(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष्ा आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-451/2019
(जिला उपभोक्ता आयोग, झांसी द्वारा परिवाद संख्या-89/2016 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 03.12.2018 के विरूद्ध)
दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लि0, विद्युत वितरण नगरीय खण्ड प्रथम सुकुवां ढुकुवां कालोनी, सिविल लाइन्स, झांसी द्वारा अधिशासी अभियन्ता।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
उदय प्रकाश कश्यप (मृतक) पुत्र स्व0 राधे लाल, निवासी 682/1, सी.पी. मिशन कम्पाउण्ड, निकट रेलवे लाइन, सीपरी बाजार, जिला झांसी।
(मृतक)
1/1. श्रीमती माया देवी पत्नी स्व0 उदय प्रकाश कश्यप।
1/2. जितेन्द्र प्रताप कश्यप पुत्र स्व0 उदय प्रकाश कश्यप।
(प्रतिस्थापित विधिक वारिसान)
प्रत्यर्थीगण/प्रतिस्थापित विधिक वारिसान/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री दीपक मेहरोत्रा, विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री आलोक सिन्हा, विद्वान
अधिवक्ता।
दिनांक : 25.08.2022
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-89/2016, उदय प्रकाश कश्यप बनाम दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लि0 में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, झांसी द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 03.12.2018 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है। इस निर्णय एवं आदेश द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते
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हुए विद्युत विभाग द्वारा मीटर में छेड़छाड़ के बाद किए गए राजस्व निर्धारण एवं शमन शुल्क अंकन 22,085/- रूपये को मय ब्याज निरस्त करने का आदेश पारित किया तथा यह भी आदेशित किया कि भविष्य में विद्युत कनेक्शन विच्छेदित न किया जाए और उपभोग की गई रीडिंग के अनुसार ही बिल जारी किया जाए।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी ने अपने मकान के लिए विद्युत संयोजन प्राप्त किया। विद्युत विभाग द्वारा दिनांक 06.01.2016 को विद्युत मीटर खम्भे से उतारकर दूसरा नया इलेक्ट्रिक मीटर स्थापित किया गया तथा सीलिंग प्रमाण पत्र संख्या-6/1361 जारी किया गया। विद्युत मीटर की जांच के लिए दिनांक 29.01.2016 नियत की गई। परिवादी द्वारा फरवरी 2016 तक के सभी बिल जमा कर दिए गए। विपक्षी द्वारा जारी पत्र दिनांक 02.03.2016 परिवादी को दिनांक 07.03.2016 को प्राप्त हुआ, जिसमें शमन शुल्क अंकन 8,000/- रूपये एवं राजस्व निर्धारण अंकन 14,085/- रूपये जमा करने के लिए निर्देशित किया गया, परन्तु इस तिथि को कार्यालय बंद था। मीटर जांच के संबंध में कार्यालय जाने पर भी कोई उपलब्ध नहीं मिला। दिनांक 06.01.2016 को प्रश्नगत मीटर की फर्जी जांच दर्शाते हुए गैर कानूनी तरीके से शमन शुल्क एवं राजस्व निर्धारण कर दिया गया और 3 दिन के अन्दर जमा न करने पर विद्युत कनेक्शन काटने के लिए कहा गया। परिवादी के परिसर से उतारा गया विद्युत मीटर का परीक्षण परिवादी के सामने नहीं किया गया, इसलिए विद्युत शुल्क निर्धारण के विरूद्ध यह परिवाद प्रस्तुत किया गया।
3. विपक्षी का कथन है कि पुराने मीटर के स्थान पर नया मीटर स्थापित किया गया। सीलिंग प्रमाण पत्र परिवादी/उपभोक्ता को दिया गया, इसके बाद दिनांक 29.01.2016 को परीक्षण की सूचना दी गई तथा परिवादी को सूचित किया गया, परन्तु परिवादी उपस्थित नहीं हुआ। जांच
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करने पर संयोजन से उतारने के बाद विद्युत मीटर की बॉडी खुली पायी गयी तथा मीटर में बाह्य रजिस्टेंस लगे पाए गए। इस प्रकार उपभोक्ता विद्युत चोरी करता पाया गया, इसलिए राजस्व निर्धारण अंकन 14,085/- रूपये किया गया, परन्तु परिवादी ने इस राजस्व निर्धारण की राशि का भुगतान नहीं किया और इस निर्धारण के विरूद्ध विद्युत अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत कोई अपील प्रस्तुत न करते हुए उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत कर दिया गया।
4. दोनों पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उपरोक्त वर्णित निर्णय एवं आदेश पारित किया गया।
5. इस निर्णय एवं आदेश के विरूद्ध अपील इन आधारों पर प्रस्तुत की गई है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अवैध निर्णय पारित किया गया है। विद्युत मीटर के परीक्षण के पश्चात निर्धारित राज्ास्व को अदा करने के लिए परिवादी उत्तरदायी है, जिसकी राशि अंकन 14,085/- रूपये है तथा शमन शुल्क अंकन 8,000/- रूपये है। जांच के समय स्वंय परिवादी उपस्थित नहीं आया। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने विद्युत अधिनियम के विपरीत निर्णय पारित किया है तथा माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई व्यवस्थाओं के विपरीत भी निर्णय पारित किया है। अत: यह निर्णय अपास्त होने योग्य है।
6. अपीलार्थी एवं प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्तागण को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
7. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि प्रयोगशाला में उस मीटर का परीक्षण किया गया, जो परिवादी के परिसर में संचालित था। परिवादी को भी यह तथ्य स्वीकार है कि उसके परिसर में लगाया गया विद्युत मीटर उतारा गया और उसके स्थान पर नया मीटर
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लगाया गया। परिवादी का यह कहना है कि उसके सामने परीक्षण नहीं किया गया, जबकि अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि उतारे गए विद्युत मीटर को सील किया गया था, जिसकी रसीद परिवादी को दी गई थी तथा परीक्षण की तिथि को उपस्थित होने के लिए नोटिस दिया गया था। पत्रावली पर मौजूद दस्तावेज संख्या-20 से यह तथ्य स्थापित होता है कि पुराने मीटर संख्या-एन 207157 को सील किया गया है, इस दस्तावेज पर उपभोक्ता के हस्ताक्षर मौजूद हैं। अत: यह तथ्य स्थापित है कि जिस मीटर को सील किया गया, उसे उपभोक्ता के समक्ष सील किया गया। इसी दस्तावेज में परीक्षण की तिथि दिनांक 29.01.2016 अंकित है। परिवादी का यह कथन है कि दिनांक 29.01.2016 को वह विद्युत विभाग के संबंधित कार्यालय में उपस्थित हुआ, परन्तु वहां कोई नहीं मिला। यह अभिवाक किसी भी प्रज्ञावान व्यक्ति के लिए ग्राह्य नहीं हो सकता कि किसी विभाग में कोई भी कर्मचारी उपस्थित न मिले। यदि परिवादी यथार्थ में इस तिथि को विद्युत विभाग के कार्यालय में उपस्थित हुआ था तब कोई न कोई कर्मचारी अवश्य मिलता और उस कर्मचारी से अपनी उपस्थिति का प्रमाण पत्र प्राप्त किया जा सकता था।
8. विद्युत मीटर में छेड़छाड़ पायी गयी। मीटर की बॉडी खुली पायी गयी, मीटर के बाह्य रजिस्टेंस पाए गए, इसलिए राजस्व निर्धारण की संस्तुति की गई, इस संस्तुति के आधार पर अंकन 14,085/- रूपये का राजस्व निर्धारण किया गया तथा शमन शुल्क अंकन 8,000/- रूपये निर्धारित किया गया तथा दिनांक 07.03.2016 तक जमा करने का आदेश दिया गया। परिवादी को यह तथ्य स्वीकार है कि उसे यह नोटिस प्राप्त हुआ, परन्तु नोटिस प्राप्त होने के बावजूद विद्युत अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार कोई अपील प्रस्तुत नहीं की गई और उपभोक्ता मंच के समक्ष परिवाद प्रस्तुत कर दिया गया।
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9. नजीर IV (2011) CPJ 181 (NC) के अनुसार विद्युत मीटर परीक्षण के पश्चात यदि चोरी होना पाया जाता है और चेकिंग रिपोर्ट के आधार पर दण्ड अधिरोपित किया जाता है तब उपभोक्ता इस दण्ड राशि को अदा करने के लिए उत्तरदायी है। एक अन्य नजीर I (2011) CPJ 66 (NC) में व्यवस्था दी गई है कि उपभोक्ता के परिसर में लगे हुए मीटर को चेक किया गया, चेक करने पर विद्युत चोरी होना पाया गया, इसलिए अतिरिक्त विद्युत शुल्क वसूलने का आदेश दिया गया। इस तथ्य का कोई सबूत नहीं था कि लैबोरेटरी सही नहीं है। लैबोरेटरी की रिपोर्ट एक अकाट्य साक्ष्य है, इसलिए उपभोक्ता/परिवादी इस रिपोर्ट के आधार पर अतिरिक्त विद्युत शुल्क अदा करने के लिए उत्तरदायी हैं। इस नजीर में दी गई व्यवस्था प्रस्तुत केस के लिए पूर्णत: सुसंगत है। लैबोरेटरी रिपोर्ट को कोई चुनौती नहीं दी गई फिर यह भी कि अतिरिक्त विद्युत शुल्क निर्धारण के विरूद्ध विद्युत अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत अपील की व्यवस्था है। उपभोक्ता/परिवादी द्वारा इस प्रावधान का भी लाभ प्राप्त नहीं किया गया और अवैधानिक रूप से उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत कर दिया गया। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने उपरोक्त वर्णित विधिक प्रावधानों पर कोई विचार नहीं किया और सरसरी तौर पर यह निष्कर्ष दे दिया गया कि लैबोरेटरी चेकिंग रिपोर्ट में सीलिंग प्रमाण पत्र में मीटर की बॉडी सील एवं टी.पी. सील सुरक्षित पायी गयी, जबकि इस तथ्य पर कोई विचार नहीं किया कि मीटर में छेड़छाड़ अंदरूनी भाग में होती है न कि बाहरी भाग में। नजीर IV (2009) CPJ 308 (NC) में व्यवस्था दी गई है कि यदि उपभोक्ता राजस्व निर्धारण से संतुष्ट नहीं है तब वह अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील प्रस्तुत कर सकता है, इस केस में चेकिंग रिपोर्ट पर उपभोक्ता ने हस्ताक्षर नहीं किए थे, जबकि प्रस्तुत केस में चेकिंग रिपोर्ट पर उपभोक्ता के हस्ताक्षर हैं तथा उनके द्वारा राजस्व निर्धारण के विरूद्ध
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विद्युत अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत कोई अपील भी प्रस्तुत नहीं की गई है, इसलिए विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश अपास्त होने और अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
10. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 03.12.2018 अपास्त किया जाता है तथा परिवाद संधारणीय न होने के कारण खारिज किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वंय वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (सुशील कुमार)
अध्यक्ष सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-1