Uttar Pradesh

StateCommission

A/2007/2500

L I C - Complainant(s)

Versus

Umesh Chandra Tripathi - Opp.Party(s)

V. S. Bisaria

22 Oct 2024

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2007/2500
( Date of Filing : 20 Nov 2007 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. L I C
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Umesh Chandra Tripathi
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 22 Oct 2024
Final Order / Judgement

 (सुरक्षित)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

अपील सं0 :-2500/2007

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, सिद्धार्थ नगर द्वारा परिवाद सं0-87/2005 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 24/08/2007 के विरूद्ध)

  1. Life Insurance Corporation of India through Branch Manager Bansi, Branch Office Bansi, District Siddarth Nagar.
  2. Life Insurance Corporation of India through Senior Manager, Divisional, Post Box No. 21, Pratibha Complex, Jublee Marg, Gorakhpur-273001
  3. Life Insurance Corporation of India through Regional Manager, North Central Regional Office, Jeewan Bima Vikas Building, 16/98, Mahatma Gandhi Marg, Post Box No. 181, Kanpur 208001.
  4.                                                                      Appellants  

Versus

Umesh Chandra Tripathi Son of Sri Jagdish Chand Tripathi, Village Jamuni, Post Santora Via Udairajganj, Tappa-Barho, Pargana Naugarh, Tehsil Shohratgarh, District Siddharth Nagar.

  •                                                                     Respondent

समक्ष

  1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्‍य
  2. मा0 श्रीमती सुधा उपाध्‍याय, सदस्‍य

उपस्थिति:

अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता:- श्री वी0एस0 बिसारिया  

प्रत्‍यर्थी की ओर विद्वान अधिवक्‍ता:- श्री त्रिपाठी बी.जी. बालक

दिनांक:-22.10.2024

 

