राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-२७५८/१९९९
(जिला फोरम, उन्नाव द्वारा परिवाद सं0-४३/१९९८ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक २१-०७-१९९९ के विरूद्ध)
ओमप्रकाश बाजपेयी पुत्र श्री गंगा प्रसाद बाजपेयी निवासी ग्राम व पोस्ट गौरा, जनपद उन्नाव।
..................... अपीलार्थी/परिवादी।
बनाम्
१. भारत संघ द्वारा सचिव, डाक तार विभाग, नई दिल्ली।
२. डाक पाल, डाकघर एम.बी. चौराहा, मनी, झॉंसी, उत्तर प्रदेश।
...................... प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण।
समक्ष:-
१- मा0 आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी/परिवादी की ओर से उपस्थित :- कोई नहीं।
प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण की ओर से उपस्थित :- डॉ0 उदयवीर सिंह विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : १०-०४-२०१५
मा0 श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपीलार्थी ओम प्रकाश ने प्रस्तुत अपील विद्वान जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, उन्नाव द्वारा परिवाद सं0-४३/१९९८ में गुणदोष के आधार पर पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक २१-०७-१९९९ जिसके अन्तर्गत परिवाद को निरस्त किया गया है, से क्षुब्ध होकर दिनांक ०८-१०-१९९९ को योजित की है। अपीलार्थी का कहना है कि अधीनस्थ फोरम द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथ्यों एवं विधि विरूद्ध होने के कारण अपास्त कर दिया जाय अन्यथा उसे अपूर्णनीय क्षति होगी। दिनांक १७-०३-२०१५ को अपील सुनवाई हेतु ली गयी। उस दिन अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता अनुपस्थित थे एवं उनकी ओर से स्थगन हेतु कोई प्रार्थना पत्र भी प्रस्तुत नहीं किया गया, जबकि प्रत्यर्थी डाक विभाग की ओर से विद्वान अधिवक्ता डॉ0 उदयवीर सिंह उपस्थित थे। चूँकि यह यह अपील पिछले १५ वर्ष से भी अधिक समय से निस्तारण हेतु सूचीबद्ध होती चली आ रही है अत: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ (अधिनियम सं० ६८ सन् १९८६) की धारा-३० की उपधारा (२) के
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अन्तर्गत निर्मित उत्तर प्रदेश उपभोक्ता संरक्षण नियमावली १९८७ के नियम ८ के उप नियम (६) में दिये गये प्राविधान को दृष्टिगत रखते हुए पीठ द्वारा यह समीचीन पाया गया कि पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य/अभिलेख के आधार पर इस अपील में न्यायोचित आदेश पारित किया जाय। अत: पीठ द्वारा दिनांक १७-०३-२०१५ को प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता को एकल रूप से सुना गया। उनका कहना है कि अधीनस्थ फोरम द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय में किसी प्रकार की कोई त्रुटि नहीं है। प्रस्तुत अपील समय सीमा के उपरान्त दाखिल की गयी है एवं भारतीय डाक अधिनियम १८९८ (अधिनियम सं० ६ सन् १८९८) की धारा-६ में दिये गये प्राविधान से भी बाधित है। इसके अतिरिक्त उनका यह भी कहना है कि अपीलार्थी/परिवादी ने अपना परिवाद जनपद उन्नाव में योजित किया था जिसकी सुनवाई का क्षेत्राधिकार अधीनस्थ फोरम के पास नहीं था। प्रत्यर्थी का यह भी कहना है कि वाद का कारण वर्ष १९९५ में उत्पन्न हुआ था जबकि परिवाद वर्ष १९९८ में योजित किया गया। इस प्रकार परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ (अधिनियम सं० ६८ सन् १९८६) की धारा-२४ ए से भी बाधित है।
संक्षेप में अपीलार्थी/परिवादी का कहना है कि उसने ने दिनांक ३०-०१-१९९५ को जरिए रसीद सं0 २४४५ मु० ८००/- रू० का धनादेश डाकघर एम.बी. चौराहा, मनी, झॉंसी से भेजा था जो प्राप्तकर्ता को समय से नहीं प्राप्त कराया गया। इसी बीच प्राप्तकर्ता की मृत्यु हो गयी। डाक विभाग की इसी सेवा में कमी के आधार पर अपीलार्थी/परिवादी ने जिला फोरम उन्नाव में वर्ष १९९८ में परिवाद सं0-४३/१९९८ योजित किया जिसे उभय पक्ष को सुनने के उपरान्त जिला फोरम द्वारा इस आधार पर निरस्त कर दिया गया कि प्रश्नगत परिवाद वाद का कारण उत्पन्न होने के ०२ वर्ष के पश्चात् दायर किया गया है। इसके अतिरिक्त धनादेश जनपद झॉंसी से भेजा गया था परन्तु परिवाद जनपद उन्नाव में योजित किया गया। इस प्रकार इस प्रकरण की सुनवाई का क्षेत्राधिकार जिला फोरम उन्नाव के समक्ष नहीं था। इसके अतिरिक्त परिवाद भारतीय डाक अधिनियम १८९८ (अधिनियम सं० ६ सन् १८९८) की धारा-४८ में दिये गये प्राविधान से बाधित है। अधीनस्थ फोरम के इसी आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत अपील संस्थित की गयी है।
पीठ द्वारा पत्रावली का गहनता से परिशीलन किया गया। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश
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की प्रमाणित प्रतिलिपि अपीलार्थी को दिनांक ०२-०८-१९९९ को उपलब्ध करायी गयी जबकि प्रस्तुत अपील दिनांक ०८-१०-१९९९ को योजित की गयी है। इस प्रकार यह अपील समय सीमा से बाधित है।
