Uttar Pradesh

StateCommission

A/2012/700

Dr Anil Agarwal - Complainant(s)

Versus

Umesh - Opp.Party(s)

Pratul Srivastava

05 Feb 2024

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2012/689
( Date of Filing : 04 Feb 2012 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Umesh
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Dr Anil Agarwal
a
...........Respondent(s)
First Appeal No. A/2012/700
( Date of Filing : 09 Apr 2012 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Dr Anil Agarwal
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Umesh
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 05 Feb 2024
Final Order / Judgement

(मौखिक)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील संख्‍या-689/2012

उमेश पुत्र श्री राम करण सिंह, द्वारा पिता राम करण सिंह पुत्र श्री रतिराम, निवासी 1153, सेक्‍टर-4, वसुंधरा, इन्दिरा पुरम, गाजियाबाद

 

बनाम

डा0 अनिल अग्रवाल, कुमार हॉस्पिटल, स्थित 109, वसुंधरा, गाजियाबाद

 

एवं

अपील संख्‍या-700/2012

डा0 अनिल अग्रवाल, कुमार हॉस्पिटल, स्थित 109, वसुंधरा, गाजियाबाद

 

बनाम

उमेश पुत्र श्री राम करण सिंह, निवासी 1153, सेक्‍टर-4, वसुंधरा, गाजियाबाद

 

 

समक्ष:-                                                  

1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्‍याय, सदस्‍य।

अपीलार्थी/परिवादी की ओर से उपस्थित     : श्री विशाल चौधरी।

प्रत्‍यर्थी/विपक्षी की ओर से उपस्थित        : श्री प्रतुल श्रीवास्‍तव।

दिनांक : 05.02.2024 

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

1.        परिवाद संख्‍या-308/2005, उमेश बनाम डा0 अनिल अग्रवाल में विद्वान जिला आयोग, गाजियाबाद द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक  2.3.2012 के विरूद्ध अपील संख्‍या-689/2012, परिवादी  की ओर से क्षतिपूर्ति की राशि में वृद्धि हेतु प्रस्‍तुत की गयी

 

-2-

है, जबकि अपील संख्‍या-700/2012, विपक्षी की ओर से निर्णय/आदेश को अपास्‍त करने के लिए प्रस्‍तुत की गयी है।

2.        उपरोक्‍त दोनों अपीलें एक ही निर्णय/आदेश से प्रभावित होकर प्रस्‍तुत की गयी हैं, इसलिए दोनों अपीलों का निस्‍तारण एक ही निर्णय/आदेश द्वारा एक साथ किया जा रहा है। इस हेतु अपील संख्‍या-689/2012 अग्रणी अपील होगी।

3.        परिवाद के तथ्‍यों के अनुसार दिनांक 25.6.2005 को परिवादी उमेश के पेट में दर्द हुआ, उसके पिता उसे कुमार अस्‍पताल वसुंधरा गाजियाबाद में लेकर गए, जहां डा0 द्वारा एक इंजेक्‍शन लगाया गया और इंजेक्‍शन लगाते ही परिवादी का दाहिना पैर घुटने के नीचे संज्ञाहीन हो गया। पूछने पर 24 घण्‍टे में ठीक होने के लिए कहा गया, परन्‍तु एक सप्‍ताह तक इलाज करने के बावजूद पैर ठीक नहीं हुआ। इसके बाद डा0 मनोज अग्रवाल के पास इलाज कराया गया वहां भी पैर ठीक नहीं हुआ, इसके बाद अनेक डाक्‍टरों से इलाज कराया गया। सब डाक्‍टरों द्वारा कहा गया कि इंजेक्‍शन के कारण ऐसा हुआ है। पैर खराब होने के कारण परिवादी स्‍कूल तक नहीं जा पाता है तथा इलाज में भी हजारो रूपये खर्च हो चुके हैं।

4.        विपक्षी डा0 का कथन है कि दिनांक 25.6.2005 की रात्रि में मरीज को उसके पिता द्वारा इलाज के लिए लाया गया था। विपक्षी द्वारा 3 दवा पर्चे पर लिखकर दी गयी थी। कोई इंजेक्‍शन नहीं लगाया गया था, उसके विरूद्ध गलत परिवाद प्रस्‍तुत किया गया है।

