राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-३६४/२०००
(जिला फोरम, बहराइच द्वारा निष्पादन वाद सं0-९६/१९९८ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक ११-०१-२००० के विरूद्ध)
गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव पुत्र श्री रघुनाथ प्रसाद सेवा निवृत्त चीफ टिकट कलैक्टर, एन.ई. रेलवे, बहराइच निवासी मोहल्ला बशीरगंज, जिला-बहराइच।
..................... अपीलार्थी/परिवादी।
बनाम्
१. यूनियन आफ इण्डिया द्वारा चीफ सैक्रेटरी, गवर्नमेण्ट आफ इण्डिया।
२. सुपरिण्टेण्डेण्ट आफ पोस्ट आफिसेज, बहराइच डिवीजन, बहराइच।
३. पोस्ट मास्टर हैड पोस्ट आफिस, जिला बहराइच।
४. पोस्ट मास्टर जनरल, यू.पी. लखनऊ।
५. डिप्टी पोस्ट मास्टर, सिटी पोस्ट आफिस, बहराइच।
...................... प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण।
समक्ष:-
१- मा0 आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- कोई नहीं।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित :- डॉ0 उदयवीर सिंह विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : ०२-०७-२०१५
मा0 श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपील दिनांक १७-०३-२०१५ को सुनवाई हेतु ली गयी। अपीलार्थी गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव ने प्रस्तुत अपील विद्वान अधीनस्थ फोरम द्वारा परिवाद सं0-९६/१९९८ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ११-०१-२००० से क्षुब्ध होकर योजित की है। प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता डॉ0 उदयवीर सिंह उपस्थित आये परन्तु अपीलार्थी न तो स्वयं और न ही उसके विद्वान अधिवक्ता उपस्थित आये। चूँकि अपील पिछले १४ वर्ष से अधिक समय से निस्तारण हेतु लम्बित चली आ रही थी अत: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ (अधिनियम संख्या ६८ सन् १९८६) की धारा-३० की उपधारा (२) के अन्तर्गत निर्मित उत्तर प्रदेश उपभोक्ता संरक्षण नियमावली १९८७ के
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नियम ८ के उप नियम (६) में दिये गये प्राविधान को दृष्टिगत रखते हुए प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता डॉ0 उदयवीर सिंह को एकल रूप से सुना गया एवं उनके तर्क के परिप्रेक्ष्य में पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेख/साक्ष्य का गहनता से परिशीलन किया गया। पत्रावली के परिशीलन से यह तथ्य प्रकाश में आता है कि यह अपील, अपीलार्थी/परिवादी गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव पुत्र श्री रघुनाथ प्रसाद, सेवा निवृत्त मुख्य टिकट कलैक्टर, एन.ई. रेलवे, बहराइच निवासी मोहल्ला बशीरगंज, जिला-बहराइच ने जिला फोरम, बहराइच द्वारा निष्पादन वाद सं0-९६/१९९८ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक ११-०१-२००० से क्षुब्ध होकर संस्थित की गयी है। अधीनस्थ फोरम द्वारा पत्रावली में उपलब्ध सभी तथ्यों पर विचार-विमर्श करने के उपरान्त इस निष्पादन वाद को ‘’ पूर्ण सन्तुष्टि ‘’ के कारण निरस्त किया गया। अधीनस्थ फोरम द्वारा पारित आदेश निम्नवत् उद्धरित किया जा रहा है :-
‘’ तदनुसार इजराय परिवाद पूर्ण सन्तुष्टि में खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो। ‘’
अपीलार्थी/परिवादी का कहना है कि अधीनस्थ फोरम द्वारा पारित उपरोक्त आदेश त्रुटिपूर्ण है अत: अपास्त होने योग्य है। उसके द्वारा निष्पादन वाद में मांगा गया अनुतोष उसे सव्यय दिलाया जाय। उसका का यह भी कहना है कि वह दिनांक ३०-०४-१९८८ को रेलवे विभाग से सेवा निवृत्त हुआ था। उसके द्वारा विपक्षी डाक विभाग में बचत खाता सं0-७२११५ दिनांक ०४-०६-१९८४ को खोला गया था तथा उसकी पेंशन के आधार पर दूसरा खाता सं0-७६४०४ दिनांक २९-०४-१९८८ को खोला गया था जिसमें उसे वर्ष १९९५ तक सूद दिया गया परन्तु वर्ष १९९६-९७ का सूद नहीं दिया गया। विपक्षी डाक विभाग के इसी कृत्य को सेवा में कमी मानते हुए अपीलार्थी/परिवादी ने मूल परिवाद सं0-४२/१९९८ गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव बनाम भारत सरकार व अन्य योजित किया जिसमें दिनांक १६-०९-१९९८ को अधीनस्थ फोरम द्वारा निर्णय उद्घोषित किया गया एवं परिवाद को स्वीकार करते हुए विपक्षीगण को आदेशित किया कि वे एक माह के भीतर नियमानुसार सन् १९९६-९७ तक जो भी देय सूद की धनराशि हो परिवादी को अदा कर दें। तत्पश्चात् अपीलार्थी/परिवादी ने निष्पादन वाद सं0-९६/१९९८ संस्थित किया जिसमें
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अधीनस्थ फोरम द्वारा यह अवधारित किया गया कि सुनवाई के दौरान् प्रत्यर्थी डाक विभाग द्वारा वर्ष १९९६-९७ की सूद की धनराशि २७६०/- रू० अपीलार्थी/परिवादी/डिक्रीदार को अदा कर दी गयी है अत: उसके द्वारा संस्थित निष्पादन वाद को पूर्ण सन्तुष्टि में निरस्त कर दिया गया। इसी आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत अपील योजित की गयी है।
पत्रावली के परिशीलन से यह तथ्य प्रकाश में आता है कि विपक्षी/प्रत्यर्थी डाक विभाग द्वारा अधीनस्थ फोरम के आदेश दिनांक १६-०९-१९९८ के अनुपालन में वर्ष १९९६-९७ के लिए देय समस्त ब्याज की धनराशि २७६०/- रू० अपीलार्थी/परिवादी को अदा कर दी गयी है। अधीनस्थ फोरम द्वारा समस्त तथ्यों पर विस्तृत विचार-विमर्श करने के उपरान्त दिनांक ११-०१-२००० को उपरोक्त आदेश पारित किया गया है। इस आदेश में किसी प्रकार की कोई विधिक अथवा तथ्यात्मक त्रुटि नहीं है। अत: इसमें हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं बनता है। अपीलार्थी/परिवादी द्वारा सूद की धनराशि प्राप्त करते ही पक्षकारान् के बीच उपभोक्ता एवं सेवादाता का सम्बन्ध समाप्त हो चुका है। इस प्रकार आदेश दिनांक ११-०१-२००० प्रत्येक दृष्टिकोण से विधि सम्मत होने के कारण पुष्टित होने एवं तद्नुसार अपील सारहीन होने के कारण निरस्त होने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है। जिला फोरम, बहराइच द्वारा निष्पादन वाद सं0-९६/१९९८ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक ११-०१-२००० की पुष्टि की जाती है। पक्षकार अपीलीय व्यय-भार अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे। उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(आलोक कुमार बोस)
पीठासीन सदस्य
(संजय कुमार)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-४.