राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
परिवाद संख्या:-42/2021
शंकर देव द्वारा श्रीमती इंदिरा दत्ता फ्लैट नं0-106, इंद्रप्रस्थ लैंडमार्क अपार्टमेंट, रहीमनगर, 35 पीएसी बटालियन के सामने, महानगर, लखनऊ 226006
........... परिवादी
बनाम
1- यूनियन आफ इण्डिया, द्वारा सचिव, रेल मंत्रालय, रेल भवन नई दिल्ली-110024
2- जनरल मैनेजर, पूर्व मध्य रेलवे, कोनहारा घाट रोड, हाजीपुर, बिहार-844101
3- डिविजनल रेलवे मैनेजर, डी0आर0एम0 आफिस, ईस्ट सेंटर रेलवे दानापुर, पोस्ट आफिस खगौल जिला पटना(बिहार) पिन-801105
…….. विपक्षीगण
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
परिवादी के अधिवक्ता : श्री पियूष मणि त्रिपाठी
विपक्षीगण की अधिवक्ता : श्री शरद कुमार श्रीवास्तव
दिनांक :- 16.3.2023
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत परिवाद, परिवादी शंकर देव द्वारा इस न्यायालय के सम्मुख धारा-47 (1) (a) (ii) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अन्तर्गत विपक्षी यूनियन आफ इण्डिया, द्वारा सचिव, रेल मंत्रालय, रेल भवन नई दिल्ली व दो अन्य के विरूद्ध क्षतिपूर्ति का अनुतोष दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया गया है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि वह पी0एन0आर0 सं0-611-4514426/23795257 पर ए0सी0 II कोच-1 में श्रमजीवी एक्सप्रेस नं0-2391 में राजगीर से नई दिल्ली की यात्रा कर
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रहा था। यह रेल बिहार शरीफ स्टेशन के नजदीग सोहगरा तथा वेना स्टेशन के मध्य पटरी से उत्तर गई (Derailment) जिस कारण परिवादी को वही उतरना पडा। ट्रेन के पटरी से उत्तरने (Derailment) के उपरांत परिवादी को कोई सुविधा रेलवे विभाग की ओर से नहीं प्रदान की गई तथा उसे पैदल तीन किलो मीटर लोकल बस डिपो पटना तक जाना पडा और जहॉ से उसे लखनऊ हेतु साधन प्राप्त होना था जिस कारण परिवादी का स्वास्थ्य एवं मनोदशा अत्याधिक खराब हो गई।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि उसके द्वारा सम्बन्धित गार्ड से सम्पर्क करने पर ट्रेन के गार्ड द्वारा परिवादी को यह सुझाव दिया कि वह टिकट का रिफण्ड ले सकता है क्योंकि वैकल्पिक प्रबन्ध का कोई समुचित विश्वास में नहीं है। जिस कारण दुर्घटना में घायल तथा स्वस्थ्य यात्रियों द्वारा भिन्न-भिन्न साधनों से अपनी यात्रा की गई। कुछ यात्रियों द्वारा टम्पो से कुछ यात्रियों द्वारा आटो रिक्शा से बिहार शरीफ तक की यात्रा की गई। परिवादी अपने व्यय पर पटना रेलवे स्टेशन पहुंचा जहॉ पर उसने डिप्टी स्टेशन सुपरिटेंडेंट से अपनी असुविधा के बारे में बताया जहॉ उसे पता लगा कि पटना रेलवे स्टेशन से श्रमजीवी एक्सप्रेस रि-शड्यूल होकर समय 3.00 बजे दिनांक 23.4.2008 को आरम्भ होगी, जिस कारण परिवादी दिनांक 23.4.2008 की मध्य रात्रि तक लखनऊ पहुंचा। इसके उपरांत परिवादी ने अपने अनेक पत्रों के माध्यम से डिविजनल रेलवे मैनेजर, दानापुर बिहार से सम्पर्क किया, किन्तु उसे अस्पष्ट जवाब मिला तथा रेलवे विभाग द्वारा खेद प्रकट करते हुए जवाब दिये गये, जिसमें यह स्वीकार किया गया उक्त दुर्घटना के उपरांत वैकल्पिक व्यवस्था न होने के कारण जो असुविधा हुई है जिसके कारण रेलवे विभाग खेद प्रकट करता है। परिवादी द्वारा समुचित उत्तर प्राप्त न होने पर मा0 केन्द्रीय रेल मंत्री तथा
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राष्ट्रपति महोदय भारत सरकार को पत्र लिखे। इसके अतिरिक्त ई-मेल के माध्यम से जिला मजिस्ट्रेट, कमिश्नर रेलवे सेफ्टी आदि को पत्र लिखे, किन्तु कोई अनुतोष न मिलने पर परिवादी द्वारा रूपये एक करोड की क्षतिपूर्ति हेतु यह परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षी की ओर से वादोत्तर प्रस्तुत किया गया जिसमें यह कहा गया है कि परिवादी ने यह परिवाद प्रस्तुत किया है किन्तु उसने कोई भी रेल दावा अधिकरण में समय-सीमा के अन्तर्गत अर्थात दुर्घटना के एक वर्ष के भीरत प्रस्तुत नहीं किया है। परिवादी ने बढा-चढा कर अपनी कठिनाईयों एवं परेशानियों को प्रस्तुत किया है। वादोत्तर में यह कथन किया गया है कि रेलवे प्राधिकारियों के पास और कोई साधन नहीं था, क्योंकि जहॉ पर ट्रेन पटरी से उतरी (Derailment) थी, वहॉ पर सिंगल लाईन थी। परिवादी द्वारा रेलवे तथा अन्य प्राधिकारियों को अनेकों पत्र प्रेषित कर दिये गये जो आधारहीन थे। परिवादी ने रेल दावा अधिकरण अधिनियम की धारा-124 के अन्तर्गत कोई भी दावा उक्त अधिकरण के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया है। विपक्षी द्वारा यह भी कथन किया गया कि धारा-15 रेल दावा अधिकरण अधिनियम के आधार पर सिविल न्यायालय तथा अन्य न्यायालयों और प्राधिकारियों को इस दावे को सुनने का अधिकार बाधित है। परिवाद आधारहीन एवं निरस्त किये जाने योग्य है।
