Rajasthan

Churu

540/2011

M/s Bokaira Enterpises Prv Ltd. - Complainant(s)

Versus

UIICO - Opp.Party(s)

S. Jangaid

09 Feb 2015

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, चूरू
अध्यक्ष- षिव शंकर
सदस्य- सुभाष चन्द्र
सदस्या- नसीम बानो
 
परिवाद संख्या-   540/2011
मैसर्स बोकाडि़या एन्टरप्राइजेज प्रा.लि. औधोगिक क्षैत्र, चूरू जरिये विधिमान्य प्रतिनिधी राधेश्याम नोवाल पुत्र स्व. श्री रामकुमार जाति ब्राहमण निवासी निवासी वार्ड न. 06, रतननगर (चूरू)
......प्रार्थी
बनाम
 
1.    युनाइटेड इण्डिया इन्श्योरेन्स कम्पनी लि. शाखा कार्यालय, चूरू जरिए शाखा प्रबन्धक                                                  
......अप्रार्थी
दिनांक-  07.04.2015
निर्णय
द्वारा अध्यक्ष- षिव शंकर
1.    श्री शिवराम जांगिड़ एडवोकेट     - प्रार्थी की ओर से
2.    श्री विजय कस्वां एडवोकेट        - अप्रार्थी की ओर से
 
 
1.    प्रार्थी ने अपना परिवाद पेष कर बताया कि प्रार्थी की एक फेक्ट्री चूरू के औधोगिक क्षैत्र में प्लांट संख्या एफ.62 रोड़ नम्बर 3 पर अवस्थित है और इस फेक्ट्री में रबर प्रोसेसिंग का कार्य होता है। जिसका राॅ मेटेरियल सेन्थेटिक रबर होता है जिसे प्रोसेस कर एक विशेष क्वालिटी का रबर तैयार किया जाता है। इस प्लांट में जगह की आवश्यकता ज्यादा रहती है, इसलिए इस प्लांट के पुर्व दिशा की ओर चिपते ही अवस्थित एक अन्य फेक्ट्री प्लाट संख्या एफ. 71 को प्रार्थी पक्ष द्वारा किराये पर लिया जाकर इस मूल फेक्ट्री से एटेच किया गया था, जिस बाबत बीमा कम्पनी को सुचित किया गया रहा है, जिसमें इस प्रोडेक्ट का कच्चा माल रखा जाता था और चूंकि साथ वाली फेक्ट्री चिपते होने से इसमें आने जाने हेतु अन्दर से ही व्यवस्था होने से कोई परेशानी नहीं थी। प्रार्थी की यूनिट एक्साइज विभाग से भी एप्रूव्ड रही है। चूंकि प्रार्थी की यूनिट में रबर का कार्य होने से सम्भावित नुकसान के बचाव हेतु प्रार्थी ने अपनी इस यूनिट को राॅ मेटेरियल के लिये अप्रार्थी बीमा कम्पनी के यहां से बीमित करवाया गया रहा है जिसमें राॅ मेटेरियल के लिये अप्रार्थी बीमा कम्पनी के यहां से बीमित करवाया गया रहा है जिसमें राॅ मेटेरियकल, सेमी फिनिस एवं फिनिस रबर कुल मिलाकर 40 लाख रूपये की राशि हेतु बीमा करवाया गया था जो बीमा दिनांक 09.06.2009 से 08.06.2010 तक की अवधि हेतु 11,074 रूपये प्रीमियम अदा कर 40 लाख रूपये की राशि हेतु प्रार्थी द्वारा बीमा करवायी हुई थी।
2.    आगे प्रार्थी ने बताया कि उक्त वण्रित बीमा अवधि के दौरान दिनांक 30.05.2010 को दिन के करीब 4.00 बजे प्रार्थी की इस बीमित फेक्ट्री में अज्ञात कारणों से आग लग गई, जिससे इस फेक्ट्री में रखा कच्च माल कीमतन 19,86,273 रूपये का जल कर राख हो जाने से इस राशि का नुकसान प्रार्थी को हो यगा। इसकी सूचना बीमा कम्पनी को दिये जाने पर बीमा कम्पनी ने अपने सर्वेयर से इस नुकसान का सर्वे करवाया गया जिसमें प्रार्थी को हुऐ नुकसान की सेर्वयर द्वारा पुष्टि भी की गई परन्तु नुकसान ज्यादा होने से बीमा कम्पनी ने प्रार्थी को क्लेम दिये जाने से महरूम रखने हेतु अपना स्वरचित आधार तैयार किया कि बीमा कम्पनी ने सिर्फ प्लाट संख्या एफ. 62 का ही बीमा किया था ना कि प्लाट संख्या एफ. 71 का, और प्रार्थी का वाजिब क्लेम खारिज कर दिया, जबकि प्रार्थी द्वारा इस बाबत दिनांक 15.03.2010 के अपने पत्र द्वारा बीमा कम्पनी को सुचित कर दिया गया था और हर स्थिति से अवगत करवा दिया था। उक्त वर्णित हादसे की सूचना कोतवाली थाना पुलिस चूरू पर भी दी गई रही है। जिसमें पुलिस द्वारा आवश्यक कार्यावाही कर जांच की गई थी। प्रार्थी का आग में जला माल बीमा कम्पनी के यहां से बीमित होने तथा बीमा अवधि के दौरान यह हादसा होने से प्रार्थी बीमा करार के तहत उक्त वर्णित राशि बीमा कम्पनी से प्राप्त करने का हर तरह से अधिकारी है। प्रतिपक्षी बीमा कम्पनी आधारहीन आधार पर प्रार्थी का दावा निरस्त नहीं कर सकती। अप्रार्थी बीमा कम्पनी बीमा करार के तहत क्षतिपूर्ति अदायगी हेतु जिम्मेदार है और बीमा कम्पनी ने अपने दायित्व से बचने के लिए तथाकथित आधार स्थापित कर अपने उपभोक्ता को दी जाने वाली सेवा का लोप कर गम्भीर सेवादोष किया है। प्रतिपक्षी बीमा कम्पनी ने प्रार्थी का उचित एवं जायज दावा निरस्त कर गम्भीर सेवादोष किया है, जो अस्वच्छ व्यापारिक गतिविधि की परिभाषा से भी आवृत ह, जबकि बीमा कम्पनी को बीमा करार के तहत प्रार्थी को हुए नुकसान का भुगतान अविलम्ब अपनी औपचारिकताएं पूर्ण होने के बाद कर दिया जाना चाहिए थ, जो भुगतान नहीं कर प्रतिपक्षी बीमा कम्पनी ने इकतरफा सेवादोष किया है। इसलिए प्रार्थी ने 19,86,273 रूपये व परिवाद व्यय की मांग की है।
