(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-411/2007
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, शाहजहॉंपुर द्वारा परिवाद संख्या-01/2006 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 19.01.2007 के विरूद्ध)
फूलमती (मृतक) पत्नी स्व0 कढ़ेर निवासी ग्राम नवदिया नवाजपुर, थाना सेहरामऊ उत्तरी जिला शाहजहाँपुर, उ0प्र0। ........(मृतक)
विमला देवी पत्नी बहादुर लाल, निवासी ग्राम नवदिया नवाजपुर, चांदपुर तहसील पुवाया, जिला शाहजहाँपुर। ......(उत्तराधिकारी)
अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
यूनियन आफ इण्डिया, मिनिस्ट्री आफ रेलवे द्वारा सामान्य प्रबन्धक, एन0ई0 रेलवे, गोरखपुर।
प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष:-
1. माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री संजय कुमार कुंतल,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री एम0एच0 खान, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 01.12.2020
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित आदेश दिनांक 25.04.2011 के अनुक्रम में इस अपील का निस्तारण पुन: गुणदोष पर दोनों पक्षकारों के विद्वान अधिवक्तागण को विस्तृत से सुनकर किया जा रहा है।
2. परिवाद संख्या-01/2006, फूलमती बनाम यूनियन आफ इण्डिया के अनुसार दिनांक 05.04.2005 को फूलमती (मृतक) द्वारा उत्तराधिकारी के पति स्व0 कढ़ेर पुत्र बेंचे, निवासी ग्राम नवदिया नवाजपुर थाना सेहरामऊ उत्तरी जिला शाहजहॉंपुर ट्रेन संख्या-156 टिकट संख्या-
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93514 से मैलानी से सेहरामऊ रेलवे स्टेशन तक ट्रेन द्वारा यात्रा कर रहे थे, परन्तु अचानक जर्क लेने तथा यात्रियों की भीड़ के दबाव के कारण मृतक के हाथ से हैण्डल छूट गया और चलती ट्रेन से ट्रैक पर गिरने के कारण उसकी मृत्यु हो गई, इसलिए प्रतिकर पाने के उद्देश्य से विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग के समक्ष उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत परिवाद प्रस्तुत किया गया।
3. विपक्षी, रेलवे का कथन है कि मृतक व्यक्ति सद्भावी यात्री नहीं था तथा विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग को सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है।
4. दोनों पक्षकारों को सुनने के पश्चात् विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि जिला फोरम को प्रश्नगत प्रकरण की सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है और तदनुसार परिवाद निरस्त कर दिया गया।
5. इस निर्णय एवं आदेश को इस आयोग के समक्ष उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 15 के अन्तर्गत चुनौती दी गई है। इस आयोग द्वारा अपने निर्णय एवं आदेश दिनांक 27.02.2007 में यह निष्कर्ष दिया गया है कि विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग को प्रश्नगत परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है।
6. इस निर्णय एवं आदेश दिनांक 27.02.2007 को माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के समक्ष चुनौती दी गई, जिसके द्वारा पारित आदेश दिनांक 25.04.2011 का उल्लेख ऊपर किया जा चुका है।
7. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि मृतक एक सद्भावी यात्री था, उसकी जेब से टिकट प्राप्त हुआ है, उसका पोस्टमार्टम हुआ है। क्षेत्राधिकार के संबंध में विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 3 के अन्तर्गत परिवाद
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संधारणीय है। अत: रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट की धारा 13 के अन्तर्गत केवल वह क्षेत्राधिकार प्रदान किया गया है, जो इस एक्ट के लागू होन से पूर्व सिविल न्यायालय में निहित था। अन्य किसी न्यायालय में निहित क्षेत्राधिकार को अपवर्जित नहीं किया गया है।
8. प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि रेलवे यात्रा के दौरान या रेवले परिसर में घटित किसी भी दुर्घटना के लिए क्षतिपूर्ति पाने के उद्देश्य से केवल रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट के अन्तर्गत दावा प्रस्तुत किया जा सकता है न कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत। प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि चूंकि अनपेक्षित घटना (Un towards incident) से संबंधित मामलों में रेलवे यात्रा के दौरान दुर्घटना घटित होने पर यात्री को रेलवे की उपेक्षा या लापरवाही साबित नहीं करनी होती है और एक निश्चित धनराशि प्राप्त हो जाती है। ऐसा क्लेम केवल रेलवे ट्रिब्यूनल एक्ट के अन्तर्गत प्रस्तुत किया जा सकता है न कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत।
9. रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 की धारा 13 के अन्तर्गत ट्रिब्यूनल की शक्तियों का विवरण दिया गया है, जिसके अनुसार ट्रिब्यूनल को वह शक्तियां प्रदान की गई, जो इस ट्रिब्यूनल के लागू होने के पूर्व दिवानी न्यायालय को प्राप्त थीं। यह अधिनियम 23.12.1987 को लागू हुआ है, जबकि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के लागू होने की तिथि दिनांक 01.07.1987 है यानि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 के लागू होने से पूर्व लागू हो चुका था और तत्समय उपभोक्ता से संबंधित विवादों की सुनवाई का अधिकार सिविल न्यायालय को प्राप्त नहीं था। इस प्रकार सिविल न्यायालय का क्षेत्राधिकार, जो रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 की धारा 13 के अन्तर्गत प्रदान किया गया है,
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उस समय उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत दिया गया क्षेत्राधिकार शामिल नहीं था।
10. रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 की धारा 15 के अनुसार इस एक्ट के लागू होने के पश्चात् किसी अन्य न्यायालय या प्राधिकरण को इस एक्ट से संबंधित मामलों की सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं होगा।
11. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अनपेक्षित दुर्घटना के कारण प्रतिकर दिए जाने की व्यवस्था धारा 124 ए रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट के अन्तर्गत दी गई है। रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट के अन्तर्गत दी गई उक्त व्यवस्था का लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से आवश्यक है कि क्लेम की मांग रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट के अन्तर्गत स्थापित ट्रिब्यूनल से की जाए न कि उपभोक्ता संरक्षण आयोग या उपभोक्ता मंच से, क्योंकि उपभोक्ता मंच/आयोग के समक्ष अनुतोष प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि परिवादी द्वारा यह साबित किया जाए कि विपक्षी ने सेवा में किस प्रकार की त्रुटि कारित की है, जबकि उपरोक्त वर्णित धारा 124 क के अन्तर्गत किसी भी प्रकार की त्रुटि साबित करने का कोई अवसर परिवादी के पास नहीं है, वह त्रुटि को साबित किए बिना भी रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट से एक सुनिश्चित राशि प्राप्त करने के लिए अधिकृत है।
नजीर Rati Tripathi & Ors Vs Union of India & Anr II (2016) CPJ 144 (MP) में व्यवस्था दी गई है कि रेलवे एक्ट की धारा 128 यानि अनपेक्षित घटना (Un towards incident) के मामलों में विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग को प्रतिकर प्रदान करने का कोई क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है। इस नजीर के अन्तर्गत कन्ज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 17 तथा रेलवे एक्ट की धारा 128 की विस्तृत व्याख्या की गई है। इसी नजीर में व्यवस्था दी गई है कि अनपेक्षित घटना के कारण
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दुर्घटना में यात्री धारा 124 क (रेलवे एक्ट) के अन्तर्गत क्लेम प्राप्त करने के उद्देश्य से क्षतिधारक या मृतक के उत्तराधिकारी को किसी प्रकार की लापरवाही या द्ववेषपूर्ण कृत स्थापित करने की आवश्यकता नहीं है। इसी नजीर में धारा 128 (रेलवे एक्ट) के संबंध में व्यवस्था दी गई है कि रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट की धारा 128 की व्यवस्था के अनुसार इस अधिनियम का प्रभाव अन्य कानून/नियम अधिनियम के ऊपर अधिभावी है, जिसका तात्पर्य यह है कि यदि रेलवे यात्रा के दौरान दुर्घटना घटित होती है तब प्रतिकर केवल रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट के अन्तर्गत प्राप्त किया जा सकता है न कि विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग के समक्ष परिवाद या अपील प्रस्तुत करके।
12. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता की ओर से नजीर Western Railway Vs. Vinod Sharma I (2017) CPJ 279 (NC) प्रस्तुत की गई है, जिसमें उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 21(a)(ii) तथा रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट की धारा 13(1A), 15,28 रेलवे एक्ट 1989 की व्याख्या की गई है। यह व्यवस्था दी गई है कि यदि रेलवे परिसर के अन्तर्गत किसी यात्री को कोई क्षति कारित होती है तब उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम के अन्तर्गत भी प्रतिकर प्राप्त किया जा सकता है और केवल इस आधार पर परिवाद खारिज नहीं किया जा सकता कि जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग को क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है। इस केस के तथ्यों के अनुसार परिवादी रेलवे का नियमित यात्री था, जिसके पास प्रथम श्रेणी का सीजन टिकट था। रेल से उतरने के पश्चात् जब परिवादी अपने कार्यालय की तरफ जा रहा था तब एक भारी लकड़ी का लट्ठा जिसकी लम्बाई 10 फिट और चौड़ाई 2 फिट थी, उसके सिर के ऊपर गिर गया। इस क्षति के कारण परिवाद प्रस्तुत करने पर जिला उपभोक्ता फोरम को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 3 के अन्तर्गत प्रतिकर प्राप्त करने के लिए सक्षम