परिवादी की ओर से परिवाद पत्र के समर्थन में परिवादी शंकर देव का शपथपत्र प्रस्तुत किया गया है एवं संलग्नक-1 लगायत 16 प्रपत्रों को प्रस्तुत किया गया है। विपक्षी की ओर से वादोत्तर के समर्थन में कोई प्रपत्र प्रस्तुत नहीं किया गया है, अत: दिनांक 14.10.2022 को विपक्षीगण के लिखित कथन का अवसर समाप्त किया गया।
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परिवादी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री पियूष मणि त्रिपाठी तथा विपक्षी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री शरद कुमार श्रीवास्तव को सुना तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों का परिशीलन किया गया।
विपक्षी की ओर से प्रथम आपत्ति यह प्रस्तुत की गई है कि परिवाद रेल दावा अधिकरण अधिनियम से बाधित है। रेल दावा अधिकरण की धारा-13 यह प्रदान करती है कि उल्लिखित मामले रेलवे दावा अधिकरण निम्नलिखित प्रकार से है:-
13. Jurisdiction, powers and authority of Claims Tribunal. (l) The Claims Tribunal shall exercise, on and from the appointed day, all such jurisdiction, powers and authority as were exercisable immediately before that day by any civil court or a Claims Commissioner appointed under the provisions of the Railways Act—
(a) relating to the responsibility of the railway administrations as carriers under Chapter-VII of the Railways Act in respect of claims for-
(i) compensation for loss, destruction, damage, deterioration or non-delivery of animals or goods entrusted to a railway administration for carriage by railway;
(ii) compensation payable under section 82A of the Railways Act or the rules made thereunder; and
(b) in respect of the claims for refund of fares or part thereof or for refund of any freight paid in respect of animals or goods entrusted to a railway administration to be carried by railway.
1 [(1A) The Claims Tribunal shall also exercise, on and from the date of commencement of the provisions of section 12A of the Railways Act, 1989 (24 of 1989), all such jurisdiction, powers and authority as were exercisable immediately before that date by any civil court in respect of claim for compensation now payable by the railway administration under section 124A of the said Act or the rules made thereunder ]
(2) The provisions of the [Railways Act 1989 (24 of 1989)1 and the rules made thereunder shall, so far as may be, be applicable to the inquiring into or determining, any claims by the Claims Tribunal under this Act.
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Again on considering the Section 13 of the Railway Claims Tribunal Act 1987 it may be observed that the case of the complainants is covered under Section 13(1A) of the above Act as the complainants have claimed compensation on the ground of inconvenience and trouble caused to her due to alleged negligence of railway authorities/officials when the coach wherein she was travelling was having broken window, in the train in which the complainants has reserved their berths for her journey, therefore, it is covered under the remedy provided under Section 13(1)(a) read with Section 124A of the Railways Act 1989.