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

  1.           यह अपील जिला उपभोक्‍ता आयोग, सिद्धार्थ नगर द्वारा परिवाद सं0-87/2005 उमेश चन्‍द्र त्रिपाठी बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 24/08/2007 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गयी अपील पर दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्‍ताओं के तर्क को सुना गया।
  2.           जिला उपभोक्‍ता आयोग ने परिवाद स्‍वीकार करते हुए पॉलिसी धारक की मृत्‍यु पर बीमित राशि 06 प्रतिशत ब्‍याज के साथ अदा करने का आदेश पारित किया है।
  3.           परिवाद के तथ्‍यों के अनुसार परिवादी की पत्‍नी स्‍व0 सरोज त्रिपाठी को बीमा पॉलिसी सं0 292069783 दिनांक 28-12-2002 तालिका 14-18 रूपये 90,000=00 व पालिसी सं० 292077036 दिनांक 28-5-2003 तालिका 89-20 जीवन साथी पालिसी रुपये 100000/- तथा पालिसी सं0 292570551  टी. एस. टी 18-75-20 दिनांक 28-09-2003 का वाद प्रस्ताव स्वीकृत कर चिकित्सीय औपचारिकता आदि पूरी करके उक्त पालिसियों को विपक्षीगण सं0 1 द्वारा जारी किया गया था। बीमा धारक की मृत्‍यु दिनांक 07.11.2003 को हो गयी, जिसकी सूचना दिनांक 29.11.2003 को शाखा प्रबंधक को दे दी गयी और इसके बाद पंजीकृत डाक से बीमा क्‍लेम प्रस्‍तुत किया गया, परंतु दिनांक 31.03.2004 को दावा निरस्‍त कर दिया गया। मृतक कुशल गृहणी के साथ साथ अनाज का व्‍यवसाय भी करती थी और घर का प्रबंध भी करती थी। बीमा धारक के पति के नाम पॉलिसी सं0 280153541 दिनांक 24.02.1989 को जारी की गयी थी, जो नियमित रूप से चल रही थी। बीमा प्रस्‍ताव पर परिवादी के हस्‍ताक्षर नहीं है न ही उनके द्वारा भरा गया है, सभी कुछ एजेण्‍ट ने नोट किया है।
  4.          बीमा निगम ने पॉलिसी जारी करना तथा बीमाधारक की मृत्‍यु  होना स्‍वीकार किया, परंतु यह कथन किया है कि बीमा धारक की मृत्‍यु दिनांक 07.11.2003 को होने के कारण दावा अति अल्‍पकालिक श्रेणी के अंतर्गत आते हैं। जांच करने पर पाया गया कि बीमाधारक ने अपने पति के जीवन पर किसी भी प्रकार की बीमा पॉलिसी न होने का उल्‍लेख किया है। पॉलिसी सं0 292069783 के प्रस्‍ताव में व्‍यवसाय व्‍यापार वर्णित किया जबकि शेष अन्‍य पॉलिसी के प्रस्‍ताव में स्‍वयं को गृहणी घोषित किया है तथा दावेदार के बयान में मृतक का अंतिम व्‍यवसाय कृषि उपज अनाज व दूध बताया गया है। यथार्थ में बीमा धारक पूर्ण गृहणी थी। एक पॉलिसी में प्रस्‍तावक द्वारा अपना व्‍यवसाय गृहणी दर्शाया गया है और पूर्व पॉलिसी का उल्‍लेख नहीं किया गया है, इसलिए बीमा क्‍लेम नकारा गया है।
  5.        पक्षकारों के साक्ष्‍य पर विचार करने के पश्‍चात जिला उपभोक्‍ता आयेग द्वारा उपरोक्‍त वर्णित आदेश पारित किया गया।
  6.         इस निर्णय एवं आदेश को बीमा निगम द्वारा इन आधारों पर चुनौती दी गयी है कि जिला उपभोक्‍ता आयोग ने तथ्‍य एवं साक्ष्‍य के विपरीत निर्णय/आदेश पारित किया है। बीमाधारक ने एक के बाद एक 3 पॉलिसी प्राप्‍त की। अंतिम पॉलिसी दिनांक 28.09.2003 को प्राप्‍त की गयी और दिनांक 07.11.2003 में परिवादी की पत्‍नी के अचानक मृत्‍यु हो गयी। जांच करने पर पाया गया कि बीमाधारक द्वारा असत्‍य सूचनाएं दी गयी। प्रथम पॉलिसी लेने के बाद शेष दो पॉलिसी प्राप्‍त की गयी, उनमें प्रथम पॉलिसी की चर्चा नहीं की गयी, इसलिए सूचना छिपाने के आधार पर बीमा क्‍लेम नकारा गया है, जो विधिसम्‍मत है।
  7.         अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्‍ता द्वारा अपने तर्क के समर्थन मे नजीर रिलायंस लाइफ इंश्‍योरेंस लिमिटेड बनाम रेखाबेन नरेशभाई राठौर II (2019) 53 (SC)  प्रस्‍तुत की है, जिसमें पूर्व में ली गयी पॉलिसी के संबंध में सूचना न देना बीमा नकारने का पर्याप्‍त आधार माना गया। प्रस्‍तुत केस में बीमा धारक द्वारा क्रमश: तीन पॉलिसी प्राप्‍त की गयी हैं। पॉलिसी सं0 292069783 अंकन 90,000/-रू0 की राशि प्राप्‍त की गयी है। इस पॉलिसी को प्राप्‍त करते समय पूर्व में कोई पॉलिसी मौजूद नहीं थी। अत: इस पॉलिसी को लेते समय पूर्व में ली गयी पॉलिसी का कोई अस्तित्‍व नहीं था। अत: इस पॉलिसी के संबंध मे बीमा क्‍लेम नकारने का कोई आधार नहीं माना जा सकता। इस पॉलिसी के संबंध में प्रश्‍नगत उपरोक्‍त नजीर में दी गयी व्‍यवस्‍था भी लागू नहीं होती है, बल्कि पॉलिसी धारक के पक्ष में इस नजीर का निर्वचन किया जा सकता है, इसलिए इस पॉलिसी के संबंध में बीमा राशि अदा करने का आदेश विधिसम्‍मत है, परंतु अन्‍य पॉलिसी के संबंध में बीमा क्‍लेम अदा करने का जो आदेश पारित किया गया है, उसे विधिसम्‍मत नहीं कहा जा सकता क्‍योंकि अवशेष पॉलिसी के संबंध मे उपरोक्‍त नजीर मे दी गयी व्‍यवस्‍था लागू होती है, चूंकि एजेण्‍ट बीमाधारक के एजेण्‍ट की श्रेणी में आता है, इसलिए एजेण्‍ट द्वारा भी कोई सूचना अगर अंकित की जाती है तब वह सूचना भी बीमाधारक द्वारा दी गयी सूचना मानी जायेगी और यदि एजेण्‍ट द्वारा पूर्व में ली गयी पॉलिसी की सूचना नहीं दी जाती तब माना जायेगा कि बीमाधारक ने समस्‍त सूचनाएं उपलब्‍ध नहीं करायी हैं, इसलिए एजेण्‍ट की त्रुटि के लिए भी बीमा धारक ही उत्‍तरदायी है क्‍योंकि एजेण्‍ट और बीमाधारक में प्रिंसिपल तथा एजेण्‍ट के संबंध स्‍थापित होते हैं तथा एजेण्‍ट के प्रत्‍येक कार्य के लिए प्रिंसिपल उत्‍तरदायी होता है। अत: अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार होने योग्‍य है।

आदेश

            अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है। जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि पॉलिसी सं0 292069783 के संबंध में पारित आदेश पुष्‍ट किया जाता है। शेष बीमा पॉलिसी के संबंध में पारित आदेश अपास्‍त किया जाता है। शेष निर्णय/आदेश पुष्‍ट किया जाता है।

          उभय पक्ष अपना-अपना व्‍यय भार स्‍वंय वहन करेंगे। 

            प्रस्‍तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्‍त जमा धनराशि मय अर्जित ब्‍याज सहित संबंधित जिला उपभोक्‍ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्‍तारण हेतु प्रेषित की जाए।

 आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।         

 

(सुधा उपाध्‍याय) (सुशील कुमार)

सदस्‍य सदस्‍य

 

 

      संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2

  

 

 

  

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY]
MEMBER
 

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