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फोरम माना गया। प्रस्तुत केस में परिवादी/अपीलार्थी का केस यह है कि ट्रेन में यात्रा करने के कारण दुर्घटना घटित हुई है, जबकि उपरोक्त केस में ट्रेन में यात्रा करने के कारण दुर्घटना घटित नहीं हुई थी, बल्कि रेलवे परिसर में रेलवे कर्मचारियों की लापरवाही के कारण लकड़ी का एक लट्ठा यात्री के सिर पर गिर गया था, इसलिए रेलवे परिसर के सुचारू संरक्षण/संधारण में कमी के कारण यात्री के प्रति सेवा में कमी माना जा सकता है। इसी प्रकार यदि किसी यात्री के पास वैध टिकट होते हुए भी उसे यात्रा न करनी दी जाए या समुचित स्तर की बर्थ न उपलब्ध कराई जाए तब यह सब कमी भी यात्री के प्रति सेवा में कमी माना जा सकता है और निश्चित रूप से इन कमियों के कारण प्रतिकर प्राप्त करने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत परिवाद प्रस्तुत करने का क्षेत्राधिकार प्राप्त है, परन्तु जब रेल के संचालन के दौरान दुर्घटना घटित होती है तब इस दुर्घटना के कारण पहुंची क्षति का क्लेम केवल रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 के अन्तर्गत ही प्राप्त किया जा सकता है, इसलिए इस नजीर का कोई लाभ अपीलार्थी को प्रदान नहीं किया जा सकता है।
13. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता की ओर से एक अन्य नजीर Union Of India Vs Mansi Sanjay Bhave & Anr I (2017) CPJ 126 (NC) प्रस्तुत की गई। इस नजीर में भी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 3 और रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट की धारा 15 की व्यवाख्या की गई है। इस केस में प्लेटफार्म पर गिरने के कारण मृत्यु कारित हुई थी, इसलिए उपभोक्ता आयोग के समक्ष प्रतिकर प्रस्तुत करने के लिए वाद को वैध माना गया। जैसा कि हमारे द्वारा ऊपर उल्लेख किया जा चुका है, उपरोक्त नजीर केवल ऐसे प्रतिकरों में लागू होती है जहां रेलवे द्वारा सेवा में त्रुटि कारित की गई हो, रेल संचालन के दौरान घटित
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दुर्घटना के कारण क्लेम की मांग रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 के अन्तर्गत ही की जा सकती है, इसलिए इस नजीर का भी कोई लाभ अपीलार्थी को प्रदान नहीं किया जा सकता है।
14. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता की ओर से एक अन्य नजीर Union of India Vs Vinaya Vilas Sawant IV (2017) CPJ 485 (NC) प्रस्तुत की गई है। इस केस में रेलवे ब्रिज टूटने के कारण यात्री की मृत्यु कारित हो गई थी, इसलिए जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया गया परिवाद क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत प्रस्तुत किया गया वाद माना गया। इस केस के तथ्यों एवं विधि व्यवस्था की स्थिति भी वही है जिनका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। अत: इस नजीर में दी गई व्यवस्था का कोई लाभ भी अपीलार्थी को प्रदान नहीं किया जा सकता है।
15. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता की ओर से एक अन्य नजीर Northern Railway Vs Gurmeet Kaur II (2016) CPJ 112 (Delhi) प्रस्तुत की गई है। इस नजीर में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1)(g), 14(1)(d) तथा रेलवे एक्ट 1989 की धारा 15, 123C(2), 124A की व्याख्या की गई है साथ ही अनपेक्षित दुर्घटना (Un towards incident) को परिभाषित किया गया है। इस केस में रेलवे परिसर के अन्तर्गत हैण्डल छूटने के कारण यात्री को क्षति कारित हुई थी, उसके द्वारा इलाज कराने पर खर्चा हुआ था तथा आमदनी के श्रोत कम होने के कारण नुकसान भी हुआ था। विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा परिवाद स्वीकार किया गया है। इस केस में वर्णित स्थिति तथा उस पर लागू होने वाली विधि व्यवस्था भी वही है, जिनका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है।
16. उपरोक्त निष्कर्ष के आलोक में कहा जा सकता है कि विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग के समक्ष परिवाद दायर करने का
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अधिकार परिवादी को प्राप्त नहीं था तथा इस प्रकार विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग को भी इस प्रकरण की सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं था। अत: विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश विधि सम्मत है, तदनुसार अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
17. प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है। अपीलार्थी/परिवादी सक्षम प्राधिकरण के समक्ष क्लेम की मांग करने के लिए स्वतंत्र है।
18. अपील में उभय पक्ष अपना-अपना व्यय स्वंय वहन करेंगे।
19. उभय पक्ष को इस निर्णय एवं आदेश की सत्यप्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2