थी ने वर्ष 1997 में प्रधानमंत्री रोजगार योजना के अन्तर्गत महाप्रबन्धक, जिला उद्योग केन्द्र बहराइच के समक्ष जनरल प्राविजन स्टोर खोलने हेतु एक प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया, इसके लिए परिवादी/अपीलार्थी को रू0 76,000/- का ऋण स्वीकृत हुआ, जिसमें से उसे रू0 45,985.50 का भुगतान कर दिया गया और शेष धनराशि रू0 34,014.50 का भुगतान नहीं किया गया। परिवादी/अपीलार्थी का कथन है कि शेष धनराशि के भुगतान के लिए उसने कई चक्कर लगाये और रजिस्ट्री नोटिस भी दी, परन्तु उपरोक्त धनराशि नहीं दी गयी और उसके खिलाफ वसूली शुरू कर दी गयी। परिवादी/अपीलार्थी द्वारा दिनांक 21.01.1998, 05.09.1998, 10.11.1998 तथा 07.12.1998 को क्रमश: रू0 2,000/-, 1,000/-, 21,000/- तथा रू0 1100/- की अदायगी की जा चुकी है। ऋण की शेष धनराशि का भुगता न होने से परिवादी को मानसिक कष्ट हुआ है, जिसकी क्षतिपूर्ति के लिए रू0 15,000/- एवं शेष ऋण की धनराशि की मांग करते हुए प्रश्नगत परिवाद योजित किया गया।
जिला फोरम के समक्ष विपक्षी संख्या-2/प्रत्यर्थी संख्या-2 की ओर से जवाबदावा दाखिल करते हुए मुख्य रूप से यह कथन किया गया कि परिवादी/अपीलार्थी को प्राविजन स्टोर खोलने के लिए ऋण का प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया जाना और ऋण का स्वीकार किया जाना स्वीकार किया गया है। उनके द्वारा विशेष कथन यह किया गया
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कि परिवादी/अपीलार्थी ने जिला उद्योग केन्द्र बहराइच से शिक्षित बेरोजगार योजना के तहत खुदरा व्यापार ऋण (प्राविजनल स्टोर) के लिए आवेदन किया था और विपक्षी संख्या-3/प्रत्यर्थी संख्या-3, जिला उद्योग केन्द्र बहराइच ने परिवादी/अपीलार्थी के लिए रू0 80,000/- के ऋण की संस्तुति की थी, उसकी दुकान तथा उसकी प्रतिभूतियों का निरीक्षण करने के बाद अधिकतम रू0 50,000/- का ऋण दिनांक 19.06.1998 को स्वीकृत किया गया। परिवादी/अपीलार्थी को ऋण लेने के तुरन्त पश्चात अपनी किश्तों को हर महीने जमा करना था, लेकिन परिवादी/अपीलार्थी ने दिनांक 28.08.1998 को रू0 2,000/- दिनांक 05.09.1998 को रू0 1,000/- दिनांक 10.11.1998 को रू0 2100/- तथा दिनांक 07.12.1998 को रू0 1100/- ही जमा किया है। इसके पश्चात किश्तों को जमा नहीं किया गया, अत: विपक्षी संख्या-2/प्रत्यर्थी संख्या-2 की सेवा में किसी प्रकार की कोई कमी नही है। तदनुसार परिवाद निरस्त होने योग्य है।
जिला फोरम द्वारा उभय पक्ष को सुनने एवं पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों के आधार पर उपरोक्त वर्णित निर्णय एवं आदेश पारित किया गया है, जिसके विरूद्ध वर्तमान अपील योजित की गयी है।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री एच0के0 श्रीवास्तव उपस्थित हैं। उनके द्वारा तर्क किया गया कि जिला फोरम द्वारा सभी तथ्यों पर विचार-विमर्ष किये बिना ही निर्णय/आदेश पारित किया गया है, अत: जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय/आदेश विधि अनुकूल नहीं है।
पीठ द्वारा पत्रावली का परिशीलन किया गया। पत्रावली के परिशीलन से यह तथ्य प्रकाश में आता है कि परिवादी/अपीलार्थी ने प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत जनरल प्राविजनल जनरल स्टोरे खोलने हेतु ऋण लिया था, जिसकी समय पर किश्तों की अदायगी की जिम्मेदारी परिवादी/अपीलार्थी पर थी, परन्तु किश्तों की अदायगी परिवादी/अपीलार्थी द्वारा समय से नहीं की गयी और ऋण की पूर्ण अदायगी भी नहीं
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की गयी और परिवाद जिला फोरम के समक्ष शेष धनराशि दिलाये जाने हेतु योजित कर दिया गया, जिसे जिला फोरम ने निरस्त कर दिया है, जिसमें हम किसी प्रकार की कोई विधिक अथवा तथ्यात्मक त्रुटि होना नहीं पाते हैं। अत: इसमें हस्तक्षेप करने का प्रथम दृष्टया कोई आधार नहीं बनता है। तदनुसार वर्तमान अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील निरस्त की जाती है।
पक्षकारान को इस निर्णय/आदेश की प्रमाणित प्रतिलिति नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये। पक्षकारान इस अपील का व्ययभार अपना-अपना स्वंय वहन करेंगे।
(आलोक कुमार बोस) (संजय कुमार)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2