राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या:-611/2023
लोकेश कुमार पुत्र उमेश चन्द्र, निवासी-कुमार प्रिंटिग प्रेस वाली गली, महतवाना, तहसील सण्डीला, जिला हरदोई।
........... अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
1- प्रबन्धक, यूनियन बैंक आफ इण्डिया, सण्डीला।
2- सिटी बैंक एन0ए0 एरोपोलिज़, नवीं मंजिल, न्यू डोर नं0-148 एसटीओ, राधाकृष्ण सलाई माइलापर चेन्नई द्वारा प्रबन्धक।
…….. प्रत्यर्थी/विपक्षीगण
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री नीरज सिंह
प्रत्यर्थीगण के अधिवक्ता : कोई नहीं।
दिनांक :- 25.7.2023
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी/परिवादी लोकेश कुमार द्वारा इस आयोग के सम्मुख धारा-41 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, हरदोई द्वारा परिवाद सं0-35/2023 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 10.02.2023 के विरूद्ध योजित की गई है, जिसके द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद को निरस्त कर दिया है।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार है कि अपीलार्थी/परिवादी का बैंक खाता आंध्रा बैंक शाखा सण्डीला, जिला हरदोई में था, जिसका विलय यूनियन बैंक आफ इण्डिया में हो गया है। वर्ष-2020 में अपीलार्थी/परिवादी द्वारा व्यवसाय के लिये उक्त बैंक से मु0-10,00,000/-(रू0 दस लाख) लोन हेतु आवेदन किया गया। उक्त बैंक के द्वारा अपीलार्थी/परिवादी के लोन हेतु आवेदन को इस आधार पर
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अस्वीकार कर दिया गया कि ट्रांस यूनियन सिबिल लिमिटेड रिपोर्ट के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी को प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-2 की बैंक से लोन लेना दर्शाया गया है तथा उक्त लोन की अदायगी अपीलार्थी/परिवादी द्वारा नहीं की गयी है। अपीलार्थी/परिवादी द्वारा इस संदर्भ में एक रजिस्टर्ड पत्र प्रत्यर्थी/विपक्षी को भेजा गया तथा अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रत्यर्थी/विपक्षी सं-2 बैंक से कभी कोई लोन नहीं लिया गया। अपीलार्थी/परिवादी द्वारा ट्रान्स यूनियन सिबिल लिमिटेड, मुम्बई कार्यालय में फोन से बात की तब कार्यालय द्वारा कहा गया कि उनके क्रेडिट कार्ड में प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-2 द्वारा दर्शाया जा रहा है। उनके द्वारा प्रस्तावित किये जाने पर ही इस त्रुटि को ठीक कर सकते हैं। अपीलार्थी/परिवादी द्वारा दिनांक 27.02.2020 को प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-2 को पत्र भेजा गया, परन्तु अपीलार्थी/परिवादी द्वारा उसके यहॉं से कोई लोन न लेने के बावजूद उनके द्वारा अपीलार्थी/परिवादी को कर्जदार दर्शाया जा रहा है। अत: प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-2 इस त्रुटि को सही करके ट्रान्स यूनियन सिबिल लि0 मुम्बई तथा स्वयं अपीलार्थी/परिवादी को सूचित करें, किन्तु उनके द्वारा अपीलार्थी/परिवादी के निवेदन पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के इस प्रकार के रवैये से अपीलार्थी/परिवादी के उपभोक्ता अधिकारों का हनन हुआ है। प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के इस प्रकार के रवैये से अपीलार्थी/परिवादी के मेधावी बच्चों का मेडिकल में प्रवेश नहीं हो सका, क्योंकि उक्त लोन के धन से अपीलार्थी/परिवादी उन्हें अच्छी शिक्षा दिला सकता था। प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के मनमाने और अविधिक क्रियाकलापों के स्वयं अपीलार्थी/परिवादी का भागदौड़ में बहुत धन खर्च हुआ तथा लोन न हो पाने के कारण बच्चे अच्छी शिक्षा से वंचित रह गये, जिससे उनके भविष्य की सम्भावनाएं धूमिल हुई हैं और अपीलार्थी/परिवादी को