इसके अतिरिक्त स्वीकृत रूप से परिवादी ने प्रश्नगत धनादेश दिनांक ३०-०१-१९९५ को भेजा था जबकि उसके द्वारा प्रश्नगत परिवाद दिनांक २९-०१-१९९८ को दायर किया गया था जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ (अधिनियम सं० ६८ सन् १९८६) की धारा-२४ ए से बाधित है।
पत्रावली के परिशीलन से यह तथ्य भी प्रकाश में आता है कि यह परिवाद पत्र इसी आधार पर जनपद उन्नाव में संस्थित किया गया कि विपक्षीगण का एक डाकघर/कार्यालय जनपद उन्नाव में भी स्थित है। माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा सोनिक सर्जीकल बनाम नेशनल इंश्योरेंस कं0लि0 2010(1) CPR 28 (SC) में यह विधिक सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि केवल इसी आधार पर कि विपक्षी का कार्यालय परिवाद संस्थित करने के स्थान पर स्थित है, वहॉं क्षेत्राधिकार उत्पन्न नहीं होता है। इस प्रकरण में जनपद उन्नाव से न तो धनादेश भेजा गया था और न ही अन्य कोई कार्यवाही सम्पादित की गयी थी। अत: अधीनस्थ जिला फोरम उन्नाव के पास इस परिवाद को सुनने का कोई क्षेत्राधिकार नहीं था। इस बिन्दु पर अधीनस्थ फोरम द्वारा जो निष्कर्ष दिया गया है वह प्रत्येक दृष्टिकोण से विधि अनुरूप है अत: इसमें हस्तक्षेप करने का प्रथम दृष्ट्या कोई आधार नहीं बनता है।
उपरोक्त के अतिरिक्त यहॉं यह उल्लेखनीय है कि भारतीय डाक अधिनियम १८९८ (अधिनियम सं० ६ सन् १८९८) की धारा-४८ में निम्नवत् प्राविधान है कि -
48- Exemption from liability in respect of money orders. – No suit or other
legal proceeding shall be instituted against [the Government] or any officer or
the Post Office in respect of-
(a) anything done under any rules made by the [Central Government] under this Chapter; or
(b) the wrong payment of a money order caused by incorrect or incomplete information given by the remitter as to the name and address of the payee, provided that, as regards incomplete information; there was reasonable justification for accepting the information as a sufficient description for the purpose of identifying the payee; or
(c) the payment of any money order being refused or delayed by, or on account of , any accidental neglect, omission or mistake, by, or on the part of, an officer
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of the Post Office, or for any other cause whatsoever, other than the fraud or wilful act or default of such officer; or
(d) any wrong payment of a money order after the expiration of one year from the date of the issue of the order; [or]
(e) any wrong payment or delay in payment of a money order beyond the limits of [India] by an officer of any Post Office, not being one established by the [Central Government].
इसी अधिनियम की धारा ६ में यह प्राविधान दिया गया है कि –
Section 6 of the Indian Post Office Act. 1898 reads as under :
“6. Exemption from liability for loss, misdelivery, delay or damage - The Government shall not incur any liability by reason of the loss, misdelivery or delay of, or damage to, any postal article in course of transmission by post, except insofar as such liability may in express terms be undertaken by the Central Government as hereinafter provided and no officer of the Post Office shall incur any liability by reason of any such loss, misdelivery, delay or damage, unless he has caused the same fraudulently or by his willful act or default.”
उपरोक्त प्राविधानों तथा मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा टीकाराम बनाम इण्डियन पोस्टल डिपार्टमेण्ट IV (2007) CPJ 123 (NC) में दिये गये विधिक सिद्धान्त को दृष्टिगत रखते हुए पीठ इस निष्कर्ष पर पहुँची है कि इस प्रकरण में अधीनस्थ फोरम द्वारा दि० २१-०७-१९९९ को पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश प्रत्येक दृष्टिकोण से तथ्यों एवं विधि के अनुरूप है एवं इसमें हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं बनता है। वर्णित परिस्थिति में यह अपील सारहीन एवं बलहीन होने के कारण निरस्त होने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है। अधीनस्थ जिला फोरम, उन्नाव द्वारा परिवाद सं0-४३/१९९८ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक २१-०७-१९९९ की पुष्टि की जाती है। पक्षकार अपीलीय व्यय-भार अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे। उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(आलोक कुमार बोस)
पीठासीन सदस्य
(संजय कुमार)
सदस्य
प्रमोद कुमार, वैय0सहा0ग्रेड-१, कोर्ट-४.