धारा-13 में यह प्रदान किया गया है कि धारा-124 रेलवे अधिनियम के अन्तर्गत रेलवे के चलन में यदि कोई दुर्घटना कारित होती है अथवा Derailment के कारण यात्री को असुविधा होती है तो रेलवे विभाग क्षतिपूर्ति यात्री को प्रदान करेगा। रेलवे अधिनियम की धारा-124 निम्नलिखित प्रकार से दी गई है:-
Section 124 in The Railways Act, 1989
124. Extent of liability.—When in the course of working a railway, an accident occurs, being either a collision between trains of which one is a train carrying passengers or the derailment of or other accident to a train or any part of a train carrying passengers, then whether or not there has been any wrongful act, neglect or default on the part of the railway administration such as would entitle a passenger who has been injured or has suffered a loss to maintain an action and recover damages in respect thereof, the railway administration shall, notwithstanding anything contained in any other law, be liable to pay compensation to such extent as may be prescribed and to that extent only for loss occasioned by the death of a passenger dying as a result of such accident, and for personal injury and loss, destruction, damage or deterioration of goods owned by the passenger and accompanying him in his compartment or on the train, sustained as a result of such accident. Explanation.—For the puposes of this section “passenger” includes a railway servant on duty.
किन्तु रेलवे अधिनियम की धारा-128 में यह प्रदान किया गया है कि धारा-124 के अन्तर्गत वर्क मैन कम्पसेशन अधिनियम 1923 तथा किसी अन्य विधि में भी यह क्षतिपूर्ति का दावा प्रस्तुत किया जा सकता है। धारा-128 निम्नलिखित प्रकार से है:-
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128. Saving as to certain rights.—
(1) The right of any person to claim compensation under section 124 29 [or section 124A] shall not affect the right of any such person to recover compensation payable under the Workmen’s Compensation Act, 1923 (8 of 1923), or any other law for the time being in force; but no person shall be entitled to claim compensation more than once in respect of the same accident.
(2) Nothing in sub-section (1) shall affect the right of any person to claim compensation payable under any contract or scheme providing for payment of compensation for death or personal injury or for damage to property or any sum payable under any policy of insurance.
उपरोक्त अधिनियम यह स्पष्ट करता है कि धारा-124 रेलवे अधिनियम के अन्तर्गत Derailment के कारण यदि कोई दुर्घटना में किसी यात्री को असुविधा होती है तो वह रेलवे अधिनियम के अतिरिक्त अन्य विधि के अन्तर्गत भी अपना क्षतिपूर्ति का दावा प्रस्तुत कर सकता है। उपरोक्त अधिनियम के प्रकाश में विपक्षी का यह तर्क मानने योग्य नहीं है कि इस आयोग के समक्ष दावा पोषणीय नहीं है क्योंकि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा-100 यह प्रदान करती है कि इस अधिनियम में प्रदान किये गये प्रावधान अन्य विधि के विकल्प में है एवं विरोधाभाष में नहीं है अत: धारा-100 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अनुसार वैकल्पिक विकल्प में रेलवे दावा अधिकरण के अतिरिक्त इस आयोग के समक्ष उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अन्तर्गत परिवाद पोषणीय है।
इस सम्बन्ध में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय यूनियन आफ इण्डिया बनाम मानसी संजीव भावे व अन्य, प्रकाशित । (2017) सी0पी0जे0 पृष्ठ-126 (एन0सी0) तथा यूनियन आफ इण्डिया बनाम सविता बेन सुमन भाई पटेल, प्रकाशित ।।। (2011) सी0पी0जे0 पृष्ठ-34 (एन0सी0) का उल्लेख करना उचित होगा। इन दोनों निर्णयों में धारा-13 एवं 15 रेल दावा अधिकरण अधिनियम तथा रेलवे अधिनियम की धारा-124 एवं 128 का विश्लेषण करते हुए यह निर्णीत किया गया है कि
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धारा-128 रेलवे अधिनियम के प्रकाश में वैकल्पिक रूप से दावा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत पोषणीय है।
परिवादी द्वारा अपनी असुविधा के लिए रूपये एक करोड की धनराशि की मॉग की गई है, किन्तु यह धनराशि अत्यधिक है क्योंकि स्वयं परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये संलग्नक-7 जो पत्र दिनांकित 25.02.2009 है उसमें यह अंकित है कि यह ट्रेन Derail होने के बाद पटना जक्शन से रि-शड्यूल होकर 15.00 बजे आरम्भ हो गयी थी स्वयं परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में भी यह स्वीकार किया है कि पटना स्टेशन से यह Derailed ट्रेन उसी दिवस को रि-शड्यूल होकर आरम्भ हो गई थी अत: समस्त परिस्थितियों को देखते हुए रू0 50,000.00 की क्षतिपूर्ति इस मामले में परिवादी को दिलाया जाना पर्याप्त प्रतीत होता है। तद्नुसार प्रस्तुत परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत परिवाद स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वे परिवादी को 50,000.00 रू0 की क्षतिपूर्ति इस निर्णय/आदेश की तिथि से एक माह के अन्दर अदा करें। अन्य अनुतोष हेतु परिवाद अस्वीकार किया जाता है।
परिवाद में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं बहन करेंगे।
आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
हरीश सिंह
वैयक्तिक सहायक ग्रेड-2.,
कोर्ट नं0-1