Uttar Pradesh

Kanpur Nagar

CC/519/2015

Rajeev Mishra - Complainant(s)

Versus

Unicef Marketing - Opp.Party(s)

20 Jan 2016

ORDER

 
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश फोरम, कानपुर नगर।

   अध्यासीनः      डा0 आर0एन0 सिंह........................................अध्यक्ष    
    पुरूशोत्तम सिंह...............................................सदस्य
    श्रीमती सुधा यादव........................................सदस्या    
                
    

उपभोक्ता वाद संख्या-513/2010


प्रताप नरायन रॉय उम्र 66 वर्श पुत्र स्व0 प्रेमलाल रॉय निवासी-95 एम.आई.जी. सेक्टर-3 बर्रा-2, कानपुर नगर
                                  ................परिवादी
                                                                                     बनाम
बोर्ड ऑफ अप्रेन्टिसषिप ट्रेनिंग (नार्दन रीजन) प्लाट नं0-16 ब्लाक-1ए, लखनपुर कानपुर नगर यू0पी0 द्वारा सदस्य सचिव/डायरेक्टर।
                           ...........विपक्षी
परिवाद दाखिला तिथिः 04.08.2010
निर्णय तिथिः 26.04.2017
डा0 आर0एन0 सिंह अध्यक्ष द्वारा उद्घोशितः-
ःःःनिर्णयःःः
1.      परिवादी की ओर से प्रस्तुत परिवाद इस आषय से योजित किया गया है कि विपक्षी से परिवादी को रू0 1,45,04.00 मय 12 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर से तायूम वसूली दिलाया जाये, क्षतिपूर्ति के रूप में रू0 40,000.00 तथा रू0 10000.00 परिवाद व्यय के रूप में दिलाया जाये।
2.     परिवाद पत्र के अनुसार संक्षेप में परिवादी का कथन यह है कि परिवादी को दिनांक 03.07.02 को झूठे एवं बनवाटी आधारों पर सेवा से बलपूर्वक सेवानिवृत्त कर दिया गया था। जिसके विरूद्ध परिवादी द्वारा मा0 उच्चन्यायालय इलाहाबाद में याचिका दाखिल की गयी है। उक्त याचिका सं0-56791/2003 लम्बित चल रही है। विपक्षी/नियोक्ता द्वारा परिवादी के सेवानिवृत्ति के समय पर भविश्य निधि अदा नहीं किया गया। परिवादी के भविश्य निधि की जमा धनराषि विपक्षी द्वारा चेक के माध्यम से दिनांक 07.04.04 को रू0 2,99,153.00 अपने पत्र सं0-बी.टी./आर.ई.आर.- 10-0453 दिनांकित 08.04.04 (ए-1) के द्वारा लगभग दो वर्श बाद अदा किया गया। जिसमें विपक्षी द्वारा उक्त भुगतान की अदायगी का (अद्यतन) ब्याज नहीं दिया गया।  परिवादी के गणनानुसार  दिनांक 07.04.2004 को 
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परिवादी को रू0 3,72,099.00 मिलना चाहिए था। जबकि विपक्षी द्वारा मात्र रू0 2,99,153.00 ही दिया गया। इस प्रकार परिवादी का रू0 72,946.00 विपक्षी द्वारा दिनांक 07.04.04 को रोक लिया गया। मांगने के बावजूद विपक्षी द्वारा वार्शिक स्टेटमेंट ऑफ एकाउन्ट नहीं दिया गया। भविश्य निधि का लेखा-जोखा विपक्षी के द्वारा संचालित किया जाता है। भविश्य निधि की धनराषि पोस्ट आफिस, केन्द्र और राज्य की सिक्योरिटीज में ब्याज कमाने की मंषा से लगाया जाता है। केन्द्र सरकार इस प्रकार की लगी हुई धनराषि में ब्याज की घोशणा करती है। जिसे प्राप्त करने का अधिकार कर्मचारीगण को होता है। यदि घोशित ब्याज से कम धनराषि सिक्योरिटीज में लगाने से प्राप्त होती है, तो उसकी भरपाई केन्द्र सरकार द्वारा की जाती है। परिवादी द्वारा अपने भविश्य निधि से सम्बन्धित उपरोक्त धनराषि रू0 72946.00 प्राप्त करने हेतु विपक्षी/बोर्ड के निदेषक को दिनांक 01.08.05 को लिखा गया, जिसमें परिवादी द्वारा यह स्पश्ट किया गया कि परिवादी के सेवानिवृत्ति की तिथि पर परिवादी को प्राप्त होने वाला ब्याज नहीं दिया गया और अदा की गयी धनराषि भी सेवानिवृत्त के दिन नहीं दी गयी। जिसे परिवादी मय ब्याज के षेश धनराषि प्राप्त करने का अधिकारी है। परिवादी द्वारा उक्त पत्र के अतिरिक्त दिनांक 20.10.05, 05.11.05, 09.12.05, 26.12.05, 06.05.06, 20.07.06, 06.09.06, 09.12.06, 20.02.07, 22.03.07 एवं 01.06.07 को विपक्षी को अनुस्मारक भेजे गये, किन्तु विपक्षी द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी। जिस पर बोर्ड के द्वारा एक कमेटी नियुक्त की गयी। किन्तु परिवादी को जनवरी 2010 में ज्ञात हुआ कि परिवादी का विशय कमेटी द्वारा नहीं लिया गया। सामान्य भविश्य निधि के नियमानुसार किसी भी कर्मचारी के सेवानिवृत्ति से पूर्व संपूर्ण जमा धनराषि में से 90 प्रतिषत धनराषि प्राप्त करने का अधिकारी होता है। किन्तु विपक्षी बोर्ड के वित्त निदेषक को परिवादी द्वारा अन्यान्य बार पत्र लिखने व अनुस्मारक लिखने के बावजूद परिवादी की नहीं सुनी गयी। यहां तक कि परिवादी आई.सी.यू. में भर्ती भी रहा है, उस दौरान भी परिवादी को प्राप्त होने वाली धनराषि नहीं दी गयी। अतः वादी को निम्न तालिका
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के अनुसार विपक्षी से धनराषि दिलायी जाये।
थ्पदंदबपंस लमंत    व्चमदपदह ठंसंदबम    क्मचवेपज    प्दजमतमेज 11ः ;उवदजीसल बवउचवनदकमक    ब्सवेपदह जवजंस
2001.02    251557.00    10200.00    30798.00    292556.00
2002.03    292556.00    3400.00    35447.00    331403.00
2003.04    331403.00    .    39768.00    371171.00
2004.05    371171.00    .    928.00    372099.00
                                                                च्ंपक वदरू 07ण्04ण्2004 त्ेण् 2ए99ए946.00
                                                  व्द 07ण्04ण्204 ठंसंदबम जव इम चंपक रू 72ए946.00
 न्चजव 20ण्07ण्2010 पदजमतमेज /12ः चमत ंददनउ बंउचवनदकमक ंददनंससलरू 72ए058.00
                                                व्द 20ण्07ण्2010 ज्वजंस जव इम चंपक रू 1ए45ए004.00

