Madhya Pradesh

Seoni

CC/27/2014

ANIL KUMAR YADAV - Complainant(s)

Versus

UNION BANK OF INDIA - Opp.Party(s)

MUKESH AVADHIYA

23 Sep 2014

ORDER

 

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)

 

    प्रकरण क्रमांक- 27-2014                                            प्रस्तुति दिनांक-29.03.2014


समक्ष :-
अध्यक्ष - व्ही0 पी0 षुक्ला
सदस्य - वीरेन्द्र सिंह राजपूत,

अनिल कुमार यादव, आत्मज श्री बसोड़ीलाल
यादव उम्र लगभग 26 वर्श, निवासी-धूमा,
तहसील लखनादौन, जिला सिवनी
(म0प्र0)।.....................................................................आवेदकपरिवादी।


                :-विरूद्ध-: 

यूनियन बैंक आफ इणिडया
द्वारा-षाखा प्रबंधक, यूनियन बैंक इणिडया
षाखा-धूमा, तहसील लखनादौन, जिला
थ्सवनी (म0प्र0)।.........................................................अनावेदकविपक्षी।    


                      :-आदेश-:

          (आज दिनांक- 23.09.2014   को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-

(1)        परिवादी ने अनावेदक के विरूद्ध धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत सेवा में कमी के आधार पर प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजनान्तर्गत प्रदत्त ऋण खाते में प्रारंभ से अंत तक की स्वीकृत निकासी राषि, जमा किष्तें क्षति में से एकमुष्त काटी गर्इ राषि एवं सबिसडी का उल्लेख सहित प्रस्तावित संपूर्ण नकल दिलार्इ जाने, क्षतिधन 50,000-रूपये एवं वाद-व्यय 2,000-रूपये दिलाये जाने हेतु यह परिवाद प्रस्तुत किया है।
(2)        परिवादी का पक्ष संक्षेप में इस प्रकार है कि-परिवादी एक षिक्षित बेरोजगार है,उसने अपने जीविकोपार्जन व षासन की स्वरोजगार योजना के अन्तर्गत हितग्राही बताते हुये, निर्धारित प्रपत्र में सक्षम विभाग से अनुमोदन प्राप्त कर, 1,00,000-रूपये का अनावेदक बैक से ऋण किराने की दुकान हेतु लिया था। षासन की योजना के अनुसार इसमें हितग्राही को 20 प्रतिषत राषि अनुदान के रूप में दी जानी चाहिये थी । अनावेदक बैक द्वारा परिवादी को दिनांक-25.11.2006 को 1,00,000-रूपये ऋण स्वीकृत  किया गया, जिसकी वापसी 60 मासिक किष्तों में 2,000-रूपये प्रतिमाह प्रति किष्त की दर से की जानी थी, परिवादी ने बैक में एकमुष्त 20,000-रूपये एवं 28,000-रूपये जमा कर दिया। परिवादी की दुकान में आग लग गर्इ, जिसके कारण उसे 108700-रूपये की क्षति कारित हुर्इ, जिसका बीमा कम्पनी द्वारा बैंक को भुगतान किया गया। बैंक ने परिवादी के खाते में 28,000-रूपये होना बताते हुये, क्षति राषि में-से काटकर षेश राषि परिवादी को प्रदान कर दिया। परिवादी का बैंक में कोर्इ बकाया राषि षेश नहीं है। अनावेदक द्वारा, परिवादी को 20 प्रतिषत सबिसडी राषि का भुगतान नहीं किया गया, जबकि-परिवादी बैक में संपूर्ण ऋण राषि का भुगतान  कर चुका है। अनावेदक बैक द्वारा परिवादी को ऋण मुकित प्रमाण-पत्र भी नहीं दिया गया। अतएव परिवादी ने अनावेदक के विरूद्ध प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजनान्तर्गत प्रदत्त ऋण खाते में प्रारंभ से अंत तक की स्वीकृत निकासी राषि, जमा किष्तें क्षति में से एकमुष्त काटी गर्इ राषि एवं सबिसडी का उल्लेख सहित प्रस्तावित संपूर्ण नकल दिलार्इ जाने, क्षतिधन 50,000-रूपये एवं वाद-व्यय 2,000-रूपये दिलाये जाने हेतु यह परिवाद प्रस्तुत किया है। 
(3)        अनावेदक का पक्ष संक्षेप में यह है कि-परिवादी को दिनांक-25.11.2006 को 1,00,000-रूपये का ऋण स्वीकृत किया गया, जिसमें षासन के नियमानुसार मार्जिन मनी 12,500-रूपये हितग्राही द्वारा जमा की गर्इ थी। षासन से प्राप्त 7,500-रूपये की सबिसडीअनुदान थी। परिवादी को दिनांक-29.11.2006 को 1 लाख रूप्ये का ऋण 5 वर्शों के लिए लिया गया था। इसमें परिवादी द्वारा स्वयं 12,500-रूपये जमा किया है एवं षासन द्वारा प्राप्त अनुदान 7,500-रू है। इस प्रकार कुल मार्जिन मनी 20,000-रूपये है। परिवादी की दुकान में अगिन दुर्घटना होने से बीमा कंपनी द्वारा 1,08,229-रूपये परिवादी के खाते में दिनांक-26.05.2011 को जमा किया गया था। इससे पूर्व इस खाते में 23,379-रूपये + ब्याज की रकम जमा थी। परिवादी द्वारा प्रस्तुत आवेदन-पत्र के अनुसार दूसरों से लिये गये उधार की बकाया रकम देने के लिए 80,000-रूपये उसके  बचत खाता क्रमांक- 417802010004243 में अंतरित किये गये थे। प्रधानमंत्री षिक्षित बेरोजगार योजना के अन्तर्गत षासन द्वारा स्वीकृत सबिसडीअनुदान राषि की एफ0डी0 बनाकर बैक में रखी गर्इ है, जो कि बैंक के नियमानुसार खाता बन्द होने के समय परिवादी को दी जाती है या खाते में जमा की जाती है। वर्तमान में सबिसडी 7,500-रूपये बैंक में  जमा हैं। परिवादी द्वारा 20,000-रूपये सबिसडी राषि की मांग की जा रही है, जबकि उक्त राषि मार्जिन मनी है, जिसमें से मात्र 7,500-रूपये षासन से प्राप्त अनुदान राषि है। अनावेदक द्वारा, परिवादी के प्रति कोर्इ सेवा में त्रुटि नहीं की गर्इ है। अतएव अनावेदक ने यह परिवाद सव्यय निरस्त किये जाने का निवेदन किया है।
(4)        मामले में विचारणीय बिन्दु यह है कि:-

        क्या अनावेदक द्वारा, परिवादी के ऋण खाते में
        संपूर्ण ऋण राषि का भुगतान होने के बावजूद
        परिवादी को ऋण मुकित का प्रमाण
        पत्र प्रदाय न कर, सेवा में कमी की गर्इ 
        है?
                -:सकारण निष्कर्ष:-
               विचारणीय प्रष्न :-

(5)        यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवादी ने प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना के अन्तर्गत दिनांक-25.11.2006 को 1,00,000-रूपये का ऋ़ण लिया था।
(6)       परिवादी अनिल कुमार यादव ने षपथ-पत्र पर प्रकट किया कि उसने स्व जीविकोपार्जन हेतु प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना के अन्तर्गत 1,00,000-रूपये का ऋण लेकर किराना की दुकान खोला था, उसे 5 वर्शों में 2,000-रूपये प्रतिमाह प्रति किष्त की दर से संपूर्ण राषि का भुगतान करना था। उसने अनावेदक बैंक में एकमुष्त 20,000-रूपये एवं 28,000-रूपये जमा कर दिया। उसकी दुकान में आग लग गर्इ। बीमा कम्पनी द्वारा उसे 1,087,000-रूपये क्षतिधन का बैक के माध्यम से भुगतान किया गया। बैंक ने उसके खाते में षेश ऋण राषि 28,000-रूपये होना बताते हुये, 28,000-रूपये क्षति राषि में से काटकर षेश राषि प्रदान कर दिया। उसका कोर्इ ऋण राषि बकाया नहीं है।  अनावेदक द्वारा उसे नियमानुसार 20 प्रतिषत सबिसडी राषि का भुगतान नहीं किया गया है। 
(7)    परिवादी  ने हमारे समक्ष यूनियन बैंक आफ इणिडया षाखा धूूमा, जिला सिवनी द्वारा प्रेशित पत्र प्रस्तुत किया है, जिसमें मार्जिन राषि 20 प्रतिषत (अनुदान सहित )का उल्लेख है। इस पत्र की कणिडका-4 में अनुदान राषि 7,500-रूपये लेख है। 
(8)    अनावेदक द्वारा  हमारे समक्ष मास्टर सरकुलर की छायाप्रति प्रस्तुत की गर्इ है, जिसकी कणिडका-4 निम्नानुसार है:-
    (।द्ध    ठंदोूपसस इम ंससवूमक जव जांम उंतहपद उवदमल वितउ जीम                 इवततवूमत अंतलपदह तिवउ 5 चमतबमदज जव 16ण्25 चमतबमदज व जिीम            चतवरमबज बवेजेव ें जव उांम जीम जवजंस वेिनइेपकल ंदक उंतहपद             उवदमल मुनंस जव 20 चमतबमदज व जिीम चतवरमबज बवेजण्
    ;ठद्ध    ज्ीम उंतहपद उवदमल कमचवेपजमक इल जीम इवततवूमतेीवनसक दवज इम               तमजंपदमक ेेंमबनतपजल वित जीम ंकअंदबमण्
             मास्टर सरकुलर की कणिडका 5 निम्नानुसार है:-
    ैनइेपकल मसपहपइसम पे 15 चमतबमदज व जिीम चतवरमबज बवेजऐनइरमबज जव ं         बमपसपदह व तिेण् 7ए500 चमत इवततवूमत पद ैजंजमे वजीमत जींद छवतजी         म्ेंजमतद ैजेजमेण् 
(9)        परिवादी अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी को स्वीकृत ऋण 1,00,000-रूपये में 20,000-रूपये सबिसडीअनुदान दिया गया था, परन्तु हम परिवादी के अधिवक्ता के उक्त तक से सहमत नहीं है, स्वयं परिवादी द्वारा युनियन बैंक आफ इणिडया, षाखा ध्ूामा द्वारा दिनांक-25.11.2006 को प्रेशित पत्र मूलत: प्रस्तुत किया गया है, जिसमें अनुदान राषि 7,500-रूपये का उल्लेख है। इसके अतिरिक्त अनावेदक द्वारा प्रस्तुत मास्टर सरकुलर की