जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद।
उपस्थित - (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-16/2010
विजय बहादुर आयु लगभग 70 साल पुत्र श्री राम बरन निवासी ग्राम खानपुर परगना अमसिन त0 सदर जिला फैजाबाद। .............. परिवादी
बनाम
1. प्रबन्धक यू0को0 बैंक आफ इण्डिया रिकाबगंज फैजाबाद।
2. प्रोपराइटर प्रभा आटो एच0एम0टी0 टैक्टर, नाका मुजफरा फैजाबाद।
.............. विपक्षीगण
निर्णय दिनाॅंक 19.10.2015
उद्घोशित द्वारा: श्री विश्णु उपाध्याय, सदस्य।
निर्णय
परिवादी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादी ने विपक्षी संख्या 2 से संपर्क किया क्यों कि विपक्षी संख्या 2 के पास एच0एम0टी0 टैªक्टर की एजेन्सी है और वह टैªक्टर बेचने का काम करता है। परिवादी ने विपक्षी संख्या 2 से टैªक्टर की कीमत पूछी तो उसने बताया कि टैªक्टर रुपये 2,70,000/- का है तथा बताया कि कागज बनवाने तथा बीमा कराने में रुपये 10,000/- लगेंगे। परिवादी ने विपक्षी संख्या 2 को रुपये 2,30,000/- अपनी खेती बेच कर तथा मेली मददगार से रुपये ले कर दे दिये। परिवादी के ऊपर रुपये 50,000/- बकाया रह गया जिसके लिये विपक्षी संख्या 2 ने कहा कि विपक्षी संख्या 1 से रुपये 50,000/- का ऋण दिलवा देंगे कल आइये। दूसरे दिन परिवादी विपक्षी संख्या 2 के पास गया तो वह परिवादी को विपक्षी संख्या 1 के पास ले गया और परिवादी से कागजातों पर हस्ताक्षर करवाये और रुपये 50,000/- का ऋण होने की बात बतायी, परिवादी वृद्ध व अनपढ़ व्यक्ति है, जिस पर परिवादी ने विपक्षी संख्या 1 व 2 की बातों पर विष्वास कर लिया। ऋण लेते समय परिवादी ने बैंक में बताया कि परिवादी विपक्षी संख्या 2 को रुपये 2,30,000/- अदा कर चुका है, जिसे विपक्षी संख्या 2 ने वहां पर स्वीकार भी किया। दिनांक 06.03.2006 को विपक्षी संख्या 1 बैंक का एक विधिक नोटिस परिवादी को मिला तब उसे मालूम हुआ कि विपक्षीगण ने मिलीभगत व शड़यंत्र कर के दिनांक 08.07.2005 को रुपये 3,50,000/- का ऋण स्वीकृत करा दिया। नोटिस की बात सुन कर परिवादी बेहोष हो कर गिर गया। होष आने पर अपने अधिवक्ता के द्वारा यह परिवाद दाखिल किया है। विपक्षी संख्या 2 ने परिवादी को न तो टैªक्टर के कागजात दिये और न ही बीमा कराया। विपक्षी संख्या 2 से रुपये 2,20,000/- वसूल कर परिवादी के ऋण खाते में विपक्षी संख्या 1 के यहां जमा कराया जाय, परिवादी को विपक्षी संख्या 2 से रुपये 1,00,000/- क्षतिपूर्ति दिलायी जाय तथा विपक्षी संख्या 1 को निर्देषित किया जाय कि वह परिवादी से कोई वसूली न करंे और उत्पीड़न की कार्यवाही न करें।
विपक्षी संख्या 1 बैंक ने अपना उत्तर पत्र पस्तुत किया है तथा कथित किया है कि परिवादी ने अपना परिवाद गलत तथ्यों पर दाखिल किया है। परिवादी ने एक परिवाद संख्या 70 सन 2006 ‘‘विजय बहादुर मिश्रा बनाम प्रबन्धक यूको बैंक आदि’’ माननीय फोरम के समक्ष योजित किया था जिसके तथ्य अक्षरषः इस परिवाद मंे लिखे गये हैं। परिवादी का परिवाद संख्या 70 सन 2006 दिनांक 06.11.2008 को फोरम द्वारा निर्णीत/खारिज किया जा चुका है। इसलिये प्रस्तुत परिवाद फोरम के समक्ष पोशणीय नहीं है। परिवादी ने स्वयं अपने सहयोगियों के साथ सम्बन्धित कर्मचारी से संपर्क किया तथा नियमानुसार ऋण के सम्बन्ध में कागजात तैयार करवा कर उत्तरदाता से दिनांक 18.07.2005 को रुपये 3,50,000/- का ऋण स्वीकृत कराया तथा उक्त रकम से परिवादी ने टैªक्टर खरीदा। परिवादी ने हीरक जयन्ती कृशि योजना