3.    अप्रार्थी ने प्रार्थी के परिवाद का विरोध कर जवाब पेश कर बताया कि बीमा कम्पनी द्वारा मै0 बोकाडिया एन्टरप्राईजेज प्रा0 लि0, एफ. 62, रोड़ न. 3, औद्योगिक क्षैत्र, चूरू में अवस्थित व्द ेजवबो व िपिदपेीमक ेमउपए थ्पदपेीमकए ैजवबोपद चतवबमेे ंदक तंू उंजमतपंस नेमक वित उहिण् वि तनइइमत बीपचे का दिनांक 09.06.2009 से 08.06.2010 तक की अवधि का 40 लाख रूपये की राशि के लिए बीमा किया गया था। जिसकी बीमा कम्पनी द्वारा बीमा पाॅलिसी न0 141/802/11/09/00000019 जारी की गई। फैक्ट्री प्लाॅट संख्या एफ-71 को प्रार्थी द्वारा किराये पर लेने एंव उसकी सूचना बीमा कम्पनी को दिये जाने के तथ्य प्रार्थी ने सरासर गलत एवं झूठे लिखे है। बीमा कम्पनी द्वारा फैक्ट्री प्लाॅट संख्या एफ-71 में रखे किसी भी प्रकार के स्टाॅक या माल का बीमा नहीं किया गया था इसलिए बीमा कम्पनी को फैक्ट्री प्लाॅट संख्या एफ-71 में घटित घटना के लिए कानूनन उतरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। प्रार्थी द्वारा दिनांक 31.05.2010 को अप्रार्थी बीमा कम्पनी को दुर्घटना दिनांक 30.05.2010 को गोदाम में आग लगने की सूचना दी गई जिस पर बीमा कम्पनी ने हानि के आंकलन हेतु सर्वेयर नियुक्त किया गया। सर्वेयर एस.के. बाकलीवाल की रिपोर्ट दिनांक 02.12.2010 अनुसार एवं अन्य दस्तावेजात के आधार पर पाया गया कि आग से नुकसान फैक्ट्री प्लाॅट संख्या एफ-71 औद्योगिक क्षैत्र, चूरू जो कि मैसर्स गोयल इण्डस्ट्री का है के गोदाम में रखे सामान को हुआ है। जबकि प्रार्थी ने एफ 62, रोड़ न. 3, औद्योगिक क्षैत्र, चूरू में रखे सामान का बीमा करवा रखा है। इस घटना की सर्वेयर रिपोर्ट, अन्य दस्तावेजात एवं साक्ष्यों से स्पष्ट प्रमाणित होता है कि जहां आग लगी है उस स्थान का बीमा ही नहीं होना पाया गया। इसलिए प्रार्थी का परिवाद इसी स्तर पर मय खर्चे व हर्जे के खारीज होने योग्य है।
4.    प्रार्थी ने अपने परिवाद के समर्थन में स्वंय का शपथ-पत्र, बीमा पोलिसी, क्लेम फार्म, रोजनामचा आम रिपोर्ट, दावा खारिज पत्र, फायर ब्रिगेड सूचना-पत्र व भुगतान रसीद, पत्र दिनांक 15.03.2010, 18.03.2010, किरायानामा मय नक्शा, पत्र दिनांक 31.05.2010, किराये का बिल दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। अप्रार्थी की ओर से सुरेश अशवाल का शपथ-पत्र, अखबार की प्रति, पत्र दिनांक 17.02.2011, पोलिसी की प्रति, पत्र दिनांक 02.06.2010, सर्वेयर रिपोर्ट, फोटो, साईड प्लान दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है।
5.    पक्षकारान की बहस सुनी गई, पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया, मंच का निष्कर्ष इस परिवाद में निम्न प्रकार से है।
6.    प्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में परिवाद के तथ्यों को दौहराते हुए तर्क दिया कि प्रार्थी मैसर्स बोकाडि़या इन्टरप्राईजेज प्रा. लि. के नाम से रबर प्रोसेसिंग का कार्य करता है जिसकी फेक्ट्री प्लाॅट संख्या एफ 62 रोड़ संख्या 3 रिको, चूरू में स्थित है। प्रार्थी ने अपनी फेक्ट्री से चिपते ही अन्य प्लाॅट संख्या एफ 71 किराये पर लेकर कच्चा माल प्लाॅट संख्या 71 में रखा था जिसकी सूचना प्रार्थी ने अप्रार्थी बीमा कम्पनी व एक्साईज विभाग को भी दी हुई थी। प्रार्थी ने अप्रार्थी से अपने फेक्ट्री का कच्च माल सेमी फिनीसिंग एवं फिनिस रबर के लिए 40 लाख रूपये का बीमा अप्रार्थी बीमा कम्पनी से करवाया हुआ था। बीमित अवधि में ही दिनांक 30.05.2010 को करीब 4 बजे प्रार्थी की बीमित फेक्ट्री में अज्ञात कारणों से आग लग गयी जिसमें प्रार्थी का कच्चा माल करीब 19,86,273 रूपये का जल कर राख हो गया। प्रार्थी की फेक्ट्री में आग लगने पर प्रार्थी ने अप्रार्थी बीमा कम्पनी को आग की सूचना दी व क्लेम की मांग की। परन्तु अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने प्रार्थी को क्लेम से महरूम रखने हेतु इस आधार पर की अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने प्रार्थी के प्लाॅट संख्या 62 का बीमा किया गया था जबकि आग प्लाॅट संख्या 71 में लगने के कारण अप्रार्थी बीमा कम्पनी क्लेम हेतु उत्तरदायी नहीं है और क्लेम खारिज कर दिया। प्रार्थी अधिवक्ता ने तर्क दिया कि प्रार्थी ने बीमा कम्पनी को दिनांक 15.03.2010 को पत्र द्वारा प्लाॅट संख्या 71 में रखे गये माल व किराये पर लिये हुये के सम्बंध में पत्र लिख दिया गया था जिसके उत्तर में बीमा कम्पनी ने कोई जवाब नहीं दिया इससे स्पष्ट है कि बीमा कम्पनी ने प्रार्थी के तथ्यों को स्वीकार करते हुए प्लाॅट संख्या 71 में रखे गये माल का भी बीमा होना स्वीकार किया है। फिर भी बीमा