 

 

-3-

5.        दोनों पक्षकारों की साक्ष्‍य पर विचार करने के पश्‍चात विद्वान जिला आयोग द्वारा यह निष्‍कर्ष दिया गया कि कुमार हॉस्पिटल के पर्चे पर डा0 द्वारा दवाई अंकित की गयी है, इसलिए डा0 अग्रवाल का संबंध कुमार हॉस्पिटल से है। विपक्षी डा0 ने केवल यह कथन किया है कि इंजेक्‍शन कहीं और लगवाया गया था, परन्‍तु उस डा0 का नाम नहीं बताया गया, इसलिए परिवादी के शपथ पत्र पर विश्‍वास करते हुए अंकन 1,00,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति के लिए आदेश पारित किया गया।

6.        अपीलार्थी, डा0 के विद्वान अधिवक्‍ता का यह तर्क है कि उनके द्वारा कभी भी कोई इंजेक्‍शन नहीं लगाया गया था, परन्‍तु परिस्थि‍ति यह जाहिर करती है कि अपीलार्थी, डा0 द्वारा ही परिवादी को इंजेक्‍शन लगाया गया, जिसका उल्‍लेख डा0 द्वारा अपने पर्चे पर नहीं किया गया। इस परिस्थितिजन्‍य साक्ष्‍य का विश्‍लेषण निम्‍न प्रकार है :-

(1.)       दस्‍तावेज सं0-30 पर कुमार हॉस्पिटल के पर्चे पर डा0 अग्रवाल द्वारा लिखी गयी दो टैबलेट हैं, इसी तिथि को मरीज कुमार हॉस्पिटल में दर्द के कारण उपस्थित हुआ था। यद्यपि इस पर्चे पर इंजेक्‍शन लगाने का उल्‍लेख नहीं है और यह उल्‍लेख इसलिए नहीं है, क्‍योंकि इंजेक्‍शन डा0 द्वारा अपने स्‍तर से लगाया गया और शेष दवा पर्चे पर लिख दी गयी। इस तथ्‍य की पुष्टि परिवादी द्वारा शपथ पत्र से की गयी है कि डा0 द्वारा एक इंजेक्‍शन लगाया गया था।

(2.)       अपील सं0-689/2012, में दस्‍तावेज सं0-30 के अनुसार डा0  मनोज  अग्रवाल  द्वारा दिनांक 6.7.2005 को मरीज को देखा

 

-4-

गया, वह न्‍यूरोसर्जन हैं। पैर में सुन्‍नता के कारण ही डा0 मनोज अग्रवाल को दिखाया गया। दिनांक 13.7.2005 को मरीज को A.I.I.M.S. नई दिल्‍ली में दिखाया गया, जिससे संबंधित पर्चा दस्‍तावेज सं0-23 में मौजूद है, इसमें मरीज के पैर में सुन्‍न्‍ता के कारण इलाज के लिए उपस्थित होने का उल्‍लेख है। इसके बाद प्रदत्‍त दवाओं का विवरण अंकित है।

(3.)       दस्‍तावेज सं0-26 के अनुसार दिनांक 15.7.2005 को डा0 अरविन्‍द सक्‍सेना द्वारा भी पैर में सुन्‍नता के कारण मरीज के भर्ती होने का उल्‍लेख किया गया है। दस्‍तावेज सं0-31 के अनुसार दिनांक 26.6.2005 को मरीज आकाश मेडिकेयर में उपस्थित हुआ, इसमें भी मरीज के उपस्थित होने का उल्‍लेख पैर में सुन्‍नता दर्शाया गया है। दस्‍तावेज सं0-32, 33 के विवरण से भी इस तथ्‍य की पुष्टि होती है कि डा0 अग्रवाल को दिखाने के पश्‍चात से ही मरीज के पैर में सुन्‍नता आयी है और इसके बाद के प्रत्‍येक डा0 द्वारा पैर में लगाए गए इंजेक्‍शन के कारण सुन्‍नता का उल्‍लेख अपने उपचार पत्रों में किया है। डा0 अग्रवाल के अलावा उस तिथि को मरीज किसी अन्‍य डा0 के समक्ष उपस्थित नहीं हुआ। अत: किसी अन्‍य डा0 के द्वारा इंजेक्‍शन लगाने का कोई अवसर नहीं था।