3.    विपक्षी की ओर से जवाब दावा प्रस्तुत करके, परिवादी की ओर से प्रस्तुत परिवाद पत्र में उल्लिखित तथ्यों का प्रस्तरवार खण्डन किया गया है और यह कहा गया है कि परिवाद कालबाधित है। स्वयं परिवादी के अनुसार वाद कारण दिनांक 07.04.04 को बताया गया है। इस प्रकार परिवादी को परिवाद योजित करने की अवधि 06.04.06 तक थी। किन्तु लगभग 6 वर्श के अंतराल के बाद प्रस्तुत परिवाद योजित किया गया है। परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में भी नहीं आता है। परिवादी के सेवानिवृत्त का विशय प्रस्तुत फोरम के समक्ष असम्बन्धित है। वास्तव में परिवादी को दिनांक 03.07.02 को बर्खास्त कर दिया गया था। परिवादी की अपील पर अपीलीय प्राधिकारी द्वारा भी अपने पत्र दिनांक 01.03.03 को अपील आंषिक रूप से स्वीकार करते हुए परिवादी की बर्खास्तगी को दिनांक 03.07.02 से अनिवार्य सेवानिवृत्त किया गया था। इसलिए परिवादी द्वारा परिसर को पहुॅचाई गयी क्षति के पुर्नवलोकन हेतु आदेषित किया गया था। इस प्रकार परिवादी को उसकी सेवनिवृत्ति पर दिये गये भुगतानों में विपक्षी द्वारा कोई सेवा में कमी कारित नहीं की गयी है। सामान्य भविश्य निधि नियमावली के अनुसार किसी भी कर्मचारी को उसके भविश्य निधि से भुगतान/अग्रिम उसके द्वारा सम्बन्धित प्रारूप में आवेदन भरकर प्रस्तुत किये जाने पर ही दिया जाता है। परिवादी द्वारा दिनांक 07.03.04 को अपने भविश्य निधि से भुगतान के लिए आवेदन दिया गया। चूॅकि परिवादी
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का प्रार्थनापत्र नियमानुसार नहीं था। अतः परिवादी को निर्धारित प्रारूप में भरकर आवेदन देने की राय दी गयी। परिवादी द्वारा अपनी गलती का सुधार किया गया। इसके पष्चात तुरन्त ही परिवादी को चेक सं0-155458 दिनांकित 07.04.04 के माध्यम से रू0 2,99,153.00 का भुगतान कर दिया गया। यदि उक्त भुगतान से परिवादी विक्षुब्ध था, तो उसे दो वर्श के अंदर परिवाद दाखिल कर देना चाहिए था। परिवादी का यह कथन गलत है कि उसको लेखा पर्ची नहीं दी गयी। परिवादी को दिनांक 28.04.04 को लेखा पर्ची दी गयी है। इसके पूर्व में भी परिवादी को भुगतान के सम्बन्ध में लेखा पर्ची दी गयी है। परिवादी को भुगतान कम नहीं किया गया है। परिवादी द्वारा अंतिम पत्र विपक्षी को दिनांक 28.04.04 को दिया गया है। परिवादी द्वारा इसके पष्चात के दिये गये पत्र असम्बन्धित हैं। परिवादी के उसके पत्रों के आलोक में दिनांक 28.04.04 को लेखा पर्ची उपलब्ध करायी गयी है। परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये असत्य व झूठे प्रार्थनापत्रों के जवाब में परिवादी की ओर से किये गये अवैधानिक पत्राचार का कोई जवाब विपक्षी द्वारा नहीं दिया गया है। विपक्षी की ओर से कोई कमेटी परिवादी के सामान्य भविश्य निधि से सम्बन्धित षिकायत पर सुनवाई हेतु नहीं गठित की गयी है। जैसाकि परिवादी द्वारा परिवाद पत्र के प्रस्तर-11 में कहा गया है। विपक्षी द्वारा दिनांक 07.04.04 को परिवादी के सामान्य भविश्य निधि से सम्बन्धित विशय समाप्त कर दिया गया। इसके पष्चात परिवादी की ओर से किये गये झूठे पत्राचार का जवाब देने के लिए विपक्षी द्वारा उचित नहीं पाया गया और इसलिए विपक्षी द्वारा परिवादी की ओर से किये गये अवैधानिक पत्राचार का जवाब नहीं दिया गया। परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद, योजित करके कानून का बेजा इस्तेमाल किया गया है। परिवाद सव्यय खारिज किया जाये।
5.    परिवादी की ओर से जवाबुल जवाब प्रस्तुत करके, विपक्षी की ओर से प्रस्तुत जवाब दावा का खण्डन किया गया है और स्वयं के द्वारा प्रस्तुत परिवाद पत्र में उल्लिखित तथ्यों की पुनः पुश्टि की गयी है। 