कम्पनी द्वारा प्रार्थी का जायज क्लेम अस्वीकार करना अप्रार्थी बीमा कम्पनी का सेवादोष है। उक्त आधार पर प्रार्थी अधिवक्ता ने परिवाद स्वीकार करते हुए अपने माल की नुकसानी 19,86,273 रूपये दिलाये जाने का तर्क दिया। अप्रार्थी बीमा कम्पनी अधिवक्ता ने अपनी बहस में प्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा प्रार्थी की फेक्ट्री स्थित एफ 62 रोड़ न0 2 रिको एरिया, चूरू में रखे सामान का ही बीमा किया गया था व प्रार्थी ने स्वंय प्लाॅट संख्या 62 में रखे सामान का ही बीमा करवाने हेतु प्रीमियम अदा किया है जबकि आग प्लाॅट संख्या एफ 71 में लगी थी। प्लाॅट संख्या एफ 71 में रखे गये सामान हेतु अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने कोई बीमा नहीं किया था इसलिए अप्रार्थी बीमा कम्पनी प्लाॅट संख्या एफ 71 में रखे हुए सामान के जलने पर हुये नुकसान हेतु उत्तरदायी नहीं है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में यह भी तर्क दिया कि प्रार्थी ने अप्रार्थी बीमा कम्पनी को प्लाॅट संख्या 71 को किराये पर लेने, केन्द्रीय उत्पाद शुल्क केन्द्र सीकर को सूचित करने के तथ्य के सम्बंध में कभी कोई जानकारी या सूचना नहीं दी। ना ही प्रार्थी ने प्लाॅट संख्या 71 मैसर्स गोयल इण्डस्ट्री में लगी आग की जांच के दौरान सर्वेयर के समक्ष उक्त दस्तावेज सर्वेयर व अप्रार्थी बीमा कम्पनी के समक्ष प्रस्तुत नहीं किये। इसलिए उक्त दस्तावेज प्रार्थी फर्म ने केवल लाभ प्राप्त करने हेतु बाद में फर्जी रूप से तैयार किये है। प्रार्थी के प्रकरण में विधि व तथ्य के काफी जटिल प्रश्न विद्यमान है जिसका निस्तारण संक्षिप्त प्रक्रिया के माध्यम से नहीं किया जा सकता है। इसलिए प्रार्थी का परिवाद इस मंच के क्षैत्राधिकार का भी नहीं है। उक्त आधार पर परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।
7.    हमने उभय पक्षेां के तर्कों पर मनन किया। वर्तमान प्रकरण में अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा प्रार्थी फर्म मैसर्स बोकाडि़या इन्टरप्राईजेज प्रा. लि. स्थित प्लाॅट संख्या एफ 62 रोड़ न0 3 का बीमा किया जाना, दिनांक 30.05.2010 को प्लाॅट संख्या एफ 71 मैसर्स गोयल इण्डस्ट्रीज में आग लगना व सर्वेयर के अनुसार फेक्ट्री में 18,53,216 रूपये के सामान का नुकसान होना स्वीकृत तथ्य है। विवादक बिन्दु यह है कि प्लाॅट संख्या एफ 71 का बीमा अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा नहीं किया गया था जबकि आग प्लाॅट संख्या एफ 71 में ही लगी थी। प्रार्थी ने अप्रार्थी बीमा कम्पनी को उक्त प्लाॅट किराये पर लिये जाने की सूचना देने के बावजूद अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा क्लेम नहीं दिया जाना सेवादोष है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में यह तर्क दिया कि प्रार्थी ने प्लाॅट संख्या एफ 71 को किराये पर लिये जाने के सम्बंध में कभी भी कोई सूचना अप्रार्थी बीमा कम्पनी को नहीं दी। जबकि इसके विपरित प्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में यह तर्क दिया है कि प्रार्थी ने प्लाॅट संख्या 71 को किराये लेने के सम्बंध में सूचना अप्रार्थी बीमा कम्पनी व एक्साईज विभाग को दे दी थी। बहस के दौरान प्रार्थी अधिवक्ता ने इस मंच का ध्यान पत्र दिनांक 15.03.2010 व किरायानामा दिनांक 01.02.2010 की ओर ध्यान दिलाया जिसका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। पत्र दिनांक 15.03.2010 जो कि प्रार्थी फर्म द्वारा अप्रार्थी बीमा कम्पनी को लिखना प्रार्थी द्वारा बताया गया है। उक्त पत्र में प्रार्थी ने अपनी फर्म मैसर्स बोकाडि़या इन्टरप्राईजेज प्रा. लि. के चिपते प्लाॅट संख्या 71 को शामिल करने बाबत लिखा हुआ है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने उक्त पत्र के सम्बंध में यह तर्क दिया कि उक्त पत्र प्रार्थी द्वारा बाद में तैयार किया हुआ है। अप्रार्थी बीमा विभाग में उक्त पत्र कभी भी प्रार्थी द्वारा नहीं दिया गया। इसी प्रकार किरायानामा दिनांक 01.02.2010 का अवलोकन किया गया। प्रार्थी द्वारा उक्त किरायानामा विश्वसनीय प्रतीत नहीं होता क्योंकि उक्त किरायानामा पूरी तरह से स्टाम्प पर नहीं है और ना ही नोटेरी द्वारा निस्पादित है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने उक्त किरायेनामे को फर्जी होने का कथन किया है। प्रार्थी व अप्रार्थी के तर्कों व दस्तावेजों से स्पष्ट है कि वर्तमान प्रकरण में विधि व तथ्य के जटिल प्रश्न विद्यमान है क्योंकि यदि प्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों को स्वीकार करे कि उसके द्वारा अप्रार्थी बीमा कम्पनी को प्लाॅट संख्या 71 को किराये पर लेने के सम्बंध में लिखा गया था जिसके उत्तर में अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने कोई जवाब नहीं दिया। इससे यह अवधारणा की जाती है कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने प्लाॅट एफ 71 में रखे माल को भी पूर्व में जारी बीमा पोलिसी में ही कवर करने के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया है।
8.    विधि अनुसार प्रार्थी का उक्त पत्र अप्रार्थी बीमा विभाग के पास एक प्रस्ताव के रूप में था। जिसका जवाब अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा नहीं किया गया। इससे यह स्पष्ट है कि प्रार्थी द्वारा रखा गया प्रस्ताव अप्रार्थी बीमा कम्पनी को स्वीकार नहीं था और जब प्रस्ताव स्वीकृत नहीं हुआ तो प्लाॅट संख्या 71 में रखे गये माल का बीमा होना नहीं माना जा सकता। उक्त तथ्य का सही विचारण विस्तृत साक्ष्य के माध्यम से ही किया जा सकता है क्योंकि प्रार्थी द्वारा अप्रार्थी बीमा कम्पनी को भेजा गया किराये का प्रस्ताव, संसूचित, उसकी स्वीकृत आदि विधि के जटिल प्रश्न है जिनका निस्तारण विस्तृत साक्ष्य के माध्यम से सक्षम सिविल न्यायालय में ही सही रूप से किया जा सकता है। इस मंच के द्वारा संक्षिप्त प्रक्रिया अपनाई जाती है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने प्रार्थी अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत पत्र दिनांक 15.03.2010 व किरायानामा को फर्जी व कुटरचित होने का अभिकथन किया है। यदि किसी परिवाद में दस्तावेजों के सम्बंध में फर्जी व कुटरचित होने के कथन किये गये हो तो ऐसे प्रकरण का विचारण संक्षिप्त प्रक्रिया के माध्यम से नहीं किया जा सकता। ऐसा ही कथन माननीय राष्ट्रीय आयोग ने अपने नवीनतम न्यायिक दृष्टान्त राकेश कुमार बनाम आई.सी.आई.सी.आई. पु्रडेन्शियल लाईफ इन्श्योरेन्स 2014 सी.पी.जे. 2 पेज 196 एन.सी. में दिया है। उक्त न्यायिक दृष्टान्त में माननीय राष्ट्रीय आयेाग ने यह मत दिया कि यदि किसी प्रकरण में फ्रोड व चिटिंग के कथन किये गये हो तो ऐसे प्रकरण का निस्तारण संक्षिप्त प्रक्रिया के द्वारा नहीं किया जा सकता। उपरोक्त न्यायिक दृष्टान्त के तथ्य वर्तमान प्रकरण पर पूर्णत चस्पा होते है क्येांकि वर्तमान प्रकरण में अप्रार्थी अधिवक्ता ने प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत मुख्य दस्तावेज पत्र दिनांक 15.03.2010 व किरायानामा को फर्जी व कुटरचित होने का कथन किया है। उक्त दोनों दस्तावेज इस प्रकरण के निस्तारण में अहम है और जिनकी सत्यता का पता विस्तृत साक्ष्य के माध्यम से ही चल सकता है, न की संक्षिप्त प्रक्रिया के माध्यम से इसलिए मंच की राय में प्रार्थी के परिवाद में तथ्य व विधि के जटिल प्रश्न विद्यमान होने के कारण परिवाद इस मंच के क्षैत्राधिकार में चलने योग्य नहीं है परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
             अतः प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थी के विरूद्ध क्षैत्राधिकार के अभाव में अस्वीकार कर खारिज किया जाता है। पक्षकार प्रकरण का व्यय अपना-अपना वहन करेंगे। प्रार्थी अपना प्रकरण सक्षम सिविल न्यायालय में प्रस्तुत करने हेतु स्वतन्त्र है।
               
सुभाष चन्द्र              नसीम बानो                षिव शंकर
  सदस्य                 सदस्या                     अध्यक्ष                         
    निर्णय आज दिनांक 07.04.2015 को लिखाया जाकर सुनाया गया।
    
 
सुभाष चन्द्र              नसीम बानो                षिव शंकर
     सदस्य                सदस्या                     अध्यक्ष     
 
 

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