मौखिक
अपील संख्या-206/2021
सन्तोष कुमार सिंह बनाम यूनियन बैंक आफ इण्डिया
24.03.2021
पुकार की गयी। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री पारस नाथ तिवारी उपस्थित आये। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को अंगीकरण के बिन्दु पर सुना एवं पत्रावली का परिशीलन किया।
अपीलार्थी का कथन है कि जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, आजमगढ़ ने परिवाद पत्र का संज्ञान ठीक से नहीं लिया है तथा परिवाद पत्र के पैरा-6 में किये गये कथनों के विपरीत निर्णय पारित करते समय यह उपधारणा की गयी कि दिनांक 31.03.2017 को परिवादी ने अपने खाते को नियमित कराने के लिए 52,000/-रू0 जमा किया और फिर उसका आहरण कर लिया, जो के0सी0सी0 ऋण के प्राविधानों के विरूद्ध है।
हमने प्रश्नगत निर्णय का अवलोकन किया।
अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी/विपक्षी से वर्ष 2015 में के0सी0सी0 के माध्यम से 50,000/-रू0 लिया और उसका कथन था कि सरकार की ऋण मोचन योजना लागू की गयी, जिसमें एक लाख रूपये तक के के0सी0सी0 ऋण माफ करने की योजना लागू हुई, जिसका लाभ अपीलार्थी/परिवादी को नहीं मिला। प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक ने स्पष्ट कहा कि उसके द्वारा किसी भी व्यक्ति को ऋण माफ करने का आश्वासन नहीं दिया जाता है। अपीलार्थी/परिवादी ने उससे 52,000/-रू0 ऋण लिया और उसकी अदायगी नहीं की। फिर दिनांक 31.03.2017 को अपने खाते को नियमित कराने के लिए 52,000/-रू0 जमा किया और पुन: उसका आहरण कर लिया, जो के0सी0सी0 ऋण प्रावधानों के विरूद्ध है।
इससे स्पष्ट होता है कि यह मामला उपभोक्ता और सेवा प्रदाता के मध्य का नहीं है तथा अपीलार्थी/परिवादी, प्रत्यर्थी/विपक्षी के उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। अत: ऐसी स्थिति में वर्तमान अपील में कोई बल नहीं है और यह अपील पोषणीय नहीं है। अत: वर्तमान अपील अंगीकरण के स्तर पर ही खारिज की जाती है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (गोवर्धन यादव) (राजेन्द्र सिंह)
अध्यक्ष सदस्य सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1