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परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
6.    परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में स्वयं का षपथपत्र दिनांकित 02.08.10, 08.05.12 एवं 11.10.13 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में संलग्नक ए-1 लगायत् ए-16 तथा लिखित बहस दाखिल किया है।
विपक्षी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
7.    विपक्षी ने अपने कथन के समर्थन में आर0सी0 षुक्ला, निदेषक का षपथपत्र दिनांकित 09.05.12 एवं हिमान्षु राजन का षपथपत्र दिनांकित 24.07.15 दाखिल किया है।
निष्कर्श
8.    फोरम द्वारा उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी तथा पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों एवं परिवादी द्वारा प्रस्तुत लिखित बहस का सम्यक परिषीलन किया गया।
9.    उभयपक्षों की ओर से उपरोक्त प्रस्तर-6 व 7 में वर्णित षपथपत्रीय व अन्य अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत किये गये हैं। पक्षकारों की ओर से प्रस्तुत किये गये उपरोक्त साक्ष्यों में से मामले को निर्णीत करने में सम्बन्धित साक्ष्यों का ही आगे उल्लेख किया जायेगा।
    उपरोक्तानुसार उभयपक्षों को सुनने तथा पत्रावली के सम्यक परिषीलन से प्रस्तुत मामले में निम्नलिखित प्रमुख विचारणीय बिन्दु बनते हैंः-
1.    क्या विपक्षी द्वारा परिवादी को रू0 72,946.00 भविश्य निधि को कम अदाया किया गया है, यदि हां तो प्रभाव?
2.    क्या परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है, यदि हां तो प्रभाव?
3.    क्या परिवाद कालबाधित है, यदि हां तो प्रभाव?

