(राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ)
मौखिक
पुनरीक्षण संख्या 126/2013
(जिला मंच जौनपुर द्वारा परिवाद सं0 275/2003 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 11/07/2013 के विरूद्ध)
सुशील चन्द्र मिश्रा पुत्र श्री लालता प्रसाद मिश्रा निवासी- ग्राम बरैछे, पोस्ट चन्दवक, परगना व तहसी केराकत, जिला जौनपुर।
…पुनरीक्षणकर्ता
बनाम
1- यूनियन बैंक आफ इंडिया, ब्रांच केराकत परगना व तहसील केराकत जिला जौनपुर।
…विपक्षी
2- जिला मजिस्ट्रेट, जौनपुर।
3- सब डिस्ट्रक्टि मजिस्ट्रेट, केराकत परगना व तहसील केराकत, जिला जौनपुर।
4- तहसीलदार, केराकत परगना व तहसील केराकत जिला जौनपुर।
.........प्रोफार्मा विपक्षीगण
समक्ष:
1. मा0 श्री चन्द्र भाल श्रीवास्तव, पीठासीन सदस्य ।
2. मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य।
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री संजय कुमार वर्मा।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 02/07/2015
मा0 श्री चन्द्र भाल श्रीवास्तव, पीठा0 सदस्य द्वारा उदघोषित ।
निर्णय
यह पुनरीक्षण जिला फोरम जौनपुर द्वारा परिवाद सं0 275/2003 में पारित आदेश दिनांक 11/07/2013 के विरूद्ध प्रस्तुत किया गया है। जिसके द्वारा जिला फोरम ने परिवादी के इस आशय के आवेदन को निरस्त कर दिया कि तलबशुदा दस्तावेज चूंकि विपक्षी द्वारा दाखिल नहीं किया गया है। अत: उसे निष्प्रभावी घोषित किया जाय।
हमने पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता की बहस को सुना । नोटिस के बावजूद भी विपक्षी की ओर कोई उपस्थित नहीं है। अभिलेख का अनुशीलन किया। अभिलेख के अनुशीलन से स्पष्ट है कि जिला फोरम ने दिनांक 19/022013 के प्रार्थना पत्र स्वीकार करते हुए संदर्भित दस्तावेज विपक्षी को दाखिल करने हेतु निर्देश दिया गया किन्तु उक्त दस्तावेज विपक्षी द्वारा दाखिल नहीं किया गया। यहां यह उल्लेखनीय है कि यदि न्यायालय द्वारा किसी पक्ष को कोई दस्तावेज दाखिल करने के लिए निर्देश दिया जाता है और उक्त दस्तावेज को दाखिल नहीं
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किया जाता है तो विधित: दाखिल न करने वाले पक्षकरान के विरूद्ध उपधारणा की जाती है। समस्त दस्तावेज दाखिल न करने पर किसी भी अभिलेख को निष्प्रभावी नहीं घोषित किया जा सकता। अत: जिला फोरम ने विधि पूर्ण ढंग से प्रश्नगत आदेश 11/07/2013 पारित किया है जिसमें हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं है। यदि विपक्षी द्वारा आदेशित दस्तावेज दाखिल नहीं किया जाता है तो विधित: उनके विरूद्ध प्रतिकूल अवधारणा की जा सकती है।
परिणामत:, यह पुनरीक्षण निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत पुनरीक्षण तदनुसार निरस्त की जाती है। उभय पक्ष अपना-अपना पुनरीक्षण व्यय-भार स्वयं वहन करेंगे।
(चन्द्रभाल श्रीवास्तव) (संजय कुमार)
पीठासीन सदस्य सदस्य
सुभाष चन्द्र आशु0
कोर्ट नं0 2