कणिडका-5(1) के अनुसार ऋणी को 7,500-रूपये की अधिकतम सीमा तक सबिसडी देय थी। परिवादी ने हमारे समक्ष कोर्इ नियमावली सरकुलर प्रस्तुत नहीं किया, जिससे हम यह निश्कर्श निकाल सकें कि प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना में परिवादी को 20 प्रतिषत राषि सबिसडीअनुदान दिया जाना था। अभिलेख पर  परिवादी को प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना के अन्तर्गत 20,000.00 रूपये सबिसडीअनुदान दिये जाने की कोर्इ साक्ष्य नही है।
(9)        परिवादी अधिवक्ता ने हमारे समक्ष यह तर्क दिया है कि परिवादी ने बैंक में ऋण खाते में सम्पूर्ण ऋण राषि जमा कर दिया है, इसके बावजूद परिवादी को बैक द्वारा न तो ऋण मुकित का प्रमाण पत्र दिया गया ओेर न ही सबिसडीअनुदान राषि लौटार्इ गर्इ ,जबकि अनावेदक अधिवक्ता का तर्क है कि यदि परिवादी बैक में आवेदन पत्र प्रस्तुत करता है, तो बैक परिवादी के ऋण खाते से संबधित ऋण मुकित का प्रमाण पत्र प्रदाय कर देगा एवं परिवादी को सबिसडीअनुदान की राषि, जो बैक में फिक्स डिपाजिट की गर्इ है , ब्याज सहित वापिस लौटा दी जावेगी। हम अनाावेदक अधिवक्ता के उक्त तर्क से सहमत हैं। यदि परिवादी बैंक से अपने संपूर्ण ऋण खाते का विवरण मागता है, तब बैंक को परिवादी के ऋण खाते का सम्पूर्ण विवरण उपलब्ध कराना चाहिये। चूंकि अनावेदक उपरोक्तानुसार कार्यवाही हेतु सहमत हैं एवं बैंक द्वारा परिवादी के ऋण खाते के संचालन में कोर्इ अनियमितता अथवा सेवा में कमी नहीं की गर्इ है, इसलिए हम परिवादी को अन्य कोर्इ सहायता दिलाया जाना उपयुक्त नहीं समझते हैं।
(10)        उपरोक्त विवेचन के आधार पर हम परिवादी के पक्ष में निम्न आदेष पारित करते हैं:-
        (अ)    यदि परिवादी द्वारा अनावेदकबैंक में ऋण खाते से संबंधित                 विवरण एवं ऋण मुकित के प्रमाण-पत्र की मांग की जाती है, तब             बैंक 15 दिवस के भीतर परिवादी को खाते से संबंधित विवरण एवं             ऋण मुकित का प्रमाण पत्र प्रदाय करेगा तथा अनावेदकबैंक                 परिवादी को सबिसडीअनुदान की संपूर्ण राषि मय ब्याज वापस                 लौटायेगा।            
        (ब)    उभयपक्ष अपना-अपना व्यय वहन करें।                            (स)    उभयपक्षों का आदेष की एक-एक प्रति नि:षुल्क प्रदान की 
            जावे।​

   मैं सहमत हूँ।                              मेरे द्वारा लिखवाया गया।         

 

 

 

 

 

(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत)                          (व्ही0पी0 षुक्ला)
      सदस्य                                                 अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद                           जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी                         प्रतितोषण फोरम,सिवनी              

            (म0प्र0)                                      (म0प्र0)

                        

 

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