विचारणीय बिन्दु संख्या-1ः- 
10.    उपरोक्त वाद बिन्दु सिद्ध करने का भार परिवादी का है। परिवादी की ओर से उपरोक्त विचारणीय बिन्दु के  सम्बन्ध में  यह  कहा 
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गया है कि परिवाद पत्र के प्रस्तर-16 में दी गयी तालिका के अनुसार विपक्षी द्वारा परिवादी को उसकी भविश्य निधि धनराषि रू0 72,946.00 कम अदा की गयी है। विपक्षी की ओर से यह कहा गया है कि परिवादी को पूर्ण भुगतान किया जा चुका है।
    उभयपक्षों को सुनने तथा पत्रावली के सम्यक परिषीलन से विदित होता है कि परिवादी की ओर से प्रस्तुत की गयी उपरोक्त तालिका में उल्लिखित कुल जमा धनराषि रू0 3,72,099.00 परिवादी को स्वीकार्य रूप से रू0 2,99,946.00 को घटाने पर धनराषि रू0 72,153.00 आती है। जबकि परिवादी द्वारा उक्त धनराषि रू0 72,946.00 दर्षायी गयी है, जो कि समझ से परे है। इसके अतिरिक्त परिवादी द्वारा यह स्पश्ट नहीं किया गया है कि याचित ब्याज दर किस नियम के अंतर्गत विपक्षी द्वारा कम दी गयी है।
    अतः उपरोक्त कारणों से प्रस्तत वाद बिन्दु परिवादी के विरूद्ध और विपक्षी के पक्ष में निर्णीत किया जाता है।
विचारणीय बिन्दु संख्या-2
11.    उपरोक्त वाद बिन्दु को सिद्ध करने का भार विपक्षी का है। विपक्षी की ओर से यह कथन किया गया है कि परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। परिवादी के सेवानिवृत्ति का विशय असम्बन्धित है। वास्तव में परिवादी को दिनांक 03.07.02 को बर्खास्त कर दिया गया था। अपीलीय प्राधिकारी द्वारा परिवादी की अपील आंषिक रूप से स्वीकार करते हुए दिनांक 01.03.03 को परिवादी को बर्खास्तगी को दिनांक 03.07.02 से अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्ति में परिवर्तित किया गया था। अतः परिवादी उपभोक्ता की कोटि में नहीं आता है। परिवादी की ओर से यह कथन किया गया है कि परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में आता है। क्योंकि परिवादी द्वारा अपने वेतन का अंष भविश्य निधि में जमा किया गया है। जिसे विपक्षी द्वारा संरक्षित व संचालित किया जाता है, जिसका लाभ विपक्षी विभाग हो होता है।
    उपरोक्तानुसार उपरोक्त बिन्दु पर उभयपक्षों को सुनने तथा पत्रावली के सम्यक परिषीलन से विपक्षी  द्वारा अपने कथन  के समर्थन में 
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कोई सारवान साक्ष्य अथवा सारवान तथ्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। अतः प्रस्तुत वाद बिन्दु विपक्षी के विरूद्ध तथा परिवादी के पक्ष में निर्णीत किया जाता है।
विचारणीय बिन्दु संख्या-3
12.    उपरोक्त वाद बिन्दु को सिद्ध करने का भार विपक्षी का है। विपक्षी की ओर से यह कथन किया गया है कि स्वयं परिवादी के द्वारा अपने परिवाद पत्र में वाद कारण दिनांक 07.04.04 को बताया गया है। इस प्रकार परिवादी को परिवाद योजित करने की अवधि दिनांक 06.04.06 तक थी। परिवादी द्वारा 6 वर्श के अंतराल के बाद परिवाद योजित किया गया है। इसलिए परिवाद कालबाधित है। प्रस्तुत वाद बिन्दु के सम्बन्ध में परिवादी की ओर से यह कथन किया गया है कि दिनांक 07.04.04 को परिवादी को उसके भविश्य निधि में जमा संपूर्ण धनराषि अदा नहीं की गयी है। जिसके कारण परिवादी दिनांक 20.10.05 से 01.06.07 तक विपक्षी से पत्राचार किया जाता रहा है। परिवादी के प्रष्नगत प्रकरण के सम्बन्ध में विपक्षी द्वारा एक कमेटी नियुक्त की गयी। किन्तु परिवादी को जनवरी 2010 में ज्ञात हुआ कि परिवादी का विशय कमेटी द्वारा नहीं लिया गया। जिससे वाद कारण जनवरी 2010 से बनता है। इसके विरूद्ध विपक्षी की ओर से यह कथन किया गया है कि परिवादी का यह कथन असत्य है कि प्रष्नगत कमेटी उसके मामले के विचारण हेतु गठित की गयी थी। विपक्षी का यह भी कथन है कि परिवादी को उसके सामान्य भविश्य निधि की धनराषि रू0 2,99,153.00 दिनांक 07.04.04 को भुगतान कर दिया गया था। उक्त भुगतान के पष्चात परिवादी की ओर से किये गये अवैधानिक पत्राचार का कोई जवाब विपक्षी द्वारा नहीं दिया गया।
उभयपक्षों की ओर से उपरोक्त वाद बिन्दु के सम्बन्ध में किये गये कथन के अवलोकन से तथा पत्रावली के सम्यक परिषीलन से विदित होता है कि परिवादी द्वारा जिस भविश्य निधि में जमा धनराषि के बावत प्रस्तुत परिवाद योजित किया गया है-उक्त धनराषि की देनदारी का विशय दिनांक 07.04.04 को परिवादी को ज्ञात हो चुका था।  अतः फोरम विपक्षी  के इस तर्क से सहमत कि परिवादी का प्रस्तुत परिवाद  योजित करने की
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अवधि दिनांक 07.04.06 तक थी। इसके अतिरिक्त परिवादी की ओर से समस्त पत्राचार औचित्यहीन हैं। क्योंकि इस सम्बन्ध में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा विधि निर्णय पी.एम.एस. इण्टरप्राइजेज एवं अन्य बनाम डी.डी.ए. एवं अन्य प् ;2010द्ध ब्च्श्र 60 ;छब्द्ध में यह विधिक सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि, ’’केवल अभ्यावेदन भेजना परिसीमा की अवधि का विस्तार नहीं करता’’ 
उपरोक्त तथ्यों, परिस्थितियों एवं उपरोक्त कारणों से प्रस्तुत वाद बिन्दु विपक्षी के पक्ष में तथा परिवादी के विरूद्ध निर्णीत किया जाता है।

13.     उपरोक्त तथ्यों, परिस्थितियों के आलोक में और विषेशतः वाद बिन्दु सं0-1 एवं 3 के आलोक में फोरम इस मत का है कि परिवादी का प्रस्तुत परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है।
ःःःआदेषःःः
14.     परिवादी का प्रस्तुत परिवाद विपक्षी के विरूद्ध खारिज कया जाता हैं उभयपक्ष अपना-अपना परिवाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।

   (पुरूशोत्तम सिंह)      ( सुधा यादव )         (डा0 आर0एन0 सिंह)
     वरि0सदस्य           सदस्या                   अध्यक्ष
 जिला उपभोक्ता विवाद    जिला उपभोक्ता विवाद        जिला उपभोक्ता विवाद       
     प्रतितोश फोरम          प्रतितोश फोरम                प्रतितोश फोरम
     कानपुर नगर।           कानपुर नगर                 कानपुर नगर।

    आज यह निर्णय फोरम के खुले न्याय कक्ष में हस्ताक्षरित व दिनांकित होने के उपरान्त उद्घोशित किया गया।

  (पुरूशोत्तम सिंह)       ( सुधा यादव )         (डा0 आर0एन0 सिंह)
     वरि0सदस्य           सदस्या                   अध्यक्ष
 जिला उपभोक्ता विवाद    जिला उपभोक्ता विवाद        जिला उपभोक्ता विवाद       
     प्रतितोश फोरम          प्रतितोश फोरम                प्रतितोश फोरम
कानपुर नगर।           कानपुर नगर                 कानपुर नगर।
 

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