राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, सर्किट बैंच
संख्या 2, राजस्थान, जयपुर
ं
अपील संख्याः 403/2013
श्री कल्याण सहाय कोली पुत्र श्री कालूराम कोली, निवासी-बी-197, महेष नगर, जयपुर।
बनाम
1. यूनियन बैंक आॅफ इण्डिया, डी-100, बापू बाजार, जयपुर। जरिये क्षेत्रीय प्रबन्धक ।
2. यूनियन बैंक आॅफ इण्डिया, डी-224, आम्रपाली मार्ग, हनुमान नगर, वैषाली नगर, जयपुर। जरिये वरिष्ठ शाखा प्रबन्धक ।
3. बैंकिंग लोकपाल, भारतीय रिजर्व बैंक, चैथा तल, रामबाग चैराहा, टोंक रोड, जयपुर।
समक्षः-
माननीय श्री विनय कुमार चावला, पीठासीन सदस्य।
माननीय श्री लियाकत अली, सदस्य।
उपस्थितः
श्री प्रमोद कुमार, अधिवक्ता अपीलार्थी ।
श्री मनीष माथुर, अधिवक्ता प्रत्यर्थीगण ।
दिनंाक: 28.01.2015
राज्य आयोग, सर्किट बैंच नं0 02, राज. द्वारा-
यह अपील विद्वान जिला मंच जयपुर चतुर्थ के निर्णय दिनांक 21.03.2013 के विरूद्व प्रस्तुत हुई है, इसके विपरीत अवार्ड में वृद्धि के लिए प्रस्तुत हुई है।
इस कथन के तथ्यों के अनुसार परिवादी ने प्रत्यर्थी बैंक से 8,50,000/-रूपयें का एक ऋण स्वीकृत करवाया था। परिवादी का कथन था कि उसे केवल 8 लाख रूपए ही वितरित किए गये। प्रत्यर्थी बैंक की ओर से विद्वान जिला मंच ने यह बताया कि परिवादी द्वारा आवष्यक औपचारिकता पूरी न करने के कारण शेष 50,000/- हजार रूपए वितरित नहीं किए जा सके। परिवादी का यह भी कथन था कि उसने एक वित्तीय ऋण के लिए भी आवेदन किया था, परन्तु उसके बाद भी उसने कोई सूचना नहीं दी।
परिवादी ने आगे यह कथन किया था कि 8,50,000/- रूपए के पेटे उसकी मासिक किस्त में 10,770/-रूपए प्रतिमाह होती थी, परन्तु बैंक प्रतिमाह 11,000/- रूपए वसूल कर रहा है।
विद्वान जिला मंच दोनों पक्षों के अभिकथन तथा प्रस्तुत न्याय सिद्धान्त का अवलोकन करने के पष्चात् परिवाद इस सीमा तक स्वीकार किया कि बैंक द्वारा 10,770/- रूपए के स्थान पर 11,000/- रूपए वसूल करना सेवादोष है और उन्होंने परिवादी को मानसिक संताप की क्षतिपूर्ति के लिए 2500/- रूपए तथा परिवाद व्यय के 1500/- रूपए प्रदान किये है।
परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का कथन विद्वान जिला मंच ने यद्यपि बैंक का सेवादोष माना है, परन्तु उन्होंने अधिक वसूली के सम्बन्ध में कोई अनुतोष नहीं दिया है। बैंक की ओर से अधिवक्ता का यह कथन है कि परिवादी ठछछस् में लेखाधिकारी है और वेतन में से ऋण की किस्त की कटौती का कार्य भी वह देखता है और स्वयं वह 11,000/- रूपए कटवाकर भेजवाता रहा।
हमने दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं के तर्कों पर विचार किया है। यह विवादित नहीं है कि मासिक किस्त 10,700/- रूपए थी, परन्तु बैंक ने विभाग को जो कटौती के लिए पत्र भेजा उसमें 11,000/- रूपए की राषि अंकित थी। परिवादी बेषक उसी विभाग में लेखाधिकारी हो, परन्तु वह अपने स्तर पर बैंक द्वारा मांगी गई राषि में कटौती नहीं कर सकता था। बैंक की ओर से इस बात पर कोई स्पष्टीकरण नहीं आया कि मासिक किस्त 10,770/- होने के उपरान्त 11,000/- रूपए क्यों मांगी गई।
अतः हम विद्वान जिला मंच द्वारा पारित आदेष में संसोधन करते हुए यह आदेष देते है कि प्रत्यर्थी बैंक 230/-रूपए प्रतिमाह की कटौती की राषि को आक्षेप परिवादी को 9 प्रतिषत ब्याज के लौटा देगा।
विद्वान जिला मंच के शेष आदेष को यथास्थिति रखा जाता है।
पीठासीन सदस्य
(विनय कुुुमार चावला)
सदस्य
(लियाकत अली)