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मानसिक व शारीरिक कष्ट सहन करना पड़ा अत्एव अपीलार्थी/परिवादी को प्रत्यर्थी/विपक्षी से हुई व्यक्तिगत खर्च तथा लोन न हो पाने के कारण बच्चों के अच्छे संस्थाओं में प्रवेश न हो पाने से हुई सम्भावित क्षतियों की क्षतिपूर्ति हेतु परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत किया गया।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपीलार्थी/परिवादी के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्य पर विस्तार से विचार करने के उपरांत परिवादी को उपभोक्ता न मानते हुए परिवाद को निरस्त कर दिया गया, जिससे क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/परिवादी की ओर से प्रस्तुत अपील योजित की गई है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश पूर्णत: तथ्य और विधि के विरूद्ध है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह भी कथन किया कि प्रत्यर्थीगण के द्वारा निष्पक्ष कार्य न करने के कारण अपीलार्थी को बहुत नुकसान उठाना पड़ा एवं अपीलार्थी का व्यावसायिक लोन स्वीकृत न हो पाने के कारण अपीलार्थी को अपने बच्चों की पढ़ाई में बाधायें उत्पन्न हुई तथा पैसे की व्यवस्था न हो पाने के कारण अपीलार्थी उन्हें अच्छे संस्थान में प्रवेश नहीं दिला सका, जिससे उनका समय बर्बाद हो गई परन्तु जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा इस तथ्य पर कोई ध्यान नहीं दिया।
यह भी कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा-7 की उपधारा-ii में प्रावधानित तथ्यों को संज्ञान में नहीं लिया गया है, जो कि अनुचित है।
अपीलार्थी के अधिवक्ता द्वारा यह भी कथन किया गया कि मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा केनरा बैंक बनाम यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस
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कार्पोरेशन व अन्य में यह मत अवधारित किया है कि पालिसी के हिताधिकारी भी बीमा कम्पनी का उपभोक्ता माना जायेगा यद्यपि वह पक्षकार न हो, परन्तु जिला उपभोक्ता आयोग इस तथ्य का संज्ञान लिए बिना परिवाद को अंगीकरण पर निरस्त कर दिया है, जो कि अनुचित है।
अपीलार्थी/परिवादी के अधिवक्ता द्वारा यह भी कथन किया गया कि उपरोक्त समस्त तथ्यों पर विचार न कर जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा जो निर्णय/आदेश पारित किया गया है उसे अपास्त कर अपील को स्वीकार किये जाने की प्रार्थना की गई।
मेरे द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को विस्तार से सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश व पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया।
मेरे द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों के परिशीलनोंपरांत यह पाया गया उपरोक्त परिवाद में कथित ट्रांस यूनियन सिबिल लिमिटेड को पक्षकार नहीं बनाया गया है और न ही प्रत्यर्थीगण द्वारा अपीलार्थी/परिवादी को कोई ऋण स्वीकृत किया गया है एवं अपीलार्थी/परिवादी को प्रत्यर्थी/विपक्षीगण द्वारा बिना ऋण स्वीकृत किये परिवाद योजित कर क्षतिपूर्ति की मॉग किया जाना अनुचित है अत्एव अपीलार्थी/परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपने प्रश्नगत निर्णय में उपरोक्त समस्त तथ्यों पर विस्तार से चर्चा की गई है और समस्त तथ्यों पर विचारोंपरांत परिवाद को निरस्त किया गया है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश विधि अनुकूल है, उसमें किसी प्रकार कोई अवैधानिकता अथवा विधिक त्रुटि अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा अपील स्तर पर इंगित नहीं की
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जा सकी है, विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश में किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता अपीलीय स्तर पर प्रतीत नहीं हो रही है, तद्नुसार प्रस्तुत अपील अंगीकरण के स्तर पर निरस्त की जाती है।
प्रस्तुत अपील को योजित करते समय यदि कोई धनराशि अपीलार्थी द्वारा जमा की गयी हो, तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
हरीश सिंह
वैयक्तिक सहायक ग्रेड-2.,
कोर्ट नं0-1