7.        अत: उपरोक्‍त सभी वर्णित परिस्थितिजन्‍य साक्ष्‍य यह साबित करते हैं कि अपीलार्थी, डा0 द्वारा ही इंजेक्‍शन लगाया गया, जिसकी पुष्टि परिवादी के शपथ पत्र से होती है और इस इंजेक्‍शन के कारण ही पैर में अपंगता आयी है। इंजेक्‍शन लगाने से पूर्व कोई परीक्षण  नहीं  किया  गया। इलाज के पर्चे पर भी इंजेक्‍शन का नाम

 

-5-

अंकित नहीं किया गया। इंजेक्‍शन मरीज के पैर में लगाने के तथ्‍य का भी उल्‍लेख नहीं किया गया। डा0 के स्‍तर से सम्‍पादित यह समस्‍त कार्यवाही लापरवाही के तथ्‍य को घटना स्‍वंय प्रमाण है, के सिद्धान्‍त पर स्‍थापित करती है। अत: डा0 द्वारा प्रस्‍तुत की गयी अपील संख्‍या-700/2012 निरस्‍त होने योग्‍य है।

8.        अब बिन्‍दु पर विचार करना है कि क्षतिपूर्ति की राशि की बढ़ोत्‍तरी के लिए प्रस्‍तुत की गयी अपील संख्‍या-689/2012 में अपीलार्थी/परिवादी कितनी राशि प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत है।

9.        अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता का यह तर्क है कि परिवादी का सामान्‍य जीवन व्‍यर्थ हो गया है। अंकन 1,00,000/-रू0 पूर्व में ही खर्च हो चुके हैं, इसलिए केवल 1,00,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति का आदेश उचित नहीं है। परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में अन्‍य डाक्‍टरों के स्‍तर से इलाज कराने का न केवल कथन किया है, बल्कि उपचार पर्चे दाखिल करते हुए इस तथ्‍य को साबित किया है कि परिवादी द्वारा अत्‍यधिक मानिसक, आर्थिक और शारीरिक पीड़ा को सहन करने के लिए बाध्‍य होना पड़ा है, इसलिए अंकन 1,00,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति का आदेश अत्‍यधिक कम है, इस मद में परिवादी को अंकन 2,50,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति का आदेश दिया जाना चाहिए था। तदनुसार परिवादी की ओर से प्रस्‍तुत की गयी अपील संख्‍या-689/2012 स्‍वीकार होने योग्‍य है।

आदेश

10.       अपील संख्‍या-689/2012 स्‍वीकार की जाती है। विद्वान जिला  आयोग  द्वारा  पारित  निर्णय/आदेश  दिनांक 2.3.2012 इस

 

-6-

प्रकार संशोधित किया जाता है कि परिवादी अंकन 1,00,000/-रू0 (एक लाख रूपये) के स्‍थान पर अंकन 2,50,000/-रू0 (दो लाख पचास हजार रूपये) प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत है। शेष निर्णय/आदेश यथावत रहेगा।

          अपील संख्‍या-700/2012 निरस्‍त की जाती है।

प्रस्‍तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्‍त जमा धनराशि अर्जित ब्‍याज सहित संबंधित जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्‍तारण हेतु प्रेषित की जाए।

इस निर्णय/आदेश की मूल प्रति अपील संख्‍या-689/2012 में रखी जाए एवं इसकी एक सत्‍य प्रति संबंधित अपील में भी रखी जाए।

आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।

 

 

 

(सुधा उपाध्‍याय)                           (सुशील कुमार(

  सदस्‍य                                   सदस्‍य

 

 

लक्ष्‍मन, आशु0,

   कोर्ट-3

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY]
MEMBER
 

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