में टैªक्टर खरीदने के लिये दिनांक 09.07.2005 को आवेदन किया था और ऋण के लिये अपनी भूमि की खतौनी और खसरा की नकल मय षपथ पत्र बैंक में प्रस्तुत किया था और पूजा आटो सेल्स फैजाबाद से एच0एम0टी0 टैªक्टर, कल्टीवेटर, तथा उससे सम्बन्धित उपकरण खरीदने के लिये कोटेषन प्रस्तुत किया था तथा बैंक के सलाहकार ने परिवादी की भूमि के सम्बन्ध में पूरी जांच पड़ताल करने के बाद रिपोर्ट दी थी। रिपोर्ट के बाद दिनांक 18-07-2005 को परिवादी ने ऋण के सभी कागजातों पर अपने हस्ताक्षर किये और हाइपोथिकेषन एग्रीमेंट निश्पादित किये उसके बाद परिवादी को सारी बात हिन्दी मंे समझा दी गयी थी। परिवादी द्वारा प्रस्तुत किये गये कोटेषन के अनुसार मैसर्स प्रभा एसोसिएट्स फर्म के नाम बैंकर्स चेक बना कर परिवादी को दे दिया। परिवादी ने प्रभा आटो सेल्स से टैªक्टर की डिलीवरी ले कर तथा असल इनवायस प्राप्त कर के बैंक को प्रस्तुत किया। परिवादी को अठारह छमाही किष्तों में दस प्रतिषत ब्याज पर ऋण की अदायगी करनी थी, लेकिन परिवादी ने ऋण लेने के बाद से आज तक अपने ऋण खाते में एक भी रुपया जमा नहीं किया है, जब कि एक साल से अधिक बीत चुका है। परिवादी के ऋण खाते पर ब्याज लगाये जाने के कारण डेबिट बैलेंस बढ़ कर रुपये 3,91,740/- हो गया है। परिवादी ने जानबूझ कर बैंक के बकाये का भुगतान नहीं किया है। परिवादी को बैंक से कई बार विधिक नोटिस भेजे गये तथा मौखिक रुप से बैंक की किष्तों की अदायगी के लिये कहा मगर परिवादी आष्वासन देता रहा मगर कोई रुपया जमा नहीं किया। परिवादी अपनी जिम्मेदारी विपक्षी संख्या 2 पर डाल कर अपनी जिम्मेदारी से बच रहा है और उसे शड़यंत्रकारी बता कर रुपये 1,00,000/- क्षतिपूर्ति की मंाग कर रहा है। परिवादी ने बैंक की वसूली से बचने के लिये अपना परिवाद दाखिल किया है। परिवादी को ऋण के रुप में दी गयी धनराषि लोक धन है जिसे परिवादी हड़पने का अनर्गल प्रयास कर रहा है। परिवादी का परिवाद मय हर्जे खर्चे के खारिज किये जाने योग्य है।
दिनांक 27.11.2013 को विपक्षी संख्या 2 का लिखित कथन का अवसर समाप्त किया गया था तब से निर्णय के पूर्व तक विपक्षी संख्या 2 ने न तो कोई रिकाल प्रार्थना पत्र दिया और न ही फोरम के समक्ष उपस्थित हुआ।
पत्रावली का भली भंाति परिषीलन किया तथा परिवादी एवं विपक्षीगण द्वारा दाखिल साक्ष्यों व प्रपत्रों का अवलोकन किया। परिवादी एवं विपक्षी बैंक द्वारा दाखिल प्रपत्रांे से प्रमाणित है कि परिवादी ने अपने परिवाद के तथ्यों को छिपा कर अपना परिवाद दाखिल किया है। परिवादी ने इस परिवाद के पूर्व भी फोरम में अपना परिवाद संख्या 70 सन 2006 विजय बहादुर मिश्रा बनाम प्रबन्धक यूको बैंक आदि फोरम के समक्ष योजित किया था जिसके तथ्य और इस परिवाद के तथ्य एक ही हैं। परिवाद संख्या 70 सन 2006 निर्णीत किया जा चुका है। परिवादी ने अपने पक्ष के समर्थन में ऐसा कोई साक्ष्य दाखिल नहीं किया है जिससे यह प्रमाणित हो कि परिवादी के साथ विपक्षी संख्या 1 व 2 ने कोई शड़यंत्र या धोखा धड़ी की है। परिवादी ने अपनी लिखित बहस दिनांक 16.10.2015 को दाखिल की है तथा सूची पर दिनांक 19.10.2015 को कागजात खसरा खतौनी तथा अन्य कागजात दाखिल किये हैं जिनमें परिवादी के ऋण से कोई ताल मेल नहीं है। परिवादी अपना परिवाद प्रमाणित करने में असफल रहा है। विपक्षी बैंक ने अपनी सेवा में कोई कमी नहीं की है। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 19.10.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष